Quotes by Awantika Palewale in Bitesapp read free

Awantika Palewale

Awantika Palewale Matrubharti Verified

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માણસની ફિતરતમાં ફેરફાર આવ્યા.
ક્યાં રહી એ સાદગી, ક્યાં એ વફાદારી રહી?
દરેક નકશાઓમાં આજે તકરાર આવ્યા.

જે કહેતા હતા કે હું છું સદા તારો જ ,
સંજોગો બદલાતાં એમાં અણગમાના સાર આવ્યા.
સમયની સાથે ઉતાર-ચઢાવ આવ્યા...

હવે તો લાગણીઓ પણ સ્વાર્થનું રૂપ લે છે,
દિલના દરવાજા પર પણ હવે વેપાર આવ્યા.
સમયની સાથે ઉતાર-ચઢાવ આવ્યા...

નથી કોઈ ઓળખ હવે સંબંધોની ભીડમાં,
મોઢા પર હાસ્ય ને દિલમાં અસહકાર આવ્યા.
સમયની સાથે ઉતાર-ચઢાવ આવ્યા...

વેદનાં શું કરે હવે આ દુનિયાની વાત?
નજરોમાં હતાં જે પ્રેમ, એમાં જ અંધકાર આવ્યા.
સમયની સાથે ઉતાર-ચઢાવ આવ્યા...

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वही दीवार-ए-गिला फिर से खड़ी हो गई,
मोहब्बत हार गई फिर से लड़ाई हो गई।

ये कैसी रस्म है, कैसी रिवायत है अपनी,
के बात-बात पे इक जंग छिड़ी हो गई।

वो पहले प्यार का मौसम, वो हँसी याद करो,
अदावत अपनी तो क्या कम बड़ी हो गई।

जला के राख किया हमने हर इक ख़्वाब-ए-वफ़ा,
के दिल की बस्ती हमारी उजड़ी हो गई।

न कोई जीत हुई इसमें, न कोई हारा है,
बस इक उम्मीद जो थी वो मरी हो गई।

सफ़र तमाम हुआ और कहीं ठहराव नहीं,
के ज़िंदगी अपनी तो इक घड़ी हो गई।
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એક આશ સાથે બાંધ્યા તમને, દિલનો દોર માની લીધો,
કે હવે નહીં રહે એકલતા, સંગાથ છોર માની લીધો.

તમારા પગલાં જ્યાં જ્યાં પડ્યા, ત્યાં સુગંધ વરસી ગઈ,
મેં ધૂળને પણ પવિત્ર માની, માથાનો મોર માની લીધો.

હતી કેટલી યે ખ્વાહિશોની ભીડ આ દિલમાં, પણ!
બસ, એક તમારું આવવું, જાણે બધો શોર માની લીધો.

સહેજમાં સ્મિત આપી ને નજરને મેં ઝુકાવી છે,
તમારી આંખોની ભાષાને મેં પ્રેમનો પોર માની લીધો.

જીવનના વણઝારમાં ક્યાંક તો અટકવું હતું,
તમે મળ્યા ને મઝિલનો કિનારો સરોવર માની લીધો.

આશ પૂરી થાય કે ન થાય, એની પરવા નથી હવે,
તમારો પડછાયો પામ્યો, એને જ સૌ ઠોર માની લીધો.
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ये प्यारी सी छुअन तेरी, हया लगती है मुझको।
ज़िंदगी अब तो एक मीठी दुआ लगती है मुझको।।

वो पहली बार जब तुमने, मेरा हाथ थामा था।
वो मौसम आज तक जैसे, नया लगती है मुझको।।

हर इक लम्हा गुज़रता है, तिरी यादों के साए में।
ये तन्हाई भी अब अपनी, सज़ा लगती है मुझको।।

नज़र भर देख लो इक बार, तो सुकूँ आ जाए दिल को।
ये दुनिया तेरे बिन अब तो, फ़ना लगती है मुझको।।

तुम्हीं से रात की रौशन, तुम्हीं से सुबह की रंगत।
तेरी आवाज़ इक मीठी, सदा लगती है मुझको।।

जो तेरे पास होने का, भरम रह जाए साँसों में।
तो ये बे-नाम सी धड़कन, जिया लगती है मुझको।।
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निगाहों से बयाँ हो जाए, वो मुहब्बत की निशानी है।
खामोशी में भी जो सुन ले, वो प्यार की मीठी कहानी है।

अधूरी बात का ज़िक्र, सुकून भर देने वाला हो,
बिखर कर भी न जो टूटे, वो रिश्ते की रवानी है।

असर हो जाए दिल पर, हर उसकी एक नज़र का यूँ,
कि जिस दिल में उतर जाए, वो दुनिया ही मनमानी है।

मिलन की चाह में सब कुछ, गँवा देना भी सहल हो,
ये कैसी प्यास है साकी, सदियों से जिसने छानी है।

जहाँ में और क्या ढूँढ़े, जो ख़ुद में पा लिया उसको,
सफ़र भी वही है आख़िर, जो तुम तक आ के जानी है।

जो छुप जाए किसी शायर की नज़्म में एक ख़याल बन,
यही तो असली दौलत है, यही ज़िन्दगी फ़ानी है।

निगाहों से बयाँ हो जाए, वो मुहब्बत की निशानी है।
खामोशी में भी जो सुन ले, वो प्यार की मीठी कहानी है।
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ज़ुबां है ख़ामोश दिल में हसरत है।
बैठे हैं गुमसुम, आँखों में चाहत है।

क्या मेरे सिवा शहर में मासूम हैं सारे?
सब जुर्म मेरी जात से मनसूब हैं सारे।

रस्म-ए-उल्फ़त को निभाएँ तो निभाएँ कैसे,
हर तरफ़ आग है, दामन को बचाएँ कैसे।

दिल की राहों में उठाते हैं जो दुनिया वाले,
कोई कह दे कि वो दीवार गिराएँ कैसे।

दर्द में डूबे हुए नग़मे हज़ारों हैं मगर,
साज़-ए-दिल टूट गया हो तो सुनाएँ कैसे।

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तेरी छुअन का असर मुझ में आज भी बाकी है,
ये दिल धड़कता है, पर तेरे लिए ही साकी है।

वो एक लम्हा जो सदियों पे भारी था, बीत गया,
मगर ख़ुमार-ए-नज़र मुझ पे अब भी तारी है।

तेरी निगाह का जादू, तेरी ही बाँहों का घेरा,
ज़िन्दगी तेरे बिना एक क़ैद ख़ुद-इख़्तियारी है।

वो कदम जो कभी मेरे शाने पे आके रुकती थी,
वो याद आज भी मेरे दर्द की चिंगारी है।

जहाँ से तूने छुआ था, वो हिस्सा आज भी मेरा,
किसी भी ग़ैर की दस्तक वहाँ पे क्यों जारी है?

असर ये है कि अब हर शय से तेरा अक्स मिले,
हर एक मंज़र में तेरी ही एक तस्वीर प्यारी है।

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मेरे हर रंग पर, बस तुम्हारा असर है,
इस दिल में हर जगह, तेरा ही गुज़र है।

ये कैसी कशिश है, ये कैसा है जादू,
जहाँ भी मैं देखूँ, उधर तू ही नज़र है।

मेरी ख़ामोशियों में जो शोर-ए-बयाँ है,
वो लफ़्ज़ों से ज़्यादा, तेरी ही ख़बर है।

भला कैसे खुद को, मैं तुझसे बचाऊँ,
ये धड़कन भी बोले, तेरी ही सहर है।

जो नींदों में आकर, मुझे चैन देती है,
वो ख्वाबों की दुनिया, तेरा ही शहर है।

ये माना कि मुश्किल है तुझको भुलाना,
मगर तेरी यादों में जीने का हुनर है।

ग़ज़ल क्या लिखूँ, अब मैं तेरे असर पर,
मेरी शायरी भी तो तेरा ही सफ़र है।

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ऐसे न नज़र मिलाएँ कि दिल बेक़रार हो जाए,
ख़ामोशियाँ भी टूटें, इज़हार ही इज़हार हो जाए।

ये सादगी, ये शोख़ी, ये भोलापन आपका,
इकरार की तमन्ना में हर बार वार हो जाए।

पलकों के इन हिजाबों में क्या राज़ है छुपा,
एक हल्की सी हँसी और जीना दुश्वार हो जाए।

ऐसे न नज़र मिलाएँ कि दिल बेक़रार हो जाए,
ख़ामोशियाँ भी टूटें, इज़हार ही इज़हार हो जाए।

महफ़िल में यूँ तो लाखों हैं मगर,
इक आप ही पे आके, ये दिल निसार हो जाए।

कहने को और भी हैं अफ़साने ज़िंदगी में,
बस आपकी ही बातों से ये सफ़र गुलज़ार हो जाए।

ऐसे न नज़र मिलाएँ कि दिल बेक़रार हो जाए,
ख़ामोशियाँ भी टूटें, इज़हार ही इज़हार हो जाए।

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इस शहर में धुआँ धुआँ सा है
क्या जल रहा, ये गमाँ गमाँ सा है

​हर चेहरा यहाँ उदास क्यों है
हर शख़्स क्यों परेशान सा है
जाने किस बात का है अफ़सोस
या कोई ख़्वाब बे-ज़बाँ सा है

​हर गली में ख़ामोशी का पहरा
सन्नाटा भी अब मेहरबाँ सा है
दूर से आती हैं आवाज़ें मगर
जैसे कोई नग़्मा धँसा धँसा सा है

​अब हवा भी कहाँ वो पहले वाली
साँस लेना भी इक इम्तिहाँ सा है
ज़िंदगी पूछती है, ऐ इंसान!
ये तूने क्या हाल कर दिया है
​रात भर जागते हैं लोग यहाँ

दिन में भी हर आँख में शब-ए-ग़म है
तेरी दुनिया में क्या कमी है ‘खुदा’
फिर क्यों दिल में ये मलाल सा है
इस शहर में धुआँ धुआँ सा है।

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