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मुझे हर बार ज़ख्म देकर मेरे घाव को हरा किया, ज़ख्म पर ज़ख्म देकर दिखावे का मलहम दिया। खुद को निर्दोष बताकर, मुझे गुनाहगार साबित किया। हर मुस्कान में छल छुपा रखा, हर बात में जहर घोल दिया।
कुछ पुरुष कहते है – “पत्नी तो पैसों की भूखी होती है, प्रेमिका निस्वार्थ प्रेम करती हैं…” और प्रेमिका भी कहती हैं ____ तो सुनो प्रेमिका , तुमने अपने प्रेमी के घर झाड़ू–पोछा किया? उसके माता–पिता की सेवा की? उसके स्कूल या कॉलेज की फीस भरी? उसके लिए ज़मीन–जायदाद खरीदी? क्या तुमने ताने–बातें झेली? क्या तुमने अपने ही प्रेमी की नई प्रेमिका को बर्दाश्त किया? नहीं ना… क्योंकि घर चलाना, सबकी सेवा करना, दिन–रात जिम्मेदारियाँ उठाना, बिना आवाज़ उठाए अपमान सहना, ये सब “संघर्ष” कहलाता है। प्रेमी के साथ होटल या OYO जाना, दो–चार प्रेमभरी बातें करना संघर्ष नहीं होता — वह तो बस चटपटा स्वाद है, जिसके बाद असली जीवन की आँच सामने आती है। सच तो यह है कि पत्नी निस्वार्थ देती रहती है और उसी में उसका सम्मान है। उसे नीचा दिखाकर कोई भी खुद ऊँचा नहीं हो जाता।
कलियुग के रिश्ते आजकल का युग बड़ा खतरनाक हो चला है। रिश्तों में धोखे का खेल खुलकर खेला जा रहा है। बेटा प्रेमिका पर मरता है, मां बेटे पर इस कारण बैर करती है, बहु या पत्नी पूरा परिवार झेलता है। मां को डर है, कहीं बहु उसे बेटे से अलग न कर दे। हर रोज बहु को नए–नए जाल में फंसाया जाता है, उसकी गलती न होते हुए भी उसे गलत ठहराया जाता है। मां बेटे के सामने खुद को अच्छा दिखाती, बहु की कमियां गिनाती, इसीलिए पति पत्नी को गलत समझता है। पति प्रेमिका को देवी समझता है, मां को भगवान। लेकिन इन मीठे चेहरों के पीछे छुपे असली रूपों की पहचान कैसे हो? प्रेमिका और मां मीठी–मीठी बातें कर, उसके सामने खुद को अच्छा दिखाती है। पत्नी जाल में फस जाती है, बचने के लिए पति को बताती है, तो उल्टा उसी से झगड़ा होता है, क्योंकि विश्वास तो मां पर है, पत्नी पर कैसे करे? पत्नी को झूठ बोलना नहीं आता, शायद इसलिए उसे बुरा कहा जाता है। कलियुग में रिश्तों में क्लेश का कारण पति की प्रेमिका, पत्नी का प्रेमी या किसी तीसरे की चाल भी हो सकता है। रिश्ता कमजोर होता है, झगड़े का कारण बन जाता है। हाँ, सब पति–पत्नी ऐसे नहीं होते। जो सच्चे होते हैं, वे मौज में रहते हैं। पवित्र रिश्तों का हिस्सा, प्रेम ही प्रेम में बदल जाता है। सच कहूँ, यदि पति–पत्नी में कोई एक दूसरे को न समझे, पति पत्नी की इज़्ज़त न करे, तुम सही हो यह जानते हुए भी अपने लोगों का साथ दे और तुम्हें गलत ठहराए— तो ऐसा घर नहीं चलता। एक बचाने पर लगा है, तो दूसरा तोड़ने पर। तोड़ने वाला ही बड़ा खिलाड़ी बनता है। जरूरी नहीं कि पत्नी ही घर तोड़ रही हो। अक्सर जो मीठा बोलकर पति–पत्नी में जहर घोलता है, वही असली कारण होता है रिश्तों के टूटने का। इसीलिए, कलियुग में पति पत्नी का रिश्ता जल्दी टूटता हैं। ---लेकिन यह बात सभी सास–मां पर लागू नहीं होती। कई सास–माएं तो बहु को बेटी जैसा मानकर घर को संभालने और जोड़ने में लग जाती हैं।
जिस तरह लकड़ी के तख्तों को ठोक-ठोक कर मजबूत बॉक्स बनाया जाता है, उसी तरह जीवन की मुश्किलें और चुनौतियाँ हमें मजबूत बनाती हैं। जो धैर्य और साहस के साथ हर चुनौती का सामना करता है, वह हर चोट के बाद और भी ताकतवर बनकर उठता है।
हर मनुष्य में बुद्धि होती है, पर उसका उपयोग किस दिशा में करना है, यह उसी के विवेक पर निर्भर करता है। जो व्यक्ति सत्य के लिए संघर्ष करता है, अपनी बुद्धि को धर्म और न्याय के मार्ग में लगाता है, वही वास्तव में शक्तिशाली कहलाता है। जो छल–कपट को अपनाते हैं वे समय के साथ स्वयं ही गिर जाते हैं। सत्य पर चलने वाला व्यक्ति अक्सर समाज की नज़रों में “विलेन” बना दिया जाता है, क्योंकि वह सबकी आँखों में सच्चाई डाल देता है। लेकिन असल में वही सबसे बड़ा और महान होता है। ---
सच्चा प्रेम और पति–पत्नी का रिश्ता सच्चा प्रेम कभी रूप, रंग या तुलना नहीं करता। यह तो वही डोर है जो हर परिस्थिति में मजबूती से थामे रहती है। चाहे बीमारी हो, चाहे आर्थिक स्थिति कमजोर हो, या फिर जीवन में छोटे–बड़े उतार–चढ़ाव आएं—प्रेम हर हाल को अपनाता है। पति–पत्नी का रिश्ता साइकिल के दो पहियों की तरह होता है। यदि एक पहिया डगमगाए, तो दूसरा उसे संभाले बिना साइकिल आगे नहीं बढ़ सकती। इस रिश्ते में संतुलन, विश्वास और समझदारी सबसे बड़ी पूंजी है। आजकल कई बार देखने को मिलता है कि कुछ पत्नियाँ अपने पति की तुलना दूसरों से करने लगती हैं। "देखो, वह अपनी पत्नी को गिफ्ट देता है, घूमाने ले जाता है, चॉकलेट्स लाता है, लेकिन मेरा पति तो बिल्कुल कंजूस है।" ऐसी शिकायतें धीरे–धीरे रिश्तों में खटास ला देती हैं। हर पत्नी को यह समझना चाहिए कि उसका पति सबसे पहले अपने परिवार और उसकी आर्थिक स्थिति को देखकर चलता है। वह जो भी कमाता है, उसी से घर का चूल्हा जलता है, बच्चों की पढ़ाई और भविष्य सुरक्षित होता है। ऐसे में पति की आमदनी को लेकर ताने देना या दूसरों से तुलना करना उचित नहीं। हर पत्नी को यह समझना चाहिए कि उसका पति मेहनत करके उसी के लिए कमाता है। बाहर की दुनिया में संघर्ष कितना कठिन है, यह वही जानता है जो रोज़ मेहनत करके दो वक्त की रोटी घर लाता है। यदि पत्नी उस मेहनत की कद्र नहीं करेगी, तो पति का मन भी टूट जाएगा। दूसरी ओर, कई पतियों की भी शिकायत रहती है कि पत्नी घरेलू कामों में उतनी निपुण नहीं, समय पर नहीं उठती, खाना कभी नमक–मिर्च में ठीक नहीं बनता। लेकिन पति को यह समझना चाहिए कि उनकी पत्नी भी इंसान है, मशीन नहीं। यदि थोड़ी कमी रह भी गई तो उस पर नाराज़ होने की बजाय प्यार से कहें। सच्ची पत्नी वही होती है जो अपने पति और परिवार की खुशियों में ही अपनी खुशी ढूँढ़ लेती है। एक पत्नी को सबसे ज़्यादा ज़रूरत होती है इज़्ज़त और सम्मान की। वह सोना–चाँदी या महंगी जायदाद नहीं माँगती, बल्कि चाहती है कि उसका पति उसे दो पल का साथ दे, उसका मन समझे और छोटी–छोटी खुशियों में शामिल हो। ठीक वैसे ही पति भी चाहता है कि उसकी पत्नी उसकी मेहनत को समझे, उसका साथ दे और दूसरों से तुलना न करे। अंततः यही कहा जा सकता है कि पति–पत्नी का रिश्ता तभी सफल होता है जब दोनों एक–दूसरे की परिस्थितियों और भावनाओं को समझें। एक–दूसरे की कमी निकालने की बजाय यदि वे एक–दूसरे की अच्छाइयों को अपनाएँ, तो जीवन की राहें आसान हो जाती हैं। सच्चा प्रेम वहीं है जहाँ न तुलना होती है, न स्वार्थ—बस अपनापन और सम्मान होता है। ---
दीदी की बिटिया हँस कर बोली, मौसी! आपकी आदत तो बड़ी अनोखी, पहले पूजा-पाठ में मन लगाया, टीवी-मूवी सब छोड़ भगाया, अब शादी के बाद हर दिन नया मामला, ज़िंदगी ही बन गई है अपना सीरियल वाला ड्रामा 🤭😂 वो कहती हैं___ aapne सीरियल to देखे नहीं अब आप अपनी जिंदगी का देखो 😂
करियर और रिश्ते: सफलता के दो अलग रास्ते करियर में सफलता पाना कुछ लोगों के लिए आसान हो सकता है, क्योंकि वहाँ शॉर्टकट काम कर जाते हैं। लेकिन, रिश्तों में सफलता का कोई शॉर्टकट नहीं होता। यहाँ पैसा या पद काम नहीं आता, बल्कि सिर्फ प्यार, सम्मान और समर्पण से ही दिल जीते जा सकते हैं। अगर करियर की सफलता है और रिश्तों में खालीपन है, तो वह सफलता अधूरी है। असली कामयाबी वही है जो दोनों में मिलती है। - archana
रिश्तों को समझिए, सज़ा मत दीजिए 🌸 आजकल सोशल मीडिया पर हर कोई प्रेम, भरोसा और रिश्तों पर बड़ी-बड़ी बातें करता है। “सच्चा प्रेम ये करता है… प्रेमिका ऐसा करती है… पत्नी को वैसा होना चाहिए…” ऐसे पोस्ट हर जगह भरे पड़े हैं। लेकिन हकीकत में, जब किसी प्रेमी ने प्रेमिका को धोखा दिया होता है तो निशाना पत्नी को बनाया जाता है। बिना सच्चाई जाने, बिना सबूत देखे, किसी की इज़्ज़त को बीच में घसीटना क्या यह इंसाफ़ है? पत्नी या कोई भी निर्दोष महिला किसी की ग़लती के लिए क्यों बदनाम हो? रिश्तों की गंदगी फैलाने से अच्छा है हम पहले सच्चाई समझें, सही-गलत को सही जगह पर कहें और किसी निर्दोष को कटघरे में खड़ा करने से बचें। सोशल मीडिया पर शब्दों के ज़रिये किसी की ज़िन्दगी को आसान भी बनाया जा सकता है, और मुश्किल भी। इसलिए, बोलने और लिखने से पहले एक पल रुकें, सोचें — क्या हम न्याय कर रहे हैं या अन्याय? 💬 बातें नहीं, समझ फैलाइए। बदनामी नहीं, इंसाफ़ दीजिए। रिश्ते तोड़िए नहीं, उन्हें समझिए। सोशल मीडिया पर कुछ लड़कियां पोस्ट करती है कि पत्नी गाली सह न पाए और थैला उठा भागती है, और प्रेमिका गाली भी बर्दाश्त करती हैं क्योंकि प्रेमिका निस्वार्थ प्रेम करती हैं
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