हिन्दी हिन्दुस्तान के.....
(14 सितम्बर हिन्दी दिवस पर दोहे)
हिन्दी हिन्दुस्तान के, दिल पर करती राज।
आजादी के वक्त भी, यही रही सरताज।।
संस्कारों में है पली, इसकी हर मुस्कान।
संस्कृति की रक्षक रही, भारत की पहचान।।
स्वर शब्दों औ व्यंजनों, का अनुपम भंडार।
वैज्ञानिक लिपि भी यही, कहता है संसार।।
भावों की अभिव्यक्ति में, है यह चतुर सुजान।
करते हैं सब वंदना, भाषा विद् विद्वान ।।
देव नागरी लिपि संग, बना हुआ गठजोड़।
स्वर शब्दों की तालिका, में सबसे बेजोड़।।
संस्कृत की यह लाड़ली, हर घर में सत्कार।
प्रीति लगाकर खो गए, हर कवि रचनाकार ।।
तुलसी सबको दे गए, मानस का उपहार।
सूरदास रसखान ने, किया बड़ा उपकार ।।
जगनिक ने आल्हा रची, वीरों का यशगान।
मीरा संत कबीर ने, गाए प्रभु गुण गान।।
मलिक मोहम्मद जायसी, रहिमन औ हरिदास।
इनको जीवन में सदा, आई हिन्दी रास।।
सेवा की साहित्य की, हिन्दी बनी है खास।
श्री विद्यापति पद्माकर , भूषण केशवदास।।
चंदवरदायी खुसरो, पंत निराला नूर।
जयशँकर भारतेन्दु जी, है हिन्दी के शूर।।
दिनकर मैथिलिशरण जी, सुभद्रा, माखन लाल।
गुरूनानक रैदास जी, इनने किया धमाल।।
सेनापति, बिहारी हुए, बना गये इतिहास।
हिन्दी का दीपक जला, बिखरा गये उजास।।
महावीर महादेवि जी, हिन्दी युग अवतार।
कितने साधक हैं रहे, गिनती नहीं अपार ।।
हेय भाव से देखते, जो थे सत्ताधीश।
वही आज पछता रहे, नवा रहे हैं शीश ।।
अटल बिहारी ने किया, हिन्दी का यशगान।
वही पताका ले चले, मोदी सीना तान।।
हिन्दी का वंदन किया, मोदी उड़े विदेश।
सुनने को आतुर रहा, विश्व जगत परिवेश।।
ओजस्वी भाषण सुना, सबको दे दी मात।
सुना दिया हर देश में, मानव हित की बात ।।
विश्व क्षितिज में छा गयी, हिन्दी भाषा आज।
भारत ने है रख दिया, उसके सिर पर ताज।।
मनोज कुमार शुक्ल " मनोज "
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