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मौन में करुणा की पहली साँस

जब पृथ्वी पर पहली बार जीवन ने आँखें खोलीं,
तब न शब्द थे, न भाषा —
सिर्फ़ संवेदना थी।

हवा की ठंडक, सूरज की ऊष्मा,
भूख और सुरक्षा की चाह,
यहीं से शुरू हुआ नैतिकता का प्रथम संगीत —
जीवन का एक-दूसरे के प्रति मौन उत्तरदायित्व।

rajubharti230057

📝मोहब्बत है मेरी 📝

मेहनत है मेरी या किस्मत है मेरी ,
यार कुछ भी कह ले,
ए दोस्त -पर यह हिम्मत है मेरी।
याद रखना मेरी यह बात सदा ए दोस्त ,
अगर सरजमीं तेरी ,तो जन्नत है मेरी ।
इस तरह गुस्सा तू हो ना मुझसे ,
ए दोस्त मुस्कुराना -आदत है मेरी।
आंखों में ख्वाब चुन-चुन के सजाना,
घर बसाना, हाय ! ए दोस्त -आदत है मेरी।
मेरा काम है बस कोशिश करते रहना,
मिलना या ना मिलाना ए दोस्त -किस्मत है मेरी।
डरकर जीना मैंने ना सीखा कभी,
सिर उठा कर चलना, ए दोस्त- फितरत है मेरी।
सिर झुकाता है अगर किसी के आगे दीप का,
और कुछ नहीं, ए दोस्त - मोहब्बत है मेरी.... यह.. मोहब्बत है मेरी...

सरजमीं -- भूमि, देश या क्षेत्र
फितरत -- स्वभाव

knrooh

वेदांत 2.0
भाग 4 — जीवन और भ्रम का गणित
अध्याय — सुख और दुःख : अनुभव की गणित
✍🏻 — 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷𝓲
(© वेदांत 2.0)

दुनिया सुखी नहीं, उलझी हुई है।
जिसके पास सब है, वह थका है;
जिसके पास कुछ नहीं, वह शांत है।
क्योंकि सुख और दुःख बाहरी वस्तुएँ नहीं —
वे मन की व्याख्याएँ हैं।

70% लोग अपनी आवश्यकताओं में सम्पन्न हैं —
उनके पास खाना, घर, साधन सब हैं।
फिर भी वे भीतर अशांत हैं,
क्योंकि उन्हें चाहिए “थोड़ा और।”
और शेष 30% लोग,
जिन्हें समाज वंचित कहता है,
वे अपनी सरलता में तृप्त हैं —
क्योंकि उनके भीतर अब भी ईमान बचा है,
भोलेपन की वह रोशनी बची है
जिसे किसी बाज़ार ने नहीं खरीदा।

सुख और दुःख की गणना का यह सूत्र
धन, पद या सुविधा का नहीं —
बोध का गणित है।
जो भीतर भरा है,
उसे बाहर कुछ जोड़ने की ज़रूरत नहीं।
और जो भीतर रिक्त है,
वह बाहर चाहे जितना जोड़ ले —
अपूर्ण ही रहेगा।

अस्तित्व की दृष्टि में
कोई आगे नहीं, कोई पीछे नहीं।
हर जीव अपने वृत्त पर चल रहा है —
अपने ही समय में पूर्ण।
सीधी रेखा का भ्रम ही दुःख है,
और वृत्त का बोध ही मुक्ति।

सूत्र 4.1.1

जिसके पास साधन हैं,
उसके पास संतोष नहीं;
जिसके पास संतोष है,
उसे साधनों की ज़रूरत नहीं।

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सूत्र 4.1.2

अमीर और गरीब के दुःख में अंतर नहीं है —
अंतर केवल दृष्टि का है।
एक बाहरी साधन खोने से दुःखी होता है,
दूसरा भीतर की अनुभूति से तृप्त रहता है।

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सूत्र 4.1.3

30% लोग जिनके पास कम है,
वे आत्मिक रूप से अधिक सम्पन्न हैं;
क्योंकि उन्हें भीतर झाँकना पड़ा है।

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सूत्र 4.1.4

70% लोग जिन्हें संसार “सुखी” मानता है,
वे केवल सुविधाजन्य नींद में हैं —
जागे हुए नहीं।

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सूत्र 4.1.5

सुख-दुःख की तुलना धन या गरीबी से करना
जैसे प्रकाश को तौल से मापना है।
जिसे हम सुख कहते हैं,
वह प्रायः आराम है —
और जिसे दुःख कहते हैं,
वह प्रायः विकास का दर्द है।

---

सूत्र 4.1.6

अगर अमीर और गरीब को एक ही वृत्त में खड़ा कर दिया जाए,
तो कोई यह सिद्ध नहीं कर सकेगा कि कौन आगे है।

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सूत्र 4.1.7

जो मानता है “मैं आगे हूँ” —
वह पहले ही पीछे गिर चुका है।
जो जानता है “मैं पीछे हूँ” —
उसका भ्रम भी टूट गया है।
सीधी रेखा में चलना अहंकार है,
वृत्त में खड़ा होना बोध।

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सूत्र 4.1.8

जीवन रेखा नहीं, वृत्त है —
जहाँ आगे और पीछे दोनों एक ही बिंदु पर मिल जाते हैं।

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सूत्र 4.1.9

विज्ञान का चंद्रयान भी घूमते हुए ही चाँद पर पहुँचा —
सीधा नहीं गया।
प्रकृति की हर गति वक्र है,
क्योंकि वृत्त में ही संतुलन है।

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सूत्र 4.1.10

सीधी यात्रा नींद है,
वृत्ताकार यात्रा ध्यान है।
विज्ञान ने भी अब ध्यान की पद्धति को
प्रकृति के नियम के रूप में स्वीकार लिया है।

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सूत्र 4.1.11

जो समझे कि “मैं सुखी हूँ”,
वह भ्रम में है;
जो कहे “मैं दुःखी हूँ”,
वह भी भ्रम में है।
सुख और दुःख दोनों अनुभव हैं —
पर सत्य नहीं।

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सूत्र 4.1.12

वास्तविकता वही जान सकता है
जो अपने सुख और दुःख दोनों को प्रयोग की तरह जी ले —
न्याय की तरह नहीं।

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वेदना

सुख और दुःख का मापदंड बाहरी नहीं —
वह मन के विज्ञान का हिस्सा है।
जो भीतर की ऊर्जा को पहचानता है,
वह जानता है कि
सुख और दुःख केवल दो लहरें हैं —
एक ही महासागर की।

70% लोग जिनके पास सब कुछ है,
वे शून्य से डरते हैं।
और 30% जिनके पास कुछ नहीं,
वे शून्य को अपनाते हैं।
अंततः वही शून्य पूर्णता का द्वार है।

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प्रमाण-सूत्र

> गीता (2.14):
“मात्रास्पर्शास्तु कौन्तेय शीतोष्णसुखदुःखदाः।
आगमापायिनोऽनित्यास्तांस्तितिक्षस्व भारत॥”

(सुख और दुःख इंद्रियों के स्पर्श से उत्पन्न होते हैं,
वे अनित्य हैं — उन्हें सहन करना ही बुद्धि है।)

> विज्ञान प्रतिध्वनि:
“स्थिरता नहीं, संतुलन ही ब्रह्मांड का नियम है।”

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✧ भाग 4 — अध्याय : सुख और दुःख — अनुभव की गणित — समाप्त ✧
(वेदांत 2.0 © — 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷𝓲)

#flowers @highlight #धर्म #आध्यात्मिक #osh

bhutaji

ദൂരം

nithinkumarj640200

> लोगों को लगा मुझे मेरे कर्मों की सज़ा मिल रही है,
पर असल में यही वक़्त था जिसने बता दिया — कौन साथ था, कौन बस कहानी में नाम था।

archanalekhikha

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🎵 गीत शीर्षक: “बेटियाँ हर कार्य में आगे हैं”

(लेखिका – पूनम कुमारी)


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🌺 1. आरंभिक पंक्तियाँ

बेटियाँ अब चुप नहीं रहेंगी,
हर कार्य में नाम करेंगी।
जहाँ भी मौका मिलेगा उन्हें,
वहाँ अपनी पहचान भरेंगी। 🌸


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🌷 2. शिक्षा में आगे –

किताबों में अब बेटियाँ झाँकती हैं,
हर सवाल का उत्तर जानती हैं।
पहले जो कहते थे — “लड़कियाँ क्या करेंगी?”
अब वही कहते हैं — “वाह, कमाल करेंगी!” 📖✨


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🌼 3. विज्ञान और तकनीक में –

लैपटॉप, मोबाइल, मशीनों की दुनिया,
बेटियाँ अब सब समझती हैं।
कोडिंग से लेकर रॉकेट तक,
हर क्षेत्र में नाम रचती हैं। 🚀


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🌻 4. खेल-कूद में –

मैदानों में जब पसीना बहाती हैं,
भारत का नाम ऊँचा उठाती हैं।
पी.टी. ऊषा से लेकर सानिया तक,
हर बेटी अब पदक लाती है। 🏅


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🌹 5. सेना और पुलिस में –

देश की रक्षा में जब आती हैं,
तो दुश्मन भी काँप उठ जाता है।
सीना तान के जब बेटी बोले —
“मैं भारत की सिपाही हूँ!”
तो तिरंगा गर्व से लहराता है। 🇮🇳


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🌸 6. खेती-बाड़ी और गाँव में –

अब खेतों में भी हाथ बँटाती हैं,
बीज बोती हैं, फसल काटती हैं।
कंप्यूटर चलाकर बाज़ार तक,
अपनी उपज ऑनलाइन बेच जाती हैं। 🌾💻


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🌼 7. कला और साहित्य में –

गीत, कहानी, कविता, सुर-ताल,
हर रूप में दिखती हैं कमाल।
जो कभी घर की चौखट तक सीमित थीं,
अब मंचों पर गूँजती हैं उनके बोल निहाल। 🎶


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🌻 8. समाज सेवा और नेतृत्व में –

गाँव की सरपंच, शहर की मेयर,
हर जगह अब बेटियाँ छाईं।
जो कभी दूसरों की सुनती थीं,
अब वही फैसले सुनाईं। 🗳️


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🌺 9. माँ-बाप की आस हैं बेटियाँ –

माँ की ममता, बाप का गर्व,
हर घर की साँस हैं बेटियाँ।
जो आँगन को रोशन कर दें,
वो जग की प्रकाश हैं बेटियाँ। 💖


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🌷 10. भविष्य की आवाज़ –

अब बेटियाँ किसी से कम नहीं,
हर क्षेत्र में दम है उनमें।
जो सोचें, वो कर दिखाएँ,
देश का भविष्य रचें अपने मन में। 🌈


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🌹 11. अंत की प्रेरणादायक पंक्तियाँ –

> “हम हैं बेटियाँ, शक्ति हमारी पहचान,
ना डर, ना रुकावट, ना कोई अभियान।
हर कार्य में हम आगे हैं अब,
यही है नया हिंदुस्तान!” 🇮🇳

amit.330501

शीतॠतु का चादर ओढे़
हौले हौले आया विहान
जैसे जैसे सूरज चढ़ता
वैसे बढ़ता धरा का तापमान
#डॉअनामिका #हिंदीकाविस्तार #हिंदीपंक्तियाँ #हिंदीशब्द

rsinha9090gmailcom

ममता गिरीश त्रिवेदी की कविताएं
कविता का शीर्षक है 🌹 पैसों का झाड़
कविता पढ़िए ममता गिरीश त्रिवेदी वर्ड प्रेस डॉट कॉम पर

mamtatrivedi444291

હે અંતર્યામી હું શું ચાહું છું? તું બધું જાણે છે છતા તને કહીએ અરજ કરીએ તો તને વધુ પસંદ છે
તો લે આજે અરજ કરૂં છું
ધન દોલત એશો આરામ માલ મીલકત ગાડી બંગલો, શુખ શાંતી... ના આમાંથી કશું જ નહીં
સીધ્ધી શક્તિ ન માન મોભો ના ઈજ્જત ના મુક્તિ..
તો મને શું જોઈએ ભગવંત?
મને જોઈએ હે કરૂણા નીધાન "નીર્વાણ" મોક્ષ
અને તારી બનાવેલ યોગની દુનિયામાં હે મહા યોગી શીવપરમાત્મા તારી પાસે સ્થાન, પણ મારા એકલાનું નહીં,મને માન નાર ચાહનાર હરેક માટે... માંગ થોડી મોટી છે, પણ તારા માટે મોટી ન કહેવાય.. તારા તથાસ્તુ નો ઈંતજાર ભગવંત..ઓમ શાંતિ..શીવાય શો..હમ..શીવ ઘણી

hemantchayayahoo.com134011

Good morning friends have a great Sunday.

kattupayas.101947

🙏🙏सुप्रभात 🙏🙏
🌹आपका दिन मंगलमय हो 🌹

sonishakya18273gmail.com308865

🎬 Lovelens Studio
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💥 Watch. Laugh. Share. Repeat!

rajukumarchaudhary502010

फूलो का काटो ने पहरा दिया
ख्वाबो को निन्दो ने रहने दिया
हम थे जो अब तक लड़ते रहे
वरना तुमने तो खुद को बस सहने दिया .

mashaallhakhan600196

कोई बात नहीं...

कोई बात नहीं ,
तुम जो पास नहीं ...
हमसे पूछो क्या होता है,
पल पल बिताना,
बड़ा मुश्किल होता है ,
इस दिल को समझाना ,
ए जिंदगी तू बीती ही जाएगी,
बड़ा मुश्किल है, बीते हुए पलों को भुलाना...
तुम जो पास नहीं ,तो कोई बात नहीं...

कोई बात नहीं.....
क्या हुआ जो तुम पास नहीं...
शिकवा नहीं तुमसे कोई,
क्योंकि तुम मुझसे दूर हो ...
पर मेरी रूह से नहीं...
बात बस इतनी सी...
तुम जो पास नहीं, तो कोई बात नहीं...

knrooh

❤️ इश्क का सिंगार ❤️

इश्क का सिंगार
१. नैनों में तेरे दीद का ,सिंगार कर लूं...
जिऊं तेरे हुक्म में ,दूर हंकार कर लूं।
2. सिख जाऊं जीना, जिंदगी दूसरों के लिए,
बस इतना सा, प्रेम का व्यापार कर लूं...
इतनी सद्बुद्धि बख्शी ,मेरे सांइयां ..
के तेरी सृष्टि के साथ ,बेवजह प्यार कर लूं ।
3. रूत पतझड़ की आकर, कर दे पतन बहार का...
द्वारा भी फूल खिलेंगे ,इंतजार कर लूं।
सपने संजोए बैठा हूं, तेरे दीद के लिए ..
.पलके बिछा के नैनो को, बेकरार कर लूं ।
4. बेवजह बातों में गुजर गई, यह आधी जिंदगी ,
चल अब तेरे इश्क का, सिंगार कर लूं...
5. इस दीप नादान पर ,कर ऐसी मेहर रहिबर,
रूहू पर तेरे इश्क का, सिंगार कर लूं....


दीद- दर्शन
रहिबर - परमात्मा

knrooh

दुखी होने का अंदाज़ अलग है
कोई पाकर दुखी है कोई खोकर
डॉअनामिका
हिंदीकाविस्तार

rsinha9090gmailcom

মানুষের রাজত্ব আর কতদিন ?

এক সময় পৃথিবী ছিল ডাইনোসরদের। কোটি কোটি বছর তারাই ছিল এই গ্রহের একচ্ছত্র অধিপতি, রাজা। আমরা আজকের মানুষ — আমাদের অস্তিত্ব তো সেই হিসেবের তুলনায় এক মুহূর্ত মাত্র। তবুও আমরা এতটা আত্মবিশ্বাসী, এতটা অহংকারী — যেন পৃথিবীটা চিরকাল থেকে আমাদেরই ছিল এবং আমাদেরই থাকবে !

কিন্তু প্রকৃতি তো কখনোই কারো নামে স্থায়ী মালিকানা স্বত্ব লিখে দেয় না। ভেবে দেখো না, এক সময় এই পৃথিবীর প্রতিটি প্রান্তেই রাজাদের শাসন ছিল। আজকে এঁরা কোথায় ? পরিবর্তনই তো এই সংসারের চিরন্তন সত্য।

এই মানুষ পৃথিবীকে যতটা উন্নত করেছে, ঠিক ততটাই ক্ষতিও করেছে, বরং কিছুটা বেশিই। প্রযুক্তি, যুদ্ধ, অতিরিক্ত ভোগ বিলাস, পরিবেশ ধ্বংস, মাটিকে পুড়িয়ে ফেলার মতো অর্থনৈতিক লোভ....! শুধু কি তাই ? নিজেদের অস্তিত্ব রক্ষার মূলে রয়েছে যে খাদ্য, এরা সেই খাদ্যের জেনেটিক কোড পর্যন্ত বদলে দিয়েছে। প্রাকৃতিক শস্যের বীজকে ল্যাবরেটরির মধ্যে জেনেটিক মডিফিকেশন করে তৈরি করেছে হাইব্রিড — যাকে শরীরের ইমিউন সিস্টেম ঠিকমতো চিনতেই পারে না। এই সবকিছু মিলিয়ে মানুষের আত্মবিনাশ এখন শুধু “সম্ভাবনা” নয়, একটা কার্যকর চলমান প্রক্রিয়া হয়ে উঠেছে।

যদি ভবিষ্যতে একদিন মানুষ হারিয়ে যায়, তখন কী হবে?
এই পৃথিবী মোটেও থেমে থাকবে না। কারণ এই Self-evolving planet তার নতুন অধিপতি তৈরি করতে খুব বেশি সময় নেবে না।

সম্ভবত ভবিষ্যতের বুদ্ধিমান প্রাণী ডাঙায় জন্মাবে না — জন্মাবে সাগরের অভ্যন্তরে। সমুদ্রের প্রাণীরা এখনো মানুষের মতো বেমানানভাবে পৃথিবীকে ক্ষতি করার চেষ্টা করে না। তাদের অভিযোজন ক্ষমতা land species এর তুলনায় অনেক বেশি শক্তিশালী। extreme pressure, light-less zone, chemical imbalance — সবকিছু সহ্য করে বেঁচে থাকার মতো ক্ষমতা তাদের মধ্যে রয়েছে।

হয়তো পরবর্তী dominant species জলেই তৈরি হবে। হয়তো তাদের কাছে আমাদের সভ্যতা হবে ইতিহাসের এক অদ্ভুত ভুল। হয়তো তারা আমাদের নিয়ে গবেষণা করবে — যেমন আমরা আজ ডাইনোসরকে নিয়ে করি।

মানুষ ভাবতে ভালোবাসে সে চূড়ান্ত। কিন্তু প্রকৃত সত্যি হলো — আমরা এক ক্ষণস্থায়ী অধ্যায় মাত্র। প্রকৃতি কারো উপর চিরকাল রাজত্ব চাপিয়ে রাখে না।

যে অভিযোজিত হয় — প্রকৃতি তাকে এগিয়ে দেয়।
যে ধ্বংস করে — প্রকৃতি তাকে ইতিহাসে পরিণত করে।

মানুষের রাজত্বও একদিন শেষ হবে।
তারপর শুরু হবে নতুন অধ্যায়।
নতুন সভ্যতা।
নতুন ভাষা।
নতুন জগত।

সম্ভবত সাগরের নীচে — যেখানে আমাদের অহংকার পৌঁছাতে পারে না।

krishnadebnath709104

मेरा प्यार,या मेरा जुड़ाव जो
तेरे साथ है वो
किसी बाहरी कोशिश या बनावट से नहीं बना।

न मैं किसी पत्थर की सूरत हूँ,
जो तराशी गई हो किसी और के हाथों से ..

मेरे चेहरे को ज़रा गौर से देखो,
तो समझ पाओगे...
मैं तो वही मूरत हूँ,
जिसमें तेरी नजरों ने जान भर दी।

ना वक्त ने इशारा किया, ना किस्मत ने खबर दी
तू किसी आँगन की सीढ़ी से नहीं..बस यूँ ही,अपने आप
मेरी रूह में उतर आया

_Mohiniwrites

neelamshah6821

✧ वेदांत 2.0 ✧
विषय: वर्तमान का निर्णय — भविष्य की योजना से परे जीवन का विज्ञान

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१. निर्णय का स्वरूप — वर्तमान बनाम भविष्य

मनुष्य के निर्णय दो प्रकार के होते हैं —
एक जो वर्तमान से जन्म लेते हैं,
दूसरे जो भविष्य की कल्पना से।

आध्यात्मिकता वर्तमान का निर्णय है —
क्षण की नाड़ी को सुनकर उठता है,
किसी लक्ष्य या योजना पर आधारित नहीं।
यह जीवन का स्वाभाविक विज्ञान है —
जहाँ प्रतिक्रिया नहीं, बल्कि सहज उत्तर होता है।

विज्ञान, धर्म, और शिक्षा —
तीनों भविष्य के निर्णयों पर टिकी व्यवस्थाएँ हैं।
वे समझते हैं, योजना बनाते हैं, लक्ष्य तय करते हैं,
और इस प्रकार समय की रेखा पर चलते हैं।

> सूत्र १:
आध्यात्मिकता निर्णय है; विज्ञान और धर्म योजना हैं।

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२. विज्ञान, धर्म और अस्तित्व की दृष्टि

विज्ञान का प्रयोजन है — गलती दोहराई न जाए।
वह भविष्य को सुरक्षित करना चाहता है।
धर्म का प्रयोजन है — सुख दोहराया जाए।
वह भविष्य को स्वर्ग बनाना चाहता है।

पर अस्तित्व भविष्य नहीं देखता।
वह तो केवल ‘अभी’ में जीता है —
या तो तत्काल समाधान है, या फिर धैर्यपूर्ण प्रतीक्षा।
वह किसी परियोजना का निर्माता नहीं,
बल्कि घटनाओं का साक्षी है।

जैसे नदी पार करनी हो —
या तो अभी छलाँग लगा दो,
या फिर प्रवाह का इंतजार करो।
दोनों ही निर्णय हैं, पर योजना नहीं।

> सूत्र २:
अस्तित्व न सोचता है, न टालता है — वह केवल घटता है।

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३. शांति का द्वार — योजना से स्वीकृति तक

विज्ञान और बुद्धि का क्षेत्र सुख-दुख के लिए योजनाएँ रचता है।
वह सोचता है कि भविष्य सुधर जाए तो जीवन संपूर्ण होगा।
पर हर योजना में ऊर्जा का क्षय होता है,
क्योंकि मन जो “आने वाले” में जीता है,
वह “होने वाले” को खो देता है।

जीवन वहीं खिलता है जहाँ योजना समाप्त होती है।
वर्तमान ही वह द्वार है जहाँ संतोष प्रवेश करता है।
भविष्य की योजना सदैव अशांति का स्रोत है,
और वर्तमान की स्वीकृति — मौन की उपस्थिति।

> सूत्र ३:
भविष्य की योजना मन को थकाती है,
वर्तमान की स्वीकृति आत्मा को जगाती है।

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समापन विचार:
आध्यात्मिकता कोई प्रणाली नहीं —
यह जीवन का निर्णय-तंत्र है,
जो हर क्षण अपने सत्य को चुनता है।
विज्ञान सुधार चाहता है, धर्म व्यवस्था,
पर अध्यात्म केवल साक्षी —
वह कुछ बनाता नहीं, केवल होता है।

©Vedānta 2.0 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷𝓲 —

#SpiritualWisdom #IndianPhilosophy #आध्यात्मिक #osho #agyatagyaani

bhutaji