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New bites

Self realization quotes

kattupayas.101947

Wasl ki do ghadi ke baad hi
Phir hijr ka intezaar hota hai...

Mohabbat mein khushi ke lamhat bohot mukhtasir hote hain, magar judai ka intezaar taweel aur karbnaak.

محبت میں خوشی کے لمحات بہت مختصر ہوتے ہیں، مگر جدائی کا انتظار طویل اور کربناک۔

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aqeelahashmi836624

archana kumari

archanalekhikha

Radhey Radhey...💞

gautamsuthar129584

Radhey Radhey...💞

gautamsuthar129584

यहाँ हर कोई दुखी है, हर दिल में उलझनें हैं,
असल में वजह यही है—विचार अलग-अलग धड़कनें हैं।

ना कोई सुन पाता है, ना कोई समझ पाता है,
यही दूरी रिश्तों को दिन-ब-दिन तोड़ जाता है।

दुख का सबसे बड़ा कारण यही माना जाए,
जब मन मिले न मन से, तो साथ कहाँ निभाए।

अगर समझने की आदत इंसान में आ जाए,
तो शायद ये दुनिया भी जन्नत नज़र आए।

archanalekhikha

🌹 imran 🌹

imaranagariya1797

🌺ड्राय फ्रूट मोदक 🌺
घरच्या गौरी गणपतीचे विसर्जन
आजचा नेवेद्य
🌺काजू,बदाम, पिस्ता,अक्रोड.काळी मनुका. बेदाणे
हव्या त्या आकारात चिरून घ्या
काळा खजुर, लाल खजुर बिया काढून बारीक तुकडे करा
हे सर्व तुपावर थोडं परतून घ्या

🌺 मोदकासाठी एक वाटी कणीक व एक चमचा डाळीचे पीठ घेऊन
त्यात चवी पुरते मीठ घालून
कडकडीत तेलाचे मोहन घाला
मोहन पिठात चांगले मिसळून
कणीक घट्ट भिजवावी

🌺तासाभराने वरील ड्राय फ्रुट सारण भरुन मंद आचेवर तळून घेणे

🌺हे ड्राय फ्रूट सारण जरी कोरडे वाटले तरी खजुर तुकड्यांमुळे चांगलें मिळून येते

jayvrishaligmailcom

Good morning friends have a great day

kattupayas.101947

Jay Shree Krishna 🙏🏻

hardikashar6777

🌸 — 𝓐𝓰𝔂𝓪𝓣 𝓐𝓰𝔂𝓪𝓷𝓲

कोई युवा, कोई वृद्ध, कोई भी वास्तव में जी नहीं रहा है।
सब भाग रहे हैं—कभी भविष्य की ओर, कभी भूत की यादों में।

जिन वही है, जो जीता है।
जीना मतलब—
ठहरना, देखना, बोध करना,
आनन्द महसूस करना,
प्रेम और प्रसन्नता में रहना।
गंभीरता से मुक्त रहना।

आज का मनुष्य या तो
स्वप्न की दौड़ में है,
या धार्मिक भूतकाल की कहानियों में उलझा है।
कोई भविष्य के स्वर्ग का सपना बुन रहा है,
कोई धन को जीवन मान बैठा है।
कोई दुर्ग-सा शहर रच रहा है,
कोई चींटी-सा संग्रह कर रहा है।

लेकिन जीवन न तो केवल भविष्य है, न केवल भूत।
जीवन तभी है, जब ऊर्जा भीतर सुरक्षित रहे।
ऊर्जा ही आनन्द है,
ऊर्जा ही सुख है,
ऊर्जा ही प्राण और तेज है।

धन की आवश्यकता है—पर केवल सुविधा के लिए।
जीवन का रस तो भोग में नहीं,
बल्कि भोग में छिपे प्राण और तेज को पहचानने में है।

पंचतत्व में ईश्वर विराजमान है।
असल में, मनुष्य की हर वासना
ईश्वर तक पहुँचने की तड़प है।
पर जब तक यह समझ नहीं आती,
वासना भटकाती रहती है।

जैसे ही यह बोध हो जाता है कि
वासना का लक्ष्य मूल तत्व है—आनन्द, आत्मा, तेज—
तब वासना शांति में बदल जाती है।

👉 जीना ही पूजा है, जीना ही ईश्वर है।
जीवन का असली धर्म है —
ऊर्जा को भीतर बचाकर,
क्षण को बोधपूर्वक जीना,
पंचतत्व और प्राण से जुड़कर रहना।

✧ जीने के 11 सूत्र ✧

(वेद, गीता, उपनिषद और बुद्ध-वाणी पर आधारित, पर आज के जीवन के लिए व्याख्यायित)

१. आत्मा अजन्मा है — वही जीवन है।

उपनिषद: "न जायते म्रियते वा कदाचित्।"
👉 आत्मा न जन्म लेती है, न मरती है।
व्याख्या: जीना मतलब इस सत्य को अनुभव करना कि मैं केवल शरीर या स्मृति नहीं हूँ। जब पहचान शरीर से हटती है, तब जीवन में मृत्यु का भय नहीं रहता।

२. कर्म ही धर्म है।

गीता: "कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।"
👉 अधिकार केवल कर्म पर है, फल पर नहीं।
व्याख्या: जीना मतलब वर्तमान क्षण में पूर्ण कर्म करना।
अधिक पढ़ना है तब
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bhutaji

ईश्वर — रूप या तत्व ✧

✍🏻 — 🙏🌸 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷𝓲

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✧ प्रस्तावना ✧

मनुष्य का सबसे बड़ा भ्रम यह रहा है कि उसने ईश्वर को अपने जैसा समझा।
उसने ईश्वर को मानव रूप दिया, मूर्तियों में बाँधा, चित्रों में कैद किया और फिर उसी कल्पना को सत्य मान लिया।
परंतु सत्य रूप में नहीं है, सत्य तत्व में है।

वेद, उपनिषद, गीता, कबीर, बुद्ध — सभी ने एक स्वर से कहा कि ईश्वर निराकार है, तत्वस्वरूप है।
आधुनिक विज्ञान भी इसी सत्य की पुष्टि करता है।
भौतिकी का नियम कहता है कि ऊर्जा और पदार्थ कभी नष्ट नहीं होते, केवल रूप बदलते हैं।
यही वेदांत का उद्घोष है — रूप विनाशी है, तत्व अविनाशी।

इस ग्रंथ का उद्देश्य है —
रूप की भ्रांति से परे हटकर तत्व का दर्शन कराना।
यहाँ शास्त्र की दृष्टि भी है, विज्ञान की दृष्टि भी है,
वेदांत का बोध भी है और आत्मानुभव की सीधी झलक भी।

जो seeker (साधक) ईश्वर को सच में खोजना चाहता है,
उसे चाहिए कि वह मूर्तियों से आगे बढ़े और तत्व में ईश्वर को देखे।
क्योंकि ईश्वर मंदिर में नहीं, प्रकृति और चेतना में है।

“रूप से परे — तत्व का सत्य”

1. ईश्वर को मनुष्य-रूप में समझना ही सबसे बड़ा भ्रम है।
जब तक ईश्वर को मानव जैसा माना जाएगा, तब तक उसकी सत्यता नहीं समझी जा सकती।

2. ईश्वर तत्व में है, रूप में नहीं।
अग्नि, जल, वायु, आकाश, पृथ्वी — ये उसके प्रतीक नहीं, ये उसका सीधा प्रकट रूप हैं।

3. विज्ञान से ईश्वर को समझना सरल है।
क्योंकि विज्ञान तत्व को देखता है,
जबकि धर्म-संप्रदाय मानव रूप और कथा में उलझे रहते हैं।

4. श्रद्धा, आस्था, विश्वास केवल पड़ाव हैं।
लेकिन जो इनसे भी ऊपर उठ सके,
वही ईश्वर को तत्व-रूप में समझ सकता है।

5. धारणा और रूप में अटका हुआ धर्म, ईश्वर को ढक देता है।
तत्व की दृष्टि ही ईश्वर की सच्ची स्मृति है।

🔥
अर्थात् —
ईश्वर को मानव रूप में मानना,
मनुष्य की स्मृति का खेल है।
लेकिन ईश्वर को तत्व-स्वरूप में देखना,
विज्ञान और सत्य की अंतिम साधना है

वेदांत दृष्टि १

ईश्वर मानव रूप नहीं, तत्व स्वरूप है।
"न तस्य प्रतिमा अस्ति" (यजुर्वेद ३२.३)

व्याख्यान:
वेदांत का पहला उद्घोष है कि ईश्वर का कोई रूप, प्रतिमा या आकृति नहीं है।
मनुष्य अपने अनुभव की सीमाओं में ईश्वर को अपने जैसा देखना चाहता है, पर यह भ्रांति है।
ईश्वर का स्वरूप रूपरहित है, और वह केवल तत्व में ही जाना जा सकता है।
रूप बदलता है, तत्व स्थिर रहता है — इसीलिए सत्य केवल तत्व है।

---

बोध दृष्टि २

पंच तत्व ही ईश्वर का प्रथम प्रकट स्वरूप है।
अग्नि, वायु, जल, पृथ्वी और आकाश — यही ब्रह्म की चेतना के पाँच द्वार हैं।

व्याख्यान:
यदि ईश्वर को अनुभव करना है तो हमें प्रकृति के मूल में उतरना होगा।
अग्नि में उसकी ऊर्जा है, वायु में उसका जीवन है, जल में उसकी पवित्रता है,
पृथ्वी में उसका स्थायित्व है ।

शेष आगामी 📚 में

bhutaji

✨ “दिल टूटे तो क्या हुआ… मोहब्बत की लहरों में तैरना अब भी हिम्मत है मेरी।” ✨
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dhirendra342gmailcom

kya pyar hai

Jab neil ne
shivanshi se
pucha ki kya
pyar karti ho tum
mujhse

uske dil ne
kaha
jab aakhe khuli
toh saamne tujhe paaya
jab dukhi hoti
tune manaya

jab tu roya
toh mera dil roya
tere liye ladi(fight)
tere liye sahi

jab saath chaha
toh tu dikha.....

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gunjangayatri949036

🌿 रिश्तों की अजीजत



फुरसत में याद करने वाले,

क्या जाने रिश्ते की अहमियत...

जो रिश्ते दिल से अज़ीज़ होते हैं,

वो तो गुमशुदा राहों पर भी,

अपने रास्ते को मोड़ देने आ ही जाते हैं।



वो कहते हैं - 'मसरूफ़ हैं हम',

हम सोच लेते हैं - 'ये भी एक वजह है'...

मगर असली रिश्ते वक़्त के मोहताज नहीं होते,

वो तो यादों की खामोशी में भी ज़िंदा रहते हैं,

और लम्हों के बोझ को हल्का कर देते हैं।

- Nensi Vithalani

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रिश्तो में अनकहा दर्द

umabhatiaumaroshnika941412

पेरेंट्स की लड़ाई से सहमे बच्चे

umabhatiaumaroshnika941412

"माँ मेरी कलम"

मेरी कलम चलती है तेरी शक्ति से,
हर शब्द जन्म लेता है तेरी भक्ति से।

तू ही है मेरी प्रेरणा, तू ही साधना,
तेरे बिना अधूरी है मेरी हर रचना।

भावनाओं की धारा में तू ही बहती है,
विचारों की लहरों में तू ही कहती है।

जब भी मैं लिखती हूँ, तू ही झलकती है,
मेरे हर अक्षर में तेरी छवि चमकती है।

तू ही कलम की स्याही, तू ही शब्दों का रंग,
तेरे बिना सब सूना, तेरे बिना सब भंग।

माँ!
तू ही मेरी लेखनी की आत्मा है,
तू ही मेरी पूजा, तू ही मेरी प्रार्थना है।

archanalekhikha

नारी की व्यथा

umabhatiaumaroshnika941412

वो शहर भी रोया🥹, मेरे जाने के ग़म में😇,
जो हर दिन की मेरी धूप-छाँव का साथी था🤝।
मेरा गाँव भी मुस्कुराया😁, मेरे आने की खुशी में🥰,
जो मेरे बचपन की माटी और हवा का साथी था।
आज दोनों की आँखों से एक ही⛈️🌧️ बारिश बरसी है ☔⛈️⛈️🌦️,
एक ने मुझे खोया है💔💔, एक ने मुझे पाया है❤️💕।

puneetkatariya2436

I proud of you 36 RR Happy raising day

virdeepsinh

Goodnight friends

kattupayas.101947

शीर्षक – पत्र की पुकार

प्रिय पाठक,

क्या मैं आप सभी को याद हूँ? या तकनीकी सुविधाओं संग आप मुझे भूल गए?
मैं एक पत्र हूँ। आप मुझे चिट्ठी, ख़त, तार आदि के नाम से भी जानते हैं। एक समय में जिनसे मिलना संभव ना हो, उनसे संवाद का मैं प्रथम मार्ग था।
जब कोई मुझे पढ़ता था तो मैं उसके अधरों पर मुस्कान बिखेरता था। कभी मैं प्रेम की निशानी बनकर किसी किताब के पन्नों में अपना बसेरा बनाता था, तो कभी अनमोल धरोहर बन दराज़ के किसी कोने में यादों की महक बिखेरता था।
उस समय आज की भाँति तत्काल संदेश पहुँचाने की सेवा भी तो उपलब्ध नहीं थी। तो संदेश प्राप्ति की व्याकुल प्रतीक्षा जैसे सुंदर क्षण भी तो बनते थे। लेकिन अफ़सोस! तकनीकी सेवाओं के आदि पाठक क्या जाने इन सुंदर क्षणों के आनंद को!
मेरे माध्यम से भेजे गए संदेश मात्र संदेश नहीं अपितु लिखने वाले की भावनाएँ होते थे। साधारण पत्र के लिए नीली स्याही, प्रेम-पत्र के लिए लाल स्याही का सुंदर इस्तेमाल, शुभकामना-पत्र के लिए रंग-बिरंगी अनेकों स्याही संग सुंदर अलंकरण। वह सब भावनाएँ इन तकनीकी संदेशों में कहाँ!
लेकिन इस बदलते युग के साथ मेरा अस्तित्व मिटता जा रहा है। लोग अब ईमेल और मैसेजिंग ऐप्स का इस्तेमाल करते हैं। मैं अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहा हूँ।
क्या आप मुझे याद करते हैं? क्या आप मुझे अपने जीवन में वापस लाने के लिए तैयार हैं?

एक पत्र!

© सृष्टि स्नेही चौहान

kalamkar.srishti

संघर्ष बनाम सुविधा : हमारी पीढ़ी और आज के बच्चे

कभी दो पहियों की साइकिल पर बैठकर हम सफ़र तय करते थे।
धूप, लू, बारिश, ठंड — सबका सामना करते हुए भी किताबों को सीने से लगाकर रखते थे। उस वक़्त हमारे पास न ए.सी. था, न मोबाइल, न लैपटॉप। सिर्फ़ एक चीज़ थी — संघर्ष और पढ़ने की लगन।

माँ की बीमारी हो या भाई-बहनों की ज़िम्मेदारी, सब कुछ निभाकर भी पढ़ाई से मुँह न मोड़ते थे। यही वजह है कि उस दौर के बच्चे, जो सीमित साधनों में भी डटे रहे, आज अपनी मंज़िल तक पहुँचे।

आज की पीढ़ी को देखती हूँ तो सोच में पड़ जाती हूँ।
इतनी सुविधाएँ हैं — पंखा, कूलर, ए.सी., वॉशिंग मशीन, टीवी, मोबाइल, इंटरनेट, लैपटॉप… सब कुछ। बच्चों का बस एक ही काम है — पढ़ाई करना।
फिर भी ध्यान किताबों पर कम और स्क्रीन पर ज़्यादा है।

आजकल के बच्चे पूछते हैं — “आपने हमें क्या दिया?”
पर असल सवाल यह होना चाहिए कि — “हम अपनी सुविधाओं का सही इस्तेमाल क्यों नहीं कर पा रहे?”

संघर्ष की ताक़त

सच यह है कि जिन बच्चों ने कठिनाइयों के बीच पढ़ाई की, वही आगे बढ़े। जो तपे, वही निखरे। संघर्ष ने उन्हें मज़बूत बनाया।
आज भी अगर कोई बच्चा पूरी ईमानदारी से पढ़ाई करे, अपना समय सही जगह लगाए, तो वह किसी भी सुविधा से नहीं, बल्कि अपनी मेहनत से आगे निकलेगा।

सुविधा का सच

सुविधाएँ कभी बुरी नहीं होतीं, लेकिन अगर वे हमें आलसी बना दें तो वही हमारी सबसे बड़ी कमजोरी बन जाती हैं।
पढ़ाई, मेहनत और अनुशासन के बिना सिर्फ़ साधन किसी को सफल नहीं बना सकते।

archanalekhikha