हम भी भाभियों संग हंसी-ठिठोली के मौसम में रहे,
आज ससुराल आकर किसी की बहू, किसी की भाभी बने।
सम्मान को सीने में रखा, हर काम में हाथ बढ़ाया,
न सोचा “सब भाभी ही करेगी”, न खुद को बड़ा बताया।
भाभी भी तो किसी की बेटी, यह मन में सँजोए रहे,
मिल-बैठ कर सीख लिया, घर-रिश्ता दोनों संजोए रहे।
भैया-भाभी के झगड़ों में कभी कान नहीं भरे,
प्यार से समझाया, मनुहार से ही सब ग़महरे।
यही सोच, यही सलीका, यही निभाई रीत,
रिश्तों में न आई कड़वाहट, बनी रही सदा प्रीत।