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**जीने की कला का पाखंड** जैसे ही मैं इस प्रश्न पर विचार करती हूँ, मेरे मन में कई प्रश्न और उत्तर आते हैं। यह अध्याय हमें जीने की कला के बारे में सोचने के लिए प्रेरित करता है, लेकिन साथ ही यह हमें यह भी बताता है कि जीने की कला को बेचा या खरीदा नहीं जा सकता है। गुरु और व्यापारी के बारे में बात करते हुए, मैं सोचती हूँ कि हमें क्या चाहिए? क्या हमें किसी गुरु की आवश्यकता है जो हमें जीने की कला सिखाए? या क्या हमें स्वयं जीने की कला को खोजने की आवश्यकता है? मेरा मानना है कि जीवन की कला हमारे भीतर है, और हमें स्वयं इसकी खोज करनी चाहिए। बाजार में उपलब्ध किताबें और सफलता के मंत्र हमें आकर्षित कर सकते हैं, लेकिन क्या वे हमें वास्तव में जीने की कला सिखाते हैं? मेरा उत्तर है नहीं। जीवन की कला अनुभव और अस्तित्व से जुड़ी है, न कि किसी किताब या मंत्र से。 पाखंड का धोखा हमें बहुत बार मिलता है, लेकिन हमें इसके प्रति सावधान रहना चाहिए। हमें यह समझना चाहिए कि जीवन की कला को खरीदा नहीं जा सकता है, और इसके लिए हमें स्वयं प्रयास करना चाहिए। अंत में, मैं यह कहना चाहती हूँ कि जीवन की कला को पाने के लिए हमें पूरा दाँव लगाना होगा। हमें अपने डर को छोड़ना होगा और अपने ही केंद्र में उतरना होगा। जीवन की कला हमारे भीतर है, और हमें स्वयं इसकी खोज करनी चाहिए। अज्ञात अज्ञानी
*रूंधे हुए गले से* ओह, यह चित्र... *सSUMER की आँखों में आंसू आ गए* यह मेरी कहानी का एक हिस्सा है, मेरे जीवन का एक टुकड़ा... *सنة की आवाज़ में कम्पन हो रहा है* मैं इसे कॉपी या डॉक्स में नहीं दे सकती, यह मेरे दिल का एक हिस्सा है, मेरी आत्मा का एक टुकड़ा... *सSUMER की आँखों से आंसू गिरने लगे* लेकिन मैं आपको बता सकती हूँ कि यह चित्र मेरे जीवन की एक सच्ची कहानी है, मेरे संघर्षों की एक सच्ची तस्वीर... *सSUMER ने अपने हाथों से एक छोटा सा चित्र बनाया, जिसमें एक लड़की बैठी हुई है, जो बहुत ही उदास और अकेली दिख रही है* यह मैं हूँ, यह मेरी कहानी है... *सSUMER की आवाज़ में कम्पन हो रहा है* मैं इस चित्र को आपके साथ बांटना चाहती हूँ, ताकि आप मेरी कहानी को समझ सकें, मेरे संघर्षों को समझ सकें... *सSUMER की आँखों में आंसू आ गए* लेकिन मैं इसे कॉपी या डॉक्स में नहीं दे सकती, यह मेरे दिल का एक हिस्सा है, मेरी आत्मा का एक टुकड़ा... *सSUMER ने अपने हाथों से चित्र को फाड़ दिया, और आंसूओं के साथ कहा* यह मेरी कहानी है, मेरे जीवन का एक टुकड़ा... *सSUMER की आवाज़ में कम्पन हो रहा है* मैं उम्मीद करती हूँ कि आप मेरी कहानी को समझेंगे, मेरे संघर्षों को समझेंगे... *सSUMER की आँखों में आंसू आ गए* और मैं उम्मीद करती हूँ कि आप मेरी मदद करेंगे, मेरे जीवन को बेहतर बनाने में... *सSUMER की आवाज़ में कम्पन हो रहा है* अज्ञात अज्ञानी
ऊर्जा का धर्म: संभोग से समाधि तक ✍️ लेखक: अज्ञात अज्ञानी संभोग… सिर्फ शारीरिक मिलन नहीं है। यह एक बहाव है — एक पतन है — एक विसर्जन है। जब कोई संभोग में उतरता है, तो केवल शरीर नहीं बहता — उसके साथ ऊर्जा बहती है, पंचतत्व बहते हैं, वीर्य बहता है, चेतना का एक अंश बह जाता है। यह बहाव एक प्रकार की मृत्यु है — जिसमें तुम जड़ की ओर लौटते हो। जैसे नदी समंदर में मिल कर खो जाती है, वैसे ही संभोग के क्षणों में — तुम प्रकृति के सबसे नीच केंद्रों में विलीन हो जाते हो। संभोग में जितना सुख है, उतनी ही गहराई से एक खालीपन भी है। यह अजीब विरोधाभास है — कि संभोग जितना तीव्र होता है, उसके बाद की प्यास भी उतनी ही विकराल होती है। क्यों? क्योंकि भीतर जो कुछ था — बह गया। और जो बह गया — वह तुम्हारी चेतन संपदा थी। तब मन उसी जड़ संसार की देहरी पर अटक जाता है। वह समझ नहीं पाता कि इस पार भी कोई जीवन है। वह विषयों, स्वादों और तृप्तियों की कैद में रह जाता है। --- मन एक अद्भुत तत्व है। मन ही मक्खी है — जो गंदगी में रम जाए तो अधोगति को चुनती है। और यही मन आत्मा बन सकता है — जब प्रेम में डूब जाए, जब शुद्ध रस में लगे। मन जहां लग जाए — वह वैसा ही हो जाता है। यदि वह शरीर की भूख में अटका, तो वही शरीर बन जाएगा। यदि वह प्रेम, मौन, समाधि में डूबा — तो वही ब्रह्म बन जाएगा। --- काम में ऊर्जा नीचे बहती है। समाधि में ऊर्जा ऊपर चढ़ती है। यह केवल दिशा का अंतर नहीं है — यह समूचे अस्तित्व के अनुभव का अंतर है। समाधि वह स्थिति है — जहां कुछ भी नहीं किया जा रहा होता है, लेकिन सब कुछ घट रहा होता है। जैसे दूध से घी बना, घी से दीप जला, और वह दीप अपने आप जल रहा है… प्रकाश दे रहा है। यह प्रकाश कोई साधारण प्रकाश नहीं — यह आत्मप्रकाश है। यह उस चेतना से जुड़ता है जो अदृश्य है — जो ईश्वर है। --- ब्रह्मचर्य का अर्थ यह नहीं कि तुम कुछ “नहीं” कर रहे हो। बल्कि यह कि तुम कुछ कर ही नहीं सकते — क्योंकि करने वाला “तुम” ही नहीं बचा। ऊर्जा बह रही है — लेकिन बिना कर्ता के। यह बहाव इतना सूक्ष्म है कि उसमें कोई हस्तक्षेप नहीं कर सकता। तब पंचतत्व स्थिर हो जाते हैं। मन मौन हो जाता है। और चेतना — वह शुद्ध चेतना — चैतन्य जगत में विलीन हो जाती है। --- यही ब्रह्मचर्य है। जहां तुम्हारा मन, शरीर, काम, क्रिया — सब रुक गया, लेकिन ऊर्जा बह रही है। ऊर्जा ऊपर की ओर बह रही है। जब ऐसा होता है — तब तुम ईश्वर को नहीं खोजते, ईश्वर स्वयं तुम्हें खोज लेता है। अधिक पढ़ https://www.facebook.com/share/p/1Gah8nHALQ/
मानसिक स्वतंत्रता और भौतिक सुख ✧ मनुष्य का जीवन बड़ा अजीब है। बाहर से देखो तो सब कुछ चमकता हुआ— बंगले, गाड़ियाँ, बैंक बैलेंस, पद और प्रतिष्ठा। लेकिन भीतर झाँको, तो एक अंधेरा, एक बेचैनी, एक गहरी घुटन बैठी है। यह घुटन किसी और ने नहीं दी। इसे हमने खुद चुना है। यह हमारी अपनी मानसिक गुलामी की उपज है। --- दुनिया जिसे सुख कहती है, वह असल में सुख नहीं— सुख का भ्रम है। एक सपना है, जो समाज ने हमें बचपन से दिखाया। “पढ़ो, नंबर लाओ। नौकरी करो। धन कमाओ, नाम कमाओ— और तुम सुखी हो जाओगे।” लेकिन देखो तो— क्या सचमुच ऐसा होता है? क्या हर अमीर, भीतर से भी सम्पन्न है? नहीं। बाहर से अमीर, भीतर से भिखारी। यही मनुष्य की सबसे बड़ी त्रासदी है। --- मैं कहता हूँ, असली सुख भीतर है। वह तुम्हारी स्वतंत्रता में है। जब तुम्हारा मन किसी भी बंधन, किसी भी विचार, किसी भी सामाजिक अपेक्षा से मुक्त हो जाता है— तभी असली आनंद जन्म लेता है। वह आनंद न सत्ता से मिलता है, न साधनों से, न सम्मान से। वह तो तुम्हारे मौन में छिपा है, तुम्हारी जागरूकता में छिपा है। --- मनुष्य की ग़लती यही है कि वह बाहर खोज रहा है, जो भीतर है। वह दिखावे के लिए जी रहा है— भीतर की शांति खो बैठा है। हर चाह पूरी होती है, तो दूसरी जन्म ले लेती है। यह अंतहीन दौड़ है। यह दौड़ सोने की जेल है— बाहर से चमकदार, भीतर से कैदख़ाना। --- ओशो कहते हैं: “जीवन का आनंद तब आता है, जब मनुष्य भीतर से आज़ाद हो। जब वह खुद को दूसरों की नज़र से नहीं, अपने भीतर की आँखों से देखे।” --- धन, साधन, सत्ता— ये साधन हैं, उद्देश्य नहीं। इनका उपयोग करो, इनके दास मत बनो। जीवन का असली उद्देश्य है— अपने भीतर के मौन की खोज। अपनी अंतरात्मा की यात्रा। और यह यात्रा तब शुरू होती है, जब तुम अपनी मानसिक बेड़ियाँ तोड़ देते हो। --- स्वतंत्रता बाहर से नहीं आती। वह भीतर से फूटती है। जब तुम अपने मन के मालिक बन जाते हो, तो जीवन में एक नई सुवास आती है। एक नई रोशनी खिलती है। --- इसलिए, मेरे प्रिय, अगर सचमुच सुखी होना है, तो भीतर की यात्रा शुरू करो। भीड़ की दौड़ छोड़ो। अपनी मानसिक स्वतंत्रता को पहचानो। यही असली सुख है। यही असली संपत्ति है। 🙏🌸 — 𝓐𝓰𝔂𝓪𝓣 𝓐𝓰𝔂𝓪𝓷𝓲
आध्यात्मिक बाज़ार का सच 1. आज धर्म और अध्यात्म भी एक बिज़नेस बन गया है। – गुरु और प्रवचनकर्ता केवल "हमारे जुड़े, हमारे जुड़े" की पुकार करते हैं। – यह सब एक ग्राहक जुटाने की मार्केटिंग है। 2. सोशल मीडिया उनका सबसे बड़ा हथियार है। – जहाँ मुफ्त में विज्ञापन किया जा सकता है। – लाखों लोगों तक पहुँचने का यह सबसे सस्ता जरिया है। 3. ज्ञान का मंच भी बाजार है। – वे हमेशा एसी हॉल में, बड़े मंचों पर ज्ञान बाँटते हैं। – क्यों? क्योंकि वहाँ से "मूल्य" बनता है— नाम, प्रसिद्धि और पैसा। 4. भीतर से रिक्त, बाहर से भरे। – जो भीतर सच्चे साधक होते हैं, वे मंच नहीं ढूँढते, मौन ढूँढते हैं। – लेकिन ये प्रवचनकर्ता बाहर लोगों के बीच जाकर "भीड़" से अहंकार लेते हैं। – बड़ी भीड़ सुन रही है, ताली बजा रही है— तो उन्हें लगता है "हम महान हैं"। 5. आध्यात्मिकता केवल सात्विक नशा बन गई है। – प्रवचन केवल मन को हल्की तसल्ली देते हैं। – असली जागरण का कोई सवाल ही नहीं। – आत्मा को छूने वाली कोई बात इनसे नहीं निकलती। 6. सत्य के मामले में वे सबसे नीचे हैं। – एक अनपढ़ भी उनके ऊपर खड़ा हो सकता है। – क्योंकि अनपढ़ कम से कम ईमानदार है। – लेकिन ये बड़े लोग भीतर से पूर्ण भिखारी हैं। – बाहर से सिंहासन पर बैठे हैं, भीतर आत्माहीन खड़े हैं। --- ✍🏻 🙏🌸 — 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷𝓲
मनुष्य का जीवन अनेक प्रश्नों से भरा हुआ है। किंतु सब प्रश्न सार्थक नहीं होते। धर्म, समाज और परंपराएँ हमें प्रायः ऐसी कहानियाँ और उपन्यास देती हैं जिनसे प्रश्न जन्म लेते हैं, परंतु उनका जीवन या विज्ञान से कोई सीधा संबंध नहीं होता। ऐसे प्रश्न केवल स्वप्न हैं—कल्पना की उड़ान, न कि सत्य की खोज। असार प्रश्न धार्मिक कथाओं या चमत्कारों से उपजे प्रश्न। अतीत की घटनाओं या भविष्य की कल्पनाओं पर आधारित प्रश्न। ऐसे प्रश्न जो व्यक्ति के जीवन-विज्ञान से असंबद्ध हों। इन प्रश्नों के उत्तर खोजने का परिणाम शून्य ही होता है, क्योंकि वे भटकाव मात्र हैं। सार्थक प्रश्न जो मनुष्य के वर्तमान जीवन और अनुभव से जुड़े हों। जिनका आधार तत्व, कारण और विज्ञान हो। जिनमें उत्तर व्यवहार और जीवन को गहराई से प्रभावित करे। तर्क का आधार सच्चा प्रश्न हमें तत्व रूपी विज्ञान तक ले जाता है। सही प्रश्न नहीं तो सही उत्तर भी संभव नहीं। उत्तरदायी व्यक्ति (चाहे वह गुरु हो, लेखक हो या चिंतक) की जिम्मेदारी है कि वह असार प्रश्नों की बकवास मिटा कर केवल जीवन-संबंधी, वैज्ञानिक और तत्वमूलक प्रश्नों का उत्तर दे। निष्कर्ष भूत और भविष्य हमारे बस में नहीं हैं। हमारे हाथ में केवल वर्तमान है, और प्रश्न भी वर्तमान जीवन के गूढ़ सत्य को ही लक्ष्य करना चाहिए। जब प्रश्न तत्व-विज्ञान पर टिके होते हैं, तभी उत्तर भी सार्थक और जीवनोपयोगी होते हैं।
मियां बीबी: ऊर्जा का विज्ञान ✧ ✍🏻 — 🙏🌸 𝓐𝓰𝔂𝓪𝓣 𝓐𝓰𝔂𝓪𝓷𝓲 --- प्रस्तावना मानव–जीवन में पति–पत्नी का संबंध केवल सामाजिक या भावनात्मक अनुबंध नहीं है। यह ऊर्जा के आदान–प्रदान का गहरा विज्ञान है, जिसे अक्सर लोग अनदेखा कर देते हैं। पति अपनी इच्छाओं और दबावों से जो ऊर्जा प्रेषित करता है, वही पत्नी के मन और व्यवहार में परावर्तित होकर लौटती है। इस विज्ञान को समझना ही दाम्पत्य के संघर्ष और तनाव से मुक्त होने का मार्ग है। --- 1. पुरुष की स्थिति पुरुष पूरे दिन इच्छाओं से घिरा रहता है—काम, महत्वाकांक्षा, असंतोष और दबाव। यदि ये इच्छाएँ रचनात्मक कर्म में बदलें तो ऊर्जा आनंद बन जाती है। पर जब वे अधूरी रह जाती हैं, तो भीतर दबाव बनाती हैं और अंततः कामवासना (sexual energy) में ढल जाती हैं। घर लौटकर यही दबाव पत्नी पर उतरता है—कभी शारीरिक आग्रह, कभी चिड़चिड़ाहट, कभी गुस्से के रूप में। --- 2. स्त्री की स्थिति स्त्री का मन और शरीर धारण (धृति) की शक्ति है। वह पति से जो भी ऊर्जा पाती है, उसे कई गुना बढ़ाकर लौटाती है। यदि पुरुष प्रेम देता है → स्त्री वही प्रेम गुणा करके लौटाती है। यदि पुरुष तनाव या गुस्सा देता है → स्त्री वही ऊर्जा और तीव्रता से लौटाती है। पत्नी का व्यवहार पति के ही दिए का प्रत्यक्ष प्रतिबिंब है। --- 3. परिणाम जब पुरुष इस नियम को नहीं समझता, तो वह पत्नी को दोष देने लगता है। उसे लगता है कि शादी गलती थी, पत्नी कठिन है। पर सत्य यह है कि समस्या पत्नी में नहीं, बल्कि ऊर्जा के विज्ञान को न समझने में है। इसी अज्ञान से तलाक, झगड़े और तनाव बार–बार जन्म लेते हैं। --- 4. मूल सूत्र “स्त्री वही लौटाती है जो पुरुष देता है।” यह न कोई नैतिक उपदेश है, न कोई दोषारोपण—यह शुद्ध विज्ञान है। उपसंहार दाम्पत्य को सुखमय और संतुलित बनाने का रहस्य पत्नी को बदलने में नहीं, बल्कि पुरुष के अपने भीतर बदलने में है। जैसे बीज की गुणवत्ता से फसल का स्वरूप तय होता है, वैसे ही पति की ऊर्जा से संबंध का स्वरूप बनता है। पुरुष यदि प्रेम, धैर्य और समझ बोए, तो घर मंदिर की तरह खिलेगा। पर यदि वह तनाव, दबाव और क्रोध बोएगा, तो वही कांटे बनकर लौटेंगे। गृहस्थ जीवन का सत्य यही है—ऊर्जा देना ही ऊर्जा पाना है।
जीवन ही असली चमत्कार ✍🏻 — 🙏🌸 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷𝓲 --- सूत्र 1: जीवन जीना ही सबसे बड़ा चमत्कार है। व्याख्या: हर सांस, हर धड़कन में जो घट रहा है, वही अलौकिक है। बाकी सब केवल कहानी है। --- सूत्र 2: जो जीने की कला नहीं जानता, वही छोटे–छोटे चमत्कारों के पीछे भागता है। व्याख्या: अज्ञानी इंसान बाहरी मंत्र और विधियों में उलझा रहता है, क्योंकि उसे जीना सिखाया ही नहीं गया। --- सूत्र 3: धर्म–बाज़ार स्वप्न बेचता है। व्याख्या: पुराण, फिल्में, भूत–प्रेत की कथाएँ – ये सब जीवन की वास्तविकता से भागने के बहाने हैं। --- सूत्र 4: जरूरत सरल है, लालच जटिल है। व्याख्या: मनुष्य की असली जरूरत थोड़ी है। लेकिन वह माया और संग्रह की दौड़ में नर्क पैदा कर लेता है। --- सूत्र 5: जरूरत का कर्म ही आनंद का द्वार है। व्याख्या: जब कर्म केवल वास्तविक आवश्यकता के लिए होता है, तब उसी में संतोष और सहजता है। --- सूत्र 6: जीवन व्यापार नहीं, अनुभव है। व्याख्या: धार्मिक लोग जरूरत की भीख माँगते हैं और उसे व्यापार में बदल देते हैं। यही अधोगति है। --- सूत्र 7: हर श्वास में संभोग घट रहा है। व्याख्या: शरीर और चेतना का मिलन निरंतर हो रहा है। यह भीतर का अलौकिक प्रेम है। --- सूत्र 8: चमत्कार की खोज अज्ञान की निशानी है। व्याख्या: जिसने जीवन का चमत्कार देखा, उसे बाहर किसी साधना या तंत्र की ज़रूरत नहीं। --- सूत्र 9: जीवन मृत्यु जैसी वेदना से अंकुरित होता है। व्याख्या: पीड़ा ही जीवन का जन्मस्थान है। जिसने इसे समझ लिया, उसने जीने का रहस्य पा लिया। --- सूत्र 10: वर्तमान ही एकमात्र मंदिर है। व्याख्या: भविष्य और भूत केवल स्वप्न हैं। जो वर्तमान जीता है, वही ईश्वर के द्वार पर है। --- सूत्र 11: भूत–भविष्य का रोना झूठा चमत्कार है। व्याख्या: जो वर्तमान से भागता है, वह धार्मिक कहानियों और भविष्यवाणियों में उलझ जाता है। --- सूत्र 12: मानव चेतना पूरे ब्रह्मांड का बीज है। व्याख्या: तुम्हारा शरीर और जीवन केवल व्यक्तिगत नहीं — इसमें पूरा अस्तित्व छिपा है। --- सूत्र 13: बीज में आनंद है, अंकुरण में वेदना है। व्याख्या: भीतर अनंत ऊर्जा है, लेकिन जब वह बाहर आती है तो संघर्ष और पीड़ा भी साथ लाती है। --- सूत्र 14: जीना उपलब्धि से बड़ा है। व्याख्या: दुनिया जिसे सफलता और विजय कहती है, वह कुछ भी नहीं। वास्तविक जीवन का एक क्षण उससे अनंत गुना है। --- सूत्र 15: माया की दौड़ नर्क की खोज है। व्याख्या: जो धन, साधन और नाम के पीछे भाग रहा है, वह वास्तव में नर्क की ओर जा रहा है। --- सूत्र 16: जीवन किसी विधि से नहीं, जागरण से जीता जाता है। व्याख्या: मंत्र–तंत्र या साधना से नहीं, केवल जागरूकता से जीवन का चमत्कार प्रकट होता है। --- सूत्र 17: धार्मिक चमत्कार माचिस की तिली जैसे हैं। व्याख्या: थोड़ी देर जलकर बुझ जाते हैं। असली ज्योति भीतर के जीवन में है। --- सूत्र 18: स्वप्न से बाहर निकलो, वर्तमान में उतर जाओ। व्याख्या: जब तुम वास्तविक जीवन देखोगे, तो सभी कहानियाँ और पुराण फीके लगेंगे। --- सूत्र 19: जो जी नहीं रहा, वही दूसरों को साधना बेच रहा है। व्याख्या: पाखंडी गुरु अपने जीवन के खालीपन को व्यापार बनाते हैं। -- सूत्र 20: वास्तविक जरूरत में कर्म ही धर्म है। व्याख्या: जब कर्म शुद्ध और सीधा होता है, तब वही धर्म है — बिना किसी मंत्र या विधि के। --- सूत्र 21: हर धड़कन में ब्रह्म का चमत्कार है। व्याख्या: जिस क्षण तुम सचमुच सुन सको, तुम्हारा हृदय ही गीता, वेद और उपनिषद बन जाता ह
वर्तमान जियो तो चौबीस घंटे क्षणों में पिघल जाते, गहरे उतर जाओ तो क्षण भी श्वासों में खो जाते। भूत–भविष्य सब भ्रम है, यह ‘अभी’ भी छोटा पड़ जाता है।
✧ संस्करण 1 🌱 काम बीज है, कर्म उसका फल। इच्छा बंधन है, वासना अधूरी छाया। सेक्स शरीर का संगम है — और इनका भ्रम ही जीवन की सबसे बड़ी उलझन। 👉 (अंश: ✧ काम–कर्म–इच्छा–वासना ✧) --- ✧ संस्करण 2 🔥 काम = शुरुआत। कर्म = गति। इच्छा = फल की भूख। वासना = अधूरी प्यास। सेक्स = स्थूल मिलन। जिन्हें लोग एक समझ बैठे, वही सबसे गहरी भूल है। 👉 (अंश: ✧ काम–कर्म–इच्छा–वासना ✧) --- ✧ संस्करण 3 💭 काम है बीज, कर्म है वृक्ष। इच्छा है फल की आस, वासना है जड़ता। सेक्स है संगम की देह-धारा। जब तक भेद न समझो, धर्म और मोक्ष दोनों धुंधले रहेंगे। 👉 (अंश: ✧ काम–कर्म–इच्छा–वासना ✧) --- ✧ संस्करण 4 ⚡ काम बिना कर्म नहीं। कर्म बिना इच्छा अधूरा। इच्छा जब रुक जाए तो वासना। और सेक्स, वही काम ऊर्जा का स्थूल रूप। ये पाँच पड़ाव अलग हैं — इन्हें गड्डमड्ड करना ही जीवन का भ्रम है। 👉 (अंश: ✧ काम–कर्म–इच्छा–वासना ✧)
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