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Sasi Krishnasamy- Founder of Ayngaran Foundation

sasikrishnasamy

jab sanvi ne Raghu se kaha
I hate you forever,
tumse milne meri sabse badi galti thi

Toh raghu ke dil ne
Kaha
Teri yaad mein
Ye dil tarsa hai
Saath ho kar bhi
Jo na ho saka
Tera

Inn akhon mein
Ked hai
Pal tere saath ke
Tere pyar ke

Chaht to thi do tarfa
Fir kab aayi lakeerein
Uss pyar ki duniya
Mein

Binn tere jiya
Hai , adhuri
Hu par ab
Uss adhure pan
Ki mano aadat si pad
Gayi hai

Fir bhi iss dil ki
Hai yahi pukaar
Ki chaht hai
Teri

jo kabhi khatam
na ho vo
pyar tu

jiske liye dhadkan
hai vo dil tu
nafraten toh kayi
baar hoti hai
par pyar sirf ek
baar
jo ho tum

tumhare dil mein
nafraten ho ya pyar
par mera ye dil sirf tera
hai

tumse milna meri
zindagi ka sabse
kimati palo (precious moments)
mein se ek hai
jisse mein apna
good luck manta
hu

gunjangayatri949036

Life is like a busy highway—people come and go at full speed, and we can’t take U-turns. The love, care, and attention we give others are like tolls automatically collected by a FASTag, quietly shaping their journey while leaving a mark on ours.

nensivithalani.210365

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salmankhatik.487155

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akshaytiwari128491

🎬 फिल्म समीक्षा – भउजी हमार देवी, भैया भगवान

⭐ कहानी

फिल्म की कहानी एक साधारण गाँव के परिवेश में रची-बसी है जहाँ रिश्तों, त्याग और आस्था का गहरा संदेश मिलता है।
केंद्रीय किरदार भउजी का है, जिन्हें परिवार में “देवी” जैसा स्थान दिया गया है। उनकी सादगी, संघर्ष और बलिदान ही पूरी कहानी को आगे बढ़ाते हैं। वहीं भैया का किरदार परिवार के स्तंभ की तरह दिखाया गया है, जिनके लिए बहन और पत्नी ही पूरा संसार हैं।

कहानी में पारिवारिक ड्रामा, धार्मिक आस्था और भावनात्मक टकराव को जोड़ते हुए दिखाया गया है कि किस तरह परिवार में स्त्रियों का महत्व “देवी” और पुरुष का त्याग “भगवान” के समान माना जाता है।


---

🎭 अभिनय

संजना पांडेय (भउजी) – इन्होंने अपनी मासूम अदाओं और भावुक अभिनय से दिल जीत लिया है।

प्रशांत सिंह (भैया) – उनका रोल गम्भीर और ज़िम्मेदार भाई के रूप में प्रभावशाली है।

ज्योति मिश्रा (अन्य महिला किरदार) – पारिवारिक नारी के रूप में अच्छा योगदान।


सभी कलाकारों ने अपने-अपने रोल को बड़े सहज ढंग से निभाया है।


---

🎶 संगीत और संवाद

फिल्म में भोजपुरी रंग-ढंग के पारंपरिक गाने हैं, जो गाँव की मिट्टी और संस्कृति की महक देते हैं। संवादों में आस्था, रिश्तों की मर्यादा और संवेदनशीलता स्पष्ट झलकती है।


---

🎥 निर्देशन और प्रस्तुति

निर्देशक ने इस फिल्म को परिवारिक और धार्मिक आस्था से जोड़कर पेश किया है। कहीं-कहीं फिल्म थोड़ी लंबी लग सकती है, लेकिन भावनात्मक दृश्य दर्शकों को बाँधे रखते हैं।


---

✅ सकारात्मक पक्ष

पारिवारिक मूल्यों पर ज़ोर

महिला किरदारों की गरिमा और आस्था का चित्रण

भोजपुरी संस्कृति और धार्मिक पृष्ठभूमि का अच्छा मेल


❌ कमजोर पक्ष

कुछ जगहों पर कहानी अनुमानित लगती है

तकनीकी पक्ष (सिनेमैटोग्राफी व एडिटिंग) सामान्य स्तर का है



---

⭐ अंतिम निर्णय (Rating)

3.5/5 🌟
यह फिल्म उन दर्शकों को पसंद आएगी जो पारिवारिक रिश्तों, देव-भावना और भोजपुरी संस्कृति से जुड़ी कहानियों में रुचि रखते हैं।

rajukumarchaudhary502010

🎬 फिल्म समीक्षा – भउजी हमार देवी, भैया भगवान

⭐ कहानी

फिल्म की कहानी एक साधारण गाँव के परिवेश में रची-बसी है जहाँ रिश्तों, त्याग और आस्था का गहरा संदेश मिलता है।
केंद्रीय किरदार भउजी का है, जिन्हें परिवार में “देवी” जैसा स्थान दिया गया है। उनकी सादगी, संघर्ष और बलिदान ही पूरी कहानी को आगे बढ़ाते हैं। वहीं भैया का किरदार परिवार के स्तंभ की तरह दिखाया गया है, जिनके लिए बहन और पत्नी ही पूरा संसार हैं।

कहानी में पारिवारिक ड्रामा, धार्मिक आस्था और भावनात्मक टकराव को जोड़ते हुए दिखाया गया है कि किस तरह परिवार में स्त्रियों का महत्व “देवी” और पुरुष का त्याग “भगवान” के समान माना जाता है।


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🎭 अभिनय

संजना पांडेय (भउजी) – इन्होंने अपनी मासूम अदाओं और भावुक अभिनय से दिल जीत लिया है।

प्रशांत सिंह (भैया) – उनका रोल गम्भीर और ज़िम्मेदार भाई के रूप में प्रभावशाली है।

ज्योति मिश्रा (अन्य महिला किरदार) – पारिवारिक नारी के रूप में अच्छा योगदान।


सभी कलाकारों ने अपने-अपने रोल को बड़े सहज ढंग से निभाया है।


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🎶 संगीत और संवाद

फिल्म में भोजपुरी रंग-ढंग के पारंपरिक गाने हैं, जो गाँव की मिट्टी और संस्कृति की महक देते हैं। संवादों में आस्था, रिश्तों की मर्यादा और संवेदनशीलता स्पष्ट झलकती है।


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🎥 निर्देशन और प्रस्तुति

निर्देशक ने इस फिल्म को परिवारिक और धार्मिक आस्था से जोड़कर पेश किया है। कहीं-कहीं फिल्म थोड़ी लंबी लग सकती है, लेकिन भावनात्मक दृश्य दर्शकों को बाँधे रखते हैं।


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✅ सकारात्मक पक्ष

पारिवारिक मूल्यों पर ज़ोर

महिला किरदारों की गरिमा और आस्था का चित्रण

भोजपुरी संस्कृति और धार्मिक पृष्ठभूमि का अच्छा मेल


❌ कमजोर पक्ष

कुछ जगहों पर कहानी अनुमानित लगती है

तकनीकी पक्ष (सिनेमैटोग्राफी व एडिटिंग) सामान्य स्तर का है



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⭐ अंतिम निर्णय (Rating)

3.5/5 🌟
यह फिल्म उन दर्शकों को पसंद आएगी जो पारिवारिक रिश्तों, देव-भावना और भोजपुरी संस्कृति से जुड़ी कहानियों में रुचि रखते हैं।

rajukumarchaudhary502010

🎬 फिल्म समीक्षा – भउजी हमार देवी, भैया भगवान

⭐ कहानी

फिल्म की कहानी एक साधारण गाँव के परिवेश में रची-बसी है जहाँ रिश्तों, त्याग और आस्था का गहरा संदेश मिलता है।
केंद्रीय किरदार भउजी का है, जिन्हें परिवार में “देवी” जैसा स्थान दिया गया है। उनकी सादगी, संघर्ष और बलिदान ही पूरी कहानी को आगे बढ़ाते हैं। वहीं भैया का किरदार परिवार के स्तंभ की तरह दिखाया गया है, जिनके लिए बहन और पत्नी ही पूरा संसार हैं।

कहानी में पारिवारिक ड्रामा, धार्मिक आस्था और भावनात्मक टकराव को जोड़ते हुए दिखाया गया है कि किस तरह परिवार में स्त्रियों का महत्व “देवी” और पुरुष का त्याग “भगवान” के समान माना जाता है।


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🎭 अभिनय

संजना पांडेय (भउजी) – इन्होंने अपनी मासूम अदाओं और भावुक अभिनय से दिल जीत लिया है।

प्रशांत सिंह (भैया) – उनका रोल गम्भीर और ज़िम्मेदार भाई के रूप में प्रभावशाली है।

ज्योति मिश्रा (अन्य महिला किरदार) – पारिवारिक नारी के रूप में अच्छा योगदान।


सभी कलाकारों ने अपने-अपने रोल को बड़े सहज ढंग से निभाया है।


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🎶 संगीत और संवाद

फिल्म में भोजपुरी रंग-ढंग के पारंपरिक गाने हैं, जो गाँव की मिट्टी और संस्कृति की महक देते हैं। संवादों में आस्था, रिश्तों की मर्यादा और संवेदनशीलता स्पष्ट झलकती है।


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🎥 निर्देशन और प्रस्तुति

निर्देशक ने इस फिल्म को परिवारिक और धार्मिक आस्था से जोड़कर पेश किया है। कहीं-कहीं फिल्म थोड़ी लंबी लग सकती है, लेकिन भावनात्मक दृश्य दर्शकों को बाँधे रखते हैं।


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✅ सकारात्मक पक्ष

पारिवारिक मूल्यों पर ज़ोर

महिला किरदारों की गरिमा और आस्था का चित्रण

भोजपुरी संस्कृति और धार्मिक पृष्ठभूमि का अच्छा मेल


❌ कमजोर पक्ष

कुछ जगहों पर कहानी अनुमानित लगती है

तकनीकी पक्ष (सिनेमैटोग्राफी व एडिटिंग) सामान्य स्तर का है



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⭐ अंतिम निर्णय (Rating)

3.5/5 🌟
यह फिल्म उन दर्शकों को पसंद आएगी जो पारिवारिक रिश्तों, देव-भावना और भोजपुरी संस्कृति से जुड़ी कहानियों में रुचि रखते हैं।

rajukumarchaudhary502010

🎬 फिल्म समीक्षा – भउजी हमार देवी, भैया भगवान

⭐ कहानी

फिल्म की कहानी एक साधारण गाँव के परिवेश में रची-बसी है जहाँ रिश्तों, त्याग और आस्था का गहरा संदेश मिलता है।
केंद्रीय किरदार भउजी का है, जिन्हें परिवार में “देवी” जैसा स्थान दिया गया है। उनकी सादगी, संघर्ष और बलिदान ही पूरी कहानी को आगे बढ़ाते हैं। वहीं भैया का किरदार परिवार के स्तंभ की तरह दिखाया गया है, जिनके लिए बहन और पत्नी ही पूरा संसार हैं।

कहानी में पारिवारिक ड्रामा, धार्मिक आस्था और भावनात्मक टकराव को जोड़ते हुए दिखाया गया है कि किस तरह परिवार में स्त्रियों का महत्व “देवी” और पुरुष का त्याग “भगवान” के समान माना जाता है।


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🎭 अभिनय

संजना पांडेय (भउजी) – इन्होंने अपनी मासूम अदाओं और भावुक अभिनय से दिल जीत लिया है।

प्रशांत सिंह (भैया) – उनका रोल गम्भीर और ज़िम्मेदार भाई के रूप में प्रभावशाली है।

ज्योति मिश्रा (अन्य महिला किरदार) – पारिवारिक नारी के रूप में अच्छा योगदान।


सभी कलाकारों ने अपने-अपने रोल को बड़े सहज ढंग से निभाया है।


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🎶 संगीत और संवाद

फिल्म में भोजपुरी रंग-ढंग के पारंपरिक गाने हैं, जो गाँव की मिट्टी और संस्कृति की महक देते हैं। संवादों में आस्था, रिश्तों की मर्यादा और संवेदनशीलता स्पष्ट झलकती है।


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🎥 निर्देशन और प्रस्तुति

निर्देशक ने इस फिल्म को परिवारिक और धार्मिक आस्था से जोड़कर पेश किया है। कहीं-कहीं फिल्म थोड़ी लंबी लग सकती है, लेकिन भावनात्मक दृश्य दर्शकों को बाँधे रखते हैं।


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✅ सकारात्मक पक्ष

पारिवारिक मूल्यों पर ज़ोर

महिला किरदारों की गरिमा और आस्था का चित्रण

भोजपुरी संस्कृति और धार्मिक पृष्ठभूमि का अच्छा मेल


❌ कमजोर पक्ष

कुछ जगहों पर कहानी अनुमानित लगती है

तकनीकी पक्ष (सिनेमैटोग्राफी व एडिटिंग) सामान्य स्तर का है



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⭐ अंतिम निर्णय (Rating)

3.5/5 🌟
यह फिल्म उन दर्शकों को पसंद आएगी जो पारिवारिक रिश्तों, देव-भावना और भोजपुरी संस्कृति से जुड़ी कहानियों में रुचि रखते हैं।

rajukumarchaudhary502010

🎬 फिल्म समीक्षा – भउजी हमार देवी, भैया भगवान

⭐ कहानी

फिल्म की कहानी एक साधारण गाँव के परिवेश में रची-बसी है जहाँ रिश्तों, त्याग और आस्था का गहरा संदेश मिलता है।
केंद्रीय किरदार भउजी का है, जिन्हें परिवार में “देवी” जैसा स्थान दिया गया है। उनकी सादगी, संघर्ष और बलिदान ही पूरी कहानी को आगे बढ़ाते हैं। वहीं भैया का किरदार परिवार के स्तंभ की तरह दिखाया गया है, जिनके लिए बहन और पत्नी ही पूरा संसार हैं।

कहानी में पारिवारिक ड्रामा, धार्मिक आस्था और भावनात्मक टकराव को जोड़ते हुए दिखाया गया है कि किस तरह परिवार में स्त्रियों का महत्व “देवी” और पुरुष का त्याग “भगवान” के समान माना जाता है।


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🎭 अभिनय

संजना पांडेय (भउजी) – इन्होंने अपनी मासूम अदाओं और भावुक अभिनय से दिल जीत लिया है।

प्रशांत सिंह (भैया) – उनका रोल गम्भीर और ज़िम्मेदार भाई के रूप में प्रभावशाली है।

ज्योति मिश्रा (अन्य महिला किरदार) – पारिवारिक नारी के रूप में अच्छा योगदान।


सभी कलाकारों ने अपने-अपने रोल को बड़े सहज ढंग से निभाया है।


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🎶 संगीत और संवाद

फिल्म में भोजपुरी रंग-ढंग के पारंपरिक गाने हैं, जो गाँव की मिट्टी और संस्कृति की महक देते हैं। संवादों में आस्था, रिश्तों की मर्यादा और संवेदनशीलता स्पष्ट झलकती है।


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🎥 निर्देशन और प्रस्तुति

निर्देशक ने इस फिल्म को परिवारिक और धार्मिक आस्था से जोड़कर पेश किया है। कहीं-कहीं फिल्म थोड़ी लंबी लग सकती है, लेकिन भावनात्मक दृश्य दर्शकों को बाँधे रखते हैं।


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✅ सकारात्मक पक्ष

पारिवारिक मूल्यों पर ज़ोर

महिला किरदारों की गरिमा और आस्था का चित्रण

भोजपुरी संस्कृति और धार्मिक पृष्ठभूमि का अच्छा मेल


❌ कमजोर पक्ष

कुछ जगहों पर कहानी अनुमानित लगती है

तकनीकी पक्ष (सिनेमैटोग्राफी व एडिटिंग) सामान्य स्तर का है



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⭐ अंतिम निर्णय (Rating)

3.5/5 🌟
यह फिल्म उन दर्शकों को पसंद आएगी जो पारिवारिक रिश्तों, देव-भावना और भोजपुरी संस्कृति से जुड़ी कहानियों में रुचि रखते हैं।

rajukumarchaudhary502010

🎬 फिल्म समीक्षा – भउजी हमार देवी, भैया भगवान

⭐ कहानी

फिल्म की कहानी एक साधारण गाँव के परिवेश में रची-बसी है जहाँ रिश्तों, त्याग और आस्था का गहरा संदेश मिलता है।
केंद्रीय किरदार भउजी का है, जिन्हें परिवार में “देवी” जैसा स्थान दिया गया है। उनकी सादगी, संघर्ष और बलिदान ही पूरी कहानी को आगे बढ़ाते हैं। वहीं भैया का किरदार परिवार के स्तंभ की तरह दिखाया गया है, जिनके लिए बहन और पत्नी ही पूरा संसार हैं।

कहानी में पारिवारिक ड्रामा, धार्मिक आस्था और भावनात्मक टकराव को जोड़ते हुए दिखाया गया है कि किस तरह परिवार में स्त्रियों का महत्व “देवी” और पुरुष का त्याग “भगवान” के समान माना जाता है।


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🎭 अभिनय

संजना पांडेय (भउजी) – इन्होंने अपनी मासूम अदाओं और भावुक अभिनय से दिल जीत लिया है।

प्रशांत सिंह (भैया) – उनका रोल गम्भीर और ज़िम्मेदार भाई के रूप में प्रभावशाली है।

ज्योति मिश्रा (अन्य महिला किरदार) – पारिवारिक नारी के रूप में अच्छा योगदान।


सभी कलाकारों ने अपने-अपने रोल को बड़े सहज ढंग से निभाया है।


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🎶 संगीत और संवाद

फिल्म में भोजपुरी रंग-ढंग के पारंपरिक गाने हैं, जो गाँव की मिट्टी और संस्कृति की महक देते हैं। संवादों में आस्था, रिश्तों की मर्यादा और संवेदनशीलता स्पष्ट झलकती है।


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🎥 निर्देशन और प्रस्तुति

निर्देशक ने इस फिल्म को परिवारिक और धार्मिक आस्था से जोड़कर पेश किया है। कहीं-कहीं फिल्म थोड़ी लंबी लग सकती है, लेकिन भावनात्मक दृश्य दर्शकों को बाँधे रखते हैं।


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✅ सकारात्मक पक्ष

पारिवारिक मूल्यों पर ज़ोर

महिला किरदारों की गरिमा और आस्था का चित्रण

भोजपुरी संस्कृति और धार्मिक पृष्ठभूमि का अच्छा मेल


❌ कमजोर पक्ष

कुछ जगहों पर कहानी अनुमानित लगती है

तकनीकी पक्ष (सिनेमैटोग्राफी व एडिटिंग) सामान्य स्तर का है



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⭐ अंतिम निर्णय (Rating)

3.5/5 🌟
यह फिल्म उन दर्शकों को पसंद आएगी जो पारिवारिक रिश्तों, देव-भावना और भोजपुरी संस्कृति से जुड़ी कहानियों में रुचि रखते हैं।

rajukumarchaudhary502010

ऊर्जा का धर्म: संभोग से समाधि तक

✍️ लेखक: अज्ञात अज्ञानी

संभोग…
सिर्फ शारीरिक मिलन नहीं है।
यह एक बहाव है — एक पतन है — एक विसर्जन है।

जब कोई संभोग में उतरता है,
तो केवल शरीर नहीं बहता —
उसके साथ ऊर्जा बहती है,
पंचतत्व बहते हैं,
वीर्य बहता है,
चेतना का एक अंश बह जाता है।

यह बहाव एक प्रकार की मृत्यु है —
जिसमें तुम जड़ की ओर लौटते हो।
जैसे नदी समंदर में मिल कर खो जाती है,
वैसे ही संभोग के क्षणों में —
तुम प्रकृति के सबसे नीच केंद्रों में विलीन हो जाते हो।

संभोग में जितना सुख है,
उतनी ही गहराई से एक खालीपन भी है।
यह अजीब विरोधाभास है —
कि संभोग जितना तीव्र होता है,
उसके बाद की प्यास भी उतनी ही विकराल होती है।

क्यों?

क्योंकि भीतर जो कुछ था — बह गया।
और जो बह गया — वह तुम्हारी चेतन संपदा थी।

तब मन उसी जड़ संसार की देहरी पर अटक जाता है।
वह समझ नहीं पाता कि इस पार भी कोई जीवन है।
वह विषयों, स्वादों और तृप्तियों की कैद में रह जाता है।

---

मन एक अद्भुत तत्व है।

मन ही मक्खी है —
जो गंदगी में रम जाए तो अधोगति को चुनती है।

और यही मन आत्मा बन सकता है —
जब प्रेम में डूब जाए, जब शुद्ध रस में लगे।

मन जहां लग जाए — वह वैसा ही हो जाता है।
यदि वह शरीर की भूख में अटका, तो वही शरीर बन जाएगा।
यदि वह प्रेम, मौन, समाधि में डूबा — तो वही ब्रह्म बन जाएगा।

---

काम में ऊर्जा नीचे बहती है।
समाधि में ऊर्जा ऊपर चढ़ती है।
यह केवल दिशा का अंतर नहीं है —
यह समूचे अस्तित्व के अनुभव का अंतर है।

समाधि वह स्थिति है —
जहां कुछ भी नहीं किया जा रहा होता है,
लेकिन सब कुछ घट रहा होता है।

जैसे दूध से घी बना,
घी से दीप जला,
और वह दीप अपने आप जल रहा है…
प्रकाश दे रहा है।

यह प्रकाश कोई साधारण प्रकाश नहीं —
यह आत्मप्रकाश है।
यह उस चेतना से जुड़ता है जो अदृश्य है — जो ईश्वर है।

---

ब्रह्मचर्य का अर्थ यह नहीं कि तुम कुछ “नहीं” कर रहे हो।
बल्कि यह कि तुम कुछ कर ही नहीं सकते —
क्योंकि करने वाला “तुम” ही नहीं बचा।

ऊर्जा बह रही है — लेकिन बिना कर्ता के।
यह बहाव इतना सूक्ष्म है कि उसमें कोई हस्तक्षेप नहीं कर सकता।

तब पंचतत्व स्थिर हो जाते हैं।
मन मौन हो जाता है।
और चेतना —
वह शुद्ध चेतना —
चैतन्य जगत में विलीन हो जाती है।

---

यही ब्रह्मचर्य है।
जहां तुम्हारा मन, शरीर, काम, क्रिया — सब रुक गया,
लेकिन ऊर्जा बह रही है।
ऊर्जा ऊपर की ओर बह रही है।

जब ऐसा होता है —
तब तुम ईश्वर को नहीं खोजते,
ईश्वर स्वयं तुम्हें खोज लेता है।
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bhutaji

मानसिक स्वतंत्रता और भौतिक सुख ✧


मनुष्य का जीवन बड़ा अजीब है।
बाहर से देखो तो सब कुछ चमकता हुआ—
बंगले, गाड़ियाँ, बैंक बैलेंस, पद और प्रतिष्ठा।
लेकिन भीतर झाँको,
तो एक अंधेरा, एक बेचैनी,
एक गहरी घुटन बैठी है।

यह घुटन किसी और ने नहीं दी।
इसे हमने खुद चुना है।
यह हमारी अपनी मानसिक गुलामी की उपज है।


---

दुनिया जिसे सुख कहती है,
वह असल में सुख नहीं—
सुख का भ्रम है।
एक सपना है,
जो समाज ने हमें बचपन से दिखाया।

“पढ़ो, नंबर लाओ।
नौकरी करो।
धन कमाओ, नाम कमाओ—
और तुम सुखी हो जाओगे।”

लेकिन देखो तो—
क्या सचमुच ऐसा होता है?
क्या हर अमीर, भीतर से भी सम्पन्न है?
नहीं।
बाहर से अमीर, भीतर से भिखारी।
यही मनुष्य की सबसे बड़ी त्रासदी है।


---

मैं कहता हूँ,
असली सुख भीतर है।
वह तुम्हारी स्वतंत्रता में है।
जब तुम्हारा मन
किसी भी बंधन, किसी भी विचार,
किसी भी सामाजिक अपेक्षा से मुक्त हो जाता है—
तभी असली आनंद जन्म लेता है।

वह आनंद न सत्ता से मिलता है,
न साधनों से,
न सम्मान से।
वह तो तुम्हारे मौन में छिपा है,
तुम्हारी जागरूकता में छिपा है।


---

मनुष्य की ग़लती यही है कि
वह बाहर खोज रहा है,
जो भीतर है।
वह दिखावे के लिए जी रहा है—
भीतर की शांति खो बैठा है।

हर चाह पूरी होती है,
तो दूसरी जन्म ले लेती है।
यह अंतहीन दौड़ है।
यह दौड़ सोने की जेल है—
बाहर से चमकदार,
भीतर से कैदख़ाना।


---

ओशो कहते हैं:
“जीवन का आनंद तब आता है,
जब मनुष्य भीतर से आज़ाद हो।
जब वह खुद को दूसरों की नज़र से नहीं,
अपने भीतर की आँखों से देखे।”


---

धन, साधन, सत्ता—
ये साधन हैं, उद्देश्य नहीं।
इनका उपयोग करो,
इनके दास मत बनो।

जीवन का असली उद्देश्य है—
अपने भीतर के मौन की खोज।
अपनी अंतरात्मा की यात्रा।
और यह यात्रा तब शुरू होती है,
जब तुम अपनी मानसिक बेड़ियाँ तोड़ देते हो।


---

स्वतंत्रता बाहर से नहीं आती।
वह भीतर से फूटती है।
जब तुम अपने मन के मालिक बन जाते हो,
तो जीवन में एक नई सुवास आती है।
एक नई रोशनी खिलती है।


---

इसलिए, मेरे प्रिय,
अगर सचमुच सुखी होना है,
तो भीतर की यात्रा शुरू करो।
भीड़ की दौड़ छोड़ो।
अपनी मानसिक स्वतंत्रता को पहचानो।

यही असली सुख है।
यही असली संपत्ति है।
🙏🌸 — 𝓐𝓰𝔂𝓪𝓣 𝓐𝓰𝔂𝓪𝓷𝓲

bhutaji

एक नया उजाला एक नयी उम्मीद है
हार गये तो हार गए हर दिन कहा जीत है
गैरो पर इतना क्यो बरस रहे हो
तुम्हारी हर बात भला कैसे ठीक है
और चोट लगी तो मरहम भी लगेगा
गहरा सा घाव है बाकी सब ठीक है .

mashaallhakhan600196

आध्यात्मिक बाज़ार का सच

1. आज धर्म और अध्यात्म भी एक बिज़नेस बन गया है।
– गुरु और प्रवचनकर्ता केवल "हमारे जुड़े, हमारे जुड़े" की पुकार करते हैं।
– यह सब एक ग्राहक जुटाने की मार्केटिंग है।


2. सोशल मीडिया उनका सबसे बड़ा हथियार है।
– जहाँ मुफ्त में विज्ञापन किया जा सकता है।
– लाखों लोगों तक पहुँचने का यह सबसे सस्ता जरिया है।


3. ज्ञान का मंच भी बाजार है।
– वे हमेशा एसी हॉल में, बड़े मंचों पर ज्ञान बाँटते हैं।
– क्यों? क्योंकि वहाँ से "मूल्य" बनता है—
नाम, प्रसिद्धि और पैसा।


4. भीतर से रिक्त, बाहर से भरे।
– जो भीतर सच्चे साधक होते हैं, वे मंच नहीं ढूँढते, मौन ढूँढते हैं।
– लेकिन ये प्रवचनकर्ता बाहर लोगों के बीच जाकर "भीड़" से अहंकार लेते हैं।
– बड़ी भीड़ सुन रही है, ताली बजा रही है—
तो उन्हें लगता है "हम महान हैं"।


5. आध्यात्मिकता केवल सात्विक नशा बन गई है।
– प्रवचन केवल मन को हल्की तसल्ली देते हैं।
– असली जागरण का कोई सवाल ही नहीं।
– आत्मा को छूने वाली कोई बात इनसे नहीं निकलती।


6. सत्य के मामले में वे सबसे नीचे हैं।
– एक अनपढ़ भी उनके ऊपर खड़ा हो सकता है।
– क्योंकि अनपढ़ कम से कम ईमानदार है।
– लेकिन ये बड़े लोग भीतर से पूर्ण भिखारी हैं।
– बाहर से सिंहासन पर बैठे हैं, भीतर आत्माहीन खड़े हैं।




---

✍🏻 🙏🌸 — 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷𝓲

bhutaji

ક્યાં ખબર હતી કે ફરી મળશે, આ હૃદયની વાત,
અણધારી મુલાકાતે આવી, મારી એકલી રાત.

આંખો મળી, અને જાણે કોઈ જૂની યાદ તાજી થઈ,
હોઠ પર હાસ્ય આવ્યું, ને આંખોમાં વરસ્યો વરસાદ.

વાત વાતમાં સમય ક્યાં વીતી ગયો, એની ખબર ન રહી,
બધું જાણે પાછું આવ્યું, ને દફન થઈ ગઈકાલની ફરિયાદ.

મને નથી કોઈ શિકાયત, કે નથી કોઈ સવાલ હવે,
બસ, તારો ચહેરો જોઈને, મળી ગઈ મને મારી જાત.

તારા ગયા પછી પણ, એ ખુશ્બુ હજુ રહી ગઈ છે,
કેવી રીતે ભૂલું એ ક્ષણ, એ સુંદર મુલાકાત બની હતી.

palewaleawantikagmail.com200557