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जब पर्वत छोटे होने लगें और मूर्तियां बड़ी बड़ी बनने लगे। थोड़ा दिल से नहीं दिमाग़ से सोचना होगा। खेतों की पराली जलने से हवा में जहर फेले, कंपनियों के धूएं से देश विकास करने लगेगा। दिल से नहीं, थोड़ा दिमाग से सोचना होगा। ख़ुदा बेबस बंदों पर जूल्म हो रहा हो फिर भी कुछ ना कहे, बस ईशनिंदा से किसी को जिंदा जलाने से खूश होगा ख़ुदा? थोड़ा दिल से नहीं दिमाग से सोचना होगा मीठे दो लफ्जों से वाह वाह बोलती भीड़ को देखा है। सच्चे लफ्ज़ को करे अनदेखा तो सोचना होगा। थोड़ा दिल से नहीं, मुझे दिमाग से सोचना होगा।
मूर्तियां के लिए लड़ती प्रजा पर्वत तुटे तो चुप है, मूर्ति हंसकर ए कहे, पर्वत का ही तो में अंश हूं। - Parmar Mayur
उन्हें कहना पड़ा कि मुझे दर्द है, बस फिर मुझे छोड़ना पड़ा उन्हें। - Parmar Mayur
जन्म कहां हुआ था, वह महत्वपूर्ण नहीं है। कर्म मुख्य हैं, कर्म महान् बनाता है। कारागृह में जन्मे श्री कृष्ण हो या पशुओं के अस्तबल में जन्मे ईसा मसिहा दोनों ने अपने कर्मों से ही महानता हासिल की है। - Parmar Mayur
हक़ के लिए 'लड़ना गलत' कहां है, कृष्ण पार्थ से कहे,यही तो 'धर्म' है। - Parmar Mayur
सभी धर्मों में कहां गया है कि ईश्वर परमदयालु है। तो फिर परमात्मा के बने फिरते उपासकों द्वारा कि गई हत्याएं क्या परमात्मा, ख़ुदा या ईश्वर का आदेश था? जो वह आदेश था तो फिर सर्वशक्तिमान ताकत दयालु कहां से मान ले? मेरा मानना बस यही है कि कोई भी धर्म का कट्टरपंथी कभी भी जन्नत के द्वार के पास भी जा सकता नहीं है। ईश्वरने जो कायनात हमें बक्सी है वहीं कायनात में सबको खुश रखनेवाले इंसान ही जिंदा रहकर भी स्वर्ग पा लेते हैं। स्वर्ग मां के चरणों में हैं फिर किसी की भी मां रोनी नहीं चाहिए वरना हमारी सोच गलत दिशा में जा रही है।
कुछ दुखों की दवा "वक्त" है, बस जाने दो! वक्त,,। - Parmar Mayur
तुम विरोध करो। ग़लत हो रहा है तो विरोध करो । तुम युद्ध लड़ो। सब युद्ध तलवारों से लड़ें नहीं जाते। कुछ युद्ध मन भीतर की आवाज सुनकर लडो। अन्याय,असत्य और ग़लत के खिलाफ बगावत करो। तलवार नहीं बस तुम अपनी कलम को क्रियाशील करो। कलम कागज़ की दोस्ती से सून पड़े दिमागों में नवचेतना का संचार करो।।
एकता वहां ही उचित लगती है जहां विवेक पलता हो। एक होकर निर्दोष को मारनेवाली भीड़ से बेहतर एक होकर बचानेवाले इंसान होते है।। - Parmar Mayur
एक पेड़ पर तिनके तिनके इकठ्ठा करके खोसला बनाया था। एक बुलडोजर चला। पेड़ उखाड़ा खोसला तुट कर बिखर गया। पंछी के सारे अरमान तुट गये ऐसे ही बगावत जन्म लेती है।
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