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Hemant Parmar

Hemant Parmar

@hemantparmar9337


shub savar...

हवाएँ हो गई हैं सर्द
आओ धूप में कुछ पल
बिता लें।

कहें कुछ अपने मन की
रिश्तों पर जमी बर्फ
पिघला लें।

चटक से तोड़ें मूंगफली
कुछ दाने खा लें।

अवसाद भरे
जीवन की दौड़ धूप में
थक से गये हो
तो कुछ देर सुस्ता लें।

बातों के तिल का
ताड़ नहीं
तिल में थोड़ा
गुड़ मिला लें।

खाएं गजक
वाणी में थोड़ी
मिठास बना लें।

व्यवहार की चादर में
अहम की सीलन है
दबी रजाई में
ईर्ष्या की दुर्गन्ध है
इन्हें खोलें और
जरा धूप लगा लें।

हवाएँ हो गईं हैं सर्द
आओ धूप में कुछ
पल बिता लें...

मौसम में ठंडक की दस्तक
के साथ नमस्कार...🙏

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स्त्री
एक क़िताब की तरह होती है,
जिसे देखते हैं सब,
अपनी-अपनी ज़रुरतों के,
हिसाब से।

कोई सोचता है उसे,
एक घटिया और सस्ते,
उपन्यास की तरह,
तो कोई घूरता है,
उत्सुक-सा,
एक हसीन रंगीन,
चित्रकथा समझकर।

कुछ पलटते हैं इसके रंगीन पन्ने,
अपना खाली वक़्त,
गुज़ारने के लिए,
तो कुछ रख देते हैं,
घर की लाइब्रेरी में,
सजाकर,
किसी बड़े लेखक की कृति की तरह,
स्टेटस सिम्बल बनाकर।

कुछ ऐसे भी हैं,
जो इसे रद्दी समझकर,
पटक देते हैं,
घर के किसी कोने में,
तो कुछ बहुत उदार होकर ,
पूजते हैं मन्दिर में ,
किसी आले में रखकर,
गीता क़ुरआन बाइबिल जैसे,
किसी पवित्र ग्रन्थ की तरह।

स्त्री एक क़िताब की,
तरह होती है जिसे,
पृष्ठ दर पृष्ठ कभी,
कोई पढ़ता नही
समझता नही,
आवरण से लेकर,
अंतिम पृष्ठ तक,
सिर्फ़ देखता है,
टटोलता है।

और वो रह जाती है,
अनबांची,
अनअभिव्यक्त,
अभिशप्त सी,

ब्याहता होकर भी,
कुआंरी सी।
विस्तृत होकर भी,
सिमटी सी।

छुए तन में,
एक,
अनछुआ मन लिए,
सदा ही।

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न आए लब पे दिल की बात
तो काग़ज़ पे लिख दिया जाए..
किसी ख़याल को मायूस क्यों किया जाए ?

आप स्त्री पर कुछ भी लिखिए,
सब पढ़ेंगे.
आप प्रेम पर कुछ भी लिखिए,
सब पढ़ेंगे.

मगर स्त्री और प्रेम को जोड़ता हुआ
अपनी संवेदनाएं और अपनी उम्मीदें
सिर्फ अपने हृदय में रखने वाला
'पुरुष'

उसके हिस्से में कविताएं नहीं आतीं,
उसके हिस्से आते हैं , तो सिर्फ 'आरोप'
आरोप ~ वासना के, आरोप ~ हिंसा के
आरोप ~ कुछ ज़्यादा ही
स्वच्छन्द होने के.

मगर याद रहे, स्त्री और प्रेम अकेले
एक दूसरे के पूरक नहीं हो सकते.

माँ का फटा आँचल सबको दिखता है,
बाप के शॉल की पैबंद
किसी को नहीं दिखती.
बहन की राखी सबको दिखती है,
मगर ... उस राखी के उपहार हेतु
बहाया हुआ भाई का पसीना
किसी को नहीं दिखता.

किसी की प्रेमिका का
किसी और से विवाह
इसमें स्त्री आगे बढ़ जाये, तो वो मजबूर
अगर प्रेमी किसी और से विवाह करे,
और आगे बढ़ जाये, तो वो मतलबी.

जहाँ सच्चा प्रेम है , वहाँ आपको
एक पुरुष मिलेगा ☞ प्रेमी के रूप में
एक पुरुष मिलेगा ☞ पति के रूप में
एक पुरुष मिलेगा ☞ भाई के रूप में
एक पुरुष मिलेगा ☞ पिता के रूप में
एक पुरुष मिलेगा ☞ बेटे के रूप में

जो हर जगह, हर परिस्थिति में
एक स्त्री के साथ खड़ा है.

मगर उस पर ... कोई कुछ नहीं लिखेगा.
क्योंकि स्त्री पर कविता लिखकर
किसी स्त्री को रिझाया जा सकता है,
उस पर तालियाँ बटोरी जा सकतीं हैं.
उसकी पुस्तकें लिख कर
बेची जा सकती हैं.
क्योंकि पुरुष पर कविता
कोई नहीं खरीदेगा.
क्योंकि पुरुष पर कविता
बिकती नहीं है...!!!

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खड़ी खड़ी अचानक इक दिन
नदी हो जाती है स्त्री
बहते बहते इक दिन अचानक
पहाड़ हो जाती है स्त्री
इक सामान्य सी साँस लेते हुए अचानक
तूफ़ान हो जाती है स्त्री
सबको खुश्बू बाँटती हुई अचानक
एक दिन खार हो जाती है स्त्री
ये सब क्यूँ होता है मगर
क्या होना होता है स्त्री को
और क्या हो जाती है स्त्री
उत्तर हमारे ही भीतर छिपे हैं
जिनको ढूंढ़ने हमें
गहराई में कतई नहीं जाना
जब नहीं रहता कोई पुरुष,पुरुष
तो नहीं रह पाती
कभी कभी कोई स्त्री ,स्त्री !!

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वो सुबह कैसी होती है अंधेरों के उस तरफ
रिश्ता कैसा होता है सात फेरों के उस तरफ
क्योंकि हम तुम तो साथ साथ चले थे न
न आगे तुम, न आगे मैं, हर उलझन में एक साथ उलझे थे न
तुम्हारा इतने सालों तक मुझे याद न करना, ज़रा खलता है
पर जब लगता है तुम खुश होगी, तो फिर सब चलता है...

मगर कुछ पूँछना चाह रहा था तुमको एक अरसे से
आखिर तुम्हारी मर्ज़ी पर ही सब चीज़ छोड़ी है
और तुम जवाब दोगी ये उम्मीद थोड़ी है....

क्या वो भी तुमको देखता है कभी कभी छुप छुप कर
क्या तुम्हारे गाल पर से लट हटाता है रातों को उठ उठ कर
क्या उसके सामने बहुत संभल कर पेश आती हो तुम
दिन भर किस बात में उलझी रहीं, क्या सब बताती हो तुम
या उससे भी बात करते करते एक गहरी सांस छोड़ देती हो और वो अधूरी बात समझ जाता है
वो तुम्हारे बारे में जो सोचता है, क्या तुम्हे बताता है
क्या अपनी छोटी उंगली उसकी छोटी उंगली में मर्ज़ी से फंसाती हो
हाँ हाँ, मुझे याद है तुम सब छुपा लेती हो और बस रिश्ता निभाती हो

तुम्हारे पास कितनी साड़ियां हैं, और कौन से रंग की है, उसको मालूम भी है
मेरा तो कितनी बार इम्तिहान लिया था तुमने अपने सूटों के रंग पर
तुमको आईने की ज़रूरत पड़ती है अब, या उससे भी पूँछ लेती हो आंखों से कि "कैसी लग रही हुँ मैं", कभी जवाब आया क्या?
क्या अब अपने आंसू रोक लेती हो तुम, मत दो मुझे ये गुरुर कह कर कि तुमने आखरी कांधा मेरा ही भिगोया था
कभी बताया उसने कि जब तुम खुले बालों में होती हो तो तुमसे निगाह हटाना मुश्किल है
कभी करवट लेकर जब लेटती हो तो करीब आ कर पूंछता है क्या कि "कहीं तुम नाराज़ तो नहीं"??

न जाने ऐसी कितनी बातें की हैं तुमसे गुज़रे सालों में
मुझे तो पहले की ही तरह बनकर मिलना ख्यालों में
थोड़ी देर ही सही फिर से उलझनों में उलझाना मुझको
कभी यूँ मिलो तो सब बताना मुझको...💞

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औरत कभी भी दो टकेे की नही होती ,

माँ जन्नत, बहन इज़्ज़त और बीवी हमसफ़र होती हैं...💞