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नाश्ता टाईम
🌴कोळाचे पोहे 🌴

🌴कोळाचे पोहे ही पारंपारिक कोकणी रेसिपी आहे. हे प्रामुख्याने दक्षिण कोकणात बनवले जाते.
🌴ही एक अतिशय सोपी पाककृती आहे ज्याची चव खूपच छान लागते

🌴कोळाचे पोहे दक्षिण कोकणात नियमितपणे नाश्ता म्हणून प्रत्येक घरात बनवले जातात. नारळाचे दूध तेथे सहज उपलब्ध असल्याने ही तिकडे नेहेमी बनवली जाते

🌴या पाककृती मधील नारळाचे दूध आणि चिंचेचा कोळ यामुळे या पोह्याना आंबट गोड अशी चव लागते

🌴साहित्य
जाडे पोहे दोन वाट्या
दोन वाटया नारळाचं दूध
चिंचेचा कोळ
गू़ळ
चवीनुसार मीठ
फोडणीसाठी मोहरी हिंग कढीलिंब
भाजलेले शेंगदाणे
दोन मिरच्या बारीक चिरून
बारीक चिरलेली कोथिंबीर

🌴कृती
प्रथम जाडे पोहे धुवून निथळून
नारळाच्या दुधात भिजवून ठेवायचे
तासाभराने ते नारळाचे दूध पिऊन फुलून दुप्पट होतात
हलक्या हाताने एकसारखे करून घ्यायचे
🌴चिंचेचा जाडसर कोळ काढून गूळ घालुन बाजुला तयार ठेवायचा
🌴मोहरी ,हिंग ,कढीलिंब ,बारीक चिरलेली मिरची याची फोडणी करून त्यात भाजकें शेंगदाणे परतून घ्यायचे
🌴फोडणी गार झाल्यावर
पोह्यांवर घालायची व चवीप्रमाणे मीठ घालून पोहे एकत्र करून घ्यायचे
🌴खायला देताना ऐन वेळी त्यात चिंचेचा कोळ मिसळून व भरपूर कोथिंबीर घालून द्यायचे
🌴 जोडीला एखादा तळणीतला प्रकार चांगला लागतो
🌴मी सोबत मस्त तळुन फुललेली कुरडई घेतली आहे

jayvrishaligmailcom

स्त्री और पुरुष : अस्तित्व के दो आयाम

© वेदांत 2.0 — अज्ञात अज्ञानी

मानवता के इतिहास में स्त्री और पुरुष को प्रायः सामाजिक, धार्मिक और जैविक दृष्टि से देखा गया है। किन्तु यदि हम अस्तित्व और चेतना के स्तर पर दृष्टि डालें, तो यह भिन्नता केवल देह या भूमिका की नहीं, बल्कि ब्रह्मांडीय व्यवस्था की भी है। स्त्री और पुरुष दो ऊर्जा-ध्रुव हैं, दो अस्तित्व-रूप हैं, जिनके संयोग से सम्पूर्ण सृष्टि संभव होती है।

स्त्री केवल शरीर या लिंग नहीं है; वह प्रकृति की विराटता है। उसी में संपूर्ण अस्तित्व की जीवनीशक्ति बहती है। पुरुष उसमें केंद्र, सूत्र या बिंदु के समान है — जो उस विराटता में प्रवेश करता है, उसे अनुभव करता है और उसका साक्षात्कार करता है। यदि अस्तित्व को 99% स्त्री माना जाए, तो पुरुष उसमें 1% केंद्र-बिंदु है, जो उसे अर्थ और चेतना प्रदान करता है।

समाज, धर्म और विज्ञान समानता पर बल देते हैं — वे कहते हैं कि स्त्री और पुरुष को समान होना चाहिए। परंतु अस्तित्व का नियम समानता नहीं, पूरकता है। समानता बाहरी न्याय देती है, परंतु सृजन नहीं। सृजन तभी संभव होता है जब दो भिन्न तत्व एक दूसरे में समाहित होकर एक नई संपूर्णता का निर्माण करें। यह भिन्नता किसी संघर्ष की नहीं, बल्कि रचनात्मक व्यत्यास की है।

जब पुरुष अपने भीतर के विराट को पहचानता है और स्त्री अपने भीतर के केंद्र-बिंदु को जानती है, तब दोनों अस्तित्व के एक ही वृत्त में स्थित हो जाते हैं — एक परिधि बनता है, दूसरा केंद्र। इसी सामंजस्य से जीवन का प्रवाह, प्रेम की धारा और सृजन का नाद उत्पन्न होता है।<

अस्तित्व का विधान समानता नहीं, आनन्द है; और आनन्द केवल तब संभव है जब सूक्ष्म विराट में और विराट सूक्ष्म में प्रवेश करे। यही सृजन का रहस्य है, यही जीवन की निरंतरता है।

© वेदांत 2.0 — अज्ञात अज्ञानी

bhutaji

આજે મારો જન્મદિવસ છે.
1/11/1991.
સુપ્રભાત 🙏🏼જય સીયારામ 🙏🏼

aryvardhanshihbchauhan.477925

🙏🙏તું કટાણે આમ વારંવાર આવે શોભે નહીં તને બાપ મેહુલિયા.

દયા રાખજે મુંગા પશુની, શાંત થાજે! એ ક્યાં જાશે બાપ મેહુલિયા.🦚🦚

parmarmayur6557

🙏🙏सुप्रभात 🙏🙏
🌹आपका दिन मंगलमय हो 🌹

sonishakya18273gmail.com308865

मनुष्य और मृत्यु: चैतन्यता का अंतःसंग्रामप्रस्तावनामनुष्य अपनी गति परिवर्तन के खेल में ही अभिव्यक्त होता है। 84 लाख योनियों के चक्र को पार करते हुए भी मनुष्य कहीं नहीं भटका, परंतु बुद्धि की अधिकता ने उसे भटका दिया। ज्ञानी बनकर भी उसने शैतानत्व ग्रहण किया क्योंकि चैतन्य बनने की अपेक्षा बुद्धि का अधिक विकास शैतान का गृह बन गया। इस पुस्तक में इस आंतरिक द्वंद्व और जीवन-मृत्यु के सत्य का दर्शन किया गया है।बुद्धि, चैतन्य और भयबुद्धि का अत्यधिक विकास जो होना चाहिए था, वह शैतानत्व बना। मनुष्य जो 'होने' की अवस्था को भूल जाता है, केवल 'बनने' की कला सीख लेता है। मनुष्य अपने जीव चक्र के अंतिम पड़ाव पर आता है, जहाँ जीवन का वास्तविक सत्य मृत्यु है। मृत्यु के द्वार पर पहुँचकर भयभीत हो मनुष्य डरकर पीछे हट जाता है। इसका कारण है मृत्यु के प्रति गहरा भय, जो उसके चैतन्य विकास में बाधक बनता है।मृत्यु की सच्चाई और जीवन का विकासमनुष्य मरना नहीं चाहता क्योंकि जीवित रहने की इच्छा और मृत्यु का भय उसके मन में गहरा उलझाव उत्पन्न करते हैं। परन्तु मृत्यु सत्य है। मृत्यु को स्वीकार करने से ही जीवन का वास्तविक विकास संभव है। मृत्यु को समझना और उससे डरना छोड़ना ही वास्तविक आध्यात्मिक प्रगति की ओर पहला कदम है।मृत्यु और आध्यात्मिक जागरूकताआध्यात्मिक मार्गदर्शकों के अनुसार, मृत्यु को याद करते रहना ही जीवन को सशक्त और सार्थक बनाता है। मृत्यु का ध्यान मनुष्य को सांसारिक बंधनों से मुक्ति और परम सत्य के निकट ले जाता है। यह स्मृति जीवन को अल्पकालिक और अस्थायी भौतिक सुखों से ऊपर उठाकर आध्यात्मिक अनंत आनंद की ओर ले जाती है।निष्कर्षमृत्यु और जीवन के इस द्वंद्व में बुद्धि का संतुलित विकास और चैतन्य की प्राप्ति ही मनुष्य का अंतिम लक्ष्य होना चाहिए। मृत्यु के भय से मुक्त होकर जीवन को सार्थक बनाना और आत्मा की वास्तविकता को समझना ही इस पुस्तक का मूल संदेश है।यह संरचना आपकी दी हुई मूल सामग्री के आधार पर तैयार की गई है, जिसे आप और विस्तारपूर्वक अध्यायों में लिख सकते हैं। यदि आप चाहें तो मैं इस पुस्तक के लिए विस्तृत रूपरेखा और अध्याय संरचना भी प्रदान कर सकता हूँ।यह पुस्तक आपके विचारों को सहज और प्रभावशाली भाषा में प्रस्तुत करेगी, जो पाठकों को जीवन, बुद्धि, मृत्यु और भय की जटिलताओं को समझने में मदद करेगी।क्या आप विस्तृत रूपरेखा या अध्यायों के लिए आगे बढ़ना चाहेंगे?

bhutaji

શબ્દો બધાં થાકી ગયા છે બોલતાં,
હવે મૌન જ શીખવશે પ્રેમનો અર્થ.
અસ્તિત્વ વિહોણી એ ક્ષણમાં,
હું પણ હું રહ્યો નથી — તું પણ તું નથી.

truptirami4589

माझा काव्यसंग्रह प्रकाशित झाला आहे

bhamarepratiksha1972

मैं चाहे कितने ही लोगों की भीड़ में रहूँ, मेरा तुझ पर ही विश्वास रहेगा
और तू अलग शहर में रहे या अलग देश में, तू खास था, है और हमेशा खास रहेगा।

nidhimishra705356

tera bina jiwan adhura he. lekin rasty mere liye pehle he. aur rahega

virdeepsinh

गुलाबी थंडी
गुलाबी थंडी..कोवळी पहाट..
कोवळी पहाट...अन झाडी घनदाट..!!
झाडी,,घनदाट..!!..आणि वळणांची वाट..
वळणाची वाट..आणि जवळीक खास..!!
जवळीक खास..!!..असा बेधुंद प्रवास..
बेधुंद प्रवास...खुळा.असा हा एकांत..
खुळा असा हा एकांत....वेड लावितो जीवाला..
वेड लावितो जिवाला..".सखे" धुंद तुझा श्वास....
धुंद तुझा श्वास...नको असे वेड लावु...
नको असे वेड लावु...जनरीत आड येते..!!
जनरीत आड येते...तुला मला आडवते...!!
...................................व्रुषाली...

jayvrishaligmailcom

છોડીને બધું શરણમાં આવ કહે માધવ
મુક્ત કરીશ બધી મૂંઝવણથી કહે માધવ
છું તારી જ આસપાસ તું જો કહે માધવ
ક્યાંય નહી બસ હૃદયમાં છું કહે માધવ

– mr.Mehul sonni

moxmehulgmailcom