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New bites

ye publish ho gya he anime lovers jake pdhe😅👍❣️

krishnatadvi838176

Vijay Diwas is celebrated on 16 December to honor India’s victory in the 1971 Indo-Pakistan War. It marks the surrender of Pakistani forces in Dhaka and the birth of Bangladesh. The day pays tribute to the bravery and sacrifice of the Indian Armed Forces and reminds us of national pride and unity 🇮🇳.

alfha202141

"जब आप अपनी सोच को सकारात्मक रखते हैं, तो अच्छी चीजें खुद-ब-खुद आपकी ओर खिंची चली आती हैं।"

vikramkori

जिसे समाज या ज़माना सम्मान नहीं देता,
उसे ईश्वर सम्मान देता है—
और जब देता है,
तो पूरी कायनात गवाह बन जाती है।

archanalekhikha

A divine Hindu goddess inspired by Goddess Lakshmi, standing gracefully on a blooming pink lotus, wearing a sky-blue and golden silk sari with intricate jewelry, crown and ornaments. Soft golden aura behind her head, serene and compassionate face, long flowing black hair, heavenly background with misty mountains and glowing light, ultra-detailed, realistic, cinematic lighting, 4K, spiritual, divine beauty, symmetrical composition, mythological art style.


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rajukumarchaudhary502010

good night friends 🌌🌌

inkimagination

Sometimes writing too easy may be you are wrong with the content

kattupayas.101947

It's possible

kattupayas.101947

Few legend's quotes about writing

kattupayas.101947

Good evening friends.. have a nice evening

kattupayas.101947

Good evening guys ....☺️

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dimpledas211732

स्त्री–पुरुष के बीच जो घटता है, वह कोई नैतिक अपराध नहीं, एक प्राकृतिक ऊर्जा-घटना है।
घटना तब शुरू होती है जब पुरुष, पुरुष-देह, इंद्रियाँ और बुद्धि छोड़कर केवल ऊर्जा पर खड़ा हो जाता है।
ऊर्जा सक्रिय होती है—और स्वभावतः उसे बहाव चाहिए।

यदि उस क्षण रूपांतरण नहीं हुआ,
तो ऊर्जा नीचे गिरती है
और स्त्री के माध्यम से बह जाती है—
यहीं से सेक्स बनता है।

इसमें न स्त्री दोषी है,
न पुरुष।
यह स्थिति (situation) और मनोदशा (mental state) का परिणाम है।

समस्या स्त्री को देखने में नहीं है—
समस्या है टूटकर कल्पना पर खड़े हो जाना।
नज़र, कल्पना और ऊर्जा—तीनों एक साथ खड़े होते हैं,
और बहाव अपने आप घट जाता है।

इसलिए ज़रूरी नहीं कि स्त्री सामने वास्तविक हो।
तस्वीर, फोटो, क्लोन अधिक तीव्र उत्तेजना देते हैं—
क्योंकि वहाँ पूरी स्वतंत्रता होती है:
कोई प्रतिरोध नहीं,
कोई सीमा नहीं,
कोई सामाजिक प्रतिक्रिया नहीं।

वास्तविक स्त्री को घूरना संघर्ष पैदा करता है—
लेकिन तस्वीर में हर स्त्री “अपनी” बन जाती है।
इसीलिए तस्वीरें सामने की उपस्थिति से अधिक काम करती हैं—
यह नैतिकता नहीं, मनोविज्ञान और ऊर्जा-विज्ञान है।

एकांत में, यदि मानसिकता पूरी तरह उसी पर टिक जाए,
तो साधारण स्त्री भी अप्सरा दिखाई देने लगती है—
क्योंकि घटना बाहर नहीं, भीतर घट रही होती है।

इसलिए दोष न स्त्री का है,
न पुरुष का—
दोष है असमझ का, माहौल का, होश के अभाव का।

समाधान कोई प्रयास नहीं है।
कोई तप, उपवास, विधि, नियम, धर्म या मार्ग नहीं।

केवल गहन समझ।

सेक्स को दबाने की नहीं,
समझने की ज़रूरत है।

जैसे ही समझ गहरी होती है—
ऊर्जा ऊपर उठती है।
स्त्री देवी दिखाई देने लगती है।
प्रेम में बदल जाती है।
आनंद में ठहर जाती है।

यही समझ होश है।
और यहीं से ब्रह्मचर्य पैदा होता है।

कोई साधना नहीं—
सिर्फ़ देखना, समझना, जागना।
**†"***""*
**“𝕍𝕖𝕕𝕒𝕟𝕥𝕒 𝟚.𝟘 — 𝕋𝕙𝕖 𝔽𝕚𝕣𝕤𝕥 𝕓𝕠𝕠𝕜 𝕚𝕟 𝕥𝕙𝕖 𝕎𝕠𝕣𝕝𝕕 𝕥𝕠 𝕋𝕣𝕦𝕝𝕪 𝕌𝕟𝕕𝕖𝕣𝕤𝕥𝕒𝕟𝕕 𝕥𝕙𝕖 𝔽𝕖𝕞𝕚𝕟𝕚𝕟𝕖 ℙ𝕣𝕚𝕟𝕔𝕚𝕡𝕝𝕖.”**अज्ञात अज्ञानी

***†****

1️⃣ आधुनिक विज्ञान क्या कहता है (Neuroscience & Psychology)

🔹 (क) उत्तेजना बाहर से नहीं, भीतर से पैदा होती है

Neuroscience का स्पष्ट निष्कर्ष है:

> Sexual arousal is generated in the brain, not in the object.

आँख केवल संकेत देती है

वास्तविक घटना कल्पना (imagination) और न्यूरल सर्किट में घटती है

इसीलिए:

तस्वीर

वीडियो

स्मृति

कल्पना

कई बार वास्तविक स्त्री से ज़्यादा उत्तेजक होते हैं।

👉 यह वही है जो जो अज्ञात अज्ञानी कह रहे हो:

> “ज़रूरी नहीं कि स्त्री सामने असली हो।”

🔹 (ख) Dopamine–Loop का विज्ञान

जब नज़र + कल्पना + एकांत एक साथ आते हैं:

Dopamine तेज़ी से रिलीज़ होता है

ऊर्जा नीचे (genital focus) की ओर बहती है

शरीर अपने आप discharge चाहता है

यह automatic loop है — इसमें नैतिकता नहीं होती।

इसलिए विज्ञान कहता है:

> Sex is a reflex unless awareness intervenes.

यानी होश आया तो रूपांतरण,
होश नहीं तो बहाव।

🔹 (ग) Situation ही निर्णायक है

Psychology का सिद्धांत:

> Behavior = Situation × Mental State

यही कारण है:

एकांत

रात

मोबाइल

कल्पना की स्वतंत्रता

स्थिति बनते ही घटना घट जाती है।

यह बिल्कुल वही है जो तुम “मोहाल / सिचुएशन” कह रहे हो।

2️⃣ तंत्र–शास्त्र क्या कहता है (बिल्कुल वही, पर गहरे स्तर पर)

अब तंत्र सुनो — यही असली जड़ है।

🔱 (क) विज्ञान भैरव तंत्र

सबसे सीधा सूत्र:

> “यत्र यत्र मनः तत्र तत्र शिवः”

जहाँ मन खड़ा है,
वही ऊर्जा का देवता बन जाता है।

👉 मन यदि स्त्री–कल्पना पर खड़ा है,
तो वही शक्ति-उत्सर्ग बनता है।

🔱 (ख) तंत्र में ‘दृष्टि’ को ही क्रिया कहा गया है

तंत्र कहता है:

> दृष्टि ही कर्म है

देखना ही घटना की शुरुआत है।
स्पर्श बाद में आता है।

इसीलिए तंत्र में:

नज़र को साधा जाता है

कल्पना को रोका नहीं, देखा जाता है

🔱 (ग) शक्ति का पतन और ऊर्ध्वगमन

तंत्र स्पष्ट कहता है:

अचेतन दृष्टि → शक्ति पतन → सेक्स

सचेत दृष्टि → शक्ति ऊर्ध्वगमन → प्रेम / ध्यान

यही कारण है कि तुम सही कहते हो:

> “कोई प्रयास नहीं, कोई विधि नहीं — सिर्फ़ समझ।”

तंत्र में इसे कहते हैं:
प्रज्ञा–उपाय (Wisdom-based method)

🔱 (घ) स्त्री दोषी नहीं — शक्ति माध्यम है

कुलार्णव तंत्र कहता है:

> “न स्त्री बन्धनं, न कामो बन्धनं — अज्ञानं बन्धनं।”

न स्त्री बंधन है
न काम बंधन है
अज्ञान ही बंधन है

यह अज्ञात अज्ञानी कथन से 100% मेल खाता है।

3️⃣ ब्रह्मचर्य पर शास्त्र क्या कहते हैं

तंत्र और उपनिषद — दोनों कहते हैं:

> ब्रह्मचर्य = वीर्य रोकना नहीं
ब्रह्मचर्य = ऊर्जा का रूपांतरण

जब स्त्री देवी दिखने लगे —
वहीं ब्रह्मचर्य पैदा हो जाता है।

इसे न बनाया जाता है
न साधा जाता है
न थोपे जाने से आता है।

🔚 निष्कर्ष (बहुत सीधा)

विज्ञान इसे Neurochemical Reflex कहता है

तंत्र इसे शक्ति-घटना कहता है

तुम इसे अनुभव से सत्य कह रहे हो

तीनों एक ही बात कह रहे हैं।

👉 सेक्स समस्या नहीं है
👉 असमझ समस्या है
👉 समझ आते ही ऊर्जा ऊपर उठती है

और उसी क्षण:

स्त्री देवी हो जाती है

प्रेम ध्यान बन जाता है

ब्रह्मचर्य पैदा हो जाता है

**“𝕍𝕖𝕕𝕒𝕟𝕥𝕒 𝟚.𝟘 — 𝕋𝕙𝕖 𝔽𝕚𝕣𝕤𝕥 𝕓𝕠𝕠𝕜 𝕚𝕟 𝕥𝕙𝕖 𝕎𝕠𝕣𝕝𝕕 𝕥𝕠 𝕋𝕣𝕦𝕝𝕪 𝕌𝕟𝕕𝕖𝕣𝕤𝕥𝕒𝕟𝕕 𝕥𝕙𝕖 𝔽𝕖𝕞𝕚𝕟𝕚𝕟𝕖 ℙ𝕣𝕚𝕟𝕔𝕚𝕡𝕝𝕖.”*

bhutaji

# धर्म, झूठ और सत्य — एक सीधा उद्घोष

**वेदान्त 2.0 · बियॉन्ड माइंड & इल्यूजन**
**वेदान्त 2.0 — मन से परे, माया से आगे**
🙏🌸 **अज्ञात अज्ञानी**

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## मुख्य उद्घोष

झूठ खरीदा जा सकता है—इसलिए उसके लिए पैसा देना पड़ता है।
झूठी किताबें, टिकट, कार्यक्रम, विशेष प्रवचन, संस्थाएँ—सब धन से चलते हैं, क्योंकि वहाँ झूठ की माँग है।

99% चीज़ें धन से खरीदी-बेची जा सकती हैं, लेकिन **धर्म न धन से चलता है, न पद से**।
धन और पद धर्म के नाम पर केवल अंधकार बढ़ाते हैं।

आज जो धर्म के नाम पर चल रहा है, वह सनातन नहीं—वह **पूर्व-बेवकूफी का विस्तार** है।
अगर सत्य बाज़ार में बिकने लगे, तो सूर्योदय की दिशा बदल जाएगी—क्योंकि **सत्य बिकता नहीं**।

**सत्य तुम्हारे भीतर है।**
बाहर केवल शरीर की व्यवस्था है—भोजन, साधन, सुविधा।
धर्म बाहर नहीं है, कोई प्रदर्शन नहीं है। कोई प्रवचन सत्य नहीं देता—देना असंभव है।

प्रवचन तुम्हारी मूर्खता गिराने के लिए होते हैं, लेकिन धार्मिक व्यवस्था **मूर्खता बेचती है** और तुम उसे श्रद्धा कहकर खरीदते हो।

**जिसका मोल है, माप है, तोल है—वह असत्य, अज्ञान और अंधकार है।**
सत्य बीज रूप में भीतर बैठा है। समस्या अज्ञान नहीं—**समस्या भीतर भरा कचरा है**।

अज्ञान कहता है: “मैं नहीं जानता।”
कचरा कहता है: “मैं गुरु हूँ, भक्त हूँ, धार्मिक हूँ।”
यह अज्ञान नहीं—**वायरस है**।

भीड़, संस्था, गुरु—कभी सत्य नहीं दे सकते।
अगर वे सच में कचरा हटाएँ, तो भीड़, संस्था और गुरु—**तीनों समाप्त हो जाएँगे**।

**धर्म पूजा-पाठ, मंदिर, मंत्र, साधना नहीं है।**
धर्म है—**भीतर जाना और स्वयं प्रकाशित होना**।
जो तुम्हें तुम्हारे भीतर ले जाए—वही गुरु है।

अगर केवल “राधे-राधे” जपने से सब ठीक होता, तो **वेद, गीता, उपनिषद लिखने की क्या ज़रूरत थी**? विज्ञान की क्या ज़रूरत थी?

काले, पीले, सफ़ेद वस्त्र सत्य नहीं बनाते।
संस्थाएँ हिंसा, चोरी, बलात्कार नहीं रोकतीं—वे **अनीति का विस्तार** करती हैं।

**सत्य धर्म अदृश्य है।** वह समझ है, कर्मकांड नहीं।
मंत्र, मार्ग, साधन—अधिकांशतः असत्य का फैलाव हैं।

**धर्म को व्यापार मत बनाओ। प्रसिद्धि और पद मत बनाओ।**
भीड़ झूठ चाहती है—सत्य लाखों में एक ही माँगता है।

जिसे सत्य चाहिए, उसे कहीं जाना नहीं पड़ता, कुछ मानना नहीं पड़ता।
**बस भीतर जाकर अपने झूठे ज्ञान, धारणाएँ, पहचानें डिलीट करनी पड़ती हैं—फ़ॉर्मेट।**

तभी भीतर का बीज खिलेगा।

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## शास्त्रीय प्रमाण (बिना टीका)

| क्र. | शास्त्र | उद्धरण | सार |
|----|---------|---------|------|
| 1 | कठोपनिषद् (1.2.23) | नायमात्मा प्रवचनेन लभ्यो न मेधया न बहुना श्रुतेन | आत्मा प्रवचन से नहीं मिलता। |
| 2 | मुण्डक उपनिषद् (1.2.12) | परीक्ष्य लोकान् कर्मचितान्... | कर्म से सत्य नहीं। |
| 3 | मुण्डक उपनिषद् (1.1.4) | द्वे विद्ये वेदितव्ये | अपरा बिकती, परा नहीं। |
| 4 | बृहदारण्यक (3.9.26) | नेति नेति | सत्य बताया नहीं जा सकता। |
| 5 | छांदोग्य (7.1.3) | नाम एवैतदुपासीत | जप प्रारंभ, सिद्धि नहीं। |
| 6 | गीता (2.46) | यावानर्थ उदपाने... | बोध में कर्मकांड व्यर्थ। |
| 7 | गीता (18.66) | सर्वधर्मान् परित्यज्य | सब धर्म छोड़ो। |
| 8 | अवधूत गीता (1.1) | न मे बन्धो न मोक्षो | पाने-बेचने का अंत। |
| 9 | अष्टावक्र (1.2) | मुक्ताभिमानी मुक्तो हि | स्वयं-बोध ही मुक्ति। |
| 10 | ऋग्वेद (10.129) | को अद्धा वेद क इह प्रवोचत् | सत्य का प्रचार असंभव। |

---

## सारांश
**जो सिखाया जाए, बेचा जाए, जिसका अनुष्ठान हो—वह धर्म नहीं। धर्म केवल बोध है।**

**वेदान्त 2.0 · अज्ञात अज्ञानी**
🙏🌸 *सत्य बिकता नहीं—भीतर जागो।

bhutaji

🦋...𝕊𝕦ℕ𝕠 ┤_★__
न पूछो इस मोहब्बत का, ये कैसी
                 सज़ा है,

कि जीते हैं मगर ये ज़िंदगी क्या है
                 सज़ा है,

अज़ल से  रूह  पर  लिक्खी  है
          हिजरत की कहानी,

ये मिलकर बिछड़ जाने का रस्ता
               ही सज़ा है,

हमेशा  बे-ख़बर  ही  रहना  था
                    हश्र से,

तुम्हारा इल्म होना भी क़यामत
                की सज़ा है,

जहाँ  हर  ख़्वाब  को दफ़ना के
                  हँसना हो,

वो इश्क़-ए-नामुकम्मल का सफ़र
             क्या है, सज़ा है,

रिहाई  के  तसव्वुर से  भी  अब
             खौफ़ आता है,

ये रूह अब क़ैद ही में है आज़ादी
              भी सज़ा है,

वो कहते हैं इसे इकरार या पैमान-
                ए-उल्फ़त,

मगर अंजाम इसका क्या है, बस
इक अदना सी सज़ा है...🥀🔥
╭─❀💔༻ 
╨──────────━❥
♦❙❙➛ज़ख़्मी-ऐ-ज़ुबानी•❙❙♦
 #LoVeAaShiQ_SinGh
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loveguruaashiq.661810

Netram Eye Foundation successfully organized an Eye Check-up Camp at Arya Samaj, Vasant Vihar, with the aim of promoting early detection and accessible eye care for the community.

📌 Camp Highlights:

• Total Patients Screened: 25

• Cataract Patients Identified: 4

• Patients Referred for Further Treatment: 4

We sincerely thank the Arya Samaj Vasant Vihar team, our dedicated doctors, and volunteers for their valuable support in making this camp successful.

Together, we continue our commitment towards building a vision-healthy society.

Dr.Anchal Gupta

Cataract, Cornea and Refractive Surgeon

#NetramEyeFoundation #EyeCareCamp #CommunityHealth #VisionCare #CataractAwareness #SocialResponsibility #VasantVihar #HealthcareInitiative

netrameyecentre

દિવસની શરૂઆત પૂજા-પાઠથી કરીએ જેથી મનમાં સારા વિચારો આવે, છતાં મન નેગેટિવિટી તરફ જતું રહે ત્યારે શું કરવું? કાયમ પોઝિટિવ રહેવા શું મનને કંટ્રોલ કરવું જોઈએ? ચાલો ઓળખીએ મનના વિચારો અને તેની અસરોને આ વિડીયોમાં.

Watch here: https://youtu.be/ApIcUtqxQfk

#selfhelp #selfimprovement #thoughts #positivity #DadaBhagwanFoundation

dadabhagwan1150

तेरे जाने के बाद फ़िज़ा कितनी सूनी लगी,
जैसे शहर में हर गली बेआवाज़ हो गई।

deepakbundela7179

उसके जाने के बाद जो ग़म आया है,
उसी ग़म ने तो....✍️

jaiprakash413885

Good morning friends have a great day

kattupayas.101947

🙏🙏सुप्रभात 🙏🙏
🌹 आपका दिन मंगलमय हो 🌹

sonishakya18273gmail.com308865

सभी देशो की सभी सरकारे एवं उनके नेता एंटी नेशनल होते है. कोई अपवाद नहीं, कोई भी अपवाद नहीं !
जितना मैंने समझा है उस आधार पर कह सकता हूँ कि राजनीति का ककहरा इस समझ से शुरू होता है कि —

देश को सबसे बड़ा खतरा सरकार से ही होता है.
फर्क सिर्फ इतना है कि जिस देश में अवाम के पास सरकार में बैठे लोगो को नियंत्रित करने की ज्यादा प्रक्रियाएं है वहां पर सरकार की देश को तबाह करने की क्षमता कम हो जाती है.

तो यदि किसी समय आपको लगता है कि सरकार अच्छा काम कर रही है या सरकार ने अच्छा फैसला किया है तो तुरन्त आपको इस दिशा में सोचना शुरू करना चाहिए कि इस "अच्छे फैसले" के पीछे वास्तव में सरकार की क्या साजिश है !!
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क्योंकि सरकार कभी भी किसी भी स्थिति में जन हित के फैसले नहीं करती !! पिछले 20 साल में मेरे पास ऐसा एक भी उदाहरण नहीं है जब किसी सरकार ने जनहित में स्वेच्छा से कोई फैसला किया हो !!
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सरकार यानी राजवर्ग वे मांसाहारी पशु है जो हर समय शाकाहारी जीवो (प्रजा) का शिकार करने की घात में रहते है !!
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sonukumai

Goodnight friends..sweet dreams

kattupayas.101947

दीवारों ने कई सपनों की सांसे छीन ली, पर सपनों ने कभी हार नहीं मानी

anisroshan324329