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New bites

वैष्णव जन तो तेने कहिये

जे पीड परायी जाणे रे ।

पर दुःखे उपकार करे तो ये

मन अभिमान न आणे रे ॥

spismynamegmailcom

🌺🌼🌸

mehul770

તને પામી જવા હર એક સત્યોની ક્ષિતિજ તોડી-
પછી પહોંચીને જોયું તો રૂપાળા છળ સુધી પહોંચ્યા.

dipika9474

ગુરુદેવ દત્ત 🙏🙏🙏

s13jyahoo.co.uk3258

Arz kiya hai...

mitra1622

Arz kiya hai...

mitra1622

Arz kiya hai...

mitra1622

क्या हमारा अतीत हमें वास्तव में डरा पाता है या हम उसके बाद भी अतीत दोहराते रहते हैं। जबकि अतीत की कलम में वर्तमान की स्याही भर यदि हम भविष्य के पन्नों पर अपनी रचना रच पाए तो ही जीवन का वास्तविक अर्थ तथा प्रयोजन सिद्ध हो सकता है। परन्तु इस बात का भी ध्यान रखे कि हमारी स्याही में मानवता और प्रकृति का लोप न हो। चूंकि कलम से लिखते समय संभवतः हमारे हाथ पर भी स्याही के दाग बनते हैं। तो सोचना हमें है कि हमें कैसा भविष्य सृजित करना है। ऐसा जहां केवल हमारा ही लाभ हो तथा जिसके प्रभाव में अन्य की हानि हो अथवा एक ऐसा भविष्य जो चिर काल तक समस्त घटकों को प्रभावित करे तथा ये सुनिश्चित हो कि इसमें किसी की हानि न हुई हो। फिर वह शारीरिक आर्थिक सामाजिक मानसिक व वाचिक किसी रूप में स्वीकार्य नहीं होगी।

lk2433554gmail.com182641

हमें कई बार यही लगता है कि ऐसा मेरे साथ ही क्यों होता है, लेकिन क्या वाकई में जो हमें लगता है वैसा ही होता है या कुछ और? क्या हर बार दूसरों की वजह से ही हमारे जीवन में दिक्कतें आती हैं?

Watch here: https://youtu.be/70y3DGLEvP8

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dadabhagwan1150

दोहा-सृजन हेतु शब्द*
*मौसम, बदलाव, कुनकुन, सूरज, धूप

मौसम कहता है सदा, चलो हमारे साथ।
कष्ट कभी आते नहीं, खूब करो परमार्थ।।

जीवन में बदलाव के, मिलते अवसर नेक।
अकर्मण्य मानव सदा, अवसर देता फेक।।

कुनकुन पानी सामने, शुभ होता इसनान।
कृष्ण कन्हैया कह रहे, कर न, माँ परेशान।।

सूरज कहता चाँद से, मैं करता विश्राम।
मानव को लोरी सुना, कर तू अब यह काम।।

कर्मठ मानव ही सदा, पथ पर चला अनूप।
थका नहीं वह मार्ग से, हरा सकी कब धूप ।।

मनोज कुमार शुक्ल *मनोज*

manojkumarshukla2029

મુક્ત ગગનમાં પંખી ઉડે,
ઉંચે ઉડી ધરાને નિરખે,
ઝરણાઓમા નીર વહે,
ખળ ખળ હસી સાદ કરે,
તળાવોમા બતકો તરે,
પગ તળે તરંગો સર્જે,
પવન સાથે વૃક્ષો ઝુમે,
પાંદડું ખરી ધરાને સ્પર્શે,
છોડ ઉપર પતંગિયું બેઠું,
પાંખો ફેલાવી નૃત્ય‌ કરે.

મનોજ નાવડીયા

manojnavadiya7402

dr.bhairavsinhraol9051

पूरी उम्र ससुराल में गुजारी मैंने
फिर भी मायके से कफ़न मंगाना
मुझे अच्छा नहीं लगता

कविता मुझे बहुत पसंद आई इसीलिए आप सबसे शेयर कर रहा हूं ।

शादीशुदा महिलाओ को कुछ बाते अच्छी नहीं लगती, पर वे किसी से कहती नहीं| उन्ही एहसासों को इकट्ठा करके एक कविता लिखी है|

" मुझे अच्छा नही लगता "

मैं रोज़ खाना पकाती हू,
तुम्हे बहुत पयार से खिलाती हूं,
पर तुम्हारे जूठे बर्तन उठाना
मुझे अच्छा नही लगता

कई वर्षो से हम तुम साथ रहते है, लाज़िम है कि कुछ मतभेद तो होगे,
पर तुम्हारा बच्चों के सामने चिल्लाना मुझे अच्छा नही लगता

हम दोनों को ही जब किसी फंक्शन मे जाना हो,
तुम्हारा पहले कार मे बैठ कर यू हार्न बजाना
मुझे अच्छा नही लगता

जब मै शाम को काम से थक कर घर वापिस आती हू,
तुम्हारा गीला तौलिया बिस्तर से उठाना
मुझे अच्छा नही लगता

माना कि तुम्हारी महबूबा थी वह कई बरसों पहले,
पर अब उससे तुम्हारा घंटों बतियाना
मुझे अच्छा नही लगता

माना कि अब बच्चे हमारे कहने में नहीं है,
पर उनके बिगड़ने का सारा इल्ज़ाम मुझ पर लगाना
मुझे अच्छा नही लगता

अभी पिछले वर्ष ही तो गई थी,
यह कह कर तुम्हारा,
मेरी राखी डाक से भिजवाना
मुझे अच्छा नही लगता

पूरा वर्ष तुम्हारे साथ ही तो रहती हूँ,
पर तुम्हारा यह कहना कि,
ज़रा मायके से जल्दी लौट आना
मुझे अच्छा नही लगता

तुम्हारी माँ के साथ तो
मैने इक उम्र गुजार दी,
मेरी माँ से दो बातें करते
तुम्हारा हिचकिचाना
मुझे अच्छा नहीं लगता

यह घर तेरा भी है हमदम,
यह घर मेरा भी है हमदम,
पर घर के बाहर सिर्फ
तुम्हारा नाम लिखवाना
मुझे अच्छा नही लगता

मै चुप हूँ कि मेरा मन उदास है,
पर मेरी खामोशी को तुम्हारा,
यू नज़र अंदाज कर जाना
मुझे अच्छा नही लगता

पूरा जीवन तो मैने ससुराल में गुज़ारा है,
फिर मायके से मेरा कफन मंगवाना
मुझे अच्छा नहीं लगता

अब मै जोर से नही हंसती,
ज़रा सा मुस्कुराती हू,
पर ठहाके मार के हंसना
अौर खिलखिलाना
मुझे भी अच्छा लगता है

hemantparmar9337

study motivation 🖤🫶

kaushalyabhati

पूछा मैंने आईने से....
बता कैसी लगती हुँ?
निहार कर कूछ देर बोला...
मस्तिष्क पर रेखाएं नजर आ रही है,
पर इनमें फ़िक्र अपनों की है।
आँखों में काजल सजी नहीं,
नीचे डार्क सर्कल है,
अपनों के लिये तू ठीक से सोई नहीं है।
कानों में पहनी बाली नहीं,
पर अनकहा सुनने का हुनर आ गया है।
होंठों पे सजी लाली नहीं,
पर तेरे बोल में प्यार झलकता है।
नाखून टूटे बेरंग हैं,
पर हाथों मे स्वाद आ गया है।
पेट थोड़ी सी बाहर आ गए है,
यह खुद को समय ना देने का नतीजा है।
कमर तेरी कमसीन ना सही,
तूने झुकना सिख लिया है।
घुटनों में थोड़ा दर्द है,
पर घर में, दौड़ तेरी मेराथनों वाली है।

तू कल भी खूबसूरत थी,
आज भी हैं....
कल तू चंचल राधा थी,
आज लक्ष्मी हो गई हो

hemantparmar9337