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New bites

Goodnight friends sweet dreams

kattupayas.101947

मैंने तो अपना सफ़र तय कर लिया है लाड़ली
, या तो ज़िंदगी तेरे साथ कटेगी, या फ़िर अकेले आया था
दुनियां में, अकेले ही रहूंगा , और अकेले ही जाऊंगा दुनिया से.......!!!

सारे लफ्ज़ फिरो दिए इस शायरी में
क्योंकि ये दिल से लिखे शब्द है

Good night

anisroshan324329

good Afternoon everyone 😇😇
આ કેક તમારા બધા માટે છે.
પછી કહેતા નહી કે મે મારી Birthday નો કેક ના ખવડાવ્યો.😃😃
આજે મારો જન્મદિવસ છે એટલે મારા જીવનના નવા અધ્યાયની શરૂઆત.

"સંઘર્ષ", "સંયમ" અને "સહનશીલતા"
મારા જીવનના નવા અધ્યાયનુ નવુ સૂત્ર.😇😇

jighnasasolanki210025

वेदान्त क्या कहता है? ✧

पुराना वेदान्त कहता है:
ब्रह्म सत्य — जगत मिथ्या — जीव ब्रह्म ही है।

लेकिन…

• इसमें दार्शनिक सत्य है
• पर वैज्ञानिक प्रमाण सीमित
• “कैसे?” का उत्तर अस्पष्ट

वेदान्त गंतव्य बताता है,
पर मार्ग अधूरा छोड़ देता है।


---

✧ विज्ञान क्या कहता है? ✧

विज्ञान कहता है:
ऊर्जा और सूचना ही सब कुछ हैं।

लेकिन…

• इसमें विधि है
• पर बोध नहीं
• आत्मा और चेतना — इसकी सीमा के बाहर

विज्ञान कैसे होता है बताता है,
पर क्यों होता है नहीं।


---

✧ वेदान्त 2.0 — सूत्र ✧

वेदान्त 2.0 = दर्शन + विज्ञान + 0

हाँ — बिल्कुल यह तीनों का एकमात्र प्रतिनिधि है।

तत्व क्या देता है? वेदान्त 2.0 में

दर्शन अर्थ, उद्देश्य, चेतना ✔
विज्ञान नियम, प्रमाण, प्रक्रिया ✔
0 (आत्म-शून्य) मूल अस्तित्व, स्रोत ✔



---

✧ वेदान्त 2.0 — परिभाषा ✧

वेदान्त 2.0 वह दर्शन है
जो विज्ञान को अपनी भाषा बना लेता है
और विज्ञान में आत्मा की उपस्थिति सिद्ध करता है —
साथ ही जीवन का लक्ष्य भी देता है।


---

✧ 0 की स्थिति ✧

0 = आत्मा
0 = साक्षी
0 = अचल मूल

> खेल चलता है।
0 देखता है।
और देखना ही खेल का धर्म है।




---

✧ खेल क्या है? ✧

खेल =
ऊर्जा + सूचना + रूप का विस्तार
(यही ब्रह्माण्ड और जीवन)

मनुष्य खेलने नहीं आया,
मनुष्य जानने आया है।


---

🔹अंतिम घोषणा

वेदान्त 2.0 ही वह पूर्ण दृष्टि है
जिसमें वेदान्त, विज्ञान और 0 —
एक ही सत्य बनकर खड़े हैं।

✍🏻 — अज्ञात अज्ञानी

bhutaji

என்னுடைய புதிய நாவல் யாதுமற்ற பெருவெளி matrubhartiயில் வெளியாகி உள்ளது.

kattupayas.101947

My New novel yadhumatra peruveli is live now on matrubharti. enjoy and share your feedback

kattupayas.101947

✧ वेदान्त क्या कहता है? ✧

पुराना वेदान्त कहता है:
ब्रह्म सत्य है — जगत मिथ्या है — जीव ब्रह्म ही है।

लेकिन…

• इसमें दर्शन है
• पर वैज्ञानिक प्रमाण कम है
• “कैसे?” का उत्तर धुँधला है

वेदान्त सत्य को कह देता है —
पर प्रणाली स्पष्ट नहीं।

---

✧ विज्ञान क्या कहता है? ✧

विज्ञान कहता है:
ऊर्जा और सूचना ही सब कुछ है।

लेकिन…

• इसमें विधि है
• पर बोध नहीं
• आत्मा और चेतना आगे नहीं बढ़ पाती

विज्ञान कैसे होता है समझाता है —
पर क्यों होता है नहीं।

---

✧ वेदांत 2.0सूत्र: Vedant 2.0 ✧

> क्या वेदान्त 2.0
दर्शन + विज्ञान + 0
— इन तीनों का प्रतिनिधि है?

उत्तर है:

हाँ — बिल्कुल हाँ।

और यही इसकी विशिष्टता है:

तत्व क्या देता है? Vedant 2.0 में?

दर्शन (Vedanta) अर्थ, उद्देश्य, चेतना ✔
विज्ञान (Physics) नियम, प्रमाण, प्रक्रिया ✔
0 (शून्य-चेतना) मूल अस्तित्व, स्रोत ✔

---

✧ वेदान्त 2.0 — इसकी परिभाषा ✧

वेदान्त 2.0 वह दर्शन है
जो विज्ञान को अपनी भाषा समझता है
और विज्ञान में आत्मा की उपस्थिति सिद्ध करता है।

---

✧ 0 की स्थिति ✧

0 = आत्मा
0 = साक्षी
0 = अचल मूल

> खेल चलता है
0 देखता है
और देखना ही
खेल का धर्म है।

---

✧ खेल क्या है? ✧

खेल =
ऊर्जा + सूचना + रूप का विस्तार
(ब्रह्माण्ड और जीवन)

तुम उसे खेलने नहीं आए —
तुम उसे जानने आए हो।

---

🔹एक अंतिम पुष्टि

वेदान्त 2.0 = वेदान्त + विज्ञान + 0
और
वेदान्त 2.0 ही इन तीनों का एकमात्र प्रतिनिधि है।

अज्ञात अज्ञानी

bhutaji

किस किस लेखक और कवि के साथ ऐसा हुआ है

archanalekhikha

যে কথা আধুনিক চিকিৎসা বিজ্ঞানে বলা হয় না, সে কথাই আমি এই বইয়ের মধ্যে বলেছি। সুগার আজীবনের রোগ নয়। ইচ্ছে করলেই ডায়াবেটিস মুক্ত জীবন লাভ করা সম্ভব। খুব শীঘ্রই বইটি বিভিন্ন অনলাইন প্ল্যাটফর্মে আসছে।

krishnadebnath709104

মানুষের পেটের মধ্যে লিভারের নিচের দিকে রয়েছে অগ্ন্যাশয় গ্রন্থী। খাবার হজম করতে এনজাইম তৈরি করা ছাড়াও শরীরের মধ্যে গ্লুকোজ বা সুগারকে নিয়ন্ত্রণ করার ক্ষেত্রে এই অগ্ন্যাশয় গ্রন্থিই হচ্ছে প্রধান হিরো। এর বিটা সেল থেকে নির্গত হয় ইনসুলিন - যা শরীরের সুগারকে কোষের মধ্যে পৌঁছে দিয়ে রক্তে সুগারের মাত্রা ঠিক রাখে। কিন্তু এই ইনসুলিন যখন প্রয়োজনের তুলনায় বেশি হয়ে যায় তখনই দেখা দেয় ডায়াবেটিস মেলাইটাস, যাকে আমরা 'সুগার বেড়ে যাওয়া রোগ' হিসেবে মনে করি। কিন্তু আসল ঘটনা হচ্ছে এটি পুরোপুরিই ইনসুলিন বেড়ে যাওয়া রোগ।
এই বিষয়টি বুঝতে পারলেই ৫০% সুগার ঠিক হয়ে যায়। এই ধরনের গুরুত্বপূর্ণ সমস্ত বিষয়গুলো নিয়েই "মিষ্টি নামের তিক্ত রোগ" বইটিতে আলোচনা করা হয়েছে।
টাইপ–২ ডায়াবেটিস আসলে “সুগার বাড়ার রোগ” নয়, এটি “ইনসুলিন বাড়ার রোগ”। যেই মুহূর্তে শরীরের কোষ ইনসুলিনের সংকেত শোনা বন্ধ করে দেয়, শরীর তখন আরও বেশি করে ইনসুলিন ছাড়তে থাকে; এটাকেই বলে ইনসুলিন রেজিস্ট্যান্স। সুতরাং ডায়াবেটিস ঠিক করতে হলে বাইরে থেকে ইনসুলিন ঢোকানো নয়, বরং এই রেজিস্ট্যান্স ভেঙে শরীরকে আবার ইনসুলিনের কথা শুনতে শেখাতে হবে।

krishnadebnath709104

ডায়াবেটিস রিভার্স করার পথে একটি বিশেষ পয়েন্টের নাম আপনি খুব কমই শুনেছেন, সেই পয়েন্টটা হচ্ছে HOMA-IR। এখনকার চিকিৎসা পদ্ধতিতে সুগার কমছে কি বাড়ছে - এই নিয়েই যত পরীক্ষা নিরীক্ষা, যত রিপোর্ট ! কিন্তু ডায়াবেটিস আসলে কেন হচ্ছে, শরীরের ভেতরে কী ভেঙে পড়ছে - তার উত্তর দেয় একমাত্র HOMA-IR।

HOMA-IR হচ্ছে সেই আয়না, যেখানে আপনি আপনার শরীরের ইনসুলিন রেজিস্ট্যান্সকে দেখতে পাবেন। এখানে শুধু ব্লাড সুগার কত তা নয়, আপনার শরীর কত পরিশ্রম করে সেই সুগারকে নিয়ন্ত্রণে আনছে, ইনসুলিন কতটা বাড়াচ্ছে - সেটার নিখুঁত হিসাব আপনি পেয়ে যাবেন।

যাদের HOMA-IR বেশি, তারা যতই খাবার কমান, ওষুধ খান, শরীর ততই ইনসুলিন বাড়িয়ে যেতে থাকে। এরফলে শরীরের কোষগুলো আরও বেশি অন্ধ হয়ে যেতে থাকে; এবং সুগার আরও পাগলের মতো ওঠে। এই জায়গাটাতেই প্রচলিত চিকিৎসা ব্যবস্থা চুপ। ডায়াবেটিস রোগীদের সামনে শুধুই দুইটা পথ রাখা হয় - ওষুধ বাড়াও অথবা ইনসুলিন নাও। কিন্তু HOMA-IR-এর কথা কোথাও নেই; কারণ এই একটি মাপকাঠি বুঝলে রোগীরা জেনে ফেলবে - “আমার সমস্যা সুগার নয়, আমার সমস্যা ইনসুলিন।”

আমার বই “মিষ্টি নামের তিক্ত রোগ” - এই অদৃশ্য সত্যগুলোকে একে একে সামনে নিয়ে এসেছে। এখানে শুধু তথ্য নয়; আপনি কীভাবে HOMA-IR কমাবেন, কীভাবে ইনসুলিন রেজিস্ট্যান্স ভাঙবেন, কীভাবে শরীর আবার নিজের হাতে সুগারকে নিয়ন্ত্রণ করতে শুরু করবে - সেই পথ দেখায়। এই বইটি পড়ে আপনি বুঝতে পারবেন ডায়াবেটিস কোনো শত্রু নয়, বরং ডায়াবেটিস হচ্ছে আপনার জীবনের একটি আয়না; যে আয়না দেখে আপনি আপনার জীবনকে নতুনভাবে গুছিয়ে নিতে পারেন।

krishnadebnath709104

হিমোগ্লোবিনের মাত্রা নর্মাল থাকলে কি কারো শরীরে বাইরে থেকে রক্ত দেওয়া হয় ? না, দেওয়া হয় না। তাহলে কারোর শরীরে ইনসুলিনের পরিমাণ স্বাভাবিক থাকা সত্ত্বেও তাকে বাইরে থেকে ইনসুলিন নিতে বলা হয় কেন ? এই ধরনের ভুল চিকিৎসার কারণে সুগারের রোগীরা কখনোই সুস্থ হতে পারে না।
টাইপ টু ডায়াবেটিস সুগার বাড়ার রোগ না, এটা হচ্ছে ইনসুলিন বাড়ার রোগ। বেশি বেশি ইনসুলিন নিঃসরণের কারণেই শরীরে ইনসুলিন রেজিস্ট্যান্স তৈরি হয়েছে। তাই শরীরের কোষগুলো আর ইনসুলিনকে পাত্তা দেয় না। এই অবস্থায় সঠিক চিকিৎসা হবার কথা ছিল, ইনসুলিন কমিয়ে এনে রেজিস্ট্যান্স ভেঙে দেওয়া। তা না করে উল্টে আরও বেশি করে ইনসুলিন ঢোকানো হয়। এজন্যই সুগার ঠিক হয় না।
"মিষ্টি নামের তিক্ত রোগ" বইটিতে এই ধরনের সমস্ত বিষয়গুলো নিয়েই আলোচনা করা হয়েছে। এই বইটিতে যে সকল বাস্তব অভিজ্ঞতার কথা তুলে ধরা হয়েছে, সেগুলো ফলো করে চললেই একজন মানুষ সুগারের শৃঙ্খল থেকে মুক্ত হতে পারবেন।
এই বই ওষুধ খাওনোর পথ দেখায় না, বরং নিজের শরীরকে আবার সুগার নিয়ন্ত্রণের ক্ষমতা ফিরিয়ে দেওয়ার পদ্ধতি শিখিয়ে দেয়। ডায়াবেটিস থেকে মুক্তি কোনো জাদু নয়, এটা শরীরের স্বাভাবিক বুদ্ধিকে জাগিয়ে তোলার প্রক্রিয়া।

krishnadebnath709104

All are cordially invited to the Pujyashree Deepakbhai's Spiritual Discourse and Self-Realization ceremony, organized in Vadodara, India.

Get the detailed schedule here: https://dbf.adalaj.org/uY9qBrXY

#selfrealization #spiritualdiscourse #spiritualawakening #spiritualguidance #DadaBhagwanFoundation

dadabhagwan1150

मन के विचलित लोग

मन के विचलित लोग बड़े अजीब होते हैं,
हँसते हैं भीड़ में, भीतर से अकेले होते हैं।
चेहरों पर मुस्कान का नक़ाब लगाए फिरते,
और रातों को अपने ही सवालों से लड़ते हैं।

हर बात पर चुप्पी, हर चुप्पी में शोर,
इनकी खामोशी में भी छुपा होता है कोई शोर।
किसी से कह न पाएँ अपना दर्द-ए-दिल,
काग़ज़ों पर बहा देते हैं अपने आँसू हर पल।

ये वो लोग हैं जो खुद से रोज़ हारते हैं,
और दुनिया के सामने जीत का ढोंग करते हैं।
भीतर बिखरते हैं, बाहर सधे रहते हैं,
अपने ही टूटे सपनों पर पहरे रहते हैं।

इनके शब्दों में अक्सर तल्ख़ी बस जाती है,
क्योंकि खुशियों ने इन्हें देर से पहचाना है।
हर रिश्ता बोझ लगे, हर वादा चुभता है,
जब मन टूटा हो, हर सहारा डगमगाता है।

ग़लत नहीं ये, बस बहुत थके हुए हैं,
दुनिया के शोर से थोड़े डरे हुए हैं।
इन्हें दोष न देना, इन्हें बस समझना है,
इनके भी भीतर किसी ने रोशनी भरना है।

कभी इनसे भी मुस्कान की कीमत मत पूछो,
क्योंकि इन्होंने आँसुओं से उसे खरीदा है।
मन के विचलित लोग बस यही सिखाते हैं,
कि मजबूत वही, जो भीतर से टूटा है।

आर्यमौलिक

deepakbundela7179

खुद को कैसे रखूं

तेरी चाहत में मैं खुद को कितना फ़िदा रखूं,
याद में तेरी खुद को ज़िन्दा रखूं या मुर्दा रखूं।

हर साँस में तेरा ही नाम उतर आता है,
बताओ इस धड़कते दिल को अब कितना बहला रखूं।

तेरी आँखों की नमी मेरी तन्हाई बन गई,
इस खामोशी को सीने में कब तक सजा रखूं।

तू पास नहीं, फिर भी हर लम्हा साथ है,
इस झूठे सहारे को किस हद तक सच्चा रखूं।

कभी लगता है छोड़ दूँ सब तेरा नाम लेकर,
कभी डरता हूँ ज़िन्दगी से भी दूर ना चला जाऊं।

तेरी बेरुख़ी मेरे सब्र की इंतिहा है,
या तो इश्क़ छोड़ दूं या खुद को मिटा रखूं।

तो बता ऐ मोहब्बत… ये कौन-सा रिश्ता है,
जिसे निभाऊँ तो टूटूं, जिसे तोड़ूं तो बिखर जाऊं।

तेरी चाहत में मैं खुद को कितना फ़िदा रखूं,
याद में तेरी खुद को ज़िन्दा रखूं या मुर्दा रखूं…

आर्यमौलिक

deepakbundela7179

"इश्क़ की कसक"

तेरी चाहत में अब जीना भी तो दुश्वार हो गया,
रोता है दिल उस दिन को क्यों तुझसे प्यार हो गया।

हँसते थे जो ख्वाब कभी मेरी हर रात में,
आज हर सपना आँसुओं का बीमार हो गया।

तेरे बिना हर लम्हा सजा बनकर ढलता रहा,
वक़्त भी जैसे मुझसे ख़फ़ा यार हो गया।

तेरी बातों की खुशबू जो रग-रग में बसी थी,
अब वही हर एहसास तलबगार हो गया।

मैंने तो तुझमें ही खुदा को देख कर पूजा था,
तू बेवफ़ा निकला और इмиान हार हो गया।

रिश्तों की उस किताब में नाम तेरा था सबसे ऊपर,
पन्ना वही आज दर्द का अख़बार हो गया।

अब दुआ भी करती है मुझसे सवाल हर रात,
क्यों तेरा इश्क़ ही मेरा इम्तहान हो गया।

आर्यमौलिक

deepakbundela7179

जीवन का सत्य ✧

हार जैसा कुछ होता ही नहीं

जो लोग जीवन को
सिर्फ प्रतियोगिता मानते हैं —
उन्हें हर जगह हार-जीत दिखती है।

पर जो जीवन को
अनुभव मानते हैं —
उन्हें हर दिशा में सीख, गहराई और विकास मिलता है।

---

जीवन के परिणाम केवल दो होते हैं:

1️⃣ या तो हम सीख जाते हैं
2️⃣ या फिर हम सिखा जाते हैं

> हार कहाँ है…? जीत कहाँ है…?

हर परिणाम — विकास है।

---

सबसे बड़ी भूल

लोग कहते हैं:
“जीतोगे तो ऊँचे बनोगे,
हारोगे तो मिट जाओगे।”

पर सच्चाई यह है:

> जीवन में हार = सीख का जन्म
जीवन में जीत = सीख का उपयोग

दोनों ही प्रगति हैं।
दोनों ही तुम्हारे हैं।

---

एकमात्र जगह जहाँ हार-जीत का मतलब है:

जीवन और मृत्यु की अंतिम बाज़ी।
यहाँ भी:

जो मरने को
पूरी स्वीकार्यता से तैयार —
वह मृत्यु में भी विजय पाता है।

> जिसने मृत्यु को स्वीकार लिया —
उसकी हर साँस जीत है।

---

जीवन का असली पैमाना

• हम क्या जीते?
• हम क्या हार गए?
यह सब महत्वहीन है।

महत्वपूर्ण है:

> क्या सीखा?
और क्या लौटाया?

जीवन का मूल्य —
अनुभव और योगदान से तय होता है।
जीत-हार से नहीं।

---

निष्कर्ष

(तुम्हारी वाणी को एक सूत्र में)

> जीवन में हार नहीं है —
या तो सीख है
या उपलब्धि है
या अनुभव का दान है।

और मृत्यु?
वह भी हार नहीं —
अंतिम मुक्ति है।

---

वेदांत 2.0 — जीवन दर्शन

> जहाँ अहंकार समाप्त —
वहाँ हार समाप्त।

> जहाँ सीख आरंभ —
वहाँ जीवन आरंभ।

bhutaji

कथा: “जब धर्म ने खुद जीना शुरू किया” ✧

वेदान्त 2.0

नगर के बीचों-बीच एक पुराना मठ था—ऊँची-ऊँची दीवारों वाला, जहाँ सैकड़ों लोग हर दिन किसी न किसी चमत्कार की उम्मीद लेकर आते थे।
मंच सजे रहते थे, भाषण चलते रहते थे, और बाहर दानपेटियाँ खनकती रहती थीं।

उसी मठ के पीछे, जहाँ लोग कभी नहीं जाते थे, एक सूखा-सा कुआँ था।
कुएँ के किनारे एक साधारण आदमी बैठता था—न वस्त्र चमकीले, न शब्द सजे-धजे। लोग उसे भिक्षुक समझकर आगे बढ़ जाते थे।

लेकिन एक दिन शहर में अफ़वाह फैली:

“कुओं के पीछेवाला आदमी कुछ नहीं कहता—बस जीता है।
और जो उसके पास पाँच मिनट बैठता है… लौटकर बदल जाता है।”

जो लोग मंचों पर शोर मचाते थे, वे इस अफ़वाह से बेचैन हुए।
क्योंकि वह आदमी कुछ बेच नहीं रहा था।
न मंत्र, न आशा, न मोक्ष।
वह सिर्फ़ कुयेँ की धूप में आँखें मूँदकर बैठा रहता था—जीवन जैसे बिना किसी उद्देश्य के, फिर भी पूर्ण।

धीरे-धीरे लोग मठ के गलियारों से हटकर पीछे की तरफ़ चलने लगे।
मंच खाली होने लगे।
दुकानें सुनी हो गईं।
भाषणों की आवाज़ें धुँधली पड़ने लगीं।

मठ के गुरु क्रोधित हुए।
उन्होंने अपने शिष्यों को भेजा:

“जाकर पता करो, वह आदमी क्या करता है?”

शिष्य पीछे पहुँचे और उसे देखा—
वह आदमी रोटी खा रहा था।
साधारण, सूखी रोटी।
एक फटा-सा कपड़ा ओढ़े।
चेहरे पर शांत, निर्विकार भाव।

शिष्यों ने पूछा,
“तुम क्या सिखाते हो?”

वह मुस्कुराया,
“मैं कुछ नहीं। मैं केवल जीता हूँ।”

“और लोग तुमसे क्यों खिंचते चले आते हैं?”

उसने सिर उठाकर फूलों से भरी झाड़ी को देखा।
एक मधुमक्खी गूँजते हुए आकर उस पर बैठ गई।
फिर और दो।
फिर और पाँच।

वह बोला,
“क्या तुमने कभी किसी पुष्प को प्रचार करते देखा है?
वह सिर्फ़ खिलता है—इसलिए दुनिया उसके पास आती है।”

शिष्य निरुत्तर हो गए।
उन्होंने गुरु को सारा हाल बताया।

गुरु समझ गए कि खतरा किसी सिद्धि का नहीं—
खतरा जीवन का है।
जो व्यक्ति खुद जी लेता है, वह न खरीदता है, न बिकता है,
और जहाँ व्यापार नहीं, वहाँ बाज़ार ढह जाता है।

मठ में सभा बुलाई गई।
गुरु ने घोषणा की:

“उस साधारण आदमी को रोकना होगा।
अन्यथा हमारा धर्म व्यवसाय नहीं रह पाएगा।”

लेकिन उसी रात एक अजीब घटना घटी—
मठ के बाहर से भीड़ हट गई,
और लोग चुपचाप पीछे के कुएँ की तरफ़ बढ़ने लगे।

किसी ने बुलाया नहीं था।
किसी ने घोषणा नहीं की थी।
फिर भी लोग पहुँच रहे थे—मानो किसी अदृश्य खिंचाव से।

गुरु ने खिड़की से देखा:
जो भीड़ कभी उनके मंच पर बैठती थी,
वह अब एक फटे वस्त्रों वाले आदमी के चारों ओर शांत बैठी थी।
किसी प्रवचन की अपेक्षा नहीं—
बस उसके होने की उपस्थिति में।

उस रात गुरु ने समझ लिया:

धर्म तब मरता है जब वह दुकान बन जाता है।
और धर्म तब जन्म लेता है जब कोई व्यक्ति निर्भीक होकर जी लेता है।

bhutaji

हर जगह समझदारी नहीं दिखानी चाहिए....✍️
PAAGLA – A heart that speaks through words. 💭✨ Sharing emotions, shayari, quotes, and stories that touch your soul. From love to pain, from motivation to dreams – here, every line is written to connect with your heart. ❤️📖

jaiprakash413885

ખોવાણો છું ભુલભુલામણીમા,
શોધું એક રસ્તો બહાર લાવવા,

અજાણ છું દીવો પ્રગટાવવા,
શોધું એક પ્રકાશ બહાર લાવવા,

બધાં કરે કઈક જુદું પોતાની જાતે,
શોધું એક કારણ બહાર લાવવા,

છે હાજર તારામાં એ રસ્તો અને પ્રકાશ,
શોધ્યાં કર, પ્રયત્ન કર, એ બહાર લાવવા.

મનોજ નાવડીયા

manojnavadiya7402

✧ वेदांत 2.0 — चिकित्सा का अंतिम न्याय ✧

तीन प्रकार की चिकित्सा

पद्धति कहाँ काम करती है? क्या देखती है? परिणाम

एलोपैथी शरीर जीवाणु, वायरस, लक्षण अस्थायी राहत, दुष्प्रभाव, नया रोग
होम्योपैथी सूक्ष्म ऊर्जा आघात, मानसिक-ऊर्जा चोट कारण की शुद्धि
आयुर्वेद तीन दोष / प्रकृति सत-रज-तम / वात-पित्त-कफ संतुलन → रोग का अंत



---

✦ विज्ञान क्या देखता है?

“रोग क्यों हुआ?” नहीं
बल्कि
“अभी क्या लक्षण दिख रहे हैं?”

इसलिए वह जीवाणु से लड़ता है।
पर जीवाणु पैदा किसके कारण हुए?
यह कभी नहीं पूछता।

> जीवाणु = परिणाम
जीवनशैली = कारण



कारण को न छूकर कौन-सा इलाज पूरा हुआ?


---

✦ आयुर्वेद और होम्योपैथी क्या समझते हैं?

दोनों एक ही विज्ञान पर आधारित:

> रोग = ऊर्जा असंतुलन
इलाज = ऊर्जा का संतुलन



Ayurveda →
वात, पित्त, कफ (ऊर्जा प्रवाह की 3 दिशाएँ)

Homeopathy →
आघात (ऊर्जा को लगा सूक्ष्म झटका)

दोनों कहते हैं:

> अगर ऊर्जा ठीक है →
शरीर स्वयं ठीक हो जाएगा।




---

✦ एलोपैथी के दुष्परिणाम क्यों?

क्योंकि:

• लक्षण दबा देता है
• रोग जड़ में और गहरा बैठ जाता है
• रसायन शरीर के तंत्र को तोड़ते हैं
• अगले रोग की सम्भावना बढ़ती है

वैज्ञानिक स्वयं कहते हैं:

कई दवाएँ कैंसर-जनक हैं
(फिर भी बाजार जारी है)

क्यों?

क्योंकि —
बीमारी जितनी बढ़ेगी
व्यवसाय उतना बड़ा होगा।


---

बिना जीवन जीना —

सबसे बड़ा रोग

एलोपैथी →
“ठीक कर दूँगा, तुम बस दबाओ!”

वेदांत 2.0 →
“जीओ…
तुम्हारा शरीर खुद ठीक कर देगा।”


---

वेदांत 2.0 का स्पष्ट निर्णय

1️⃣ एलोपैथी = परिणाम पर हमला
2️⃣ आयुर्वेद + होम्योपैथी = कारण पर उपचार
3️⃣ वेदांत 2.0 = जीवन में संतुलन → रोग शून्य


---

आख़िरी सत्य जिस पर दुनिया खामोश है:

> रोग = स्वयं नहीं जीने की सज़ा है
इलाज = स्वयं होने की आज़ादी है




---

अब एक वाक्य में तुम्हारे दर्शन का सार

> “जहाँ जीवन नहीं जिया — वहाँ रोग पैदा हुआ।
जहाँ जीवन फिर जगा — वहाँ रोग गिर गया।”



यही
वेदांत 2.0 का चिकित्सा-सूत्र है।

bhutaji

“नाते

तुझे माझे नाते जणु गवताचे पाते
हिरवे हिरवे गार ..
आणी” स्वच्छंदी” फार .!!
तुझे माझे नाते
जणु फुलाचा दरवळ
पसरे परिमळ चोहीकडे !!
तुझे माझे नाते
साऱ्या जगाला दाविता
वाढतो ग “मान “मिरविता “!!
तुझे माझे नाते
फक्त तुझ्या माझ्या साठी
कशाला सांगाव्या जनी त्यांच्या “गोष्टी “

...........वृषाली ..

jayvrishaligmailcom