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archana

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@archanalekhikha
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🎨 बार-बार गिरती पेंटिंग

दीवार पर टँगी थी एक छोटी-सी बाल पेंटिंग,
टेप से चिपकी, उम्मीद से टिकाई हुई।
हर बार गिरती,
और वो लड़की मुस्कुराकर कहती —
“शायद अब टिक जाएगी…”

मगर नहीं —
कभी टेप कमजोर, कभी दीवार रूखी,
हर बार वही धप्प!
और टूटती उम्मीद।

आख़िर थककर उसने कहा —
“अब बस…”
और पेंटिंग को फेंक दिया।

तभी लगा —
रिश्ते भी ऐसे ही होते हैं,
बार-बार जोड़ो, बार-बार थामो,
पर जब सामने वाला
हर बार गिर ही जाए,
तो एक दिन दिल भी कह देता है —
“अब बस…” 💔

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आज के समय में शादीशुदा मर्दों को किसी और औरत से रिश्ता बनाना मुश्किल नहीं रहा।
वे जानते हैं कैसे किसी की कमजोरी, अकेलेपन या झूठे स्नेह के बहाने दिल में जगह बना लेनी है।
लेकिन असल सवाल यह है —
क्या गलती सिर्फ़ मर्दों की है?
क्योंकि दूसरी तरफ़ की औरत भी जानती है कि वह किसी की पत्नी को दुख दे रही है।
फिर भी बहुत कम ऐसी औरतें मिलती हैं, जो साफ़-साफ़ कह दें —

> “नहीं, तुम्हारी पत्नी जैसी भी है, तुम्हारी ज़िम्मेदारी है।
मैं किसी के बीच नहीं आऊँगी।”



अगर हर औरत यह “ना” कह देती,
तो शायद
घर टूटने से बच जाएंगे।

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पुरुषों को पत्नी के प्रति भड़काने का तरीका 😂

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कुछ प्रेमिका सोशल मीडिया पर पोस्ट करती नजर आ रही है।
प्रेमी को इतना प्यार करो कि वह पत्नी को छोड़ दे।



🌹विचार करो...

अगर कोई प्रेमी,
किसी और के लिए अपनी पत्नी छोड़ सकता है,
तो सोचो —
वह तुमसे बेहतर किसी और को पा जाए,
तो क्या वह तुम्हें नहीं छोड़ देगा?

सच्चा प्रेम तो त्याग में होता है,
किसी को तोड़ने में नहीं।
जो रिश्ता किसी की आँसू पर बना हो,
वो किसी के मुस्कान पर टिक नहीं सकता।

प्रेम अगर सच्चा है,
तो वह किसी का “हक़ छीनता” नहीं,
बल्कि “सम्मान देना” जानता है। ❤️

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“पत्नी और करवा चौथ” — एक सच्चा विचार

कुछ पुरुष कहते हैं —
“अरे भाई, पत्नी तो बड़ी खराब है,
पूरा साल झगड़ती रहती है, फिर करवा चौथ का व्रत रखती है!” 😅

अब उन पतियों से बस इतना कहना चाहूँगी —
झगड़े का कारण कुछ भी हो,
थोड़ा ठहर कर कभी सोचना...

कभी किसी पत्नी ने अपने लिए व्रत रखा है?
कि “मैं अपने लिए अच्छी हो जाऊँ,
मैं स्वस्थ रहूँ, मेरा मन खुश रहे”?

नहीं ना…
हर बार जो व्रत रखा —
पति की लंबी उम्र के लिए,
बच्चों की सलामती के लिए,
घर की सुख-शांति के लिए।

वो झगड़ती है तो शायद थकी हुई होती है,
कभी सुनी नहीं जाती,
कभी समझी नहीं जाती…

लेकिन फिर भी, हर बार चाँद देख कर
सब भूल जाती है —
क्योंकि उस चाँद में उसे अपने पति,
अपने बच्चों का चेहरा नज़र आता है 🌙❤️

तो अगली बार जब किसी की पत्नी पर हँसी आए,
ज़रा रुककर सोचना —
वो झगड़ालू नहीं, बस इंसान है…
जो अपने परिवार के लिए रोज़ खुद को भुला देती है। 💞


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जितने सारे व्रत होते हैं जितने व्रत किए जाते हैं वह सब अपने परिवार पति और बच्चों की सलामती के लिए करती हैं


करवा चौथ की हार्दिक शुभकामनाएं 🙏🙏

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शीशे के भीतर

दर्पण जैसा था मेरा हृदय,
साफ़, सच्चा, पारदर्शी...
पर जब तुमने मुझे समझा नहीं,
तो चकनाचूर हो गया —
सौ टुकड़ों में बिखर गया मैं,
अपने ही भीतर के शीशे पर।

अब कौन झाँकेगा उस शीशे के भीतर?
कौन देखेगा वो सच्चाई,
जो टूटी पर अब भी ज़िंदा है?

क्योंकि हर टुकड़े में —
तेरी ही छवि है बस...
हर चमक में तेरा नाम,
हर दरार में तेरी याद।

तुमने देखा मुझे औरों की नज़रों से,
इसलिए खुद की आँखों से कभी नहीं।
वो नहीं चाहते थे हमें एक साथ देखना,
और देखो —
वो जीत गए,
मैं हार गई...
पर उस हार में भी,
हर टुकड़ा तेरा आईना बन गया।

अब जब भी कोई मुझे जोड़ने की कोशिश करता है,
मैं मुस्कुरा देती हूँ —
क्योंकि जो एक बार टूटा,
वो अब किसी का नहीं,
सिर्फ़ तेरी छवि का घर बन गया है। 🥹

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घर बर्बाद कौन करता है?

घर बर्बाद करने वाले कोई बाहर वाले नहीं होते,
घर तो तब टूटता है जब अपने ही भीतर से सड़ा देते हैं उसे —
धीरे-धीरे, बातों के ज़हर से।

जब बेटा किसी और औरत के साथ दिखता है,
तो माता-पिता यह नहीं कहते कि “गलत है” —
बल्कि कहते हैं,

> “कोई बात नहीं बेटा, बहू को मत बताना…
वह जान भी जाए तो बनी रहे,
आखिर हमारे लिए तो वही रसोई में सेवा करती है।”



और अगर वही बहू सच्चाई जानकर बोल दे,
अपना दुख ज़ाहिर करे —
तो कहते हैं,

> “हमारी बहू तो बहुत बदतमीज़ है,
आजकल की औरतें ज़रा-ज़रा सी बात पर बखेड़ा करती हैं।”



कभी सोचा है, यही सोच
पुरुषों को बाहर बढ़ावा देती है।
जब गलती करने वाला भी हीरो बना दिया जाए,
और सहने वाली औरत को दोषी,
तो फिर घर कैसे बचेगा?

वह बहू चुप रहे तो “कमज़ोर”,
बोले तो “मुंहफट”,
और टूट जाए तो “अभागन” कहलाती है।

असल में घर तब नहीं टूटते जब आदमी बेवफ़ा होता है,
घर तब टूटते हैं जब परिवार
उसकी बेवफ़ाई को चुपचाप स्वीकार कर लेते हैं।

परिवार वालों का सपोर्ट होता है अपने बेटे को बढ़ावा देने में

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“कुछ लोग कहते हैं — बड़ा इगो है इसमें,
मैं कहूँ — हाँ, पवित्रता का है, गंदगी का नहीं।
तुम दिखा सकते हो अहंकार,
पर पवित्र बनाकर दिखाओ…
कर नहीं पाओगे!”


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💭 विचार — “पहले तुम स्त्री बनो”

पहले तुम स्त्री बनो,
फिर चाहे प्रेमिका बनना, पत्नी बनना या देवी बन जाना।
क्योंकि जब तक तुम स्त्री के दुख, संघर्ष, और मौन की भाषा नहीं समझती,
तब तक तुम्हारा प्रेम भी अधूरा रहेगा।

आज की सबसे बड़ी विडंबना यही है —
स्त्री ही स्त्री की सबसे बड़ी शत्रु बन बैठी है।
वो दूसरी स्त्री के आँसू नहीं देखती,
बस उसकी मुस्कान से जल उठती है।
किसी की मजबूरी को मज़ाक बना देती है,
और किसी के दर्द को “ड्रामा” कहकर टाल देती है।

कभी किसी की जगह खुद को रखकर देखो —
कितना कठिन होता है मौन रहकर जीना,
कितना पीड़ादायक होता है सहना और मुस्कुराना एक साथ।

स्त्री अगर स्त्री को समझने लगे,
तो यह दुनिया और कोमल हो जाएगी।
फिर किसी को प्रेमिका या पत्नी कहलाने से पहले
मानव और संवेदना की पहचान नहीं खोनी पड़ेगी।

पहले तुम स्त्री बनो —
क्योंकि स्त्री होना ही सबसे बड़ा धर्म है,
सबसे बड़ी साधना,
और सबसे गहरा प्रेम।

इस विचार का मतलब यह नहीं की पत्नी की जगह छीन ली जाए
प्रेमिका अपने पति की patni बनो,
Kisi dusre ki Pati ki Premika nhi bano

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