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New bites

हे देवताओं! आप सब हमारे हृदयों को एकता और पवित्रता से जोड़ दें।
हमारे मन, विचार और भावनाएँ एक समान हों।
जैसे माता-पिता और संतान का मेल संस्कार और स्नेह से होता है, वैसे ही हम सबकी बुद्धि भी एकसमान और सुदृढ़ हो।

deepakbundela7179

weekend

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weekend fun

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weekend is ahead

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Good morning friends

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✧ सब कुछ ही ईश्वर है ✧

प्रस्तावना
“ईश्वर है या नहीं है” — यह सवाल ही अधूरा है।
क्योंकि यह हमें दो विकल्पों में बाँध देता है, जबकि सत्य तो तीसरा है —
कि यह पूरा अस्तित्व ही ईश्वर है।

🌱 समझने की बात यह है:
– यदि हम कहते हैं “ईश्वर नहीं है”, तो हम किसी मूर्त या काल्पनिक अवधारणा को नकार रहे हैं।
– यदि हम कहते हैं “ईश्वर है”, तो हम उसे किसी आकाश में बैठी सत्ता मान लेते हैं।
– जबकि सत्य यह है कि सब कुछ ही ईश्वर है।

🔥 पेड़, नदी, सूरज, हवा, जन्म, मृत्यु, प्रेम, पीड़ा — सब उसी ऊर्जा के रूप हैं।
किसी के लिए यह प्रकृति, किसी के लिए सृष्टि का नियम, किसी के लिए अस्तित्व, और किसी के लिए ईश्वर।

इसलिए “ईश्वर है या नहीं है” पर झगड़ना मूर्खता है।
जैसे लहर से पूछो — “समुद्र है या नहीं?”
लहर हंसेगी और कहेगी — “मैं ही समुद्र हूँ।”

👉 यही दृष्टि वेदांत ने कहा — “सर्वं खल्विदं ब्रह्म।”
(जो कुछ है, वही ब्रह्म है।)

✦ सूत्र ✦

✦ सूत्र १
“ईश्वर है या नहीं है” — यह सवाल ही अज्ञान है।

✦ सूत्र २
जब सब कुछ ही अस्तित्व है, तो उसे अलग से “ईश्वर” कहने की जरूरत नहीं।

✦ सूत्र ३
पेड़, नदी, पर्वत, आकाश, मनुष्य — सब उसी एक ऊर्जा के रूप हैं।

✦ सूत्र ४
लहर समुद्र से अलग नहीं, उसी का रूप है।
इसी तरह हम अस्तित्व से अलग नहीं।

✦ सूत्र ५
“ईश्वर होना या न होना” पर झगड़ना वैसा ही है जैसे श्वास पूछे —
“हवा है या नहीं?”

✦ सूत्र ६
वेदांत कहता है — “सर्वं खल्विदं ब्रह्म।”
जो कुछ है, वही ब्रह्म है।

✦ सूत्र ७
ईश्वर बाहर कहीं नहीं बैठा,
वह हमारी आँखों की रोशनी,
कानों की ध्वनि,
हृदय की धड़कन में है।

✦ सूत्र ८
जिसे कोई प्रकृति कहे,
कोई ब्रह्म,
कोई सृष्टि —
वह सब नाम उसी एक सत्ता के हैं।
✍🏻 🙏🌸 — 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷𝓲

#osho #आध्यात्मिक #IndianPhilosophy #spirituality #AI

bhutaji

✧ मनुष्य और सुधार का सत्य ✧

✦ प्रस्तावना

मनुष्य के सुधार पर सदियों से चर्चा होती रही है। शिक्षा, प्रवचन, नियम और उपदेश—सब प्रयास किए गए, लेकिन मनुष्य वही करता है जो उसके भीतर का बीज उसे करवाता है।
सच्चा परिवर्तन बाहर से थोपा नहीं जा सकता। वह केवल भीतर से जागरण से आता है। यही इस ग्रंथ का सार है।

✦ प्रथम खंड: व्याख्या

1. मनुष्य को कोई बाहर से सुधार नहीं सकता।
उसके भीतर जो बीज (गुण, संस्कार, प्रवृत्ति) है, वही फलता है। कितनी भी शिक्षा, समझाइश, प्रवचन या स्वप्न दिखाए जाएँ, मनुष्य उसी दिशा में जाएगा जो उसके भीतर बोया है।

2. सुधार केवल “जागरण” से होता है।
जब भीतर नई चेतना का बीज बोया जाए, तब ही विवेक, कर्तव्य और निष्ठा पैदा होती है। जागरण का अर्थ है—भीतरी आँख खुलना, मौन का स्पर्श होना।

3. बुद्धि एक पहाड़ जैसी है।
स्थिर, कठोर, नियमबद्ध। शिक्षा और विज्ञान इसी पहाड़ पर रास्ते बना सकते हैं, लेकिन उसे बहता हुआ नहीं बना सकते।

4. हृदय नदी है।
जब मनुष्य का हृदय बहने लगता है, तो वह महासागर (अनंत अस्तित्व) से जुड़ जाता है। सुधार बुद्धि से नहीं, हृदय के बहाव से होता है।

5. सुख-दुख का चक्र बुद्धि से चलता रहेगा।
बुद्धि जितनी बढ़ेगी, उतने ही नए संघर्ष, नए दुःख पैदा होंगे। मौन और होश से ही नया जीवन जन्म लेता है।

6. जरूरत है मौन की शिक्षा की।
पहले मनुष्य को मौन में बैठना सीखना होगा। जितना गहरा मौन, उतना गहरा संबंध अस्तित्व से। वहीं से नया बीज जन्म लेगा—विवेक का, प्रेम का, करुणा का।

✦ द्वितीय खंड: सूत्र

1. मनुष्य को कोई बाहर से सुधार नहीं सकता।

2. उसके भीतर जो बीज है, वही फलता है।

3. शिक्षा और प्रवचन केवल दिशा दिखा सकते हैं।

4. जागरण ही वास्तविक परिवर्तन है।

5. बुद्धि एक पहाड़ है—स्थिर, कठोर, सीमित।

6. शिक्षा पहाड़ पर रास्ता बना सकती है, उसे बहा नहीं सकती।

7. हृदय नदी है—जीवंत, बहती हुई, अनंत की ओर जाती।

8. सुधार बुद्धि से नहीं, हृदय के बहाव से होता है।

9. बुद्धि बढ़ेगी तो सुख-दुख का नया चक्र पैदा होगा।

10. मौन और होश से ही नया जीवन जन्म लेता है।

11. भीतर की आँख खुलना ही सच्चा परिवर्तन है।

12. मौन ही अस्तित्व से जुड़ने का पहला द्वार है।

13. मौन जितना गहरा, संबंध उतना गहरा।

14. मौन ही भीतर का बीज बोता है।

15. शिक्षा बाहर का विकास है, मौन भीतर का।

16. विवेक, प्रेम और करुणा मौन से ही जन्मते हैं।

17. प्रवचन बुद्धि को समझाते हैं, लेकिन हृदय को नहीं जगाते।

18. जगाने से ही अज्ञान मिटता है।

19. जगने से ही नया विवेक पैदा होता है।

20. हृदय जब बहता है, तभी महासागर मिलता है।

21. भविष्य का सुधार मौन की शिक्षा से ही होगा।

✦ समापन

मनुष्य का सच्चा सुधार बुद्धि के मार्गदर्शन से नहीं, हृदय के जागरण से होता है।
शिक्षा बाहर को विकसित करती है, लेकिन मौन भीतर को जगाता है।
भविष्य का धर्म यही होगा—मौन की शिक्षा, हृदय का बहाव और अस्तित्व से मिलन।

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✍🏻 🙏🌸 — 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷𝓲

bhutaji

Jab Raghu ne sanvi se pucha kyu karti ho tum mere liye itna to uske Mann ne kaha
Jab mein shant thi
To tu uss khamoshi ki
Khushi dekhta mujhe ko

Jab aasu the inn aankhon
Mein toh tu Bina Jane
Uss muskurahat mein
Badal dete the aapni baato se

Uss din jab sabne mujhe
Dhikara to tune
Mujhe sambhala

Har bar Bina Jane
Ki mein kon hu
Meri har baat
Sunni

Bina puche mere
Har sawal ka
Jawab diya

Shayad isliye ye dil na jaane par
Tumse jur chuka
Ye dimag to tumhe ab
Jana hai
Par ye dil to tabse
Tumhe janta hai
Jab tumne sambhala
Tha uss muskurahat ko

Ye jawab hai tumhare
Uss sawal ka jo
Tumhare dil ne
Pucha hai mere dil se

gunjangayatri949036

સાચું સુખ...

vijayparmar2820

anjurani6431

anjurani6431

✦ बुद्धि
बुद्धि पहाड़ जैसी है —
स्थिर, भारी, बूढ़ी चट्टानों से बनी।
वह खुद नहीं चलती, उसे रास्ते चाहिए,
नियम चाहिए, मानचित्र चाहिए।
जैसे कोई पहाड़ पर चढ़ने के लिए
पगडंडी बनाता है।
बुद्धि भी नियमों और तर्कों पर ही चलती है।
उसमें गति नहीं, जड़ता है।

✦ हृदय
हृदय नदी जैसा है —
बहता हुआ, जीवंत, अपना मार्ग स्वयं खोजता।
वह कभी रुकता नहीं,
बिना नक्शे के भी रास्ता बना लेता है।
और जब यह बहते-बहते समुद्र से मिलता है,
तो एक विशाल, अनंत,
हमेशा हिलती-जागती गहराई में बदल जाता है।
हृदय कभी स्थिर नहीं रहता,
वह हर लहर में धड़कता है।

✦ संबंध
इसलिए हृदय बुद्धि से बड़ा है।
बुद्धि सीमित है, पहाड़ जैसी,
हृदय असीम है, समुद्र जैसा।
बुद्धि को हमेशा नियम चाहिए,
हृदय को सिर्फ़ बहाव चाहिए।
बुद्धि बूढ़ी है, हृदय हमेशा जवान है।

bhutaji

🙏 Pray for Punjab 🙏

gautamsuthar129584

सुकून की जंग 🔥



ग़ालिब देख अपना हुलिया,

कोई नहीं आने वाला तुम्हें समेटने…

खुद बिखर कर,

यहीं समिटना सीख जा।

और तू देख अपना सुकून,

ख़त्म कर वो रिश्ते

जो तुझे सिर्फ़ दर्द देते हैं। ✨



- Nensi Vithalani

nensivithalani.210365

Goodnight friends

kattupayas.101947

कितनों ने कोशिश की हमें जुदा कराने की,
रिश्ते में दरारें डालकर दिल बहलाने की।
पर मेरी हर प्रार्थना भोलेनाथ से यही रही,
कि शिव–शक्ति जैसे, हमारी डोर कभी न ढही।

तुम अपनी बातों में मुझे बसाते हो,
और लोग चेहरे बदलकर किस्से सुनाते हो।
तुम्हारे सीधेपन का लोग फ़ायदा उठाते हैं,
हममें दरारें डालकर झगड़े करवाते हैं।

वो तुम्हें बहकाते हैं, मुझे बुरा बताते हैं,
ताकि हमारा रिश्ता कमजोर होकर टूट जाए।
पर मेरी दुआएँ गवाह हैं इस प्रेम की,
मरते दम तक मैं तुझसे कभी न छूट पाऊँ।

archanalekhikha

जनाब खूबसूरती महंगे कपड़ो से नहीं
बल्कि किरदार में झलकती हैं..
वरना सबसे सुंदर महंगे कपड़े
तो पुतलों को पहनाए जाते हैं ....
Bitu....

bita

उसकी कहानी का बस मै एक किरदार था
जिसे छोड़ जाना मुर्करर था

mashaallhakhan600196

Good evening friends

kattupayas.101947

મહાકવિ કાલિદાસનું મેઘદૂત | About Meghdoot of Mahakavi Kalidas

એક એવું કાવ્ય જેમાં મેઘ એટલે કે વાદળને દૂત (સંદેશાવાહક) બનાવીને તેના મારફતે સંદેશો મોકલવામાં આવે છે.

વાંચવા માટે અહીં ક્લિક કરો -
https://vishakhainfo.wordpress.com/2025/09/02/meghdoot/

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mothiyavgmail.com3309

सच्चा प्रेम रूह से रुह का रिश्ता

archanalekhikha

न्यू स्टोरी अप कमिंग! नाम..पहले भाग के साथ रिवील करूंगी। तब तक के लिए इंतजार करे । और ये है हमारी नायिका...( नाम कहानी के आगमन पर बता दिया जाएगा । )

gautamreena712gmail.com185620

**"ये चूड़ियाँ जनाब,
सिर्फ खनकती नहीं,
मेरे सौभाग्य का गीत गाती हैं।

श्रृंगार ही नहीं,
मेरे मन का विश्वास भी हैं,
जो हर बार पहनने पर कहती हैं—
तुम मेरे थे,
तुम मेरे हो,
और मेरे ही रहोगे।

हर खनक में
तेरे नाम की गूंज है,
हर रंग में
तेरे प्रेम की धड़कन।

जब इन्हें अपने हाथों में पहनती हूँ,
तो लगता है
मानो नारायण से प्रार्थना कर रही हूँ—
मेरा सुहाग अटल रहे,
और तेरा साया
मेरे जीवन का आभूषण।"**

archanalekhikha