विजया बैंक में सहायक प्रबंधक से सेवा निवृत। पिता स्व. रामनाथ शुक्ल ‘श्री नाथ’ से साहित्यिक विरासत एवं प्रेरणा। अपने विद्यार्थी जीवन से ही लेखन के प्रति झुकाव। राष्ट्रीय, सामाजिक एवं मानवीय संवेदनाओं से ओत-प्रोत साहित्य सृजन की अनवरत यात्रा।

*सुमुख,एकदंत,गजकर्णक,*
*गणाध्यक्ष, भालचंद्र,विनायक,धूम्रकेतु*

1 सुमुख
करूँ सुमुख की अर्चना, हरें सभी के कष्ट।
गौरी-शिव प्रभु नंदना, रोग शोक हों नष्ट।।
2 एकदंत
एकदंत रक्षा करें, हरते कष्ट अनेक।
दयावंत हैं गजवदन,जाग्रत करें विवेक।।
3 गणाध्यक्ष
गणाध्यक्ष गजमुख प्रभु, हर लो सारे कष्ट।
बुद्धि ज्ञान भंडार भर, कभी न हों पथभ्रष्ट।।
4 भालचंद्र
भालचंद्र गणराज जी, महिमा बड़ी अपार।
वेदव्यास के ग्रंथ को, लेखन-लिपि आकार।।
5 विनायक
बुद्धि विनायक गजवदन, ज्ञानवान गुणखान ।
प्रथम पूज्य हो देव तुम, करें सभी नित ध्यान ।।
6 धूम्रकेतु
धूम्रकेतु गणराज जी, इनका रूप अनूप।
अग्र पूज्य हैं देवता, चतुर बुद्धि के भूप।।
7 गजकर्णक
गजकर्णक लम्बोदरा, विघ्नविनाशक देव।
रिद्धि सिद्धि के देवता, हरें कष्ट स्वयमेव।।

मनोजकुमार शुक्ल " मनोज "
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दोहे लिखे मनोज ने.....

दोहे लिखे मनोज ने, भाषा सहज सुबोध।
समझ सभी को आ सकें, हटें सभी अवरोध ।।

हिन्दी हिन्दुस्तान की, भारत को अभिमान।
भाषाओं में श्रे़ष्ठतम, संस्कृत का अभियान।।

धरा कनाडा में बड़ा, सरन घई का नाम।
हिंदी के प्रति हैं खड़े, करें अनोखे काम।।

वसुधा की संपादिका, स्नेहा जी का नाम।
ग्रंथों की हैं लेखिका, देश कनाडा धाम।।

अखिल विश्व हिंदी समिति, संयोजक गोपाल।
हिंदी का ध्वज ले चले, तिलक सजा है भाल।।

अनगिन लेखक हैं वहाँ, हिंदी के विख्यात।
साहित्य-कुंज, प्रयास में, लिखते हैं दिनरात।।

हिंदी को अपनाइए, बढ़ी जगत में शान।
मोदी ने भाषण दिए, हम सबको अभिमान ।।

मनोजकुमार शुक्ल " मनोज "

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मंथन करते रहे उम्र भर.....

मंथन करते रहे उम्र भर,
निष्कर्षों से है पाया।
धुन के रहे सदा ही पक्के,
जो ठाना कर दिखलाया।

पले अभावों के आँगन में,
पैरों पर जब खड़े हुए।
मिला सहारा गैरों से भी,
सीढ़ी चढ़ने अपनाया।

गिरे हुओं की पढ़ी इबारत,
मंजिल पर बढ़ना सीखा।
रिद्धि-सिद्धि की रही चाहना,
धीरज धर कर सुलझाया।

चले निरंतर पथ में अपने,
मात-पिता का साथ मिला।
जीवन में सहयोग रहा पर,
बिछुड़ा हमसे हर साया।।

दृढ़ संकल्प अगर हो मन में,
मिले सफलता कदम कदम।
निश्छल भाव रहे जीवन में,
सदा मिले प्रभु की छाया।

देख रहा अब विश्व हमारा,
अंतरिक्ष में सूर्योदय।
विश्व गुरु की अवधारणा पर,
सबने फिर शीश झुकाया।

हिन्दी को जो भी कहते थे,
यह अनपढ़ की भाषा है।
आज वही भाषा ने देखो,
अपना परचम फहराया।

मनोजकुमार शुक्ल " मनोज "
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हिन्दी हिन्दुस्तान के.....

(14 सितम्बर हिन्दी दिवस पर दोहे)

हिन्दी हिन्दुस्तान के, दिल पर करती राज।
आजादी के वक्त भी, यही रही सरताज।।
संस्कारों में है पली, इसकी हर मुस्कान।
संस्कृति की रक्षक रही, भारत की पहचान।।
स्वर शब्दों औ व्यंजनों, का अनुपम भंडार।
वैज्ञानिक लिपि भी यही, कहता है संसार।।
भावों की अभिव्यक्ति में, है यह चतुर सुजान।
करते हैं सब वंदना, भाषा विद् विद्वान ।।
देव नागरी लिपि संग, बना हुआ गठजोड़।
स्वर शब्दों की तालिका, में सबसे बेजोड़।।
संस्कृत की यह लाड़ली, हर घर में सत्कार।
प्रीति लगाकर खो गए, हर कवि रचनाकार ।।
तुलसी सबको दे गए, मानस का उपहार।
सूरदास रसखान ने, किया बड़ा उपकार ।।
जगनिक ने आल्हा रची, वीरों का यशगान।
मीरा संत कबीर ने, गाए प्रभु गुण गान।।
मलिक मोहम्मद जायसी, रहिमन औ हरिदास।
इनको जीवन में सदा, आई हिन्दी रास।।
सेवा की साहित्य की, हिन्दी बनी है खास।
श्री विद्यापति पद्माकर , भूषण केशवदास।।
चंदवरदायी खुसरो, पंत निराला नूर।
जयशँकर भारतेन्दु जी, है हिन्दी के शूर।।
दिनकर मैथिलिशरण जी, सुभद्रा, माखन लाल।
गुरूनानक रैदास जी, इनने किया धमाल।।
सेनापति, बिहारी हुए, बना गये इतिहास।
हिन्दी का दीपक जला, बिखरा गये उजास।।
महावीर महादेवि जी, हिन्दी युग अवतार।
कितने साधक हैं रहे, गिनती नहीं अपार ।।
हेय भाव से देखते, जो थे सत्ताधीश।
वही आज पछता रहे, नवा रहे हैं शीश ।।
अटल बिहारी ने किया, हिन्दी का यशगान।
वही पताका ले चले, मोदी सीना तान।।
हिन्दी का वंदन किया, मोदी उड़े विदेश।
सुनने को आतुर रहा, विश्व जगत परिवेश।।
ओजस्वी भाषण सुना, सबको दे दी मात।
सुना दिया हर देश में, मानव हित की बात ।।
विश्व क्षितिज में छा गयी, हिन्दी भाषा आज।
भारत ने है रख दिया, उसके सिर पर ताज।।


मनोज कुमार शुक्ल " मनोज "
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*दोहा सृजन हेतु शब्द--*
*कृष्ण,राधिका,घनश्याम,कान्हा, माखनचोर*

1 कृष्ण
कृष्ण-कुंज ब्रज भूमि में, मनमोहक संस्थान।
रथ पर थे श्री कृष्ण खुद, अर्जुन को दें ज्ञान।।

2 राधिका
कृष्ण-राधिका अमर हैं, त्याग प्रेम का रूप।
मन मंदिर में हैं बसे, मुख छवि देव अनूप।।

3 घनश्याम
उमस बढ़ी गर्मी हुई, सावन का विश्राम ।
आँखें रोज निहारतीं, दिखें नहीं घनश्याम ।।

4 कान्हा
कान्हा गोकुल छोड़ कर, पहुँचे कंस निवास।
अत्याचारी-राज्य का, अंत किया बिंदास ।।

5 माखनचोर
नाम अनेकों कृष्ण के, उनमें माखनचोर।
भारत भू को तारने, लगा दिया था जोर।।

मनोजकुमार शुक्ल " मनोज "
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शिक्षक दिवस पर

शिक्षा का मंदिर जहाँ, सबको मिलता ज्ञान।
देवतुल्य शिक्षक रहें, हरते हर अज्ञान।।

शिक्षा वह अनमोल धन, जीवन भर का साथ।
लक्ष्मी जी का वरद हस्त,जग का झुकता माथ।।

मानव के निर्माण में, शिक्षक रहा महान।
बचपन को संयोजना, नव पीढ़ी को ज्ञान।।

शिक्षक की कर वंदना, सुदृढ़ बने समाज।
शिक्षित मानव ही गढ़े, नैतिक-धर्म-सुराज ।।

ज्ञान और विज्ञान से , भरता प्रखर प्रकाश।
मानव हित को साधकर, करे तिमिर का नाश।।

शिक्षा पाने के लिए, मानव गया विदेश।
थाह नहीं भंडार का, है अमूल्य विनिवेश।।

शिक्षित मानव देश की, नींव करे मजबूत।
रखे सुरक्षित देश को, बुने प्रगति के सूत।।

मनोजकुमार शुक्ल मनोज

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चंद्रयान को भेजकर, पहुँचाया संदेश।
हिंदुस्तानी कम नहीं, अंतरिक्ष उन्मेश।।

कर्म साधना पर बढ़ें, गीता का है ज्ञान।
करें निरंतर साधना, कलयुग का भगवान।।

हिम्मत कभी न हारिए, करें लगन से काम।
हर मुश्किल आसान हो, मदद करेंगे राम।।

चंद दिनों के बाद ही, उड़ा क्षितिज की ओर।
अग्नि पिंड को समझने, पकड़ा उसका छोर।।

नमस्कार है सूर्य को, इसरो का अभियान।
उसके तेज प्रकाश का, करना अनुसंधान ।।

इसरो ने चौंका दिया, भारत को अभिमान।
विश्व जगत अब देखता, विश्व गुरू का ज्ञान।।

मनोजकुमार शुक्ल मनोज

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नेक विचारों की महक, बिखरे सुबहो-शाम।
अमर रहे लेखक वही, चले कलम अविराम।।

कर्म साधना है बड़ी, गीता का है ज्ञान।
करें निरंतर साधना, इस युग का भगवान।।

हिम्मत कभी न हारिए, करें लगन से काम।
हर मुश्किल आसान हो, मदद करेंगे राम।।

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आस्तीनों में छिपे....

आस्तीनों में छिपे, कुछ नाग निकले हैं।
कोयलों का वेश धर, अब काग निकले हैं।।

दोस्ती के हाथ को, बढा़इए संभलकर,
दोस्तों के बोल से अब झाग निकले हैं।

झाँकना मना है दूजों के मकानों में,
काटने उनके घरों से, डाग निकलें हैं।

बार-बार उंगली को उठाना छोड़िए,
झाँकिए खुद अपने अंदर, दाग निकलें हैं।

अंँधेरों से मत उलझिए संभल कर चलें,
अमावस की रात्रि में, चिराग निकले हैं।

सीमा सुरक्षित हैं, हमारे ही सैनिकों से,
गोलियों की गर्जना से आग निकले हैं।

मनोज कुमार शुक्ल " मनोज "
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अंतरिक्ष में लिख दिया.......

भारत-माँ ने भ्रात को, राखी भेजी खास।
लाज रखी है चन्द्र ने, मामा तुम बिंदास।।

अंतरिक्ष में लिख दिया, भारत ने अध्याय।
दक्षिण ध्रुव में पहुँच कर, कहा चंद्रमा पास।।

तेईस सन तेइस तिथि, माह-गस्त बुधवार।
चंद्रयान थ्री भा गया, बिसरे सब संत्रास।।

यात्रा लाखों मील की, पाया खास मुकाम।
चालिस दिन की राह चुन,पहुँचा चंद्र निवास।

मान दिलाया जगत में, इसरो की है शान।
बुद्धि ज्ञान विज्ञान से, विश्व गुरू नव आस।।

अनुसंधानों में निपुण, मानव हित कल्याण।
इसरो भारत देश का, विश्व चितेरा खास।।

शोधपरक विज्ञान से, भारत देश महान।
सबकी आँखें हैं लगीं, जो थे बड़े निराश।।

सोम-विजय स्वर्णिम बना,जिसके मुखिया सोम।
विश्व क्षितिज में छा गए, जग को आए रास।।

चलें टूर पर हम सभी, कहें न चंदा दूर।
मामा की लोरी सुने, करें हास परिहास।।

मनोजकुमार शुक्ल " मनोज "
🙏🙏🙏🙏🙏

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