नाराज़ होने से कहीं ज़्यादा ख़तरनाक है
किसी रिश्ते से निराश हो जाना ...
नाराज़ होने में ही छुपा है
कि नाराज़ होने वाले का, नाराज़ होने वाले से
अभी भी कुछ वास्ता है,
निराश हो जाना रिश्ते से अलग होने का,
पहला क़दम, पहला रास्ता है,
नाराज़गी देती है रास्ता रिश्तों को रफ़ू करने का,
निराशा करती है निर्णय रास्ता बदलने का 🖤
नाराज़गी, तेज़ आँच पर चढ़ा उफ़नता दूध है,
जो पल भर में बर्तन से बाहर, मगर अगले ही पल मनुहार का पानी पाकर
बर्तन की तली में होता है,
मगर उबलते हुए या तली से मिलते हुए
जो अपना असल रूप नहीं खोता है
रिश्ते की निराशा,
धीमी आँच पर उबलता दूध है,
जो आहिस्ता आहिस्ता, ख़ामोशी से
बर्तन के अंदर मचलता है,
कई दफ़ा अपने मन की कहने को
ढक्कन की तरफ़ भी चलता है,
मगर उसकी जलन जब सुनी नहीं जाती
और हारने लगती हैं कोशिशें उसकी,
तो ख़ुद को स्वाहा कर लेता है वो,
बर्तन, चूल्हे, ढकने से निराश होकर
ख़ुद का चेहरा बदल लेता है वो,
और फिर कभी दूध के रूप में वापस नहीं लौटता।🖤
इसलिए
नाराज़ होने से कहीं ज़्यादा ख़तरनाक है
किसी रिश्ते से निराश हो जाना