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Raju kumar Chaudhary

Raju kumar Chaudhary

@rajukumarchaudhary502010
(3)

कहानी: "अधूरी पेंसिल" ✍️
(प्रेरणा की कहानी – लगभग 1000 अक्षर)

छोटे से गाँव में एक गरीब लड़का था – आरव। उसके पास स्कूल जाने के लिए न जूते थे, न बस्ता, और न ही नई किताबें। बस एक पुरानी कॉपी और आधी पेंसिल, जो उसके पिता ने मजदूरी कर के खरीदी थी।

एक दिन क्लास में टीचर ने कहा, “कल एक प्रतियोगिता है – जो सबसे सुंदर अक्षरों में लिखेगा, उसे इनाम मिलेगा।”
आरव के पास नई पेंसिल नहीं थी, पर उसके अंदर एक जिद थी – कुछ कर दिखाने की।

उस रात वह आधी पेंसिल को चाकू से छील-छीलकर नुकीला करता रहा। उसकी माँ ने देखा और पूछा, “इतनी मेहनत क्यों कर रहा है बेटा?”
आरव ने मुस्कुरा कर कहा, “माँ, ये पेंसिल भले अधूरी है, पर मेरा सपना पूरा है – जीतने का!”

अगले दिन प्रतियोगिता हुई। बच्चों ने रंग-बिरंगी पेंसिलों से लिखा, पर आरव ने अपने दिल से लिखा – साफ़, सुंदर, और भावपूर्ण।

जब परिणाम आया – सब चौंक गए। पहला इनाम आरव को मिला।

टीचर ने पूछा, “इतने साधनों के बिना कैसे?”
आरव ने कहा – “पेंसिल छोटी थी, पर हौसले पूरे थे।”

सीख:
जीतने के लिए साधन नहीं, संकल्प चाहिए। चाहे पेंसिल आधी हो, पर सपना पूरा होना चाहिए। 💪✍️✨

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शेरों की मिट्टी — नेपाल की गाथा"
✍️ राजु कुमार चौधरी के जज़्बे से प्रेरित

हिमालय की छाँव में,
जहाँ हवाएँ भी बोलती हैं,
मिट्टी में छुपा है वो इतिहास,
जो हर दिल को झंकृत करती है।

गोरखों की तलवार नहीं,
उनकी धड़कन में है आग,
हर कदम उनकी जमीन पर,
है शेरों की आवाज़।

न कभी हार मानी, न कभी झुका,
रक्त में बहती है आज़ादी की नदियाँ,
हर प्राण यहाँ है समर्पित,
मातृभूमि के लिए अपनी लड़ाई में।

ब्रिटिश के कदम थमे यहाँ,
गोरखा के गर्जन से धरती काँपी,
यहाँ की मिट्टी ने सुनाई कहानी,
शौर्य की, जो अमर हो गई।

नेपाल नहीं सिर्फ एक देश,
यह तो स्वतंत्रता की मिसाल है,
जहाँ हर दिल में बसी है वो बात —
कभी न झुकने का जज़्बा, कभी न हार मानने का हाल है।
"कभी न झुका नेपाल – गोरखों की गाथा"

✍️ राजु कुमार चौधरी द्वारा

> हिमगिरी के आँचल में बसा,
एक देश है बलिदानों का।
न किसी ने जंजीर पहनाई,
न कोई शिकारी बना शिकार का।

ये वो भूमि है वीरों की,
जहाँ गोरखा पैदा होता है।
तलवार नहीं, गर्जना से ही
दुश्मन का दिल रोता है।

ब्रिटिश आए घोड़े लेकर,
सोचा था जीत लेंगे सब कुछ।
पर नेपाल की माटी ने बोला —
"यहाँ लड़ाई होती है सच्ची, न साजिशवाली साजिश!"

सुगौली की स्याही से,
नक्शे में कुछ धब्बे आए।
पर आज़ादी की आत्मा
फिर भी न झुकी, न मिट पाई।

न ताज गया, न राज गया,
न खुद्दारी की बात गई।
गोरखा बोला —
“मातृभूमि के लिए तो जान भी सौगात है भाई!”

न कभी मुग़ल, न तैमूर आया,
न ब्रिटिश बन सका मालिक।
ये नेपाल है —
यहाँ हर बच्चा भी जन्म से स्वतंत्र सैनिक।




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> 🌄 नेपाल कोई देश नहीं, एक प्रेरणा है।
🌪️ यहाँ न गुलामी आई, न आज़ादी गई।
🚩 क्योंकि यहाँ के लोग लड़ना नहीं, मरना जानते हैं — पर झुकना नहीं।

🇳🇵 "गोरखा का खून – नेपाल की आज़ादी की कहानी"

✍️ लेखन: राजु कुमार चौधरी

भाग 1: हिमालय के साए में जन्मा एक स्वाभिमान

सन 1814 —
हिमालय की गोद में बसा एक छोटा, लेकिन स्वाभिमानी देश — नेपाल।

यहाँ के लोग खेत में किसान, और युद्ध में शेर होते थे।
हर बच्चा जब जन्म लेता, माँ कहती —

> "बेटा, ज़िंदा रहो तो देश के लिए… और मरो, तो भी देश के लिए!"



इस कहानी का नायक — वीर बहादुर सिंह — गोरखा सैनिक।
उसकी आँखों में आग थी, सीने में देशभक्ति, और हाथ में तलवार।
उसका सपना था — नेपाल को किसी का गुलाम नहीं बनने देना।


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भाग 2: अंग्रेज़ी चाल और गोरखा की ढाल

ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने चारों तरफ साम्राज्य फैला रखा था।
भारत, बर्मा, श्रीलंका — सब उनकी मुट्ठी में थे।

पर जब उन्होंने नेपाल की तरफ देखा —
उन्हें लगा, “ये तो छोटा सा पहाड़ी देश है, इसे तो एक हफ्ते में झुका देंगे।”

गलती कर बैठे साहब लोग!

गोरखा सैनिकों ने कहा —

> “तुम बंदूक लाओ, हम हिम्मत लाएंगे।
तुम बारूद लाओ, हम भरपूर जज़्बा लाएंगे!”




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भाग 3: गोरखा युद्ध – जब ज़मीन हिली और इतिहास चिल्लाया

1814 में अंग्रेज़ों ने हमला किया।
लेकिन पहाड़ों की घाटियों से आवाज़ आई —

> “यहाँ हर पत्थर भी दुश्मन के लिए गोली बन जाएगा!”



वीर बहादुर सिंह ने अपनी छोटी सी टुकड़ी के साथ अंग्रेज़ों की फौज को रोक लिया।
कुरसे की पहाड़ी लड़ाई में अंग्रेज़ जनरल गिलेस्पी मारा गया —
ब्रिटिश अखबारों ने लिखा:

> “गोरखा सैनिक नहीं, बवंडर हैं!”




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भाग 4: संधि, लेकिन समर्पण नहीं

दो साल की लड़ाई के बाद, अंग्रेज़ थक गए।
उन्होंने सुगौली संधि की पेशकश की।

कुछ ज़मीन गई — हाँ,
लेकिन नेपाल की आज़ादी बची रही।

राजा ने कहा:

> "हम ज़मीन खो सकते हैं, पर आत्मसम्मान नहीं।
गुलामी का एक इंच भी हमें मंज़ूर नहीं!"




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भाग 5: आज़ादी की मिसाल – आज का नेपाल

आज भी, जब कोई बच्चा नेपाल में पैदा होता है,
उसकी नसों में गोरखा का खून दौड़ता है।

वीर बहादुर सिंह की गाथा आज स्कूलों में पढ़ाई नहीं जाती —
क्योंकि वो किताबों में नहीं, लोगों की रगों में ज़िंदा है।

और अंग्रेज़?
उन्होंने बाद में गोरखा सैनिकों को अपनी सेना में भर्ती करना शुरू कर दिया,
क्योंकि जो जीत न सके — उसे साथ रखना ही बेहतर समझा।


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🎯 सीख क्या है?

> "जिस देश में हिमालय है और दिलों में आग है —
उसे कभी कोई गुलाम नहीं बना सकता।"
📚 राजु कुमार चौधरी
✍️ लेखक | कवि | कहानीकार
📍प्रसौनी, पर्सा, नेपाल

"हर शब्द में जादू, हर कहानी में रहस्य"
यहाँ आपको मिलेंगी —
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🔥 राजु कुमार चौधरी — कलम से किस्मत बदलने वाला एक नाम ✍️
📍 प्रसौनी, पर्सा (नेपाल) से निकली आवाज, जो दिलों तक पहुँचती है।

यहाँ सिर्फ कहानी नहीं मिलती – यहाँ मिलती है रूह की आवाज़, दिल की धड़कन, और सपनों की दुनिया।

🌙 क्या आपने कभी भूत से बात की है?
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👉 यहाँ मिलेंगी:
🔮 जादुई कहानियाँ
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🕯️ संघर्ष की चिंगारी से जलती उम्मीदें
🧩 रहस्य, रोमांच और रूहानी सफर


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श्रापित राजा की कथा – “वानर विवाह”

भाग 1: जंगल की गलती
बहुत समय पहले की बात है।
एक प्रतापी राजा शिकार के लिए जंगल गया था। वहाँ उसने अनजाने में एक तपस्वी की गहरी साधना में विघ्न डाल दिया।
तपस्वी ने आँखें खोलीं, गुस्से से लाल हुए और बोले –
"हे मूर्ख राजा! तूने मेरी तपस्या भंग की है। अब तुझे श्राप देता हूँ – तू वानर (बाँदर) बन जाएगा!"

राजा तुुरंत ही एक वानर में बदल गया।

राजा गिड़गिड़ाया:
"मुझे माफ कीजिए, मुनिवर! मुझसे भूल हुई है।"

तपस्वी थोड़ा शांत हुए और बोले –
"इस श्राप से तुझे मुक्ति तब मिलेगी, जब तू एक सुंदर कन्या से विवाह करेगा और एक बालक उत्पन्न होगा। लेकिन याद रखना, वह बालक भी वानर ही होगा!"


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भाग 2: अप्सरा जैसी कन्या
वर्षों बीत गए। राजा अब जंगल में ही रहता, लेकिन उसके मन में अब भी मानवता थी।

एक दिन, वर्षा के मौसम में, एक सुंदर युवती – जो किसी अप्सरा से कम न लगती थी – जंगल में भटकती हुई वहाँ पहुँची। उसका नाम था अनुप्रिया। वह एक साध्वी थी, पर नियति उसे वहाँ खींच लाई थी।

राजा जो अब बाँदर बन चुका था, लेकिन उसमें अब भी राजा का भाव था — उसने अनुप्रिया की रक्षा की, सेवा की। धीरे-धीरे अनुप्रिया को उस वानर में कुछ खास दिखने लगा।

एक रात:
एक सपना आया — जिसमें स्वयं देवताओं ने अनुप्रिया को कहा,
"यह वानर कोई साधारण जीव नहीं, एक श्रापित राजा है। विवाह से उसका उद्धार हो सकता है।"

अनुप्रिया ने उसकी सच्चाई जान ली और विवाह स्वीकार किया।


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भाग 3: वानर पुत्र और शेष यात्रा
विवाह के एक वर्ष बाद, एक पुत्र उत्पन्न हुआ – लेकिन वह भी वानर था।
अनुप्रिया दुखी थी — वह सोचती थी कि अब क्या यह भी श्रापित रहेगा?

राजा (वानर) ने कहा,
"यह श्राप का भाग है, पर जैसे जैसे समय गुज़रेगा, सत्य प्रकट होगा।"

12 साल की आयु में, जब पुत्र का नामकरण संस्कार हुआ — तभी आकाश से एक दिव्य प्रकाश उतरा।
तपस्वी फिर से प्रकट हुए।
"राजा, तेरा श्राप अब समाप्त हुआ। तू अब मानव रूप में लौट सकता है।"

राजा फिर से अपने वास्तविक रूप में लौट आया। और उसका पुत्र भी एक सुंदर, तेजस्वी बालक बन गया।


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अंतिम भाग: नया युग

राजा, अनुप्रिया और उनका पुत्र फिर से अपने राज्य लौटे।
लोगों ने उनकी कहानी सुनी और उन्हें "वानर-राज" की उपाधि दी।

कहानी का संदेश:

> जो श्राप होता है, उसमें भी भविष्य की कोई छुपी योजना होती है। प्रेम, धैर्य और विश्वास से हर शाप भी वरदान बन सकता है।

📚 राजु कुमार चौधरी
✍️ लेखक | कवि | कहानीकार
📍प्रसौनी, पर्सा, नेपाल

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📚✨ "वो पहली बारिश – भाग 10: उसकी अपनी कहानी"

(जब सिया ने खुद अपनी कलम उठाई… और इश्क़ को नया नाम दिया)


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🪔 बीते कुछ महीने...

आरव ने खुद को पीछे कर लिया —
अब वो सिर्फ घर संभाल रहा है,
कभी अरण्या के बाल बाँधता है, कभी खाना बनाता है।
और सिया?
अब वो लिख रही है। दिन-रात।


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📝 सिया की किताब: “मैं सिर्फ उसकी नहीं हूँ”

> ये कहानी एक ऐसी लड़की की है जिसे सबने "किसी की" बनाकर देखा —
लेकिन वो खुद को "अपनी" बनाना चाहती थी।



प्रकाशक ने जब पढ़ी तो कहा —
"मैम, ये सिर्फ किताब नहीं — आंदोलन है!"


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🎉 बुक लॉन्च डे

बड़ी स्टेज, मीडिया, रौशनी...
सिया, साड़ी में, आत्मविश्वास से भरी।

लोग सवाल कर रहे हैं —
“ये कहानी आपकी है?”
वो मुस्कराकर कहती है —
"हाँ, मेरी है।
लेकिन इसमें सिर्फ मैं नहीं — वो भी है जो हर मोड़ पर मेरे साथ खड़ा रहा,
बिना इस उम्मीद के कि मैं उसे हमेशा शुक्रिया कहूँ..."

और तभी, पीछे से एक आवाज़ आती है:
"अब तो शुक्रिया कह ही दो..." 😉
(आरव मंच पर आता है, अरण्या के साथ। तालियाँ बज उठती हैं।)


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🎥 क्लाइमेक्स सीन:

बारिश फिर से हो रही है...
लेकिन इस बार सिया छाते के नीचे खड़ी है,
आरव भी है, और अरण्या छाते के बाहर, बारिश में नाच रही है।

सिया कहती है —
“अब मेरी कहानी पूरी हो गई।”

आरव जवाब देता है —
“नहीं... अब दूसरी बारिश शुरू हो रही है।”
वो पहली बारिश – भाग 2: फिर वही बरसात

5 साल बाद...
आरव अब एक मशहूर लेखक बन चुका है। उसकी हर किताब में एक लड़की का नाम होता है — "सिया"
लेकिन वो किसी को बताता नहीं कि सिया असल में कोई थी, या सिर्फ उसकी कल्पना।

फिर एक दिन...
दिल्ली के बुक फेयर में आरव की किताब "बारिश की आखिरी चिट्ठी" लॉन्च हो रही थी।
स्टेज पर उसकी आँखें भीड़ में किसी को तलाश रही थीं।
और तभी... एक जानी-पहचानी खुशबू हवा में घुली।
वो पलटा —
सामने सिया खड़ी थी, साड़ी में, आँखों में पुरानी चमक लिए।

आरव कुछ कहता उससे पहले ही, सिया मुस्करा दी —
"तुम्हारी किताबों ने मुझे यहाँ तक खींच लाया।"


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आरव (धीरे से):
"शादी हो गई?"

सिया (हलक़ी सी हँसी के साथ):
"हाँ... लेकिन रिश्ते शादी से नहीं, समझ से चलते हैं। और कुछ रिश्ते... समझ से परे होते हैं।"


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दोनों पास के कैफ़े में बैठते हैं।
चाय ठंडी होती जाती है, पर बातों की गर्माहट वैसी ही है।

सिया कहती है:
"मैं अपने पति से अलग रह रही हूँ। सिर्फ़ इसलिए नहीं कि वो गलत था,
बल्कि इसलिए क्योंकि मैंने किसी और को अब तक दिल से निकाला नहीं।"

आरव आँखें झुका कर बोलता है:
"काश मैंने उस दिन बारिश में तुम्हें रोक लिया होता..."

सिया मुस्कराकर जवाब देती है:
"काश तुमने उस चिट्ठी का जवाब दिया होता।
❤️‍🔥 "वो पहली बारिश – भाग 6: एक नई सुबह" ☀️🌧️

पिछली बारिश के बाद...
सिया और आरव फिर एक-दूजे के करीब आ चुके थे।
लेकिन मोहब्बत जब सालों के इंतज़ार के बाद मिलती है,
तो सवाल सिर्फ “प्यार” का नहीं होता —
साथ निभाने का, घर बसाने का, दुनिया को जवाब देने का होता है।


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नई शुरुआत...

आरव अब चाहता है कि सिया उसके साथ ज़िंदगी की किताब लिखे —
सिर्फ पन्नों में नहीं, असल ज़िंदगी में।

आरव:
“चलो एक नया शहर बसाते हैं… जहाँ कोई हमारा अतीत नहीं पूछेगा।”

सिया:
“और अगर मैं कहूँ कि मैं अपने पुराने शहर में, अपने पुराने रिश्तों के बीच तुम्हें स्वीकार करना चाहती हूँ?”


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⚔️ सामाजिक टकराव...

सिया के परिवार को अब सच्चाई मालूम चल चुकी थी।
और शुरू हुआ सवालों का तूफ़ान:

“जिस आदमी से तलाक हुआ, उसकी जगह किसी पुराने आशिक़ को लाई हो?”

“किताबों वाला लड़का अब क्या घर चलाएगा?”

“प्यार से पेट भरता है क्या?”


लेकिन इस बार... सिया चुप नहीं रही।

सिया (डटकर):
“हाँ, प्यार से पेट नहीं भरता —
लेकिन जिस आदमी ने मुझे अपनी किताबों में ज़िंदा रखा,
उससे बेहतर साथी मुझे पूरी दुनिया में नहीं मिल सकता।”


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💍 फैसला...

आरव और सिया ने एक छोटा सा रजिस्टर मैरिज किया।
कोई बैंड-बाजा नहीं, कोई शोर नहीं —
बस गवाह बनी वो डायरी…
जिसमें इश्क़ लिखा गया था, आँसूओं और उम्मीदों की स्याही से।


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🌄 अंतिम दृश्य:

दोनों एक छोटे से घर की बालकनी में बैठकर चाय पी रहे हैं।
बारिश फिर से शुरू होती है।
आरव मुस्कराकर कहता है:
“अब डर नहीं लगता बारिश से...”

सिया:
“क्यों?”
आरव:
“क्योंकि अब भीगने के लिए तुम्हारा कंधा है।”


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✨ *"कुछ कहानियाँ अधूरी रहकर याद बनती हैं...

और कुछ पूरी होकर इतिहास..."*
“वो पहली बारिश” अब इतिहास बन चुकी है। 📖❤
वो पहली बारिश

(एक भावुक प्रेम कथा)

पात्र:

आरव — एक शांत, किताबों में डूबा रहने वाला लड़का।

सिया — बेबाक, मुस्कराहट में जादू बिखेरने वाली लड़की।



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कहानी शुरू होती है...
कॉलेज का पहला दिन था। आरव क्लास के सबसे आखिरी बेंच पर बैठा था, और सिया दरवाज़ा खोलते ही मानो पूरी क्लास की रौशनी बन गई।
उसके गीले बालों से टपकती बारिश की बूँदें, और हाथ में भीगा हुआ उपन्यास देखकर आरव ने पहली बार किसी लड़की को "कहानी के पन्नों जैसा खूबसूरत" पाया।

दोनो की दोस्ती हुई... धीरे-धीरे किताबों के आदान-प्रदान से दिलों का लेन-देन शुरू हो गया।


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एक दिन की बात है...
बारिश हो रही थी। कॉलेज कैंपस में सब भाग रहे थे, लेकिन आरव और सिया पेड़ के नीचे खड़े थे।

सिया ने कहा,
"तुम हमेशा चुप क्यों रहते हो?"

आरव मुस्कराया,
"क्योंकि तुम बोलती हो, और मैं सुनना पसंद करता हूँ।"

उस दिन आरव की आँखों में कुछ ऐसा था जो सिया समझ गई — इश्क़ लफ़्ज़ों का मोहताज नहीं होता।


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फिर आया इम्तहान का मौसम... और जुदाई की हवा।
कॉलेज खत्म हुआ, सिया को शहर छोड़ना पड़ा।
विदा के दिन उसने आरव को एक चिट्ठी दी:

> "अगर कभी बारिश में अकेले भीग रहे हो और मेरी हँसी की गूंज सुनाई दे, तो समझ लेना — मैं कहीं पास ही हूँ।"



आरव आज भी हर बारिश में बिना छाते के निकलता है।
कभी भीगते हुए मुस्कराता है,
कभी आसमान की ओर देखकर कहता है —
"तुम अब भी मेरी किताब की सबसे प्यारी कविता हो, सिया..." 🌧️📖❤
"तुम्हारी मुस्कान तो जैसे मेरे दिल की धड़कन बन गई है,
तुम हो तो हर दिन एक नयी कहानी लगती है।
नज़रों से नहीं, दिल से चाहता हूँ तुम्हें —
क्योंकि वहाँ तुम रोज़ मुस्कराती हो। ❤️🌸

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🔥 राजु कुमार चौधरी — कलम से किस्मत बदलने वाला एक नाम ✍️
📍 प्रसौनी, पर्सा (नेपाल) से निकली आवाज, जो दिलों तक पहुँचती है।

यहाँ सिर्फ कहानी नहीं मिलती – यहाँ मिलती है रूह की आवाज़, दिल की धड़कन, और सपनों की दुनिया।

🌙 क्या आपने कभी भूत से बात की है?
❤️ क्या आपको भी मोहब्बत ने रुलाया है?
💔 क्या जिंदगी की ठोकरों से लड़ने की ताकत चाहिए?

तो जनाब, आप सही जगह पर हैं!

👉 यहाँ मिलेंगी:
🔮 जादुई कहानियाँ
💘 टूटे दिलों की मोहब्बत
🕯️ संघर्ष की चिंगारी से जलती उम्मीदें
🧩 रहस्य, रोमांच और रूहानी सफर


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🎯 हर कहानी एक नया अनुभव, हर पंक्ति एक नई दुनिया।
📢 Follow करिए और शब्दों की इस अद्भुत यात्रा में साथी बनिए।
क्योंकि – "यहाँ कहानियाँ नहीं, ज़िंदगियाँ जीती जाती हैं..." 🌟

📬 आपका साथ ही मेरी सबसे बड़ी प्रेरणा है।
श्रापित राजा की कथा – “वानर विवाह”

भाग 1: जंगल की गलती
बहुत समय पहले की बात है।
एक प्रतापी राजा शिकार के लिए जंगल गया था। वहाँ उसने अनजाने में एक तपस्वी की गहरी साधना में विघ्न डाल दिया।
तपस्वी ने आँखें खोलीं, गुस्से से लाल हुए और बोले –
"हे मूर्ख राजा! तूने मेरी तपस्या भंग की है। अब तुझे श्राप देता हूँ – तू वानर (बाँदर) बन जाएगा!"

राजा तुुरंत ही एक वानर में बदल गया।

राजा गिड़गिड़ाया:
"मुझे माफ कीजिए, मुनिवर! मुझसे भूल हुई है।"

तपस्वी थोड़ा शांत हुए और बोले –
"इस श्राप से तुझे मुक्ति तब मिलेगी, जब तू एक सुंदर कन्या से विवाह करेगा और एक बालक उत्पन्न होगा। लेकिन याद रखना, वह बालक भी वानर ही होगा!"


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भाग 2: अप्सरा जैसी कन्या
वर्षों बीत गए। राजा अब जंगल में ही रहता, लेकिन उसके मन में अब भी मानवता थी।

एक दिन, वर्षा के मौसम में, एक सुंदर युवती – जो किसी अप्सरा से कम न लगती थी – जंगल में भटकती हुई वहाँ पहुँची। उसका नाम था अनुप्रिया। वह एक साध्वी थी, पर नियति उसे वहाँ खींच लाई थी।

राजा जो अब बाँदर बन चुका था, लेकिन उसमें अब भी राजा का भाव था — उसने अनुप्रिया की रक्षा की, सेवा की। धीरे-धीरे अनुप्रिया को उस वानर में कुछ खास दिखने लगा।

एक रात:
एक सपना आया — जिसमें स्वयं देवताओं ने अनुप्रिया को कहा,
"यह वानर कोई साधारण जीव नहीं, एक श्रापित राजा है। विवाह से उसका उद्धार हो सकता है।"

अनुप्रिया ने उसकी सच्चाई जान ली और विवाह स्वीकार किया।


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भाग 3: वानर पुत्र और शेष यात्रा
विवाह के एक वर्ष बाद, एक पुत्र उत्पन्न हुआ – लेकिन वह भी वानर था।
अनुप्रिया दुखी थी — वह सोचती थी कि अब क्या यह भी श्रापित रहेगा?

राजा (वानर) ने कहा,
"यह श्राप का भाग है, पर जैसे जैसे समय गुज़रेगा, सत्य प्रकट होगा।"

12 साल की आयु में, जब पुत्र का नामकरण संस्कार हुआ — तभी आकाश से एक दिव्य प्रकाश उतरा।
तपस्वी फिर से प्रकट हुए।
"राजा, तेरा श्राप अब समाप्त हुआ। तू अब मानव रूप में लौट सकता है।"

राजा फिर से अपने वास्तविक रूप में लौट आया। और उसका पुत्र भी एक सुंदर, तेजस्वी बालक बन गया।


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अंतिम भाग: नया युग

राजा, अनुप्रिया और उनका पुत्र फिर से अपने राज्य लौटे।
लोगों ने उनकी कहानी सुनी और उन्हें "वानर-राज" की उपाधि दी।

कहानी का संदेश:

> जो श्राप होता है, उसमें भी भविष्य की कोई छुपी योजना होती है। प्रेम, धैर्य और विश्वास से हर शाप भी वरदान बन सकता है।

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श्रापित राजा की कथा – “वानर विवाह”

भाग 1: जंगल की गलती
बहुत समय पहले की बात है।
एक प्रतापी राजा शिकार के लिए जंगल गया था। वहाँ उसने अनजाने में एक तपस्वी की गहरी साधना में विघ्न डाल दिया।
तपस्वी ने आँखें खोलीं, गुस्से से लाल हुए और बोले –
"हे मूर्ख राजा! तूने मेरी तपस्या भंग की है। अब तुझे श्राप देता हूँ – तू वानर (बाँदर) बन जाएगा!"

राजा तुुरंत ही एक वानर में बदल गया।

राजा गिड़गिड़ाया:
"मुझे माफ कीजिए, मुनिवर! मुझसे भूल हुई है।"

तपस्वी थोड़ा शांत हुए और बोले –
"इस श्राप से तुझे मुक्ति तब मिलेगी, जब तू एक सुंदर कन्या से विवाह करेगा और एक बालक उत्पन्न होगा। लेकिन याद रखना, वह बालक भी वानर ही होगा!"


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भाग 2: अप्सरा जैसी कन्या
वर्षों बीत गए। राजा अब जंगल में ही रहता, लेकिन उसके मन में अब भी मानवता थी।

एक दिन, वर्षा के मौसम में, एक सुंदर युवती – जो किसी अप्सरा से कम न लगती थी – जंगल में भटकती हुई वहाँ पहुँची। उसका नाम था अनुप्रिया। वह एक साध्वी थी, पर नियति उसे वहाँ खींच लाई थी।

राजा जो अब बाँदर बन चुका था, लेकिन उसमें अब भी राजा का भाव था — उसने अनुप्रिया की रक्षा की, सेवा की। धीरे-धीरे अनुप्रिया को उस वानर में कुछ खास दिखने लगा।

एक रात:
एक सपना आया — जिसमें स्वयं देवताओं ने अनुप्रिया को कहा,
"यह वानर कोई साधारण जीव नहीं, एक श्रापित राजा है। विवाह से उसका उद्धार हो सकता है।"

अनुप्रिया ने उसकी सच्चाई जान ली और विवाह स्वीकार किया।


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भाग 3: वानर पुत्र और शेष यात्रा
विवाह के एक वर्ष बाद, एक पुत्र उत्पन्न हुआ – लेकिन वह भी वानर था।
अनुप्रिया दुखी थी — वह सोचती थी कि अब क्या यह भी श्रापित रहेगा?

राजा (वानर) ने कहा,
"यह श्राप का भाग है, पर जैसे जैसे समय गुज़रेगा, सत्य प्रकट होगा।"

12 साल की आयु में, जब पुत्र का नामकरण संस्कार हुआ — तभी आकाश से एक दिव्य प्रकाश उतरा।
तपस्वी फिर से प्रकट हुए।
"राजा, तेरा श्राप अब समाप्त हुआ। तू अब मानव रूप में लौट सकता है।"

राजा फिर से अपने वास्तविक रूप में लौट आया। और उसका पुत्र भी एक सुंदर, तेजस्वी बालक बन गया।


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अंतिम भाग: नया युग

राजा, अनुप्रिया और उनका पुत्र फिर से अपने राज्य लौटे।
लोगों ने उनकी कहानी सुनी और उन्हें "वानर-राज" की उपाधि दी।

कहानी का संदेश:

> जो श्राप होता है, उसमें भी भविष्य की कोई छुपी योजना होती है। प्रेम, धैर्य और विश्वास से हर शाप भी वरदान बन सकता है।

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📚✨ "वो पहली बारिश – भाग 10: उसकी अपनी कहानी"

(जब सिया ने खुद अपनी कलम उठाई… और इश्क़ को नया नाम दिया)


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🪔 बीते कुछ महीने...

आरव ने खुद को पीछे कर लिया —
अब वो सिर्फ घर संभाल रहा है,
कभी अरण्या के बाल बाँधता है, कभी खाना बनाता है।
और सिया?
अब वो लिख रही है। दिन-रात।


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📝 सिया की किताब: “मैं सिर्फ उसकी नहीं हूँ”

> ये कहानी एक ऐसी लड़की की है जिसे सबने "किसी की" बनाकर देखा —
लेकिन वो खुद को "अपनी" बनाना चाहती थी।



प्रकाशक ने जब पढ़ी तो कहा —
"मैम, ये सिर्फ किताब नहीं — आंदोलन है!"


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🎉 बुक लॉन्च डे

बड़ी स्टेज, मीडिया, रौशनी...
सिया, साड़ी में, आत्मविश्वास से भरी।

लोग सवाल कर रहे हैं —
“ये कहानी आपकी है?”
वो मुस्कराकर कहती है —
"हाँ, मेरी है।
लेकिन इसमें सिर्फ मैं नहीं — वो भी है जो हर मोड़ पर मेरे साथ खड़ा रहा,
बिना इस उम्मीद के कि मैं उसे हमेशा शुक्रिया कहूँ..."

और तभी, पीछे से एक आवाज़ आती है:
"अब तो शुक्रिया कह ही दो..." 😉
(आरव मंच पर आता है, अरण्या के साथ। तालियाँ बज उठती हैं।)


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🎥 क्लाइमेक्स सीन:

बारिश फिर से हो रही है...
लेकिन इस बार सिया छाते के नीचे खड़ी है,
आरव भी है, और अरण्या छाते के बाहर, बारिश में नाच रही है।

सिया कहती है —
“अब मेरी कहानी पूरी हो गई।”

आरव जवाब देता है —
“नहीं... अब दूसरी बारिश शुरू हो रही है।”

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🧡 भाग 1: "एक डील, दो दिल"

परिचय:
आरव मल्होत्रा – बिजनेस किंग, पर दिल से तन्हा।
जानवी शर्मा – मजबूरी में झुकी, लेकिन हिम्मती।
दोनों मिलते हैं एक कॉन्ट्रैक्ट मैरिज के लिए।
एक शादी, जिसमें न प्यार है न उम्मीद।
लेकिन... शर्तें लिखी गईं कागज़ पर, दिल पर नहीं।

➡️ अंत में:
आरव के दादी की आँखों में खुशी, पर आरव के दिल में खालीपन।
जानवी अपने दर्द को छुपाकर मुस्कुराती है।
और तभी... आरव कहता है —
"नाम की बीवी हो, मगर आँखों में झूठ मत दिखाना..."
💫 "सपनों के उस पार" – एक अदभूत प्रेम कहानी

स्थान: वाराणसी की संकरी गलियां
पात्र:

विवेक: एक शांत, पुरानी किताबों का शौकीन युवक

अन्वी: तेज-तर्रार, कैमरे की दीवानी, ट्रैवल व्लॉगर



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🔮 पहली मुलाकात – किताबों की दुकान में!
वाराणसी की एक पुरानी किताबों की दुकान में, विवेक अपनी पसंदीदा किताब "प्रेमचंद की कहानियाँ" पलट रहा था। तभी बाहर बारिश शुरू हुई, और अन्वी अंदर भागती आई — बिल्कुल भीग चुकी, लेकिन आंखों में चमक थी।

विवेक ने एक पुराना छाता आगे बढ़ाया।
अन्वी मुस्कराई – "छाता दो या कहानी?"
विवेक बोला – "दोनों अगर चाहो तो किस्तों में मिल जाएँगी।"


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📸 धीरे-धीरे शुरू हुआ वो अनोखा रिश्ता...
अन्वी उसे शहर की ताज़गी दिखाती, विवेक उसे पुराने घाटों की कहानी सुनाता।
अन्वी ज़िंदगी को तेज़ रफ्तार में जीती थी, विवेक वक़्त के साथ बहना जानता था।

फर्क़ बहुत थे, लेकिन दिलों की धड़कनें धीरे-धीरे एक सी हो गईं।


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💔 लेकिन कहानी में आया ट्विस्ट...
अन्वी को पेरिस से ड्रीम प्रोजेक्ट का ऑफर आया।
विवेक कभी वाराणसी से बाहर नहीं गया था।
दोनों की दुनिया अलग थी — एक तेज़ उड़ान, एक ठहरी हुई आत्मा।

वो दोनों दशाश्वमेध घाट पर मिले।
अन्वी बोली: "चलोगे मेरे साथ?"
विवेक मुस्कराया: "मैं नहीं चल सकता, पर तुम उड़ो। और अगर हमारी कहानी सच्ची है — तुम लौटोगी।"


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🕰️ 2 साल बाद...
घाट पर फिर वही बारिश, वही छाता...
विवेक उसी दुकान में बैठा था, किताब पढ़ते हुए।

पीछे से आवाज आई –
"छाता अब भी साथ है?"
विवेक ने देखा – अन्वी सामने खड़ी थी, कैमरा हाथ में, लेकिन आँखें सिर्फ उसे देख रही थीं।

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🧡 भाग 1: "एक डील, दो दिल"

परिचय:
आरव मल्होत्रा – बिजनेस किंग, पर दिल से तन्हा।
जानवी शर्मा – मजबूरी में झुकी, लेकिन हिम्मती।
दोनों मिलते हैं एक कॉन्ट्रैक्ट मैरिज के लिए।
एक शादी, जिसमें न प्यार है न उम्मीद।
लेकिन... शर्तें लिखी गईं कागज़ पर, दिल पर नहीं।

➡️ अंत में:
आरव के दादी की आँखों में खुशी, पर आरव के दिल में खालीपन।
जानवी अपने दर्द को छुपाकर मुस्कुराती है।
और तभी... आरव कहता है —
"नाम की बीवी हो, मगर आँखों में झूठ मत दिखाना..."

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🌟 "सपनों के उस पार - एक अदभुत प्रेम कहानी" 🌟
एक ऐसा प्रेम... जो समय और हकीकत के बंधनों को तोड़ देता है।
जिसे पढ़कर आपका दिल भी कहेगा — "काश ये मेरी कहानी होती..." ❤️

📖 पढ़ें इस रोमांचक और भावनात्मक प्रेम गाथा को 👉
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🔊 भारतीय भाषाओं में हजारों कहानियाँ पढ़ें, लिखें और सुनें — बिलकुल मुफ़्त!
💫 "सपनों के उस पार" – एक अदभूत प्रेम कहानी

स्थान: वाराणसी की संकरी गलियां
पात्र:

विवेक: एक शांत, पुरानी किताबों का शौकीन युवक

अन्वी: तेज-तर्रार, कैमरे की दीवानी, ट्रैवल व्लॉगर



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🔮 पहली मुलाकात – किताबों की दुकान में!
वाराणसी की एक पुरानी किताबों की दुकान में, विवेक अपनी पसंदीदा किताब "प्रेमचंद की कहानियाँ" पलट रहा था। तभी बाहर बारिश शुरू हुई, और अन्वी अंदर भागती आई — बिल्कुल भीग चुकी, लेकिन आंखों में चमक थी।

विवेक ने एक पुराना छाता आगे बढ़ाया।
अन्वी मुस्कराई – "छाता दो या कहानी?"
विवेक बोला – "दोनों अगर चाहो तो किस्तों में मिल जाएँगी।"


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📸 धीरे-धीरे शुरू हुआ वो अनोखा रिश्ता...
अन्वी उसे शहर की ताज़गी दिखाती, विवेक उसे पुराने घाटों की कहानी सुनाता।
अन्वी ज़िंदगी को तेज़ रफ्तार में जीती थी, विवेक वक़्त के साथ बहना जानता था।

फर्क़ बहुत थे, लेकिन दिलों की धड़कनें धीरे-धीरे एक सी हो गईं।


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💔 लेकिन कहानी में आया ट्विस्ट...
अन्वी को पेरिस से ड्रीम प्रोजेक्ट का ऑफर आया।
विवेक कभी वाराणसी से बाहर नहीं गया था।
दोनों की दुनिया अलग थी — एक तेज़ उड़ान, एक ठहरी हुई आत्मा।

वो दोनों दशाश्वमेध घाट पर मिले।
अन्वी बोली: "चलोगे मेरे साथ?"
विवेक मुस्कराया: "मैं नहीं चल सकता, पर तुम उड़ो। और अगर हमारी कहानी सच्ची है — तुम लौटोगी।"


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🕰️ 2 साल बाद...
घाट पर फिर वही बारिश, वही छाता...
विवेक उसी दुकान में बैठा था, किताब पढ़ते हुए।

पीछे से आवाज आई –
"छाता अब भी साथ है?"
विवेक ने देखा – अन्वी सामने खड़ी थी, कैमरा हाथ में, लेकिन आँखें सिर्फ उसे देख रही थीं।

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🖋️ अनूठी दाँस्ता – एक अद्वितीय कथा

एक यस्तो गाउँ, जहाँ मान्छेहरू भाग्यभन्दा बढी श्रममा विश्वास गर्थे। त्यही गाउँमा जन्मिएको थियो अर्जुन, जो जन्मजात दृष्टिविहीन थियो। तर उसको मनमा थियो एउटा सपना – "संगीत मार्फत संसारलाई देखाउने"।

सबैले उसलाई हँस्याए, भने – "अँधा के गाउने?"
तर ऊ भन्दै रह्यो – "शब्द मेरा आँखाहरू हुन्, र स्वर मेरो दृष्टि।"

एक दिन, गाउँमा आयो संगीत प्रतियोगिता। अर्जुनले भाग लियो।
सुनुवाइका दिन, सबै चुपचाप – अनि जब उसले गाउन थाल्यो, पुरै गाउँ स्तब्ध भयो।
उसको आवाजले भावनालाई छुयो, उसको गीतले आत्मालाई रुवायो।

अन्त्यमा, अर्जुन बन्यो त्यो प्रतियोगिताको विजेता – अनि उसकी दाँस्ता बन्यो "अनूठी दाँस्ता", जसले संसारलाई देखायो कि जुनसुकै कमजोरीलाई पनि कला र आत्मबलले शक्तिमा बद्लन सकिन्छ।

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