Most popular trending quotes in Hindi, Gujarati , English

World's trending and most popular quotes by the most inspiring quote writers is here on BitesApp, you can become part of this millions of author community by writing your quotes here and reaching to the millions of the users across the world.

New bites

"Before marriage, God gave only books into these hands. After marriage, He gave this, because He knew that these hands have the strength to hold it."

ashwathshivarathri421142

✧ संस्करण 1

🌱
काम बीज है,
कर्म उसका फल।
इच्छा बंधन है,
वासना अधूरी छाया।
सेक्स शरीर का संगम है —
और इनका भ्रम ही जीवन की सबसे बड़ी उलझन।

👉 (अंश: ✧ काम–कर्म–इच्छा–वासना ✧)


---

✧ संस्करण 2

🔥
काम = शुरुआत।
कर्म = गति।
इच्छा = फल की भूख।
वासना = अधूरी प्यास।
सेक्स = स्थूल मिलन।
जिन्हें लोग एक समझ बैठे, वही सबसे गहरी भूल है।

👉 (अंश: ✧ काम–कर्म–इच्छा–वासना ✧)


---

✧ संस्करण 3

💭
काम है बीज, कर्म है वृक्ष।
इच्छा है फल की आस, वासना है जड़ता।
सेक्स है संगम की देह-धारा।
जब तक भेद न समझो, धर्म और मोक्ष दोनों धुंधले रहेंगे।

👉 (अंश: ✧ काम–कर्म–इच्छा–वासना ✧)


---

✧ संस्करण 4


काम बिना कर्म नहीं।
कर्म बिना इच्छा अधूरा।
इच्छा जब रुक जाए तो वासना।
और सेक्स, वही काम ऊर्जा का स्थूल रूप।
ये पाँच पड़ाव अलग हैं — इन्हें गड्डमड्ड करना ही जीवन का भ्रम है।

👉 (अंश: ✧ काम–कर्म–इच्छा–वासना ✧)

bhutaji

Ganpati bapa maurya 😊

sunitasunita949243

Good evening friends

kattupayas.101947

पहाड़ों की ओट से,
छिपने लगा सूरज,
जैसे कोई शर्मीला प्रेम, 🙈
धीरे-धीरे ओझल हो रहा है।

आसमान में बिखरी,
नारंगी और सुनहरी आभा,
☁️बादलों ने ओढ़ ली है,
जैसे कोई नई दुल्हन।

​चारों ओर फैली शांति,
हवाओं में बहता सुर,
मन को सुकून देती,
ये प्रकृति की धुन।

​छिपते हुए सूरज को,
देखकर ये दिल कहता है,
कि हर ढलती शाम,
एक नए सवेरे का वादा है🥰

puneetkatariya2436

I have written's ✍️someone feeling. I hope you like it. please🙏 tell me in comment.

sunitasunita949243

🌺🙏 Ganpati Bappa Morya 🙏🌺

हो मत उदास,

तेरा हूँ और सदा रहूँगा।

जा रहा हूँ अभी,

पर जल्दी लौट आऊँगा…

तेरे संग फिर मुस्कराऊँगा।

nensivithalani.210365

हम भी खुशबुओ से प्यार कर बैठे
वटवा उठा और बाजार निकल बैठे
खरीदनी थी मुझे कोर्स की कुछ नयी किताबे
गुलदस्ता दिखा हम गुलाब खरीद बैठे .

mashaallhakhan600196

Niyas KN reminds us: greatness begins with belief.

niyaskn

---

मृगनयनी नारी – कलियुग की त्रासदी

मृगनयन सुन्दर,
रूप-छवि अति प्यारी।
देखते ही मन कहे —
यही है जीवन-सवारी।

पर भीतर बैठा अहंकारी,
रूप पर करे अभिमान भारी।
भूल गई वह बात पुरानी —
मनुष्य तो है सामाजिक प्राणी।

प्रेम भी बिकने लगा है,
पैसा हो तो ही टिकने लगा है।
मधुर संबंधों में कटुता आई,
भाई-भाई भी शत्रु बन जाए भाई।

पत्नी मन लगाए अपने भूतपूर्व प्रेमी से,
कैसे कहलाए वह पतिव्रता नारी से?
आजकल पुरुषों की भी प्रेयसी
फूल-सी कोमल, सुकुमारी।
तो कैसे भाए उन्हें
अपनी सुन्दर, सुशील, संस्कारी नारी?

जब से आया सोशल मीडिया का संचालन,
तब से अपराधों ने पार किया बंधन।
छिपे हुए भी पकड़े जाएं,
सूचना पल में बाहर आए।

सबसे बड़ी समस्या यह आई,
अफेयर ने मर्यादा की सीमा पाई।
पुरुष और स्त्री दोनों की चाहत भारी,
थोड़ी-सी कमी हुई
तो झगड़े की तैयारी।
पति-पत्नी में आई दूरी,
ढूंढ़ा प्रेमी, खोजी प्रिया-सी प्यारी।

यही है समय की सबसे बड़ी विडम्बना,
जहाँ विश्वास से अधिक है चाहत का गहना।
जहाँ रिश्ते टिके हैं स्क्रीन के सहारे,
दिल से दिल का मिलन हुआ है किनारे।

कलियुग की यही है त्रासदी —
सच्चा प्रेम बन गया है कहानी,
और चाहत बन गई है फैशन की निशानी।

archanalekhikha

BAARISH

Aaj jab aaditi
Indore se wapas aayi
To vansh se
Puchi
Ki kya yaad tumne kiya mujhko
Fir vansh ne uski akhon mein
dekha aur dil ne kaha

Ye baarish mujhko
Teri yaad delati
Hai
Dil mein ek
Nayi aasha jagati
Hai
Mann uss pattjhar(Autumn)
Ke mausam jaisa
Hai tere bin
Usmein ye baarshtein
Khushi ka ehsas
Karti hai
Kaise yaad aayi
Iss Baraste pani
Ko iss kinare
Ki
Ye baat samjati
Hai
Kyuki jab ye baarshtein
Baarsh ti hai
Aakho ke saamne
Tu aajati hai
Dil dhadak ka
Jati hai
mujhko apna banajaati hai

gunjangayatri949036

(એક પ્રેમિકાની ભાવના)
તે પોતાની ડાયરીમાં લખે છે અને વિચારો વ્યક્ત કરે છે.

પ્રેમમાં છેતરાયા પછી, મને થાય છે
કે હું એક મોટા હિમાલય પહાડ જેવી અડગ અને મજબૂત બની જાઉં અથવા તો...
હું એક બાજ પક્ષીની જેમ નિરંતર ઊંચાઈઓ સુધી ઊડવા માગું છું, જે ક્યારેય પાછું વળીને જોતો નથી..
​હું પથ્થર બનીને એક જગ્યાએ સ્થિર રહેવા નથી
માગતી, પણ એક પંખી જેવી બનવા માગું છું
જે સતત આગળ વધે છે. હું મારા જીવનમા
ં એક લક્ષ્ય નક્કી કરીને આગળ વધીશ અને
કંઈક બનીને બતાવીશ, જેથી મને મૂર્ખ બનાવનારન
ે એક દિવસ અફસોસ થાય.
​પ્રેમમાં હોવા છતાં, હંમેશાં પોતાના સ્વાભિમાનને જાળવવું ખૂબ જ જરૂરી છે. જો સ્વાભિમાન ન હોય, તો વ્યક્તિ માત્ર એક ચીજવસ્તુ બનીને રહી જાય છે. હું તે ચીજ વસ્તુ બનવા નથી માંગતી.
(સ્વાભિમાનનું મહત્વ: મે એ સ્પષ્ટ કર્યું છે કે પ્રેમમાં સ્વાભિમાન જાળવવું કેટલું જરૂરી છે, અને જો તે ન જળવાય તો વ્યક્તિ એક ચીજવસ્તુ સમાન બની જાય છે.)
DHAMAK

heenagopiyani.493689

📖 पति ब्रह्मचारी – भाग 1 : जन्म और बचपन

प्रस्तावना

धरा पर ऐसे कई व्यक्तित्व आए हैं, जिनका जीवन केवल उनके परिवार या गाँव तक सीमित नहीं रहा, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गया। उनके जीवन में तप, त्याग और संयम की ऐसी धारा प्रवाहित हुई, कि लोग आज भी उनकी गाथाएँ सुनकर प्रेरित होते हैं। यह कथा भी उसी प्रकार के पुरुष की है, जिसे संसार ने बाद में “पति ब्रह्मचारी” के नाम से जाना।



जन्म और माता-पिता

नेपाल और भारत की सीमा पर स्थित प्रसौनी ग्राम सदियों से धार्मिक और संस्कारी वातावरण के लिए जाना जाता था। यहाँ का प्रत्येक घर, प्रत्येक परिवार धर्म, संस्कार और साधना में लीन रहता। इसी ग्राम में रहते थे – आचार्य वेदमित्र और उनकी पत्नी सत्यवती।

दोनों ही गहरी धार्मिक प्रवृत्ति के थे। वेद, उपनिषद और धर्मग्रंथों का अध्ययन उनका दैनिक कर्म था। वे बच्चों को शिक्षा देने के साथ-साथ जीवन में आदर्शों का पालन भी कराते थे। परंतु उनका एक ही दुख था – संतानहीनता। बीस वर्षों के दाम्पत्य जीवन में उनकी गोद खाली थी।

गाँववाले कभी-कभी ताने मारते –

“आचार्य, विद्या तो तुम्हारे पास है, पर वंश का दीपक कहाँ?”



सत्यवती चुपचाप आँसू पोछतीं और आचार्य उन्हें सांत्वना देते –

“जो कुछ ईश्वर देगा वही सही है। हमारा धर्म केवल प्रयास करना है।”



कई वर्षों तक व्रत, उपवास और तीर्थयात्राएँ करने के बाद भी कोई संतान नहीं हुई। तब गाँव में प्रसिद्ध ऋषि अत्रिदेव का आगमन हुआ।

ऋषि अत्रिदेव ने आचार्य के घर पधारते ही कहा –

“हे वेदमित्र! तुम्हें जो संतान मिलेगी, वह साधारण नहीं होगी। उसका जन्म इस धरती पर धर्म की रक्षा और ब्रह्मचर्य के आदर्श की स्थापना के लिए होगा।”



सत्यवती की आँखों में आँसू भर आए। उन्होंने अपने मन की पीड़ा व्यक्त करते हुए कहा –

“हे भगवन्! मेरे जीवन की एकमात्र कामना यह है कि मेरी गोद भी कभी भरे।”



ऋषि ने उन्हें आश्वस्त किया –

“वास्तव में, देवी, तुम शीघ्र ही एक तेजस्वी पुत्र की माता बनोगी। उसका जन्म इस संसार के लिए प्रेरणा बनेगा।”



कुछ ही महीनों बाद सत्यवती ने एक तेजस्वी बालक को जन्म दिया। जन्म के क्षण में पूरा गाँव जैसे दिव्य आभा से झिलमिला उठा। आकाश में हल्की रोशनी फैली, और पक्षियों की चहचहाहट मानो उसे आशीर्वाद देने आई हो।

बालक का मुखकमल ऐसा था कि हर कोई उसकी ओर आकर्षित हो गया। उसे नाम दिया गया – आदित्यनंद।



बचपन के लक्षण

आदित्यनंद बचपन से ही असाधारण था। वह बहुत कम रोता, अधिकतर शांत और ध्यानमग्न रहता।

खेल-कूद में भी वह दूसरों से अलग था।

वह अक्सर नदी किनारे बैठकर पानी की लहरों को निहारता।

पक्षियों और वृक्षों को देखकर उनके जीवन का अध्ययन करता।


एक बार गाँव के बच्चे खेलते समय एक छोटे पंछी पर पत्थर फेंक बैठे।
सभी बच्चे हँसने लगे, पर आदित्यनंद दौड़ा और पंछी को अपनी गोद में उठाया। उसने अपने वस्त्र का टुकड़ा बाँधकर उसके पंख पर पट्टी बांधी और तब तक उसकी देखभाल की जब तक वह उड़ने योग्य न हो गया।

गाँववाले कहते –

“यह बालक साधारण नहीं है। इसका हृदय करुणा और संयम से भरा है।”



गुरुकुल शिक्षा

पाँच वर्ष की आयु में आदित्यनंद का उपनयन संस्कार हुआ।
गुरु ने गायत्री मंत्र का उपदेश देते हुए उसके कान में धीरे-धीरे उच्चारित किया।
आदित्यनंद की आँखों में ध्यान और संकल्प की चमक देख गुरु आश्चर्यचकित रह गए।

गुरुकुल में प्रवेश के साथ ही उसकी शिक्षा प्रारंभ हुई।

वह मंत्र, श्लोक और गणित की जटिल समस्या तुरंत स्मरण कर लेता।

ज्योतिष, दर्शन और नीति शास्त्र में भी उसका ज्ञान अद्भुत था।


एक दिन गुरु ने शिष्यों से पूछा –

“बच्चो, मनुष्य के जीवन का सबसे बड़ा शत्रु क्या है?”



कई शिष्यों ने क्रोध, लोभ या मोह बताया।
आदित्यनंद ने गंभीरता से उत्तर दिया –

“गुरुदेव, मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु उसकी असंयमित इंद्रियाँ हैं। यदि इंद्रियाँ वश में हों, तो क्रोध, मोह, लोभ सब समाप्त हो जाते हैं। यदि नहीं, तो ज्ञान और धर्म व्यर्थ है।”



गुरु ने मुस्कुराते हुए कहा –

“वत्स! तू भविष्य में महान तपस्वी बनेगा।”




सामाजिक अनुभव और परिवार

आदित्यनंद जब दस वर्ष का हुआ, तब उसके माता-पिता ने उसे गाँव और समाज के जीवन में सहभागी बनाया।

वह लोगों की सेवा करता,

वृद्धों का सम्मान करता,

बच्चों को खेल और शिक्षा के माध्यम से जीवन की सही राह दिखाता।


एक बार गाँव में अकाल पड़ा। अधिकांश लोग भयभीत होकर भाग गए। आदित्यनंद ने अपनी माता के साथ मिलकर गाँववालों के लिए पानी और अन्न का प्रबंध किया।
गाँववाले उसकी बुद्धिमत्ता और साहस देखकर चकित रह गए।



करुणा और आत्मसंयम की शिक्षा

आदित्यनंद का बचपन केवल विद्या और खेल तक सीमित नहीं था।

वह रोज़ सुबह उठकर नदी किनारे जाकर जलस्रोत की सफाई करता।

वृद्ध और गरीबों के घर जाकर उनकी सेवा करता।

जानवरों की देखभाल करना उसका प्रिय कार्य था।


इस बीच उसकी आत्मा में ब्रह्मचर्य और संयम की भावना धीरे-धीरे जागने लगी।

वह कभी भी झूठ नहीं बोलता।

किसी की बुरी भाषा सुनकर क्रोध नहीं करता।

दूसरों की जरूरत और पीड़ा को अपने से ऊपर रखता।




किशोरावस्था का प्रारंभ

जब आदित्यनंद बारह वर्ष का हुआ, तब वह धीरे-धीरे अपने भीतर गहरे चिंतन और आत्मनिरीक्षण की ओर बढ़ने लगा।

समाज की गलतियों पर प्रश्न करता,

धर्म और न्याय के मूल्यों पर विचार करता,

और अपने माता-पिता तथा गुरु से परामर्श लेकर अपने चरित्र को और दृढ़ बनाता।


गुरुकुल के शिक्षक उसे देखकर कहते –

“यह बालक केवल विद्या में ही नहीं, बल्कि मन, वचन और कर्म में भी उत्तम है। यदि इसी तरह साधना और संयम का मार्ग अपनाए, तो यह युगों तक आदर्श बनेगा।”



इस तरह आदित्यनंद का बचपन और प्रारंभिक जीवन न केवल विद्या और करुणा से परिपूर्ण रहा, बल्कि उस समय उसके भीतर आत्मसंयम और ब्रह्मचर्य की बीज भी अंकुरित हो गए।
यह बीज भविष्य में उसे पति ब्रह्मचारी बनने की ओर ले जाएगा, जो न केवल अपने परिवार का, बल्कि पूरे समाज और युग का आदर्श पुरुष बनेगा।

rajukumarchaudhary502010

जग ही एक फार गंमतीशीर जागा आहे. इथे प्रत्येकाला वाटतं की आपण फार शहाणं आहोत, आणि बाकी सगळे "थोडे कमी" आहेत. कुणाला वाटतं पैसा म्हणजेच सुख, तर कुणाला वाटतं की मोबाईलवरच्या स्टेटसमध्येच आयुष्याचं यश दडलं आहे. जग असं आहे की जो जास्त शांत राहतो त्याला "भोळा" म्हणतात आणि जो जास्त बोलतो त्याला "हुशार" समजतात.

. या जगात लोक तत्त्वज्ञान फार बोलतात, पण बसमध्ये सीट मिळाली की लगेच ते तत्त्व विसरतात. आणि सगळ्यात भारी म्हणजे, जग सुधारण्याची जबाबदारी सगळ्यांना घ्यायची असते—पण "तो दुसरा कुणीतरी करेल" असं ठाम गृहीत धरून. म्हणूनच बहुतेक जग हे जगच राहातं—आपल्याला हसवत, कधी रडवत, आणि सगळ्यात महत्त्वाचं म्हणजे सतत गोंधळ घालत.
by Fazal Esaf

fazalesaf2973

प्रेम ही अशी गोष्ट आहे की ती शाळेत शिकवली गेली असती तर बहुतेक मुलं दहावीला फेलच झाली असती. कारण गणितात दोन आणि दोन चार होतात, पण प्रेमात दोन आणि दोन दोनच राहतात—त्यात तिसऱ्याला जागा नसते. प्रेमातला पहिला टप्पा म्हणजे नजरानजर, आणि दुसरा टप्पा म्हणजे मोबाईलवर "ऑनलाईन" दिसल्यावर हृदयाचा ठोका वाढणे. बाकीचं सगळं जग झोपलेलं असतं, पण प्रेमातले दोन जीव मात्र रात्रीच्या दोन वाजता पण "गुड नाईट" म्हणायचं विसरत नाहीत. प्रेम म्हणजे शब्दांनी समजावण्यापेक्षा समोरच्या माणसाच्या शांततेतून ऐकायची कला. जगातल्या सगळ्या तत्त्वज्ञानांपेक्षा एक साधं "काय ग?" जास्त खोल असतं. आणि शेवटी काय, प्रेम असलं की रोजचं जगणं सुद्धा जरा "गोड" लागतं—जसं वडापावसोबतची गोड चटणी!

by Fazal Abubakkar Esaf

fazalesaf2973

हम सभी ने अपनी ज़िन्दगी के किसी ना किसी पड़ाव पर खुद को उदास और हताश महसूस किया होगा। ऐसी परिस्थितियों में हम खुद को मन ही मन डिप्रेशन का शिकार मान लेते हैं। लेकिन क्या आप सच में depressed हैं या फिर डिप्रेशन आपका माना हुआ है?

Watch here: https://youtu.be/l5mw8XvvUH8

#selfimprovement #lifelessons #selfhelp #Trending #dadabhagwanfoundation

dadabhagwan1150

" યાદ તમારી "

આવે છે અનહદ જ્યારે યાદ તમારી.
છલકાઈ જાય છે ત્યારે આંખ અમારી.

હજુ પણ જોઈ રહ્યો છું હું વાટ તમારી.
લાગતું નથી છે કંઈ કદર ખાસ અમારી.

છોડીને સાથ ભલેને સંવારી કાલ તમારી.
જુઓ થઈ ગઈ વેરવિખેર આજ અમારી.

અમારા હૃદયને છે હજુએ આશ તમારી,
ને, તમે માંગો છો જોવાને લાશ અમારી?

પણ જો મળે અંતિમ પડાવે કાંધ તમારી,
તો, "વ્યોમ" હસતાં નીકળે સાંસ અમારી.


✍... વિનોદ. મો. સોલંકી "વ્યોમ"
જેટકો (જીઈબી), મુ. રાપર.

omjay818

जय श्री कृष्ण 🙏

deepakbundela7179

happy onam

niyaskn

मूर्ति, शास्त्र और पूजा की सीमा ✧

शास्त्र की पूजा करो, मूर्ति की पूजा करो – पर क्या शास्त्र बोल उठते हैं?
क्या मूर्ति तुम्हारा दुख हर लेती है?

मुझे कोई बाहर का भगवान, देवी-देवता दिखाई नहीं देता।
हाँ, एक तरंग है – उच्च कोटि की ऊर्जा।
जैसे विज्ञान की तरंगें (waves) यंत्र से यंत्र तक पहुँचती हैं,
वैसे ही ये दिव्य तरंगें भी पहुँचती हैं।
परंतु उन्हें पकड़ने के लिए पात्रता चाहिए।

सिर्फ़ साधना, पूजा या विधि-विधान नहीं;
पात्रता बनती है — तुम्हारे कर्म से,
तुम्हारे जीवन की शुद्धता से,
तुम्हारी समता और संतुलन से।

जब कर्म श्रेष्ठ होते हैं, विचार उच्च होते हैं,
तो तुम स्वयं यंत्र बन जाते हो —
और तभी राम, कृष्ण, बुद्ध, शिव की तरंगें
तुम्हें छूने लगती हैं।
केवल मूर्ति की पूजा से कुछ नहीं होगा।

मूर्ति की सेवा करना ऐसे ही है जैसे
कीमती रत्न को सोने-चाँदी में रखकर सुरक्षित करना।
लेकिन असली रत्न तो तब है जब
वो दिव्यता तुम्हारे हृदय में जन्म ले।
मूर्ति तब तक सहारा है —
जैसे गर्भ में पलता बच्चा।
पर जब बच्चा जन्म ले लेता है,
तो गर्भ की अवस्था छोड़ दी जाती है।

इसी तरह, मूर्ति और पूजा ठीक है
जब तक भीतर भगवान का बीज गर्भित नहीं हुआ है।
पर अगर जीवनभर केवल मूर्ति के गर्भ में पड़े रहे,
तो वह धर्म नहीं — एक पाखंड है।

धर्म वही है जहाँ भीतर जन्म होता है,
जहाँ पूजा बाहर से भीतर की ओर मुड़ती है।
संभोग तभी सार्थक है जब उससे जन्म हो।
पूजा तभी सार्थक है जब उससे भीतर भगवान जन्मे।

मूर्ति, शास्त्र, मंदिर – ये सब साधन हैं,
सत्य नहीं।
सत्य तो वही है जब तुम
भीतर की तरंगों को पकड़ लो,
और प्रकृति से प्रेम में जी उठो।

https://www.facebook.com/share/1F5pKB1JGn/https://www.facebook.com/share/1F5pKB1JGn/

bhutaji

"अर्ज़ किया है..."

तेरी आँखों की हँसी में क्या करिश्मा छुपा है,
हर निगाह देखकर दिल ये दीवाना हुआ है।

जो भी माँगो तू, पल में वो अता कर देता है,
फिर भी दिल ये तुझी के पास रहना चाहता है।

तेरे होंठों की मुस्कान जादू सा असर करती है,
हर धड़कन तेरा नाम बड़ी शिद्दत से पढ़ती है।

तेरी बातों से सजी महफ़िल भी रौशन हो जाती है,
तू जो पास हो तो दुनिया भी जन्नत सी लग जाती है। 💕

kajalthakur

When Holding Turns to Hurting 🌸



Every relation is like a rubber band…

Hold it for a while, it’s gentle.

Stretch it too long, it hurts both sides.

Sometimes letting go is the only way,

before pain replaces the bond.

nensivithalani.210365

✨🏡 New Story Alert! 🏡✨



My heartfelt story “अपना आशियाँ (Your Shelters)” is now published on Matrubharti! 🌸



It’s not just about four walls, but about dreams, love, and the true meaning of home — where hearts find peace and bonds grow stronger. 💖



👉 Read here: https://www.matrubharti.com/book/19981017/your-shelters



Thank you for always giving love and strength to my words ✨



– Nensi Vithalani 🌿

nensivithalani.210365