शांति हूँ मैं............................................
सुकून का बाज़ार गर्म हैं,
इस धंधे में सब कुछ खैर हैं,
कीमत चुका - चुका कर शांति ढूढ़ रहे हैं,
कभी पहाड़ों पर, कभी सुमुद्र के किनारे,
तो कभी गाय को ही गले लगा रहे हैं............................................
मैं वो तो नहीं जो हर किनारें पर मिल जाऊँ,
ना ही इतनी सस्ती हूँ जो बाज़ारों से खरीदी जाऊँ,
मैं वहां हूँ जहाँ से इंसान मुतमइन हो जाएं,
मैं उसकी हूँ जो सब्र का हो जाएं,
पीस हूँ तो वहीं समझना मुझे अंग्रेज़ी वाला पीस (Piece) ना समझ लेना...................................
मैं व्यवहार में हूँ, मैं शिष्टाचार में हूँ,
मैं ज़हन में हूँँ, मैं वाणी की में हूँ,
तू जिधर भी विश्वास के साथ देख ले,
समझ मैं उसी जगह ठहरी हुई हूँ,
ऐ इंसान तू जितना निश्च्छल और सादा रहेगा,
मेरा साया तेरे ऊपर उतना ही गहरा रहेगा................................................
स्वरचित
राशी शर्मा