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....." તું ગઝલનો પર્યાય છે "*
તું જ તો મારી ગઝલનો પર્યાય છે;
તારા સ્મરણ વિના ક્યાં લખાય છે?
તું જ મત્લામાં ને મક્તામાંય તું છે;
ગઝલમાં શેર પણ તારા કહેવાય છે;
તારા ખયાલ, ખ્વાબ ને હાસ્ય પણ,
એક એક કરીને એમાં સચવાય છે;
કામણગારી અદાથી આલેખાય છે;
ને, એ સુરમ્ય આંખોથી વંચાય છે;
"વ્યોમ" હૃદયની લાગણીઓ પણ,
શબ્દો બની કાગળ પર ઠલવાય છે;
✍... વિનોદ. મો. સોલંકી "વ્યોમ"
જેટકો (જીઈબી), મુ. રાપર.
किसी भी प्रकार का अभिप्राय देना, वह जोखिमदारी है। - दादा भगवान
अधिक जानकारी के लिए: https://hindi.dadabhagwan.org/
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किताबें मेरा पहला इश्क़ हैं। जाने क्यों, किस लिए मुझे पुस्तकों से इतना शदीद लगाव हो गया। मैं ने जब अपने पढ़ने के रोग की पड़ताल की तो पाया कि पुस्तकों के प्रति मेरे सघन प्रेम के पीछे कहानी या अफसाने से दिलचस्पी होना है।
मुझे बचपन से ही कहानियाँ सुनने का, न केवल सुनने का बल्कि सुनी हुई कहानियाँ कहने का भी शौक था। बचपन में तो मैं यही समझता था कि कहानी लिखने- पढ़ने की नही, कहने और सुनने की कला है। शायद रोचक अंदाज में और बयान के खास सलीके की वजह से कोई कदीम दास्तान या नया किस्सा कहने की कला के चलते ही कहानी कहलाया होगा। किस्सा कहने वाले कुछ इस ढंग से कहते हैं कि सुनने वालों की दिलचस्पी और आगे की दास्तान जानने की जिज्ञासा और उत्सुकता बनी रहती है। यही एक सफल किस्सागो होने की ख़ूबी है। किस्सागो अपनी बात को ज्यादा रोचक सरस और प्रभावपूर्ण बनाने के लिए बीच- बीच में दोहा, गीत और सोरठा को भी मौजू के हिसाब से शामिल करते हैं। मैंने बचपन में अपनी दादी, बुआ और अम्मा से बहुत सी कहानियाँ सुनी थीं लेकिन उनके कहानी कहने के ढंग में वह बात न थी, जो एक कामयाब किस्सागो में होना चाहिए। मेरा घर ठीक वैसा ही था, जैसा एक किसान के घर को होना चाहिए। घर बहुत बड़ा था, जो दो भागों में बंटा हुआ था। भीतर के भाग में एक बड़ी सी कच्ची कोठरी, उसके सामने कच्चा दालान था, जिसे सिदरी कहते थे। कोठरी में कोई पलंग, चारपाई या तख़्त कभी नही पड़ता था। उस कोठरी में गेंहूँ, धान और चना रखने की बड़ी- बड़ी कुठियां, राब की कलसियां, सरसों की मझोल कुठियां और दालों के मटके रखे रहते थे। कुछ बड़े मटके भी रहते थे, जिनमें ज़्वार,बाजरा और तिल्ली भरी रहती थी। यह सब अनाज़ हमारे अपने खेतों की उपज थे, जो वर्ष भर उपयोग के लिए पर्याप्त थे। अँधेरी कोठरी इस लिए कह रहा हूँ क्योंकि उस कोठरी में कोई रोशनदान, खिड़की नही थी। रोशनी के नाम पर एक दीवार में ठीक छत से कोई फिट भर नीचे दस इंच व्यास का बियाला था। इस कोठरी के अतिरिक्त तीन कोठरियां दक्षिण की ओर थीं, जिनके सामने खस के छप्पर पड़े थे।यह कोठरियां पक्की ईंटों की थीं। दीवारों में अलमारियाँ भी थीं। इनकी छतें तो कच्ची थीं,पर दीवारों पर चूने से पुताई की हुई थी। हम लोग इन्हें कोठरी न कह कर कमरे ही कहा करते थे। इन्हीं कमरों में रिहायश रहती थी। खाना बनाने के लिए अँधेरी कोठरी के सामने वाले दालान का उपयोग होता था। दक्षिण के एक कमरे में दादा-दादी, दूसरे में चाचा- चाची और तीसरे में बड़े भैया रहते थे। हम छोटे तीन भाई और दो बहनें अँधेरी कोठरी के सामने वाले दालान में सोते थे।अब आप समझ सकते हैं कि ऐसे घर में किताब का सवाल अपने आप में ही सवाल है। पर घर में किताबें नही थीं? ऐसा नहीं था। हमारे घर में शमा, हुदा पत्रिकाएं आती थीं। भैया के स्कूल की किताबों से अलमारियाँ भरी थीं।
आज कल लोग अक्सर जिस्मानी महोब्ब्त में सुकून ढूंढते है,
ये भूल ही जाते है के महोबब्त का असली अर्थ ही इबादत है,
रूह से की जाए वो महोब्बत है, जिस्म तो दो दिन में ढल ही जाना है,
आज है कल नही,
माटी का बंधे पुतले है हम सभी,
कभी न कभी तो जाना ही है,
लेकिन उस एक शख्स का होना ही महोब्बत है,
जिंदगी के सफर में हमसफर हो या न हो,
फ़र्क नही पड़ता लेकिन,
उस एक का इंतजार ही महोब्बत है.....
હે ઈશ્વર માગ્યું બધું મળતું નથી કર્મનો મર્મ ત્યાં જ સમજાય છે,
હું કર્મથી જ માંગીશ ખોટી યાચના થી નહીં એટલું મને સમજાય છે.
માગેલું મૃત્યુ પણ સમય કે ઈશની ઈરછા વિના ક્યાંય મળતું ભાળ્યું નથી,
નિયતિ નું આમંત્રણ હશે, સ્વીકાર હશે, ભલે મળતું "મૃત્યુ" તેનાથી ડરતો નથી,
ખુદ્દારી થી જીવન જાય અને 'મૃત્યુ' પણ ખુદ્દારી થી આવે એથી વિશેષ 'ઇરછતો' નથી.
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