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#oldlove
Good morning - Rohan Beniwal
वैसे तो मुझे मदर्स डे मनाना पसंद नहीं, क्योंकि एक दिन उन्हें याद करके बाकी 364 दिन भूल जाना, मुझे बहुत अजीब लगता है। माँ तो वो एहसास हैं, जो हर सांस में होती हैं, हर पल हमारे साथ होती हैं। फिर भी, आज का दिन उनके नाम कुछ शब्द कहने को मजबूर करता है, दिल की गहराइयों से निकली ये पंक्तियाँ सिर्फ एक कोशिश हैं... माँ को समझाने की। माँ, तू थक जाए तो भी मुस्कुराती है, तेरे आंचल में सुकून की छाया है। तेरे बिना सब अधूरा लगता है, तू साथ हो तो हर रास्ता आसान लगता है। तेरी डांट में भी दुआ छुपी होती है, तेरे हाथ की रोटियों में जन्नत बसी होती है। तू कभी 'थैंक यू' नहीं मांगती, पर हम हर खुशी तेरे नाम कर देना चाहते हैं। माँ, तू हर दिन की हकदार है, सिर्फ एक दिन की नहीं।
सीकर, राजस्थान का एक छोटा सा शहर है जहाँ हर साल हज़ारों बच्चे आँखों में एक सपना लेकर आते हैं — जेईई पास करने का सपना, नीट क्लियर करने का सपना या सरकारी नौकरी पाने का सपना। सीकर की सर्द सुबहें किसी तपस्वी की साधना जैसी होती हैं। गलियों में उठती भाप जैसी चाय की महक, साइकिलों की घंटियाँ और कोचिंग सेंटरों के बाहर जुटी भीड़ एक अलग ही दुनिया बनाती हैं। इन्हीं में एक चेहरा था – अंकित। अंकित, एक साधारण ग्रामीण परिवेश से आया लड़का, जिसके चेहरे पर गहराई थी और आँखों में एक स्पष्ट उद्देश्य – राजस्थान के सरकारी स्कूल में शिक्षक बनना। उसके पिता का देहांत बचपन में ही हो गया था। माँ ने अपने छोटे-से खेत और दूसरों के खेतों में काम करके उसे बड़ा किया था। माँ की उम्मीद और गाँव की गरीबी दोनों उसकी आँखों में बसी थीं। read full story here — https://www.matrubharti.com/book/19973898/love-from-coaching-days
जब मेरे मन में कुछ भी लिखने को नहीं होता, तो मैं एक अजीब सी बेचैनी महसूस करता हूँ। कागज़ मेरे सामने होता है, कलम मेरे हाथ में होती है, लेकिन शब्द जैसे मेरा साथ छोड़ देते हैं। मैं जितना सोचता हूँ, उतना ही खालीपन महसूस करता हूँ। लगता है जैसे मेरे भीतर की सारी कल्पनाएँ कहीं खो गई हैं। कई बार मैं एक पंक्ति लिखता हूँ और फिर मिटा देता हूँ, क्योंकि वो दिल से नहीं निकलती। मैं खुद से सवाल करता हूँ – क्या मैं सच में एक लेखक हूँ? क्या मुझमें अब कुछ नया कहने की ताक़त बची है? ये ख़ामोशी मुझे थका देती है, अंदर से तोड़ने लगती है। लेकिन फिर भी, मैं बैठा रहता हूँ, क्योंकि मुझे भरोसा है कि यह सन्नाटा एक दिन टूटेगा। शब्द लौटेंगे, और जब लौटेंगे, तो मैं फिर से लिखूँगा –अपने दिल से।
मेरा एक प्रिय मित्र हैं , जो बहुत अच्छा लिखता है—दिल से, सच्चाई से। पर उसने लिखना छोड़ दिया। वजह सिर्फ़ इतनी थी कि उसे वो प्रतिक्रिया नहीं मिली जिसकी उसे उम्मीद थी। कुछ ने कुछ कहा ही नहीं, और जो बोले, उनमें कड़वाहट थी। शायद उसने सोचा कि उसके शब्द बेअसर हैं, कि उसकी आवाज़ कहीं नहीं पहुँच रही। पर सच्चाई यह है कि उसकी आवाज़ बहुत कीमती है—जैसे हर सच्चे लेखक की होती है। मैं लेखकों से कहना चाहता हूँ: प्रतिक्रिया से डरो मत। हर टिप्पणी, चाहे वह तारीफ़ हो या आलोचना, तुम्हारे भीतर एक नई समझ जगा सकती है।
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