Quotes by Lalit Kishor Aka Shitiz in Bitesapp read free

Lalit Kishor Aka Shitiz

Lalit Kishor Aka Shitiz

@lk2433554gmail.com182641
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क्या हमारा अतीत हमें वास्तव में डरा पाता है या हम उसके बाद भी अतीत दोहराते रहते हैं। जबकि अतीत की कलम में वर्तमान की स्याही भर यदि हम भविष्य के पन्नों पर अपनी रचना रच पाए तो ही जीवन का वास्तविक अर्थ तथा प्रयोजन सिद्ध हो सकता है। परन्तु इस बात का भी ध्यान रखे कि हमारी स्याही में मानवता और प्रकृति का लोप न हो। चूंकि कलम से लिखते समय संभवतः हमारे हाथ पर भी स्याही के दाग बनते हैं। तो सोचना हमें है कि हमें कैसा भविष्य सृजित करना है। ऐसा जहां केवल हमारा ही लाभ हो तथा जिसके प्रभाव में अन्य की हानि हो अथवा एक ऐसा भविष्य जो चिर काल तक समस्त घटकों को प्रभावित करे तथा ये सुनिश्चित हो कि इसमें किसी की हानि न हुई हो। फिर वह शारीरिक आर्थिक सामाजिक मानसिक व वाचिक किसी रूप में स्वीकार्य नहीं होगी।

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बड़ी अजीब बात है कि,
हम जो सोचते हैं वो कर नहीं पाते और जो हमारे साथ होता है वो शायद हम सोच भी नहीं सकते, हमारे हाथ में केवल आज होता है पर इस आज पर बीते हुए कल की परछाई और आने वाले कल की आहट भी होती है। कहने को हम आज में जीते हैं पर वास्तव में हम मात्र बीते हुए कल को छिटक कर आने वाले कल के लिए प्रयत्न करते रहते हैं और जो कि हमारे हाथ में नहीं है कि हम उसे अपने अनुरूप आकर दे कर उसे संजोए रख सके। क्योंकि सच है कुम्हार मटके को कितना ही ऐतबार से नवाजे और तराश कर बनाए पर जब मटका गिरता है तो वह सामान्य मटके की तरह ही चूर चूर होता है। जीवन भी कुछ ऐसा ही है हम अपनी इच्छाओं और आकांक्षाओं के साये में न जाने क्या क्या कर जाते हैं पर जब विपदा आती है तो निश्चित ही क्रूरता से विनाश करती है। जैसे भूकंप या सुनामी नहीं देखते कि हमारी चपेट में बच्चे और महिलाएं है,अथवा वे अल्पसंख्यक है या पिछड़े हैं,क्योंकि आपदाओं में आरक्षण नहीं मिलता वहां तो समानता ही मिलती है।
- Lalit Kishor Aka Shitiz

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happy makar sakranti .......
jab Surya dakshinayan se uttarayan me pravesh karta h to is ghatna ko makar sakranti ke naam se jana jata h, yahi Punjab me lohadi or south india me Pongal, Kashmir me shihsur sakranti tatha utar purvi rajyon me ise magh bihu ke naam se jana jata h.

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चढ़ते सूरज ढलदे देखे,
बुझते दीवें बलदे देखे
हीरे दा कोई मोल न जाने,
खोटे सिक्के चलदे देखे
जिना दा न जग ते कोई ,
वो भी पुत्तर पलदे देखे
उस दी रहमत दे नाल,
बंदे पानी उत्ते चलदे देखे
लौकी कहंदे दाल नी गलदी,
मैं ता पत्थर गलदे देखे
जीना ने कदर न किती रब दीं,
हाथ खाली ओ मलदे देखे
कई पैरा ते नंगे फिरते ,
सिर ते लब्बद छांवा
मैनु दात्ता सब कुछ दित्ता,
क्यों न शुकर मनावां

- बाबा बुल्ले शाह

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फ्रायड के मनोवैज्ञानिक बीजों को हिंदी की जमीन पर बो कर उगाई गईं फसल जब लहराई तो समस्त जन मानस के लेखक महान मनोवैज्ञानिक कथाकार जैनेंद्र कुमार का प्रणय घोष संपूर्ण साहित्य इतिहास में मील का पत्थर साबित हुआ। नारी इनके साहित्य में केंद्रीय पात्रों का पद लिए हुए है, जहाँ मृणाल, सुनीता, कट्टो, सुखदा ने इनके नारी पात्रों को आधुनिकता तथा विशिष्ट एवं सशक्त रूप से प्रदर्शित किया है। जैनेंद्र ने अपने कथानक में केवल मनोरंजन को नहीं अपितु अन्तर्मन की व्यथा तथा मनोवैज्ञानिक सत्य को उजागर करने का सफल प्रयास किया है। प्रेमचंद ने जैनेंद्र को "भारत का गोर्की" कहकर पुकारा है।
- Lalit Kishor Aka Shitiz

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Why does it always feel I'm still in teenage but reality never lie 🤥 who believe it's a new calendar ahead and what surprising that same things will going to happen.........once in Montgomery movement roja parks objected for a bus ticket but what is my objection is it still necessary to object for some lil things. why does those books feel like a armed assasin and why it looks like a assassination of childish behaviour.......
Who cares about my psychology or someone named me a psycho but still it's worth it to take a sip of that struggle because once they said "celebrate the process you will get your mask once it is made then destiny decides what fits you".......

{ऐसा क्यों लगता है कि मैं अभी भी किशोरावस्था में हूँ, लेकिन वास्तविकता कभी झूठ नहीं बोलती 🤥 जो लोग मानते हैं कि आगे एक नया कैलेंडर है और क्या आश्चर्य है कि वही चीजें होने जा रही हैं......... एक बार मोंटगोमरी आंदोलन में रोजा पार्क्स ने बस टिकट के लिए आपत्ति जताई थी, लेकिन मेरी आपत्ति क्या है, क्या कुछ छोटी चीजों के लिए अभी भी आपत्ति करना आवश्यक है। वे किताबें एक सशस्त्र हत्यारे की तरह क्यों लगती हैं और यह बचकाने व्यवहार की हत्या की तरह क्यों लगती है.......
कौन मेरी मनोविज्ञान की परवाह करता है या किसी ने मुझे एक पागल नाम दिया है, लेकिन फिर भी उस संघर्ष का एक घूंट पीने के लायक है क्योंकि एक बार उन्होंने कहा था "प्रक्रिया का जश्न मनाएं, एक बार जब यह बन जाएगा तो आपको अपना मुखौटा मिल जाएगा, फिर भाग्य तय करता है कि आपके लिए क्या फिट बैठता है".......}

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छोटी छोटी आंखों में बड़े बड़े सपने
दूर एक शहर में याद आते हैं अपने
परवाह नहीं है होने या न होने की
एक ज़िद है खुद को खुद से जीतने की
- Lalit Kishor Aka Shitiz

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Once a boy who was looking at mirror and saying him self that...."hey !!! one day you will become what you want just ignore those who don't knows your inner strength, you are SUPER HERO always keep your dream alive to be alive"

Always stand for your passion keep doing it because it's passion it's not a business so don't have to fear of losing.

- Lalit Kishor Aka Shitiz

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आखिर तूने किया ही क्या

जब से जन्मा कुछ किया क्या,

जो हुआ बड़ा तो जिद्दी सा

तुझे जिद में कुछ मिला क्या...



आई जवानी तो रक्त गर्म हुआ

पर क्या तू जिम्मेदार हुआ..

उम्र बस बढ़ रही है,

हर साल जिंदगी घट रही है

पर इस चलती गाड़ी में

तूने अपना किराया दिया क्या ..



हर रोज सुबह उठकर

करता शाम का इंतजार

जो आई शाम तो लाई अक्ल

पर इस पछतावे का बोध किया क्या

दिन भर कशमकश सी

बीता के सांस - ए - जिंदगी

रात में चैन से सोया क्या.....



--shitiz/क्षितिज

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rate and like...❤️❤️
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- Lalit Kishor Aka Shitiz