पल भर घर में, पल भर बाहर, कहां उसको पकड़ने जाऊं?
कभी ये जिद करता है, कभी करता है नादानी,
अपनी ही धुन में रहता है, नहीं सुनता कहानी।
मन तो मेरा बच्चा है, कैसे उसको समझाऊं?
पल भर घर में, पल भर बाहर, कहां उसको पकड़ने जाऊं?
नई-नई बातें जानने को ये हमेशा उतावला,
रंग-बिरंगी दुनिया में खोने को ये बावला।
कभी बादल में घोड़े देखे, तारों में बनाए घर,
अपनी ही कल्पनाओं में उड़ता है बेफिकर।
मन तो मेरा बच्चा है, कैसे उसको समझाऊं?
पल भर घर में, पल भर बाहर, कहां उसको पकड़ने जाऊं?
इसे दुनिया की रीतें, कैसे मैं सिखाऊं?
ये तो भोला-भाला मन है, ढमक कैसे इसको बहलाऊं?
d h a m a k
the story book, ☘️