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मेरी मुझसे येही शिकायत रही है पीछे हटने की आदत सी रही है यूही हर मोड पे ला पटका है मुझे मेरी ये किस्मत भी बहुत बेचारी रही है.
जो भी छोड़ा है मैने उसका गम नही जो छूट गया मुझसे बस उसका मलाल है .
जिन्दागी मुकद्दर कर काटी है हमने हर एक रात ऐसे ही गुजारी है हमने सोचा पासे बदल कर जीत जायेंगे इस दफा मगर हर बाजी ऐसे ही हारी है हमने.
ख्वाबो मे हूं ख्यालो मे हूं कुछ उलझे हुए सवालो मे हूँ दिन गुजरता है आती है रात बन्द कमरा है और ताले मे हूँ.
झूठो के बीच मै सच बोल बैठा रिस्ते नाजुक थे मै तोल बेठा बड़ी मुश्किल से कमाये थे चंद दोस्त उनका भी साथ मै यूही छोड़ बैठा.
सुकुन देने आये थे कुछ लोग पर जाते जाते और बेचेन कर गये .
मै अपने वजूद को पहचान नही पाया हवा मुझे छू कर निकली मै जान नही पाया बादल बसरसने को थे दरिया थे भरने को मै खड़ा लिये अपनी पतंग की डोर और वक्त रहते भी उसे उतार नही पाया.
गुजरे हुए उस वक्त को जमाना हो गया हर ख्याल हमारा अब पुराना हो गया अकेले रहे कर एक बात तो जानी है हमने हर बात को युद ही से बताना हो गया.
क्या बताओ तुमको कुछ खास नही है एक ख्वाब का नशा है पर कुछ पास नही है सोचता हूं शायद ये दिन होगा मेरा यकिन मानिये वो दिन आज भी नही है.
अपनी तनहाई मे तू तन्हा ना रहे तू भी जिन्दा है हम सब की तरह खुवाहिशो को अपनी रुसवा ना कर ये भी होती है जीने की एक वजह वक्त थोड़ा सा मुश्किल तो है पर वक्त की फितरत ही बदल जाना राह मे आयेंगे मुश्किल झोके पर मुश्किल से मिलता है मंजिल का ठिकाना .
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