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New bites

भक्ति प्रार्थना 🌸

जैसे एक छोटा बच्चा चलता है,
ठोकर खाता है, गिरता है,
तो माता-पिता दौड़कर आते हैं,
उसे गोद में भर लेते हैं, सहला देते हैं—
"डर मत, हम हैं न!"

वैसे ही, हे शिव–शक्ति,
मैं भी आपकी नन्ही बच्ची हूँ।
बहुत थक गई हूँ इस जीवन-पथ पर,
गिरते-संभलते अब और नहीं चल पा रही।

मेरे छोटे-से हाथ को पकड़ लीजिए,
एक हाथ बाबा भोलेनाथ का,
दूसरा हाथ जगतजननी माँ का—
और बीच में मैं, आपकी लाड़ली।

जैसे माता-पिता थाम लेते हैं अपने बच्चे को,
वैसे ही आप दोनों मेरे हाथ थाम लीजिए।
मेरी थकान हर लीजिए,
मेरे आँसू पोंछ दीजिए।

प्रभु, मैं बस आपकी शरण में नन्हीं बच्ची हूँ,
ना कुछ जानती, ना कुछ समझती।
बस इतना भरोसा है—
जब आप दोनों साथ हैं,
तो कोई गिरावट मुझे तोड़ नहीं सकती।


---

archanalekhikha

भाग 1 : परिचय

अध्याय 1 : गाँव और मासूमियत

प्रतापपुर गाँव की सुबह किसी पुराने भजन जैसी होती थी—धीमी, मधुर और आत्मा को छू लेने वाली। जब पूर्व दिशा से सूरज की लालिमा आसमान पर बिखरती, तो ऐसा लगता मानो धरती ने सुनहरा आँचल ओढ़ लिया हो। खेतों में ओस की बूँदें मोतियों की तरह चमकतीं और हवा में मिट्टी की खुशबू घुल जाती।

गाँव का जीवन सरल था। लोग सूर्योदय से पहले उठते, पशुओं की देखभाल करते और फिर खेतों में जुट जाते। औरतें कुएँ से पानी भरतीं, आँगन लीपतीं और लोकगीत गातीं। बच्चे स्कूल जाने से पहले नदी किनारे नहाने जाते और फिर खेलकूद में खो जाते।

उसी गाँव में अर्जुन रहता था। वह पंद्रह साल का था—दुबला-पतला, गेहुँआ रंग, आँखों में गहरी चमक। पिता गरीब किसान थे, माँ गृहिणी। आर्थिक स्थिति कमजोर थी, मगर अर्जुन का मन पढ़ाई और सपनों में डूबा रहता। उसके अंदर कुछ बनने की लगन थी, और सबसे बड़ी बात—दिल बहुत साफ़ था।

सावित्री, दूसरी ओर, गाँव के ज़मींदार ठाकुर साहब की इकलौती बेटी थी। उसके घर की हवेली ऊँची दीवारों और नीले दरवाज़ों से घिरी थी। लोग कहते थे कि सावित्री राजकुमारी जैसी है—नाज़ुक, सुंदर और पढ़ी-लिखी। मगर उसकी सादगी उसे सबसे अलग बनाती थी।

उनकी पहली मुलाक़ात गाँव के मेले में नहीं, बल्कि बरसात के दिन नदी किनारे हुई थी। सावित्री खेलते-खेलते फिसल गई और उसके पाँव में चोट लग गई। भीड़ में से अर्जुन ही था जिसने उसकी मदद की। उसने अपनी गमछा फाड़कर पट्टी बाँधी और कहा—
“अब ठीक है। डरने की ज़रूरत नहीं।”

सावित्री ने उस दिन पहली बार उसे गौर से देखा। उसकी आँखों में ईमानदारी थी और आवाज़ में अपनापन।

यहीं से उनकी दोस्ती शुरू हुई।

धीरे-धीरे यह दोस्ती गहरी होती गई। स्कूल में सावित्री अक्सर गणित और हिंदी में कमजोर पड़ जाती, तो अर्जुन उसकी मदद करता। बदले में सावित्री उसके लिए अपनी हवेली से कभी किताब, कभी मिठाई चुपके से लाती। दोनों को लगता था जैसे वे एक-दूसरे की कमी पूरी कर रहे हों।

गाँव के बच्चे जब खेलते, तो अर्जुन और सावित्री भी शामिल होते। कभी कंचों में अर्जुन जीत जाता, तो सावित्री मुँह फुला लेती। अर्जुन हँसकर कहता—
“अगली बार तुम जीतोगी, वादा।”

सावित्री खिलखिलाकर हँस देती और उसका हँसना पूरे माहौल को रोशन कर देता।

लेकिन गाँव की चौकस निगाहें इस दोस्ती को मासूम नहीं मानती थीं। लोग कानाफूसी करने लगे। बुज़ुर्ग कहते—
“किसान का बेटा और ज़मींदार की बेटी? यह दोस्ती ज़्यादा दिन नहीं चलेगी।”

पर अर्जुन और सावित्री इन बातों से बेपरवाह थे। उनके लिए यह बंधन दुनिया से ऊपर था।

एक दिन शाम को, जब आसमान लाल हो रहा था और पक्षियों के झुंड लौट रहे थे, सावित्री ने अचानक पूछा—
“अर्जुन, क्या तुम सोचते हो कि हम हमेशा ऐसे ही मिलते रहेंगे?”

अर्जुन मुस्कुराया और बोला—
“हाँ, क्यों नहीं? दोस्ती कभी नहीं टूटती।”

सावित्री ने धीमी आवाज़ में कहा—
“पर अगर लोग हमें रोकें तो?”

अर्जुन ने उसकी आँखों में देखते हुए उत्तर दिया—
“फिर भी मैं तेरे साथ रहूँगा।”

उसे कहाँ पता था कि यह मासूम वादा एक दिन उसकी ज़िंदगी की सबसे बड़ी परीक्षा बन जाएगा।

rajukumarchaudhary502010

भाग 1 : परिचय

अध्याय 1 : गाँव और मासूमियत

प्रतापपुर गाँव की सुबह किसी पुराने भजन जैसी होती थी—धीमी, मधुर और आत्मा को छू लेने वाली। जब पूर्व दिशा से सूरज की लालिमा आसमान पर बिखरती, तो ऐसा लगता मानो धरती ने सुनहरा आँचल ओढ़ लिया हो। खेतों में ओस की बूँदें मोतियों की तरह चमकतीं और हवा में मिट्टी की खुशबू घुल जाती।

गाँव का जीवन सरल था। लोग सूर्योदय से पहले उठते, पशुओं की देखभाल करते और फिर खेतों में जुट जाते। औरतें कुएँ से पानी भरतीं, आँगन लीपतीं और लोकगीत गातीं। बच्चे स्कूल जाने से पहले नदी किनारे नहाने जाते और फिर खेलकूद में खो जाते।

उसी गाँव में अर्जुन रहता था। वह पंद्रह साल का था—दुबला-पतला, गेहुँआ रंग, आँखों में गहरी चमक। पिता गरीब किसान थे, माँ गृहिणी। आर्थिक स्थिति कमजोर थी, मगर अर्जुन का मन पढ़ाई और सपनों में डूबा रहता। उसके अंदर कुछ बनने की लगन थी, और सबसे बड़ी बात—दिल बहुत साफ़ था।

सावित्री, दूसरी ओर, गाँव के ज़मींदार ठाकुर साहब की इकलौती बेटी थी। उसके घर की हवेली ऊँची दीवारों और नीले दरवाज़ों से घिरी थी। लोग कहते थे कि सावित्री राजकुमारी जैसी है—नाज़ुक, सुंदर और पढ़ी-लिखी। मगर उसकी सादगी उसे सबसे अलग बनाती थी।

उनकी पहली मुलाक़ात गाँव के मेले में नहीं, बल्कि बरसात के दिन नदी किनारे हुई थी। सावित्री खेलते-खेलते फिसल गई और उसके पाँव में चोट लग गई। भीड़ में से अर्जुन ही था जिसने उसकी मदद की। उसने अपनी गमछा फाड़कर पट्टी बाँधी और कहा—
“अब ठीक है। डरने की ज़रूरत नहीं।”

सावित्री ने उस दिन पहली बार उसे गौर से देखा। उसकी आँखों में ईमानदारी थी और आवाज़ में अपनापन।

यहीं से उनकी दोस्ती शुरू हुई।

धीरे-धीरे यह दोस्ती गहरी होती गई। स्कूल में सावित्री अक्सर गणित और हिंदी में कमजोर पड़ जाती, तो अर्जुन उसकी मदद करता। बदले में सावित्री उसके लिए अपनी हवेली से कभी किताब, कभी मिठाई चुपके से लाती। दोनों को लगता था जैसे वे एक-दूसरे की कमी पूरी कर रहे हों।

गाँव के बच्चे जब खेलते, तो अर्जुन और सावित्री भी शामिल होते। कभी कंचों में अर्जुन जीत जाता, तो सावित्री मुँह फुला लेती। अर्जुन हँसकर कहता—
“अगली बार तुम जीतोगी, वादा।”

सावित्री खिलखिलाकर हँस देती और उसका हँसना पूरे माहौल को रोशन कर देता।

लेकिन गाँव की चौकस निगाहें इस दोस्ती को मासूम नहीं मानती थीं। लोग कानाफूसी करने लगे। बुज़ुर्ग कहते—
“किसान का बेटा और ज़मींदार की बेटी? यह दोस्ती ज़्यादा दिन नहीं चलेगी।”

पर अर्जुन और सावित्री इन बातों से बेपरवाह थे। उनके लिए यह बंधन दुनिया से ऊपर था।

एक दिन शाम को, जब आसमान लाल हो रहा था और पक्षियों के झुंड लौट रहे थे, सावित्री ने अचानक पूछा—
“अर्जुन, क्या तुम सोचते हो कि हम हमेशा ऐसे ही मिलते रहेंगे?”

अर्जुन मुस्कुराया और बोला—
“हाँ, क्यों नहीं? दोस्ती कभी नहीं टूटती।”

सावित्री ने धीमी आवाज़ में कहा—
“पर अगर लोग हमें रोकें तो?”

अर्जुन ने उसकी आँखों में देखते हुए उत्तर दिया—
“फिर भी मैं तेरे साथ रहूँगा।”

उसे कहाँ पता था कि यह मासूम वादा एक दिन उसकी ज़िंदगी की सबसे बड़ी परीक्षा बन जाएगा।

rajukumarchaudhary502010

भाग 1 : परिचय

अध्याय 1 : गाँव और मासूमियत

प्रतापपुर गाँव की सुबह किसी पुराने भजन जैसी होती थी—धीमी, मधुर और आत्मा को छू लेने वाली। जब पूर्व दिशा से सूरज की लालिमा आसमान पर बिखरती, तो ऐसा लगता मानो धरती ने सुनहरा आँचल ओढ़ लिया हो। खेतों में ओस की बूँदें मोतियों की तरह चमकतीं और हवा में मिट्टी की खुशबू घुल जाती।

गाँव का जीवन सरल था। लोग सूर्योदय से पहले उठते, पशुओं की देखभाल करते और फिर खेतों में जुट जाते। औरतें कुएँ से पानी भरतीं, आँगन लीपतीं और लोकगीत गातीं। बच्चे स्कूल जाने से पहले नदी किनारे नहाने जाते और फिर खेलकूद में खो जाते।

उसी गाँव में अर्जुन रहता था। वह पंद्रह साल का था—दुबला-पतला, गेहुँआ रंग, आँखों में गहरी चमक। पिता गरीब किसान थे, माँ गृहिणी। आर्थिक स्थिति कमजोर थी, मगर अर्जुन का मन पढ़ाई और सपनों में डूबा रहता। उसके अंदर कुछ बनने की लगन थी, और सबसे बड़ी बात—दिल बहुत साफ़ था।

सावित्री, दूसरी ओर, गाँव के ज़मींदार ठाकुर साहब की इकलौती बेटी थी। उसके घर की हवेली ऊँची दीवारों और नीले दरवाज़ों से घिरी थी। लोग कहते थे कि सावित्री राजकुमारी जैसी है—नाज़ुक, सुंदर और पढ़ी-लिखी। मगर उसकी सादगी उसे सबसे अलग बनाती थी।

उनकी पहली मुलाक़ात गाँव के मेले में नहीं, बल्कि बरसात के दिन नदी किनारे हुई थी। सावित्री खेलते-खेलते फिसल गई और उसके पाँव में चोट लग गई। भीड़ में से अर्जुन ही था जिसने उसकी मदद की। उसने अपनी गमछा फाड़कर पट्टी बाँधी और कहा—
“अब ठीक है। डरने की ज़रूरत नहीं।”

सावित्री ने उस दिन पहली बार उसे गौर से देखा। उसकी आँखों में ईमानदारी थी और आवाज़ में अपनापन।

यहीं से उनकी दोस्ती शुरू हुई।

धीरे-धीरे यह दोस्ती गहरी होती गई। स्कूल में सावित्री अक्सर गणित और हिंदी में कमजोर पड़ जाती, तो अर्जुन उसकी मदद करता। बदले में सावित्री उसके लिए अपनी हवेली से कभी किताब, कभी मिठाई चुपके से लाती। दोनों को लगता था जैसे वे एक-दूसरे की कमी पूरी कर रहे हों।

गाँव के बच्चे जब खेलते, तो अर्जुन और सावित्री भी शामिल होते। कभी कंचों में अर्जुन जीत जाता, तो सावित्री मुँह फुला लेती। अर्जुन हँसकर कहता—
“अगली बार तुम जीतोगी, वादा।”

सावित्री खिलखिलाकर हँस देती और उसका हँसना पूरे माहौल को रोशन कर देता।

लेकिन गाँव की चौकस निगाहें इस दोस्ती को मासूम नहीं मानती थीं। लोग कानाफूसी करने लगे। बुज़ुर्ग कहते—
“किसान का बेटा और ज़मींदार की बेटी? यह दोस्ती ज़्यादा दिन नहीं चलेगी।”

पर अर्जुन और सावित्री इन बातों से बेपरवाह थे। उनके लिए यह बंधन दुनिया से ऊपर था।

एक दिन शाम को, जब आसमान लाल हो रहा था और पक्षियों के झुंड लौट रहे थे, सावित्री ने अचानक पूछा—
“अर्जुन, क्या तुम सोचते हो कि हम हमेशा ऐसे ही मिलते रहेंगे?”

अर्जुन मुस्कुराया और बोला—
“हाँ, क्यों नहीं? दोस्ती कभी नहीं टूटती।”

सावित्री ने धीमी आवाज़ में कहा—
“पर अगर लोग हमें रोकें तो?”

अर्जुन ने उसकी आँखों में देखते हुए उत्तर दिया—
“फिर भी मैं तेरे साथ रहूँगा।”

उसे कहाँ पता था कि यह मासूम वादा एक दिन उसकी ज़िंदगी की सबसे बड़ी परीक्षा बन जाएगा।

rajukumarchaudhary502010

Happy Ganesh chaturti to everyone...may lord Ganesha blesses you all with lots of happiness and wisdom ..

dimpledas211732

गणेश चतुर्थी की शुभकामनाएं🌺

reenachouhan428395

🌅✨ New Story Release! ✨🌅



Dear Readers,

I’m so happy to share my latest story with you —

Two Shades of Life: Balancing Success and Failure 🌸



Life is never just about winning or losing — it’s about learning to balance both. Success gives us confidence, while failure teaches us strength. Together, they shape who we truly are.



👉 Read my new story here:

🔗https://www.matrubharti.com/book/read/content/19980258/two-shades-of-life-balancing-success-and-failure



💌 I’d love to hear your thoughts after reading it. Your support means everything to me!



With gratitude,

Nensi Vithalani 🌼

nensivithalani.210365

✨📖 Niyati: The Girl Who Waited – Part 3 is Out Now! 📖✨



Her journey of love, patience, and destiny continues… 💫

If you’ve been following Niyati’s story, this part will take you even deeper into her emotions and struggles. ❤️



Those who have read the first two parts know how special this story is…

And those who haven’t yet — now is the perfect time to begin! 🌸



👉 Read it here: https://www.matrubharti.com/book/19980170/niyati-the-girl-who-waited-3



💌 Your thoughts, reviews, and support mean everything — they inspire me to keep writing!

nensivithalani.210365

Good evening friends

kattupayas.101947

**"एक दिन, हे पतिदेव…
तुम्हें मुझ पर गर्व होगा,
और तुम स्वीकारोगे—
कितना गलत था मैं,
कितना कम समझ पाया तुम्हें।

मेरे प्रति अपने कठोर व्यवहार के बाद भी
तुम देखोगे मेरी निष्ठा,
मेरा सच्चा प्रेम…

अगर तुम्हें उस दिन मुझ पर गर्व न भी हुआ—
तो निश्चय ही मेरे ईश्वर को होगा,
कि मैंने अंतिम साँस तक
अपने रिश्ते को ईमानदारी से निभाया।"**

archanalekhikha

He doesn’t lead from the front—he walks beside you.

niyaskn

અલવિદા શ્રાવણ તને
ભાદરવો આવ્યો રંગેચંગે
સત્સંગના સરવરિયાં
હેલે ચડ્યાતાં શ્રાવણમાં
હવે હરખનાં વધામણાં
ગણેશજીનાં સ્વાગતમાં…
-કામિની

kamini6601

🌺 તરણેતર મેળો – શ્રદ્ધા, સંસ્કૃતિ અને સૌહાર્દનો રંગીન મેળાવડો 🌺

ગુજરાતની ધરતી પર અનેક મેળા અને ઉત્સવો ઉજવાય છે, પરંતુ તરણેતર મેળો પોતાની આગવી ઓળખ અને લોકપ્રિયતા ધરાવે છે. દર વર્ષે ભાદરવા સુદ ત્રિજ, ચતુર્થી અને પંચમીના ત્રણ દિવસ સુરેન્દ્રનગર જિલ્લાના થાનગઢ પાસે આવેલા તરણેતર ગામમાં આ મેળો ભરાય છે.

આ મેળાનું મૂળ પ્રાચીન કથાઓમાં રહેલું છે. માન્યતા છે કે મહાભારતકાળ દરમિયાન દ્રૌપદીના સ્વયંવર માટે અહી ધનુષ્યયજ્ઞ યોજાયો હતો. આજના મેળામાં રમાતી છત્રી-ઉછાળાની પ્રથા પણ એ જ પ્રસંગની યાદ અપાવે છે, જ્યાં અરજદારો પોતાની કળા અને શક્તિ પ્રદર્શિત કરતા.

તરણેતર મેળાની વિશેષતાઓ
✨ મેળામાં લોકો પરંપરાગત વસ્ત્રોમાં સજ્જ થઈને આવે છે. પુરુષો કેડિયું-ધોતી અને મહિલાઓ ચણિયાચોળી પહેરીને લોકનૃત્ય કરે છે.
✨ અહીં રમાતું ગરબા અને રાસ એ મેળાનો જીવ છે, જે આખી રાત સુધી ચાલે છે.
✨ રંગબેરંગી કાંઠાવાળી છત્રીઓ મેળાનું મુખ્ય આકર્ષણ છે. યુવક-યુવતીઓ પોતાની છત્રીને સુંદર કાચ, મોતી, મણકા અને કાપડથી શણગારતા હોય છે.
✨ મેળામાં લોકકળા, હસ્તકલા, ગામઠી હસ્તકૃત વસ્તુઓ, લોકગીતો અને વાદ્યસંગીતનો અનોખો મેળાપ જોવા મળે છે.

તરણેતર મેળો માત્ર મનોરંજન કે ધાર્મિક કાર્યક્રમ નથી, પરંતુ એ ગ્રામ્ય સંસ્કૃતિ, કલા અને પરંપરાનો જીવંત ઉત્સવ છે. મેળામાં લોકો વિવિધ ગામડાં, તાલુકા અને જિલ્લાઓમાંથી ભેગા થાય છે અને એકબીજા સાથે ભાઈચારાનો આનંદ માણે છે.

આ મેળો આપણને શીખવે છે કે સાચો આનંદ ભવ્યતામાં નહીં, પરંતુ એકતામાં, પરંપરામાં અને ભક્તિમાં છે.

🙏 તરણેતર મેળો ગુજરાતની ધરતીનો ગૌરવ છે – જે લોકજીવન, શ્રદ્ધા અને પરંપરાનું જીવંત પ્રતિક છે. 🙏

kartikvaishnav123gma

🙏✨ આજે ગણેશ ચતુર્થી ✨🙏

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ગણેશ ચતુર્થી – શ્રીગણેશનો આદરણીય પર્વ

આજે વિઘ્નહર્તા, બુદ્ધિપ્રદાતા અને મંગલકર્તા ભગવાન શ્રીગણેશજીનો પવિત્ર દિવસ – ગણેશ ચતુર્થી છે. ભાદરવા સુદ ચોથના શુભ દિવસે દરેક ઘરમાં અને મંદિરોમાં ગૌરવ, ભક્તિ અને આનંદ સાથે શ્રીગણેશજીની સ્થાપના કરવામાં આવે છે.

શાસ્ત્રોમાં જણાવાયું છે કે ભગવાન ગણેશજી વિના કોઈપણ શુભ કાર્યની શરૂઆત અધૂરી ગણાય છે. આ કારણે જ દરેક મંગલ કાર્ય "શ્રીગણેશ" થી શરૂ કરવામાં આવે છે. તેઓ માત્ર વિઘ્નોને દૂર કરતા નથી, પરંતુ જ્ઞાન, બુદ્ધિ, સમજદારી અને ધૈર્ય આપનાર દેવતા છે.

આજે ગામ, શહેર, સમાજ અને પરિવારોમાં ગજાનનનું આગમન એક ઉત્સવની જેમ મનાવવામાં આવે છે. ઘરમાં ગૌરીપુત્રની સ્થાપના સાથે જ ઘરમાં નવા ઉમંગ, આશા અને શાંતિનો પ્રવેશ થાય છે. મીઠી મોદકની સુગંધ, ભક્તિભર્યા આરતીના સ્વર અને "ગણપતિ બાપ્પા મોરયા" ના ઘોષથી વાતાવરણ ભક્તિમય બની જાય છે.

ગણેશજી આપણને જીવનનો એક ઊંડો સંદેશ આપે છે –

મોટા કાન આપણને શીખવે છે કે વધારે સાંભળવું જોઈએ અને ઓછું બોલવું જોઈએ.

નાની આંખો ધ્યાન કેન્દ્રિત રાખવાની પ્રેરણા આપે છે.

મોટું પેટ શાંતિપૂર્વક દરેક પરિસ્થિતિને પચાવી લેવાની શક્તિનો સંકેત છે.

અને નાનું મોઢું સૂચવે છે કે આપણું બોલવું મર્યાદિત પણ મધુર હોવું જોઈએ.


ગણેશ ચતુર્થી માત્ર ધાર્મિક ઉત્સવ નથી, પરંતુ એકતા, પ્રેમ અને ભક્તિનું પ્રતિક છે. કુટુંબ સાથે મળીને પૂજા કરવી, બાળકો સાથે મીઠાઈઓ વહેંચવી અને મિત્રો-સગાઓ સાથે આનંદ માણવો એ બધું જ જીવનને નજીકથી જીવવાની તક આપે છે.

આજે આપણે સૌએ શ્રીગણેશજી પાસે પ્રાર્થના કરવી જોઈએ કે –

આપણા જીવનમાંથી વિઘ્નો દૂર થાય,

બુદ્ધિ અને જ્ઞાનથી આપણું મન ઉજળે,

સમાજમાં એકતા અને સ્નેહ વધે,

અને દરેકના જીવનમાં સુખ-શાંતિ અને સમૃદ્ધિ આવે.


ગણપતિ બાપ્પા મોરયા! 🙏🌺

kartikvaishnav123gma

🌸🙏 Ganpati Bappa’s Message 🙏🌸



“My dear devotees,

I have come for just a few days…

separating from my parents,

only to remind you of one truth:



For me, my parents are my Gods.

And I wish the same for you —

see your parents as your living Gods.



If ever you have hurt them,

today, go and apologize.

Take their blessings,

make them smile. 💛



Always remember —

when parents are happy, Bappa is happiest.



✨ Ganpati Bappa Morya ✨



– Nensi Vithalani

nensivithalani.210365

Good afternoon friends

kattupayas.101947

आतापर्यंत मी पन्नास गोष्टी लिहिल्या आहेत. मनात एक ध्यास आहे—या गोष्टी रंगमंचावर जगाव्यात. मराठी रंगभूमीवर त्यांचं नाटक व्हावं. शाळा–कॉलेजातल्या मुलांनी ते उचलून धरावं. पण अभिनयाला कसलीही तडजोड नको—अभिनय टोकदार, जिवंत असला पाहिजे. आणि हो—त्या नाटकांच्या छायाचित्रांचा, व्हिडीओचा ठसा मात्र जरूर राहिला पाहिजे.

डृष्टी थिएटर मंचातून एकदा गडकरी रंगायतनात नाटक सादर झालं होतं. त्यातला माझा एक छोटासा संवाद—दक्षिण भारतीय व्यक्तिरेखा होती. फक्त दोन शब्द—“भाभी, बोला बोला”—पण मनापासून केलेला! तेव्हा मनात आलं—हो, मी तुमच्यासोबत आहे.

मराठी रंगभूमी पोहोचली पाहिजे यशाच्या शिखरावर.

By
Fazal Abubakkar Esaf
Mee Marathi.....

fazalesaf2973

एकटेपणा म्हणजे माणसाची खरी ओळख. गर्दीत माणूस चेहऱ्यांचे मुखवटे घालतो, पण एकटा असताना स्वतःशीच भिडतो. कधी तो शांत नदीसारखा वाटतो, तर कधी वादळासारखा भयंकर

by Fazal Abubakkar Esaf
Village - Vaibhavwadi ( Kokan)

fazalesaf2973

निसर्गाच्या कुशीत बसलं की सगळं दुःख दूर होतं. डोंगर, नदी, झाडं—हे माणसाला कुठलीही उपदेश न देता सत्य शिकवतात. निसर्ग म्हणजे शांततेचं एक अव्यक्त श्लोक.

by Fazal Abubakkar Esaf
Village - Vaibhavwadi ( Kokan)

fazalesaf2973

बालपणाच्या खिडकीतून दिसलेलं आकाश कायम मोठं असतं. छोट्या पावलांना तेव्हा पृथ्वीही मोठी वाटते. खेळण्यातलं जग जास्त खरं...बालपण परत येत नाही, पण आठवणींमध्ये ते सदैव जिवंत राहतं.

by Fazal AbUbakkar Esaf
Village- Vaibhavwadi ( Kokan)

fazalesaf2973

Listen to my song on YouTube, it has gone Viral with 115k views in Just 8 days.

https://youtu.be/E6juI7jEF5s?si=dO7iE4eY23zOCBoy

vrajkan

विरहाची वेदना शरीराच्या नसांमध्ये उतरते. ओठ हसतात पण डोळे सतत पावसात भिजतात. जग पुढे धावतं पण हृदय तिथेच थांबतं—जिथे शेवटचं भेट झालं होतं. विरह म्हणजे काळाची कैद.-Fazal Abubakkar Esaf - Vaibhavwadi. - Kokan

fazalesaf2973

तेरे नाम – उपन्यास

अध्याय 1 – राधे की दुनिया

कैंपस की गलियों में अगर किसी का नाम सबसे पहले लिया जाता था, तो वह था राधे। उसका नाम सुनते ही सहपाठियों की धड़कनें तेज़ हो जातीं। उसका अंदाज़ ऐसा था कि हर कोई उससे डरता, लेकिन मन ही मन उसकी दबंगई का लोहा भी मानता था।

राधे की चाल में एक अकड़ थी। वह जहाँ से गुज़रता, सबकी नज़रें उसी पर टिक जातीं। उसके माथे पर बिखरे बाल, कंधे पर तौलिया और आँखों में जलती आग—यही उसकी पहचान थी।

लेकिन यह सख़्त और जिद्दी चेहरा भीतर से उतना मज़बूत नहीं था। राधे की ज़िंदगी में बहुत खालीपन था। माँ-बाप का साया बहुत पहले उठ गया था। दोस्तों की भीड़ थी, पर सच्ची दोस्ती का एहसास कहीं खो गया था।

रातें उसके लिए सबसे भारी होतीं। दिन में वह अपने गुस्से और दबंगई से दुनिया को डराता, लेकिन रात के सन्नाटे में वह खुद से डरता था। कई बार छत पर बैठकर वह तारों को ताकता और सोचता—"क्या यही ज़िंदगी है? लड़ाई, गुस्सा और डर? या कहीं कोई और रास्ता भी है?"

लेकिन उसे पता नहीं था कि उसकी ज़िंदगी का रास्ता जल्द ही बदलने वाला है। कोई ऐसा आने वाला है, जो उसकी इस उग्र दुनिया को नरमाई से छूकर बदल देगा।

"राधे की आँखों में आग थी, लेकिन किस्मत उसकी आँखों में अब प्रेम का दीया जलाने वाली थी।"


---

अध्याय 2 – खालीपन की छाया

राधे के बाहरी स्वरूप को देखकर कोई भी सोच सकता था कि वह एक निडर और ताक़तवर इंसान है। लेकिन जो लोग उसकी आँखों में गहराई से झांकते, वे समझ जाते कि वहाँ एक ऐसा खालीपन है जिसे वह दुनिया से छुपाए फिरता है।

उसका बचपन आसान नहीं था। पिता का सख़्त स्वभाव और माँ का जल्दी बिछड़ जाना, दोनों ने उसके मन में गहरी चोट छोड़ी थी। पिता अक्सर कहा करते थे—
"मर्द को दर्द नहीं दिखाना चाहिए।"
शायद इसी वाक्य ने राधे को ऐसा बना दिया था—गुस्सैल, ज़िद्दी और कठोर।

राधे के पास दोस्तों की कमी नहीं थी। कॉलेज में उसके इर्द-गिर्द कई लोग रहते, लेकिन उनमें से कोई भी उसका अपना नहीं था। सब उसकी ताक़त से जुड़े थे, उसके दिल से नहीं। शाम को वह दोस्तों के साथ हंसी-ठिठोली करता, पर जब अकेला होता तो उसके मन में सवाल उठते—
"क्या सच में ये लोग मेरे अपने हैं? अगर एक दिन मैं हार गया, तो क्या ये मेरे साथ खड़े होंगे?"

रातें उसकी सबसे बड़ी दुश्मन थीं। जब पूरा मोहल्ला नींद में डूबा होता, तब राधे सिगरेट के धुएँ में अपने दर्द को दबाने की कोशिश करता। धुआँ कमरे में फैलता और उसकी आँखें नम हो जातीं। लेकिन वह आँसू बहाने से डरता था।

"जिस वीराने में अब तक राधे भटक रहा था, वहाँ जल्द ही कोई ऐसी रौशनी आने वाली थी जो उसकी आत्मा को नया जीवन देगी।"


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अध्याय 3 – पहली मुलाक़ात

बसंत उत्सव का माहौल था। हर ओर रंग-बिरंगे कपड़े, हंसी-ठिठोली और संगीत की गूंज फैली थी। भीड़ में भी राधे हमेशा की तरह अकेला खड़ा था। उसकी निगाहें चारों ओर घूम रही थीं, पर मन कहीं और खोया था।

अचानक उसकी नज़र एक लड़की पर पड़ी—सफेद सलवार-कमीज़ में लिपटी, आँखों में झील-सी गहराई और चेहरे पर मासूमियत की चमक। वह निर्जला थी।

राधे की आँखें उस पर ठहर गईं। यह पहली बार था जब किसी को देखकर उसका दिल बेकाबू धड़क उठा। निर्जला ने हल्की मुस्कान दी और आगे बढ़ गई।

उस शाम राधे छत पर बैठा तारों को निहार रहा था। बार-बार वही चेहरा उसकी आँखों के सामने आ रहा था। पहली बार उसे लगा कि उसकी ज़िंदगी में किसी ने बिना बोले दस्तक दी है।

"राधे की दुनिया अब बदलने वाली थी। निर्जला का आना उसकी ज़िंदगी में बसंत की पहली बयार था।"


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अध्याय 4 – प्रेम का अंकुर

पहली मुलाक़ात के बाद राधे की दुनिया बदल गई। अब वह अक्सर कॉलेज के गलियारों में घूमता कि कहीं निर्जला की झलक मिल जाए।

निर्जला की सरलता और मासूमियत ने राधे को भीतर से बदल दिया। वह अब बिना वजह झगड़े करने से बचने लगा।

एक दिन लाइब्रेरी में राधे ने निर्जला को देखा। उसने हिम्मत जुटाकर कहा—
"तुम्हें शायद ये किताब चाहिए थी।"
निर्जला ने मुस्कुराकर धन्यवाद कहा। राधे के दिल पर यह मुस्कान अमिट छाप छोड़ गई।

"राधे को अब एहसास हो चुका था कि उसका दिल उस मासूम लड़की की ओर खिंच रहा है। यह सिर्फ एक मुलाक़ात नहीं थी—यह एक नई शुरुआत थी।"


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अध्याय 5 – विरोध की दीवारें

राधे और निर्जला के बीच की नज़दीकियाँ गहरी हो रही थीं। लेकिन निर्जला का परिवार बेहद परंपरावादी था। जब उन्हें यह पता चला, तो घर में सख़्त माहौल बन गया।

राधे का गुस्सा फिर से भड़क उठा। उसने कहा—
"मैं तुझसे दूर नहीं रह सकता।"
निर्जला ने धीमी आवाज़ में उत्तर दिया—
"राधे, प्यार का मतलब दीवारें तोड़ना नहीं, बल्कि दिल जीतना होता है।"

"प्रेम का अंकुर तो फूट चुका था, पर अब उसके सामने समाज और परिवार की कठोर दीवारें खड़ी थीं।"


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अध्याय 6 – टूटता संतुलन

राधे ने जितनी बार कोशिश की, उसका गुस्सा प्रेम के रास्ते में रोड़ा बन गया। एक दिन कॉलेज में झड़प ने उसकी ज़िंदगी बदल दी। हादसा इतना गंभीर था कि पुलिस और परिवार का झगड़ा बढ़ गया।

अस्पताल में राधे का शरीर घायल था, पर उसके मन में टूटन और अकेलापन गहरा था।
निर्जला हर दिन उसके पास आती, पर वह भी मजबूर थी।

"राधे का शरीर अस्पताल में था, लेकिन उसकी आत्मा कहीं और भटक रही थी।"


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अध्याय 7 – अधूरी मोहब्बत

समय के साथ राधे की ज़िंदगी और निर्जला का परिवार दोनों में दूरी बढ़ती गई। निर्जला अब मजबूरी में निर्णय लेने लगी थी।

राधे के भीतर का पागलपन अब अकेलेपन में बदल गया। वह अक्सर छत पर बैठता और निर्जला का नाम फुसफुसाता।

"निर्जला अब उसके सामने नहीं थी, लेकिन उसके नाम की मिठास और उसकी यादों की छाया हमेशा राधे के दिल में जिंदा रही।"


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अध्याय 8 – अंतिम करुणा

राधे ने समझ लिया कि प्रेम केवल पाने का नहीं, बल्कि त्याग और समझदारी का भी नाम है। वह छत पर बैठा, निर्जला के बारे में सोचते हुए धीरे मुस्कुराया।

"अधूरी मोहब्बत हमेशा अधूरी नहीं रहती। वह अमर हो जाती है, और अपने नाम से हर दिल को छू लेती है।"

राधे और निर्जला की प्रेम कहानी इस बात का प्रमाण है कि कभी-कभी प्यार की ताक़त केवल मिलने में नहीं, बल्कि यादों, त्याग और दिल की गहराई में भी होती है।

rajukumarchaudhary502010

✨👁 On this auspicious occasion of Ganesh Chaturthi, let’s welcome Bappa with prayers for healthy eyes and clear vision.
May Lord Ganesha bless us all with wisdom, wellness, and divine light. 🌸🙏

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