Quotes by Deepak Bundela Arymoulik in Bitesapp read free

Deepak Bundela Arymoulik

Deepak Bundela Arymoulik Matrubharti Verified

@deepakbundela7179
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एहसान में गुज़रते हैं कुछ ज़िंदगी को लोग,
अपनों से भी रखते हैं हिसाब-दारी लोग।
दिल से जो किया जाए वही एहसान है असल,
वरना तो जता-जता कर मारते हैं लोग।

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बगैर उम्मीद के रिश्ते

रिश्ते अगर उम्मीदों के बोझ से मुक्त हों,
तो उनमें सुकून की ठंडी हवा बहती है।
न कोई शिकायत, न कोई गिला,
सिर्फ अपनापन ही अपनी जगह कहती है।

बगैर उम्मीद के रिश्ता एक आईना होता है,
जो जैसा है वैसा ही सच्चा दिखता है।
ना कोई मुखौटा, ना कोई बनावट,
सिर्फ दिल का साफ़पन झलकता है।

जहाँ चाहत बिना शर्त के मिलती हो,
वहाँ भरोसा अपना घर बनाता है।
न देने की चिंता, न पाने की चाह,
बस जुड़ाव ही जीवन सजाता है।

ऐसे रिश्तों में चुप्पी भी मीठी लगती है,
और खामोशी भी गीत सुनाती है।
क्योंकि जब दिल बिना उम्मीदों के जुड़ते हैं,
तो मोहब्बत अपने असली रूप में मुस्कुराती हैं l

DB-ARYMOULIK

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ज़िन्दगी में प्यार सिर्फ, एक से ही होता हैं l
बाकी सब, कही मजबूरी तो कही धोखा हैं ll

✨ नुमाइश ✨

जिश्म की नुमाइश आजकल,
सोशल मिडिया पर सजी हुई है,
सच्चाई की तस्वीरों के बदले
झूठी चमक बिखरी हुई है।

लाइक्स की भूख, फॉलोअर्स का नशा,
आबरू का मोल अब सस्ता हुआ है,
इज्ज़त के मायने बदल गए,
सच्चा इंसान यहाँ तन्हा हुआ है।

चेहरों के पीछे नक़ाब हैं गहरे,
दिल की बातें कोई नहीं कहता,
रूह की प्यास बुझती कहाँ है,
जब सब कुछ सिर्फ़ जिस्म ही कहता।

आँखों की चमक, अदाओं का जाल,
बस तस्वीरों में ही बिक रहा हाल,
मूल्य नहीं रही अब सादगी की,
शोर में खो गया इंसान का ख्याल।

चलो फिर से लौटें उस राह पर,
जहाँ इज्ज़त सजती थी विचारों में,
जहाँ इंसानियत की क़ीमत थी,
ना कि जिस्म की नुमाइश बाज़ारों में।

DB-ARYMOULIK

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जब भी अध्यात्म की बातें करता हूँ,
सच के दीपक जलाने की कोशिश करता हूँ।
पर लोग हँसते हैं, मुँह मोड़ लेते हैं,
जैसे कोई दर्पण से आँखें फेर लेते हैं।

उन्हें लगता है ये बोझिल कहानी है,
पर मेरे लिए ये जीवन की निशानी है।
मैं जो कहता हूँ वो आत्मा की पुकार है,
ना कोई ढोंग, ना दिखावा, बस सच्चा विचार है।

कभी तो समझेंगे ये भीड़ के लोग,
मन का अंधेरा मिटाता है योग।
आज भले ही कटते हैं सब मुझसे,
कल पूछेंगे — “क्यों न सुना था तुझसे?”

अध्यात्म की राह अकेली सही,
पर यही तो सच्चाई की मंज़िल रही।
कट जाना उनकी मजबूरी है,
सच को अपनाना भी तो ज़रूरी है। ✨

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वफ़ा के नकाब

तेरे वादों पे अब एतबार नहीं है,
दिल की वीरानियों में बहार नहीं है।

तेरे आँचल में पाया था चैन ज़माना,
अब वही आँचल मेरा सहारा नहीं है।

तेरे नकली वफ़ा के ये नक़ाब क्या हैं,
दिल की गहराइयों में करार नहीं है।

हमने चाहा था दिल से तुझे उम्रभर,
पर तेरे होंठों पे वह इकरार नहीं है।

"आर्यमौलिक" ने चाहा था दिल से वफ़ा,
पर ज़माने में सच्ची वफ़ा नहीं है।

DB-arymoulik

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बेवफ़ा

तेरी यादों का सहारा न रहा अब मुझको,
तू जो बेवफ़ा निकला, न रहा सब मुझको।

वो कसम खा के भी वादों से मुकर जाते हैं,
दिल के ज़ख़्मों को हँसी में ही छुपा जाते हैं।

जिसे चाहा था खुदा मान के अपनी रूह में,
वो ही चेहरे पे मोहब्बत का नक़ाब लाते हैं।

अब मोहब्बत के सफ़र में कोई भरोसा न रहा,
लोग रिश्तों को भी सौदे की तरह गिनते हैं।

"मौलिक" ने तो चाहा था सदा दिल से वफ़ा,
पर ज़माने में वफ़ा करके भी क्या मिलते हैं?

✍️DB-ARYMOULIK✍️

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पहचान

भीड़ के शोर में कहीं,
अपनी ही आवाज़ दब सी जाती है,
आईनों में चेहरा तो वही है,
पर आँखों की चमक गुम सी जाती है।

ज़िम्मेदारियों का बोझ उठाते-उठाते,
ख़्वाहिशें पन्नों की तरह फट जाती हैं,
रिश्तों की डोर थामे रखते-रखते,
अपनी ही पहचान खो सी जाती है।

कभी सपना देखने वाली आँखें,
अब सिर्फ़ नींद ढूँढती हैं,
कभी गाने वाली धड़कनें,
अब खामोशियों में खुद को सुनती हैं।

दुनिया हमें नाम से जानती है,
पर नाम के पीछे का इंसान कहाँ है?
खुद से मुलाक़ात का वक़्त मिले तो,
शायद वही भूला चेहरा फिर जवां है।

पहचान गुम नहीं होती पूरी तरह,
बस परतों के नीचे छिप जाती है,
जो हिम्मत करता है खुद को खोजने की—
उसे फिर से वही रौशनी मिल जाती है।

✍️DB-ARYMOULIK✍️

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"राम नाम मनिदीप धरु जीह देहरी द्वार।
तुलसी भीतर बाहेरहुं जौं चाहसि उजियार॥"