Most popular trending quotes in Hindi, Gujarati , English

World's trending and most popular quotes by the most inspiring quote writers is here on BitesApp, you can become part of this millions of author community by writing your quotes here and reaching to the millions of the users across the world.

New bites

positive vibes

kattupayas.101947

ધન્વંતરિ દેવનો આશિર્વાદ એ,
નહીં કોઈ આડઅસર,
કે ન કોઈ નુકસાન!
ભલે કરે ફાયદો લાંબાગાળે,
હોય એ ફાયદો આજીવન માટે!
સમજાવવા મહત્ત્વ આયુર્વેદનું,
ઉજવાય 23 સપ્ટેમ્બર ભારતમાં,
'રાષ્ટ્રીય આયુર્વેદ દિવસ' તરીકે.
લઈએ સંકલ્પ આજે સૌ,
સ્વસ્થ રહીએ, મસ્ત રહીએ!

s13jyahoo.co.uk3258

ಕೃಷ್ಣ ಪ್ರಜ್ಞೆ

​ಕೃಷ್ಣ ಪ್ರಜ್ಞೆ ಎಂದರೆ ಇಸ್ಕಾನ್ (ISKCON) ಸಂಸ್ಥಾಪಕರಾದ ಶ್ರೀಲ ಪ್ರಭುಪಾದರು ಆರಂಭಿಸಿದ ಒಂದು ಆಧ್ಯಾತ್ಮಿಕ ಚಳುವಳಿಯಾಗಿದ್ದು. ಇದು ಭಗವದ್ಗೀತೆಯಲ್ಲಿನ ಉಪದೇಶಗಳನ್ನು ಆಧರಿಸಿದೆ.

​ಹಾಗಾದರೆ, ಕೃಷ್ಣ ಪ್ರಜ್ಞೆ ಎಂದರೆ ಏನು?
​ಸರಳವಾಗಿ ಹೇಳುವುದಾದರೆ, ಕೃಷ್ಣ ಪ್ರಜ್ಞೆ ಎಂದರೆ ನಮ್ಮ ಜೀವನದ ಕೇಂದ್ರದಲ್ಲಿ ಶ್ರೀಕೃಷ್ಣನನ್ನು ಇರಿಸುವುದು. ಪ್ರಪಂಚದ ಎಲ್ಲಾ ಜೀವಿಗಳು, ಅಂದರೆ ಮನುಷ್ಯರು, ಪ್ರಾಣಿಗಳು, ಸಸ್ಯಗಳು - ಎಲ್ಲವೂ ಭಗವಂತನ ಅಂಶಗಳು. ಈ ಜಗತ್ತಿನಲ್ಲಿ ನಾವು ಯಾವುದನ್ನು ಅನುಭವಿಸುತ್ತೇವೆಯೋ ಅಥವಾ ಮಾಡುತ್ತೇವೆಯೋ ಅದೆಲ್ಲವೂ ಕೃಷ್ಣನಿಗೆ ಸಂಬಂಧಿಸಿದ್ದು ಎಂಬ ಅರಿವು ಹೊಂದುವುದೇ ಕೃಷ್ಣ ಪ್ರಜ್ಞೆ.

​ಇದನ್ನು ಹೇಗೆ ಅಭ್ಯಾಸ ಮಾಡಬಹುದು?
​ಹರೇ ಕೃಷ್ಣ ಮಂತ್ರ ಜಪಿಸುವುದು ಈ ಚಳುವಳಿಯ ಪ್ರಮುಖ ಭಾಗ. ಹರೇ ಕೃಷ್ಣ ಹರೇ ಕೃಷ್ಣ, ಕೃಷ್ಣ ಕೃಷ್ಣ ಹರೇ ಹರೇ, ಹರೇ ರಾಮ ಹರೇ ರಾಮ, ರಾಮ ರಾಮ ಹರೇ ಹರೇ ಎಂಬ ಈ ಮಂತ್ರವನ್ನು ಜಪಿಸುವುದರಿಂದ ಮನಸ್ಸು ಶಾಂತವಾಗುತ್ತದೆ ಮತ್ತು ಭಗವಂತನೊಂದಿಗೆ ನಿಕಟ ಸಂಪರ್ಕ ಸ್ಥಾಪಿಸಲು ಸಹಾಯ ಮಾಡುತ್ತದೆ ಎಂದು ನಂಬಲಾಗಿದೆ.
ಕೇವಲ ಮಂತ್ರ ಜಪಿಸುವುದಷ್ಟೇ ಅಲ್ಲದೆ, ಪ್ರಭುಪಾದರು ನಮ್ಮ ದೈನಂದಿನ ಜೀವನದಲ್ಲಿ ಕೆಲವು ನಿಯಮಗಳನ್ನು ಅಳವಡಿಸಿಕೊಳ್ಳಲು ಸೂಚಿಸಿದ್ದಾರೆ. ಸಸ್ಯಾಹಾರ ಸೇವಿಸುವುದು, ಮಾದಕ ವ್ಯಸನಗಳಿಂದ ದೂರವಿರುವುದು, ಮತ್ತು ನೈತಿಕ ಜೀವನ ನಡೆಸುವುದು ಇದರ ಭಾಗವಾಗಿದೆ. ಈ ಮೂಲಕ, ನಾವು ನಮ್ಮ ಜೀವನದ ಆನಂದವನ್ನು ಭೌತಿಕ ವಸ್ತುಗಳಲ್ಲಿ ಹುಡುಕುವ ಬದಲು, ಆಧ್ಯಾತ್ಮಿಕವಾಗಿ ಭಗವಂತನಲ್ಲಿ ಕಾಣಬಹುದು.

ಇನ್ನೊಂದು ರೀತಿಯಲ್ಲಿ ಹೇಳುವುದಾದರೆ ಕೃಷ್ಣ ಪ್ರಜ್ಞೆ ಎನ್ನುವುದು ಒಂದು ಜೀವನ ವಿಧಾನ. ಇದು ಭೌತಿಕ ಜಗತ್ತಿನ ಕಟ್ಟುಪಾಡುಗಳಿಂದ ಮುಕ್ತಿ ಪಡೆಯಲು ಮತ್ತು ಆಂತರಿಕ ಶಾಂತಿಯನ್ನು ಕಂಡುಕೊಳ್ಳಲು ಸಹಾಯ ಮಾಡುತ್ತದೆ. ಶ್ರೀಕೃಷ್ಣನನ್ನು ನಮ್ಮ ಜೀವನದ ಭಾಗವನ್ನಾಗಿ ಮಾಡಿಕೊಂಡು, ಪ್ರತಿಯೊಂದು ಕ್ರಿಯೆಯಲ್ಲೂ ಅವನನ್ನು ನೆನಪಿಸಿಕೊಳ್ಳುವ ಒಂದು ಮಾರ್ಗವಾಗಿದೆ.

sandeepjoshi.840664

🌟 हार के बाद जीत

राजस्थान के एक छोटे से गाँव में अर्जुन नाम का युवक रहता था। बचपन से ही उसकी आँखों में बड़ा सपना था—वह देश का सबसे बड़ा खिलाड़ी बनना चाहता था। गाँव की गलियों में लकड़ी का बल्ला और पुराने टायर से बने बॉल के साथ खेलते हुए वह दिन-रात मेहनत करता।

ग़रीबी उसके साथ जन्म से जुड़ी थी। पिता किसान थे, जिनकी खेती पर अक्सर सूखा और बारिश की मार पड़ती। माँ घर का काम करतीं और कभी दूसरों के घर में चूल्हा-चौका भी कर देतीं। कई बार ऐसा होता कि अर्जुन के पास खेलने के लिए सही जूते तक नहीं होते। लेकिन उसके चेहरे पर मुस्कान और दिल में जुनून हमेशा मौजूद रहता।

पहली हार

कई साल की मेहनत के बाद अर्जुन को जिला स्तर की प्रतियोगिता में खेलने का मौका मिला। पूरे गाँव की उम्मीदें उस पर थीं। उसने जी-जान लगाकर तैयारी की। लेकिन जब मैदान में उतरा तो अनुभवहीनता और दबाव के कारण हार गया।

लोगों ने कहना शुरू कर दिया—
"अरे ये तो बस गाँव में अच्छा खेलता है, बड़े खिलाड़ियों के सामने कुछ नहीं कर पाएगा।"

अर्जुन टूट गया। उसे लगा जैसे सब खत्म हो गया हो।

माँ की सीख

उस रात माँ ने चुपचाप उसके कंधे पर हाथ रखा और बोलीं—
"बेटा, हार से बड़ा गुरु कोई नहीं होता। अगर सच में मंज़िल तक पहुँचना है तो गिरकर उठना सीखना होगा। याद रख, हारकर भी जो हिम्मत न हारे वही असली विजेता है।"

माँ की बात ने अर्जुन के दिल में आग जला दी।

पुनः प्रयास

अर्जुन ने हार को अपनी कमजोरी नहीं बल्कि सीढ़ी बनाया।
वह सुबह सूरज निकलने से पहले उठता और रात तक प्रैक्टिस करता। कई बार पसीने से कपड़े भीग जाते, पैरों में छाले पड़ जाते, लेकिन वह रुकता नहीं।

कुछ ही महीनों में उसके खेल में निखार आ गया। उसने फिर से जिला प्रतियोगिता में हिस्सा लिया। इस बार वह पहले से कहीं ज्यादा तैयार था। मैदान पर कदम रखते ही सबको लगा जैसे यह वही अर्जुन नहीं है जो पहले हार गया था।

और हुआ भी वैसा ही—इस बार अर्जुन ने शानदार प्रदर्शन किया और पहला स्थान पाया।

बड़ी चुनौती

जिला जीतने के बाद राज्य स्तर की प्रतियोगिता सामने थी। अब दबाव और भी ज्यादा था। विरोधी खिलाड़ी प्रशिक्षित और सुविधाओं से लैस थे। अर्जुन के पास अभी भी पुराने जूते और सस्ते सामान ही थे। लेकिन उसके पास जो चीज़ थी, वह किसी और के पास नहीं—हार से मिली सीख और फिर से उठने का साहस।

राज्य प्रतियोगिता कठिन थी। कई बार ऐसा लगा कि वह हार जाएगा, लेकिन हर बार वह माँ की बात याद करता और और जोश के साथ खेलता। अंत में उसने सबको पीछे छोड़ते हुए राज्य चैम्पियनशिप जीत ली।

अंतिम सबक

उसकी जीत सिर्फ एक खेल की जीत नहीं थी। यह उस साहस की जीत थी जो हार के बाद भी टूटता नहीं। गाँव के लोग अब कहते—
"अर्जुन ने हमें सिखाया कि हार अंत नहीं, बल्कि नए सफर की शुरुआत है।"

अर्जुन ने मंच पर खड़े होकर ट्रॉफी उठाई और भीड़ से कहा—
"जीतने वाले वही नहीं होते जो कभी हारते नहीं… बल्कि वही होते हैं, जो हर हार के बाद और मज़बूत होकर खड़े होते हैं।"



✅ संदेश:
जीवन में हार से घबराना नहीं चाहिए। असली साहस वही है जब इंसान हार को स्वीकार कर फिर से पूरे जोश के साथ आगे बढ़े। यही पृथ्वी पर इंसान की सबसे बड़ी परीक्षा और सबसे बड़ी जीत है।

rajukumarchaudhary502010

🌟 हार के बाद जीत

राजस्थान के एक छोटे से गाँव में अर्जुन नाम का युवक रहता था। बचपन से ही उसकी आँखों में बड़ा सपना था—वह देश का सबसे बड़ा खिलाड़ी बनना चाहता था। गाँव की गलियों में लकड़ी का बल्ला और पुराने टायर से बने बॉल के साथ खेलते हुए वह दिन-रात मेहनत करता।

ग़रीबी उसके साथ जन्म से जुड़ी थी। पिता किसान थे, जिनकी खेती पर अक्सर सूखा और बारिश की मार पड़ती। माँ घर का काम करतीं और कभी दूसरों के घर में चूल्हा-चौका भी कर देतीं। कई बार ऐसा होता कि अर्जुन के पास खेलने के लिए सही जूते तक नहीं होते। लेकिन उसके चेहरे पर मुस्कान और दिल में जुनून हमेशा मौजूद रहता।

पहली हार

कई साल की मेहनत के बाद अर्जुन को जिला स्तर की प्रतियोगिता में खेलने का मौका मिला। पूरे गाँव की उम्मीदें उस पर थीं। उसने जी-जान लगाकर तैयारी की। लेकिन जब मैदान में उतरा तो अनुभवहीनता और दबाव के कारण हार गया।

लोगों ने कहना शुरू कर दिया—
"अरे ये तो बस गाँव में अच्छा खेलता है, बड़े खिलाड़ियों के सामने कुछ नहीं कर पाएगा।"

अर्जुन टूट गया। उसे लगा जैसे सब खत्म हो गया हो।

माँ की सीख

उस रात माँ ने चुपचाप उसके कंधे पर हाथ रखा और बोलीं—
"बेटा, हार से बड़ा गुरु कोई नहीं होता। अगर सच में मंज़िल तक पहुँचना है तो गिरकर उठना सीखना होगा। याद रख, हारकर भी जो हिम्मत न हारे वही असली विजेता है।"

माँ की बात ने अर्जुन के दिल में आग जला दी।

पुनः प्रयास

अर्जुन ने हार को अपनी कमजोरी नहीं बल्कि सीढ़ी बनाया।
वह सुबह सूरज निकलने से पहले उठता और रात तक प्रैक्टिस करता। कई बार पसीने से कपड़े भीग जाते, पैरों में छाले पड़ जाते, लेकिन वह रुकता नहीं।

कुछ ही महीनों में उसके खेल में निखार आ गया। उसने फिर से जिला प्रतियोगिता में हिस्सा लिया। इस बार वह पहले से कहीं ज्यादा तैयार था। मैदान पर कदम रखते ही सबको लगा जैसे यह वही अर्जुन नहीं है जो पहले हार गया था।

और हुआ भी वैसा ही—इस बार अर्जुन ने शानदार प्रदर्शन किया और पहला स्थान पाया।

बड़ी चुनौती

जिला जीतने के बाद राज्य स्तर की प्रतियोगिता सामने थी। अब दबाव और भी ज्यादा था। विरोधी खिलाड़ी प्रशिक्षित और सुविधाओं से लैस थे। अर्जुन के पास अभी भी पुराने जूते और सस्ते सामान ही थे। लेकिन उसके पास जो चीज़ थी, वह किसी और के पास नहीं—हार से मिली सीख और फिर से उठने का साहस।

राज्य प्रतियोगिता कठिन थी। कई बार ऐसा लगा कि वह हार जाएगा, लेकिन हर बार वह माँ की बात याद करता और और जोश के साथ खेलता। अंत में उसने सबको पीछे छोड़ते हुए राज्य चैम्पियनशिप जीत ली।

अंतिम सबक

उसकी जीत सिर्फ एक खेल की जीत नहीं थी। यह उस साहस की जीत थी जो हार के बाद भी टूटता नहीं। गाँव के लोग अब कहते—
"अर्जुन ने हमें सिखाया कि हार अंत नहीं, बल्कि नए सफर की शुरुआत है।"

अर्जुन ने मंच पर खड़े होकर ट्रॉफी उठाई और भीड़ से कहा—
"जीतने वाले वही नहीं होते जो कभी हारते नहीं… बल्कि वही होते हैं, जो हर हार के बाद और मज़बूत होकर खड़े होते हैं।"



✅ संदेश:
जीवन में हार से घबराना नहीं चाहिए। असली साहस वही है जब इंसान हार को स्वीकार कर फिर से पूरे जोश के साथ आगे बढ़े। यही पृथ्वी पर इंसान की सबसे बड़ी परीक्षा और सबसे बड़ी जीत है।

rajukumarchaudhary502010

🌟 हार के बाद जीत

राजस्थान के एक छोटे से गाँव में अर्जुन नाम का युवक रहता था। बचपन से ही उसकी आँखों में बड़ा सपना था—वह देश का सबसे बड़ा खिलाड़ी बनना चाहता था। गाँव की गलियों में लकड़ी का बल्ला और पुराने टायर से बने बॉल के साथ खेलते हुए वह दिन-रात मेहनत करता।

ग़रीबी उसके साथ जन्म से जुड़ी थी। पिता किसान थे, जिनकी खेती पर अक्सर सूखा और बारिश की मार पड़ती। माँ घर का काम करतीं और कभी दूसरों के घर में चूल्हा-चौका भी कर देतीं। कई बार ऐसा होता कि अर्जुन के पास खेलने के लिए सही जूते तक नहीं होते। लेकिन उसके चेहरे पर मुस्कान और दिल में जुनून हमेशा मौजूद रहता।

पहली हार

कई साल की मेहनत के बाद अर्जुन को जिला स्तर की प्रतियोगिता में खेलने का मौका मिला। पूरे गाँव की उम्मीदें उस पर थीं। उसने जी-जान लगाकर तैयारी की। लेकिन जब मैदान में उतरा तो अनुभवहीनता और दबाव के कारण हार गया।

लोगों ने कहना शुरू कर दिया—
"अरे ये तो बस गाँव में अच्छा खेलता है, बड़े खिलाड़ियों के सामने कुछ नहीं कर पाएगा।"

अर्जुन टूट गया। उसे लगा जैसे सब खत्म हो गया हो।

माँ की सीख

उस रात माँ ने चुपचाप उसके कंधे पर हाथ रखा और बोलीं—
"बेटा, हार से बड़ा गुरु कोई नहीं होता। अगर सच में मंज़िल तक पहुँचना है तो गिरकर उठना सीखना होगा। याद रख, हारकर भी जो हिम्मत न हारे वही असली विजेता है।"

माँ की बात ने अर्जुन के दिल में आग जला दी।

पुनः प्रयास

अर्जुन ने हार को अपनी कमजोरी नहीं बल्कि सीढ़ी बनाया।
वह सुबह सूरज निकलने से पहले उठता और रात तक प्रैक्टिस करता। कई बार पसीने से कपड़े भीग जाते, पैरों में छाले पड़ जाते, लेकिन वह रुकता नहीं।

कुछ ही महीनों में उसके खेल में निखार आ गया। उसने फिर से जिला प्रतियोगिता में हिस्सा लिया। इस बार वह पहले से कहीं ज्यादा तैयार था। मैदान पर कदम रखते ही सबको लगा जैसे यह वही अर्जुन नहीं है जो पहले हार गया था।

और हुआ भी वैसा ही—इस बार अर्जुन ने शानदार प्रदर्शन किया और पहला स्थान पाया।

बड़ी चुनौती

जिला जीतने के बाद राज्य स्तर की प्रतियोगिता सामने थी। अब दबाव और भी ज्यादा था। विरोधी खिलाड़ी प्रशिक्षित और सुविधाओं से लैस थे। अर्जुन के पास अभी भी पुराने जूते और सस्ते सामान ही थे। लेकिन उसके पास जो चीज़ थी, वह किसी और के पास नहीं—हार से मिली सीख और फिर से उठने का साहस।

राज्य प्रतियोगिता कठिन थी। कई बार ऐसा लगा कि वह हार जाएगा, लेकिन हर बार वह माँ की बात याद करता और और जोश के साथ खेलता। अंत में उसने सबको पीछे छोड़ते हुए राज्य चैम्पियनशिप जीत ली।

अंतिम सबक

उसकी जीत सिर्फ एक खेल की जीत नहीं थी। यह उस साहस की जीत थी जो हार के बाद भी टूटता नहीं। गाँव के लोग अब कहते—
"अर्जुन ने हमें सिखाया कि हार अंत नहीं, बल्कि नए सफर की शुरुआत है।"

अर्जुन ने मंच पर खड़े होकर ट्रॉफी उठाई और भीड़ से कहा—
"जीतने वाले वही नहीं होते जो कभी हारते नहीं… बल्कि वही होते हैं, जो हर हार के बाद और मज़बूत होकर खड़े होते हैं।"



✅ संदेश:
जीवन में हार से घबराना नहीं चाहिए। असली साहस वही है जब इंसान हार को स्वीकार कर फिर से पूरे जोश के साथ आगे बढ़े। यही पृथ्वी पर इंसान की सबसे बड़ी परीक्षा और सबसे बड़ी जीत है।

rajukumarchaudhary502010

🌟 हार के बाद जीत

राजस्थान के एक छोटे से गाँव में अर्जुन नाम का युवक रहता था। बचपन से ही उसकी आँखों में बड़ा सपना था—वह देश का सबसे बड़ा खिलाड़ी बनना चाहता था। गाँव की गलियों में लकड़ी का बल्ला और पुराने टायर से बने बॉल के साथ खेलते हुए वह दिन-रात मेहनत करता।

ग़रीबी उसके साथ जन्म से जुड़ी थी। पिता किसान थे, जिनकी खेती पर अक्सर सूखा और बारिश की मार पड़ती। माँ घर का काम करतीं और कभी दूसरों के घर में चूल्हा-चौका भी कर देतीं। कई बार ऐसा होता कि अर्जुन के पास खेलने के लिए सही जूते तक नहीं होते। लेकिन उसके चेहरे पर मुस्कान और दिल में जुनून हमेशा मौजूद रहता।

पहली हार

कई साल की मेहनत के बाद अर्जुन को जिला स्तर की प्रतियोगिता में खेलने का मौका मिला। पूरे गाँव की उम्मीदें उस पर थीं। उसने जी-जान लगाकर तैयारी की। लेकिन जब मैदान में उतरा तो अनुभवहीनता और दबाव के कारण हार गया।

लोगों ने कहना शुरू कर दिया—
"अरे ये तो बस गाँव में अच्छा खेलता है, बड़े खिलाड़ियों के सामने कुछ नहीं कर पाएगा।"

अर्जुन टूट गया। उसे लगा जैसे सब खत्म हो गया हो।

माँ की सीख

उस रात माँ ने चुपचाप उसके कंधे पर हाथ रखा और बोलीं—
"बेटा, हार से बड़ा गुरु कोई नहीं होता। अगर सच में मंज़िल तक पहुँचना है तो गिरकर उठना सीखना होगा। याद रख, हारकर भी जो हिम्मत न हारे वही असली विजेता है।"

माँ की बात ने अर्जुन के दिल में आग जला दी।

पुनः प्रयास

अर्जुन ने हार को अपनी कमजोरी नहीं बल्कि सीढ़ी बनाया।
वह सुबह सूरज निकलने से पहले उठता और रात तक प्रैक्टिस करता। कई बार पसीने से कपड़े भीग जाते, पैरों में छाले पड़ जाते, लेकिन वह रुकता नहीं।

कुछ ही महीनों में उसके खेल में निखार आ गया। उसने फिर से जिला प्रतियोगिता में हिस्सा लिया। इस बार वह पहले से कहीं ज्यादा तैयार था। मैदान पर कदम रखते ही सबको लगा जैसे यह वही अर्जुन नहीं है जो पहले हार गया था।

और हुआ भी वैसा ही—इस बार अर्जुन ने शानदार प्रदर्शन किया और पहला स्थान पाया।

बड़ी चुनौती

जिला जीतने के बाद राज्य स्तर की प्रतियोगिता सामने थी। अब दबाव और भी ज्यादा था। विरोधी खिलाड़ी प्रशिक्षित और सुविधाओं से लैस थे। अर्जुन के पास अभी भी पुराने जूते और सस्ते सामान ही थे। लेकिन उसके पास जो चीज़ थी, वह किसी और के पास नहीं—हार से मिली सीख और फिर से उठने का साहस।

राज्य प्रतियोगिता कठिन थी। कई बार ऐसा लगा कि वह हार जाएगा, लेकिन हर बार वह माँ की बात याद करता और और जोश के साथ खेलता। अंत में उसने सबको पीछे छोड़ते हुए राज्य चैम्पियनशिप जीत ली।

अंतिम सबक

उसकी जीत सिर्फ एक खेल की जीत नहीं थी। यह उस साहस की जीत थी जो हार के बाद भी टूटता नहीं। गाँव के लोग अब कहते—
"अर्जुन ने हमें सिखाया कि हार अंत नहीं, बल्कि नए सफर की शुरुआत है।"

अर्जुन ने मंच पर खड़े होकर ट्रॉफी उठाई और भीड़ से कहा—
"जीतने वाले वही नहीं होते जो कभी हारते नहीं… बल्कि वही होते हैं, जो हर हार के बाद और मज़बूत होकर खड़े होते हैं।"



✅ संदेश:
जीवन में हार से घबराना नहीं चाहिए। असली साहस वही है जब इंसान हार को स्वीकार कर फिर से पूरे जोश के साथ आगे बढ़े। यही पृथ्वी पर इंसान की सबसे बड़ी परीक्षा और सबसे बड़ी जीत है।

rajukumarchaudhary502010

विज्ञान (Modern Science
🔹 विज्ञान (Modern Science
)

1. शरीर (पार्वती)

वैज्ञानिक दृष्टि से शरीर सचमुच पंचतत्व का मेल है: कार्बन (पृथ्वी), पानी (जल), गर्मी/ऊर्जा (अग्नि), श्वास-गैसें (वायु), और स्पेस/स्पेस-टाइम (आकाश)।

शरीर जन्म लेता है, बढ़ता है, फिर नाश होता है — यह सत्य है, भ्रम नहीं।

2. आत्मा/चेतना (शिव)

विज्ञान इसे "Consciousness" कहकर अब भी उलझा है।

Neuroscience कहता है — मस्तिष्क की जटिल गतिविधियों से चेतना उभरती है।

Quantum Physics और कुछ आधुनिक सिद्धांत मानते हैं कि चेतना ब्रह्मांड का मौलिक गुण हो सकती है (Panpsychism)।

अभी विज्ञान निर्णायक उत्तर तक नहीं पहुँचा, पर यह मानने लगा है कि चेतना केवल मस्तिष्क की मशीनरी से परे रहस्य है।

3. मन (गणेश)

Psychology और Neuroscience कहते हैं:

मन का कोई स्थायी बीज नहीं है। यह यादों, अनुभवों, धारणाओं और तंत्रिका गतिविधियों का प्रवाह है।

“Self” या “मैं” कोई स्थायी चीज़ नहीं, बल्कि दिमाग़ द्वारा रची गयी कल्पना है।

Mind is “emergent” — यह शरीर और मस्तिष्क की गतिविधि का अस्थायी परिणाम है, कोई अलग पदार्थ नहीं।

यह बिल्कुल तुम्हारी बात से मेल खाता है: मन बीजहीन है, भ्रम है, छाया है।........ विस्तृत शेष

manishborana.210417

“सच्ची पत्नी का रिश्ता क्यों बुरा कहा जाता है?”

घर में सबसे ज्यादा इम्तिहान अगर किसी का होता है, तो वह होती है सच्ची पत्नी का।
कितनी भी ईमानदार, कितनी भी समर्पित क्यों न हो, समाज में, रिश्तेदारों में, यहां तक कि अपने ही पति की नज़रों में भी उसका संघर्ष किसी को दिखाई नहीं देता।
एक छोटी सी चूक, या किसी और की ग़लतफहमी, और सारा ठप्पा उसके माथे पर लग जाता है – “बुरी” या “घर तोड़ने वाली”।

आज के समय में पतियों के इर्द-गिर्द सिर्फ उनका परिवार ही नहीं, बल्कि उनके बाहर के रिश्ते और सोशल मीडिया का दबाव भी होता है।
अगर पति किसी और औरत की तरफ झुक जाए, तो भी समाज का पहला सवाल पत्नी से ही होता है – “तुमने ऐसा क्या किया कि वो दूर हो गया?”
यहां तक कि अगर पति की प्रेमिका खुलेआम पोस्ट डाले, पत्नी की छवि खराब करे, तो भी दोषी पत्नी ही बनती है।
पति पहले परिवार और प्रेमिका की बात सुनता है, पत्नी की सफाई बाद में।
फिर भी पत्नी चुप रहती है, रिश्ते को बचाने की कोशिश करती है।

एक तरफ घर के संस्कार, दूसरी तरफ पति के बदलते व्यवहार, तीसरी तरफ समाज और सोशल मीडिया का दबाव — इन सबके बीच एक सच्ची पत्नी ही है जो अपने मन, आंसुओं और आत्मसम्मान से लड़ते हुए भी सब कुछ संभालने की कोशिश करती है।
कितनी बार वह अपनी बात कह भी नहीं पाती, क्योंकि डर होता है – कहीं यह घर, यह रिश्ता टूट न जाए।
वह जानती है कि अगर वह हार गई, तो सबसे पहले उसी को दोषी ठहराया जाएगा।

सच्ची पत्नी का संघर्ष किसी चुनौती से कम नहीं होता।
वह अपने बच्चों, अपने घर, अपने रिश्ते और अपने आत्मसम्मान के बीच संतुलन बनाने की कोशिश करती है।
कई बार वह खुद टूट जाती है, लेकिन घर को टूटने नहीं देती।
फिर भी उसकी वफ़ादारी, उसका त्याग और उसका मौन समाज के लिए “सामान्य” हो जाता है।
लोग सोचते हैं कि यह तो उसका कर्तव्य है।
लेकिन कोई नहीं देखता कि इस कर्तव्य के नाम पर उसने कितने अपने सपने, कितने अपने हक़, और कितनी बार अपने आंसू कुर्बान किए हैं।

सच्ची पत्नी वही है जो अपने पति को समझने की कोशिश करती है, यहां तक कि तब भी जब पति उसे समझने की कोशिश नहीं करता।
सच्ची पत्नी वही है जो अपने रिश्ते को बचाने के लिए अपने घाव छुपाती है।
सच्ची पत्नी वही है जो बिना कहे अपने घर को थामे रहती है, और लोगों की नज़रों में “बुरी” बन जाती है।

> “सच्ची पत्नी जितना कौन संघर्ष करता है?
वह अपने रिश्ते, अपनी गरिमा और अपने घर के लिए रोज़ लड़ती है,
फिर भी उसी को दोषी कहा जाता है।”






यह बात दोनों पर लागू है स्त्री और पुरुष जो सच में दिल से निभाते हैं

archanalekhikha

"મા" તારા ખોળે રમતો હું બાળ,
ભટકું ના ભવરણમાં, લેજો સંભાળ!

આપણે અંબે માતાને કઈ રીતે પ્રસન્ન કરી શકીએ? એ માટે અહીં વાંચો: https://dbf.adalaj.org/EF8SBRwz

#HappyNavratri #navratrispecial #navratrifestival #ambemaa #trending #DadaBhagwanFoundation

dadabhagwan1150

ದೇವಸ್ಥಾನಕ್ಕೆ ಏಕೆ ಭೇಟಿ ನೀಡಬೇಕು?
​ದೇವಸ್ಥಾನವು ಕೇವಲ ಪೂಜಾ ಸ್ಥಳವಲ್ಲ. ಇದು ಶಾಂತಿ ಮತ್ತು ಆಧ್ಯಾತ್ಮಿಕ ಶಕ್ತಿಯನ್ನು ಪಡೆಯುವ ಸ್ಥಳವಾಗಿದ್ದು
ದೇವಸ್ಥಾನಗಳಿಗೆ ಭೇಟಿ ನೀಡುವುದರಿಂದ ಅನೇಕ ಕೆಲವು ಪ್ರಯೋಜನಗಳನ್ನು ಪಡೆಯಬಹುದು.

ಪ್ರಯೋಜನಗಳು
1) ಮನಸ್ಸಿಗೆ ಶಾಂತಿ: ದೇವಸ್ಥಾನದ ವಾತಾವರಣವು ತುಂಬಾ ಶಾಂತಿಯುತವಾಗಿರುತ್ತದೆ. ಇಲ್ಲಿಗೆ ಭೇಟಿ ನೀಡುವುದರಿಂದ ಮನಸ್ಸಿನ ಒತ್ತಡ ಕಡಿಮೆಯಾಗಿ, ಮನಸ್ಸಿಗೆ ಶಾಂತಿ ಸಿಗುತ್ತದೆ.
2) ಸಕಾರಾತ್ಮಕ ಶಕ್ತಿ: ದೇವಸ್ಥಾನಗಳಲ್ಲಿ ಸಕಾರಾತ್ಮಕ ಶಕ್ತಿಯು ಹೆಚ್ಚಾಗಿರುತ್ತದೆ. ಇಲ್ಲಿಗೆ ಭೇಟಿ ನೀಡುವುದರಿಂದ ನಮ್ಮಲ್ಲಿ ಹೊಸ ಉತ್ಸಾಹ ಮತ್ತು ಸಕಾರಾತ್ಮಕ ಭಾವನೆಗಳು ಮೂಡುತ್ತವೆ.
3) ಸಂಸ್ಕೃತಿ ಮತ್ತು ಸಂಪ್ರದಾಯದ ಪರಿಚಯ: ದೇವಸ್ಥಾನಗಳು ನಮ್ಮ ಸಂಸ್ಕೃತಿ ಮತ್ತು ಸಂಪ್ರದಾಯಗಳನ್ನು ಪ್ರತಿಬಿಂಬಿಸುತ್ತವೆ. ಇಲ್ಲಿಗೆ ಭೇಟಿ ನೀಡುವುದರಿಂದ ನಮ್ಮ ಪೂರ್ವಜರ ಸಂಪ್ರದಾಯಗಳು ಮತ್ತು ಆಚರಣೆಗಳ ಬಗ್ಗೆ ತಿಳಿದುಕೊಳ್ಳಬಹುದು.
4) ಒಂದುಗೂಡುವ ಭಾವನೆ: ದೇವಸ್ಥಾನಗಳಲ್ಲಿ ಜನರು ಒಟ್ಟಾಗಿ ಪ್ರಾರ್ಥನೆ ಮಾಡುತ್ತಾರೆ. ಇದರಿಂದ ಸಮುದಾಯದಲ್ಲಿ ಒಂದುಗೂಡುವ ಮತ್ತು ಸಾಮರಸ್ಯದ ಭಾವನೆ ಹೆಚ್ಚಾಗುತ್ತದೆ.
5) ಆಧ್ಯಾತ್ಮಿಕ ಚಿಂತನೆ:ದೇವಸ್ಥಾನದಲ್ಲಿ ನಾವು ನಮ್ಮ ದಿನನಿತ್ಯದ ಜೀವನದ ಒತ್ತಡಗಳಿಂದ ದೂರವಾಗಿ, ಆಧ್ಯಾತ್ಮಿಕ ಚಿಂತನೆಗಳಲ್ಲಿ ತೊಡಗಬಹುದು. ಇದರಿಂದ ನಮ್ಮ ಜೀವನದ ಉದ್ದೇಶದ ಬಗ್ಗೆ ಸ್ಪಷ್ಟತೆ ಸಿಗುತ್ತದೆ.

ಇನ್ನೊಂದು ರೀತಿಯಲ್ಲಿ ಹೇಳುವುದಾದರೆ ದೇವಸ್ಥಾನಕ್ಕೆ ಭೇಟಿ ನೀಡುವುದು ಕೇವಲ ಒಂದು ಧಾರ್ಮಿಕ ಆಚರಣೆಯಲ್ಲ, ಇದು ನಮ್ಮ ಜೀವನವನ್ನು ಸಮೃದ್ಧಗೊಳಿಸುವ ಒಂದು ಮಾರ್ಗವಾಗಿದೆ.

​ನೀವು ದೇವಸ್ಥಾನಗಳಿಗೆ ಏಕೆ ಭೇಟಿ ನೀಡುತ್ತೀರಿ? ನಿಮ್ಮ ಅನಿಸಿಕೆಗಳನ್ನು ನನ್ನೊಂದಿಗೆ ಹಂಚಿಕೊಳ್ಳಿ.

sandeepjoshi.840664

ना नफरत मिली हमे ना उनका प्यार चाहिए था
अकेले पन मे थे हमे बस उनका साथ चाहिए था
वो दोलत के भूखे थे और हमने दोलत लुटाई
हम जोगी बने रहे उन्हे संसार चाहिए था.

mashaallhakhan600196

आंखों को आदत सी हो गई है,
तुम्हारे दिल को देखने की.
रोज सुबह उठकर,
तुम्हारे बारे में सोचने की.
​जब तुम मेरे सामने होते हो,
तो दुनिया खो जाती है.
तुमसे बात करके,
मेरे मन में खुशी आ जाती है.
​तुम्हारी मुस्कान मुझे जीने का अर्थ देती है।
क्योंकि तुम मेरी आदत बन गए हो.

palewaleawantikagmail.com200557

શબ્દોમાં ઘણું જ સાર્મથ્ય રહેલું છે.
જાણ્યું છે અનુભવ્યું છે ત્યારે જ માણ્યું છે.

શબ્દો અમૃત અને વિષ બન્ને રહ્યા.
અરે, શબ્દ તો શબ્દ જ છે પહેલી નજરે.

બસ તેની પસંદગી તેને પસંદ કરનારને મહાન અથવા નિમ્ન બનાવે છે.


શબ્દોનાં પડઘા પર્વતમાં પણ કંપન પેદા કરી શકે છે
શબ્દોના ધ્વનિ સમુદ્ર પણ વમળોની ચક્રવાત સર્જી શકે છે.

શબ્દ માર્ગ રોકી પણ દે.
શબ્દ માર્ગ આપી પણ દે.
તે શબ્દોનાં ઉપયોગ પર રહ્યું.

શબ્દ નું સાર્મથ્ય માણસની 'વિવેકબુદ્ધિ' રહી.
કહેવાય છે કે શબ્દો રાજ અપાવે છે, તો રાજ લૂંટાવી પણ દે.


યોગ્ય શબ્દ ની સમજ ના હોય કે ઉતાવળ હોય તો કુંભકર્ણ ની માફક ઇન્દ્રાસન ની જગ્યાએ નિંદ્રાસન પણ પ્રાપ્ત કરવું પડે છે.

ક્યારેક શબ્દોની પસંદગીમાં પણ નિયતિ ખેલ ભજવી જાય!

જે કદાચ કેટલાય લોકો સાથે કુંભકર્ણ ની જેમ થતું હશે.

મહાભારતના યુદ્ધનું કારણ મુખ્યત્વે પાંડવોને થયેલો અન્યાય એકલો જ ના કહી શકાય.

કિન્તુ દ્રોપદી દ્વારા બોલાયેલા વિષાક્ત શબ્દોનો પણ સમાવેશ થઈ શકે.

આંધળા ના છોકરાં પણ આંધળા રહ્યા.

સંપૂર્ણ સત્ય ખબર નહીં પરંતુ આ રીતે શબ્દો હોય તો કારણ તો યુદ્ધનું બન્ને બીજા પક્ષે.

જો શબ્દ 'વચન' બને તો પ્રાણ પણ લૂંટાવી દે
જો શબ્દ 'શ્રાપ' બને તો પ્રાણ લઈ પણ લે.

શબ્દોમાં ઘણી જ ઉર્જા રહેલી છે.
સમગ્ર બ્રહ્માંડ નાં સર્જન અને ચલાયમાન ગતિમાં ધ્વનિ નું પણ એક આગવું અલગ મહત્વ રહેલું છે. ધ્વનિ પણ એક શક્તિશાળી ઉર્જા જ રહી.

શબ્દો પણ ધ્વનિ નો જ એક અદશ્ય ભાગ રહ્યો.
હા પણ ઘણું બધું દશ્યમાન કરી દે છે.

જે માણસને શબ્દોની પસંદગી ની સમજણ નથી તેની જીંદગીમાં ઘણી જ અણસમજ પેદાં થઇ શકે છે.

parmarmayur6557

गुलाबी थंडी
गुलाबी थंडी..कोवळी पहाट..
कोवळी पहाट...अन झाडी घनदाट..!!
झाडी,,घनदाट..!!..आणि वळणांची वाट..
वळणाची वाट..आणि जवळीक खास..!!
जवळीक खास..!!..असा बेधुंद प्रवास..
बेधुंद प्रवास...खुळा.असा हा एकांत..
खुळा असा हा एकांत....वेड लावितो जीवाला..
वेड लावितो जिवाला..".सखे" धुंद तुझा श्वास....
धुंद तुझा श्वास...नको असे वेड लावु...
नको असे वेड लावु...जनरीत आड येते..!!
जनरीत आड येते...तुला मला आडवते...!!
...................................व्रुषाली...

jayvrishaligmailcom

ನಾನು ಕಂಡ ಆ ನಗು,
ಮುಂಜಾನೆಯ ಹೂವಂತೆ.
ಅದು ಅರಳಿದಾಗ,
ಲೋಕವೇ ನಕ್ಕಂತೆ.
​ಅದು ಹೂವಲ್ಲ, ನಕ್ಷತ್ರ,
ನನ್ನ ಆಕಾಶದಲಿ ಹೊಳೆಯುವ.
ಕತ್ತಲೆಯಲ್ಲೂ ಬೆಳಕು ಚೆಲ್ಲುವ,
ನನ್ನ ದಾರಿ ಬೆಳಗುವ.
​ಆ ನಗು ಒಂದು ಹಾಡು,
ಇಂಪಾದ ಸಂಗೀತದ ಹೊಳೆ.
ಕೇಳುತ್ತಲೇ ಇರಬೇಕೆನ್ನುವ,
ಮನದಲಿ ಸಂತಸ ತುಂಬುವ.

sandeepjoshi.840664

love story book ke liye follow kare

jaiprakash413885

ममता गिरीश त्रिवेदी की कविताएं

mamtatrivedi444291

ઉપાયોની દુનિયા

દરેક જગ્યાએ દુનિયા ઉપાય વેચી રહી છે.
“આ મંત્ર જપો, આ કોર્સ કરો, આ ટેક્નિક અપનાવો, આ પુસ્તક લો.”
દરેકનો દાવો એક જ — ઉકેલ અને સફળતા.

પણ દરેક ઉપાય સમયથી બંધાયેલ છે.
આજે ચાલે, કાલે ઉલટું થઈ જાય.
એટલે ઉપાય સંસારના છે — સાચા આધ્યાત્મિક નથી.

હા, એક હદ સુધી ઉપાય જરૂરી છે.
જ્યાં સુધી માણસ અજ્ઞાનમાં છે,
ત્યાં સુધી શિક્ષણ, વિજ્ઞાન, અભ્યાસ તેનો આધાર છે.
આ સાધનો છે — પણ અંતિમ મંજિલ નહીં.

મુક્તિનો માર્ગ ઉપાયોથી આગળ શરૂ થાય છે.
જ્યાં ઉપાય છૂટે, ત્યાં આત્મા અને શૂન્યનો દ્વાર ખુલે છે.
ધાર્મિક મુક્તિ ક્યારેય કોઈ પદ્ધતિથી નથી,
પણ ત્યારે જ મળે છે જ્યારે ઉપાયોની જરૂરત જ સમાપ્ત થઈ જાય છે.

સૂત્ર
“ઉપાય ત્યાં સુધી છે જ્યાં અજ્ઞાન છે.
જ્યાં બોધ છે, ત્યાં ઉપાયની જરૂર નથી.
વિજ્ઞાન અને શિક્ષણ સાધન છે—
પણ મુક્તિનો માર્ગ શૂન્ય છે.”

ગીતામાં કૃષ્ણ વારંવાર સમજાવે છે: કર્મ, યોગ, ભક્તિ બધું સાધન છે; પરંતુ અંતિમ શરણ માત્ર આત્મામાં છે.

બુદ્ધએ પણ એ જ કહ્યું: ધ્યાન, નિયમ બધું નાવની જેમ છે; પાર ઉતરી જાવ તો નાવની પણ જરૂર રહેતી નથી.

ઓશોએ આધુનિક ભાષામાં કહ્યું: “ટેકનિક માત્ર સીડીઓ છે; મુક્તિ ત્યાં છે જ્યાં સીડીઓ પણ છૂટી જાય છે.”

કોઈ પણ પરંપરા લો — વેદાંત, બુદ્ધ કે આધુનિક ધ્યાન — બધું એ જ કહે છે: ઉપાય મર્યાદિત છે, અને મુક્તિ ઉપાયથી પર છે.

ઉપાય ખરાબ નથી; અજ્ઞાન છે ત્યાં સુધી જરૂરી છે.
પણ જે ઉપાયને જ અંતિમ સત્ય માની લે છે, તે ત્યાં જ અટકી જાય છે.

✍🏻 — 🙏🌸 Agyat Agyani

manishborana.210417

The World of Remedies

Everywhere the world is selling remedies.
“Chant this mantra, take this course, adopt this technique, read this book.”
All promising the same — solution and success.

But every remedy is bound by time.
What works today, may fail tomorrow.
That’s why remedies are worldly — not truly spiritual.

Yes, up to a point, remedies are useful.
Until a person awakens to the Unknown,
education, science, and practice serve as support.
They are means — but never the destination.

The path of liberation begins beyond remedies.
Where remedies drop, the doorway to the Self and the Void opens.
Spiritual freedom is never through any method or technique,
but through that moment when no method is needed anymore.

Sutra
“Remedies exist only where ignorance exists.
Where awakening is, remedies are not.
Science and learning are means—
but liberation is the path of emptiness.”

The Gita teaches the same: Krishna again and again explains that karma, yoga, devotion are tools, but the final refuge is only in the Self.

Buddha also said the same: meditation and discipline are like a boat; once you cross the river, even the boat must be left behind.

Osho reminded in modern words: “Techniques are only ladders; freedom begins when even the ladder is gone.”

Every tradition — Vedanta, Buddha, or modern meditation — accepts this: remedies are limited, and liberation is beyond them.

Remedies are not wrong; they are needed while ignorance remains.
But the one who mistakes the remedy for the Truth, remains stuck there.

✍🏻 — 🙏🌸 Agyat Agyani

manishborana.210417

"HOPE"

Hope is the whisper in the restless night,
A quiet flame, a steadfast light.
It rises gently when the heart feels low,
A tender force that helps us grow.

It is the seed beneath the frozen ground,
Waiting patiently to be found.
Through storms and trials, it bends, not breaks,
A promise strong that courage makes.

Hope is the song the morning sings,
The subtle joy that small moments bring.
It is the hand that reaches through despair,
A soothing presence, constant and rare.

When darkness lingers, long and deep,
Hope is the dream we choose to keep.
It teaches us to rise, to start anew,
To see the world in a brighter hue.

It asks for nothing, yet gives us all,
A steady bridge whenever we fall.
In every heart, it finds a home,
A guiding light that leads us home.

syedkazimhussainrizvi018768

Jab Raghu ne sanvi
Ko apne saamne
Kisi aur ke saath dekha

To kaha uske dil
Jab hoti hai
Bin mausam barsatein
Tabhi to hoti
Hai do dili me saazishein

Khushi iss baat ki
Tu saath hai
Par dukh hai
Iss baat ka ki
Tu kisi aur ke saath hai

Mein to wo Barasata pani
Hu jo kabhi kisi na ho saka
Na kinare ka na badal ka

Teri yaadein rahengi
Iss dil mein na kisi
Aur ki
Kyuki
Mein jo bhi kar
Lu tum kabhi mujhse
Pyar nhi kar sakti
Aur tum kitni bhi dur
Chali jao par ye
Dil kabhi tumhe bhula
Nhi sakta
Humeinsha tumhari
Reh ek premi baan ke
Ek deewana baan ke

gunjangayatri949036

​ಜಾಯಿಂಟ್ ಮೊಬೈಲೈಜೇಶನ್: ನೋವು ಮತ್ತು ಬಿಗಿತಕ್ಕೆ ಪರಿಹಾರ
ನಮ್ಮ ದೇಹದ ಚಲನೆಗೆ ಕೀಲುಗಳು ಎಷ್ಟು ಮುಖ್ಯ ಎಂದು ನಮಗೆಲ್ಲರಿಗೂ ಗೊತ್ತು. ಕುತ್ತಿಗೆ ತಿರುಗಿಸುವುದು, ಕೈ ಎತ್ತಿ ಕೆಲಸ ಮಾಡುವುದು ಅಥವಾ ಸುಮ್ಮನೆ ನಡೆಯುವುದು – ಈ ಎಲ್ಲದಕ್ಕೂ ನಮ್ಮ ಕೀಲುಗಳು ಸರಿಯಾಗಿ ಕೆಲಸ ಮಾಡಬೇಕು. ಆದರೆ, ಕೆಲವೊಮ್ಮೆ ಗಾಯ, ವಯಸ್ಸಾಗುವಿಕೆ ಅಥವಾ ದೀರ್ಘಕಾಲ ಒಂದೇ ಭಂಗಿಯಲ್ಲಿ ಕೂರುವ ಅಭ್ಯಾಸದಿಂದ ಕೀಲುಗಳಲ್ಲಿ ಬಿಗಿತ ಮತ್ತು ನೋವು ಕಾಣಿಸಿಕೊಳ್ಳುತ್ತದೆ. ಇದು ನಮ್ಮ ದೈನಂದಿನ ಜೀವನದ ಮೇಲೆ ಪರಿಣಾಮ ಬೀರಬಹುದು.
ಈ ಸಮಸ್ಯೆಗೆ ಒಂದು ಪರಿಣಾಮಕಾರಿ ಪರಿಹಾರವೇ ಜಾಯಿಂಟ್ ಮೊಬೈಲೈಜೇಶನ್

​ ಜಾಯಿಂಟ್ ಮೊಬೈಲೈಜೇಶನ್ ಎಂದರೇನು?
ಜಾಯಿಂಟ್ ಮೊಬೈಲೈಜೇಶನ್ ಎಂದರೆ ನಮ್ಮ ಕೀಲುಗಳ ಚಲನೆಯನ್ನು ಸುಧಾರಿಸಲು ಮತ್ತು ನೋವನ್ನು ಕಡಿಮೆ ಮಾಡಲು ನುರಿತ ಫಿಸಿಯೋಥೆರಪಿಸ್ಟ್‌ಗಳು ಮಾಡುವ ಒಂದು ಚಿಕಿತ್ಸೆ. ಇದರಲ್ಲಿ, ಥೆರಪಿಸ್ಟ್‌ಗಳು ತಮ್ಮ ಕೈಗಳನ್ನು ಬಳಸಿ ಕೀಲುಗಳ ಮೇಲೆ ನಿರ್ದಿಷ್ಟ ದಿಕ್ಕಿನಲ್ಲಿ ನಿಧಾನವಾಗಿ ಒತ್ತಡ ಹಾಕಿ ಅಥವಾ ಅವುಗಳನ್ನು ಸೂಕ್ಷ್ಮವಾಗಿ ಚಲಿಸುವಂತೆ ಮಾಡುತ್ತಾರೆ. ಇದು ಕೀಲುಗಳಲ್ಲಿನ ಬಿಗಿತವನ್ನು ಕಡಿಮೆ ಮಾಡಿ, ಅವುಗಳ ನೈಸರ್ಗಿಕ ಚಲನೆಯನ್ನು ಮರಳಿ ಪಡೆಯಲು ಸಹಾಯ ಮಾಡುತ್ತದೆ.

​ಇದು ಹೇಗೆ ಕೆಲಸ ಮಾಡುತ್ತದೆ?
​ಕೀಲುಗಳಲ್ಲಿನ ಬಿಗಿತದಿಂದಾಗಿ ಅವುಗಳ ಸುತ್ತಲಿನ ಸ್ನಾಯುಗಳು ಮತ್ತು ನರಗಳ ಮೇಲೆ ಒತ್ತಡ ಹೆಚ್ಚಾಗಬಹುದು. ಜಾಯಿಂಟ್ ಮೊಬೈಲೈಜೇಶನ್ ಈ ಒತ್ತಡವನ್ನು ಕಡಿಮೆ ಮಾಡಿ ರಕ್ತಪರಿಚಲನೆಯನ್ನು ಸುಧಾರಿಸುತ್ತದೆ. ಇದರಿಂದ ನೋವು ಕಡಿಮೆಯಾಗಿ, ನಾವು ಮತ್ತಷ್ಟು ಸುಲಭವಾಗಿ ಚಲಿಸಬಹುದು. ಇದು ಕೇವಲ ನೋವು ನಿವಾರಣೆ ಮಾತ್ರವಲ್ಲದೆ, ಕೀಲುಗಳು ತಮ್ಮ ಪೂರ್ಣ ಸಾಮರ್ಥ್ಯದಲ್ಲಿ ಕೆಲಸ ಮಾಡುವಂತೆ ಮಾಡುತ್ತದೆ.

​ಜಾಯಿಂಟ್ ಮೊಬೈಲೈಜೇಶನ್ ಯಾರಿಗೆ ಸೂಕ್ತ?
1) ಕ್ರೀಡಾ ಗಾಯಗಳಿಂದ ಬಳಲುತ್ತಿರುವವರಿಗೆ
2) ದೀರ್ಘಕಾಲದ ಬೆನ್ನು ಅಥವಾ ಕುತ್ತಿಗೆ ನೋವು ಇರುವವರಿಗೆ
3) ಸಂಧಿವಾತ ಸಮಸ್ಯೆಯಿಂದ ಬಳಲುತ್ತಿರುವವರಿಗೆ
4) ಶಸ್ತ್ರಚಿಕಿತ್ಸೆಯ ನಂತರ ಕೀಲುಗಳ ಪುನರ್ವಸತಿಗಾಗಿ

ಒಂದು ವಿಷಯ ನೆನಪಿಡಿ, ಈ ಚಿಕಿತ್ಸೆಯನ್ನು ಯಾವಾಗಲೂ ಒಬ್ಬ ಅರ್ಹ ಮತ್ತು ಪರವಾನಗಿ ಪಡೆದ ಫಿಸಿಯೋಥೆರಪಿಸ್ಟ್‌ನಿಂದಲೇ ಮಾಡಿಸಿಕೊಳ್ಳಬೇಕು. ಸ್ವಯಂ ಚಿಕಿತ್ಸೆ ಅಪಾಯಕಾರಿ.
ನಿಮ್ಮ ಕೀಲುಗಳ ಆರೋಗ್ಯವನ್ನು ನಿರ್ಲಕ್ಷಿಸಬೇಡಿ. ನಿಮಗೆ ನೋವು ಅಥವಾ ಬಿಗಿತದ ಸಮಸ್ಯೆ ಇದ್ದರೆ, ಜಾಯಿಂಟ್ ಮೊಬೈಲೈಜೇಶನ್ ಚಿಕಿತ್ಸೆಯ ಬಗ್ಗೆ ನಿಮ್ಮ ವೈದ್ಯರು ಅಥವಾ ಫಿಸಿಯೋಥೆರಪಿಸ್ಟ್ ಜೊತೆ ಮಾತನಾಡಿ. ಏಕೆಂದರೆ ಆರೋಗ್ಯಪೂರ್ಣ ಜೀವನಕ್ಕೆ ಚಲನೆಯೇ ಮೊದಲ ಹೆಜ್ಜೆ.

sandeepjoshi.840664

दृश्य

जब रघु ने सान्वी को,
किसी और के साथ देखा सामने,
उसके दिल ने कहा,
"बिन मौसम बरसातें जब होती हैं,
तब ही तो दिलों में साजिशें रचती हैं।"
खुशी इस बात की,
तू मेरे साथ है,
पर दुख उस बात का,
तू किसी और के पास है।
मैं वो बरसता पानी हूँ,
ना किनारे का, ना बादल.....

Check out complete Poem on Writco by Gunjan Gayatri
https://writco.in/Poem/P34909222025200446

👉 https://bit.ly/download-writco-app

#Writco #WritcoApp #WritingCommunity

gunjangayatri949036