Quotes by Manoj kumar shukla in Bitesapp read free

Manoj kumar shukla

Manoj kumar shukla Matrubharti Verified

@manojkumarshukla2029
(61)

*दोहा-सृजन हेतु शब्द*
*खेत,माटी,रबी,फसल,खलिहान*

कृषि-क्रांति ने बदल दिया, कृषक *खेत* परिणाम।
श्वेत-क्रांति ने लिख दिया, धरा-कृष्ण-बलराम।।

*माटी* की खुशबू सदा, खींचे सबका ध्यान।
परदेशों में जब रहें, उपजे मन में ज्ञान।।

फसल *रबी* की कट गई, आया अप्रैल माह।
सूरज की गर्मी मिली, दूर हटे कृषि-दाह।।

राष्ट्रवाद की *फसल* को, रखें सुरक्षित आप।
संकट के हर काल में, मिट जाएंगे ताप।।

भारत का *खलिहान* अब, लक्ष्मी का भंडार।
अन्नपूर्णा की कृपा, खुशहाली आधार।।

मनोज कुमार शुक्ल *मनोज*

Read More

*दोहा-सृजन हेतु शब्द*
*ग्रीष्म, सूरज, अंगार, अग्नि, निदाघ*

*ग्रीष्म* प्रतिज्ञा भीष्म सी, तपा धरा का तेज।
मौसम के सँग में सजी, बाणों की यह सेज।।

*सूरज* की अठखेलियाँ, हर लेतीं हैं प्राण।
तरुवर-पथ विचलित करे, दे पथिकों को त्राण।।

बना जगत *अंगार* है, धधक रहे अब देश।
कांक्रीट जंगल उगे, बदल गए परिवेश।।

तपती धरती *अग्नि* सी, बनता पानी भाप।
आसमान में घन घिरें, हरें धरा का ताप ।।

भू-*निदाघ* से तृषित हो, भेज रही संदेश।
इन्द्र देव वर्षा करो, हर्षित हो परिवेश।।

मनोज कुमार शुक्ल *मनोज*
🙏🙏🙏🙏🙏

Read More

साहित्यकार बहुत व्यस्त हैं....

साहित्यकार बहुत व्यस्त हैं।
संचालक गण बड़े त्रस्त हैं।।

छपवाने की होड़ मची कुछ।
प्रकाशक अब सभी मस्त हैं।।

खुद का लिखा पीठ खुद ठोंका।
छंद-विज्ञानी सभी पस्त हैं।।

श्रोताओं की कहाँ कमी अब।
उदरपूर्ति कर हुए लस्त हैं।।

लंबी-चौड़ी कविता पढ़ लें।
चाँद-सितारे नहीं अस्त हैं।

परिहासों का दौर चल रहा।
पिछली आमद सभी ध्वस्त हैं।।

मनोज कुमार शुक्ल *मनोज*
4/4/25

Read More

नव संवत्सर आ गया.....

नव संवत्सर आ गया, खुशियाँ छाईं द्वार ।
दीप सजें हर द्वार पर, महिमा अपरंपार ।।

चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को, आता है नव वर्ष।
धरा प्रकृति मौसम हवा, सबको करता हर्ष।।

संवत्सर की यह कथा, सतयुग से प्रारम्भ।
ब्रम्हा की इस सृष्टि की, गणना का है खंभ।।

नवमी तिथि में अवतरित, अवध पुरी के राम ।
रामराज्य है बन गया, आदर्शों का धाम ।।

राज तिलक उनका हुआ, शुभ दिन थी नव रात्रि।
राज्य अयोद्धा बन गयी, सारे जग की धात्रि ।।

मंगलमय नवरात्रि को, यही बड़ा त्योहार।
नगर अयोध्या में रही, खुशियाँ पारावार।।

नव रात्रि आराधना, मातृ शक्ति का ध्यान ।
रिद्धी-सिद्धी की चाहना, सबका हो कल्यान ।।

चक्रवर्ती राजा बने, विक्रमादित्य महान ।
सूर्यवंश के राज्य में, रोशन हुआ जहान ।।

बल बुद्धि चातुर्य में, चर्चित थे सम्राट ।
शक हूणों औ यवन से,रक्षित था यह राष्ट्र।।

स्वर्ण काल का युग रहा, भारत को है नाज ।
विक्रम सम्वत् नाम से, गणना का आगाज ।

मना रहे गुड़ि पाड़वा, चेटी चंड अवतार ।
फलाहार निर्जल रहें, चढ़ें पुष्प के हार।।

भारत का नव वर्ष यह, खुशी भरा है खास।
धरा प्रफुल्लित हो रही, छाया है मधुमास।।


मनोज कुमार शुक्ल 'मनोज'🙏🙏🙏

Read More

बेटी घर की भाग्य विधाता.......

बेटी घर की भाग्य विधाता।
मात-पिता की आश्रय दाता।।

परिवारों में सेतु बनाती।
सदियों से जोड़े यह नाता।।

ससुरालय में कुछ को आकर।
घर-परिवार नहीं है भाता।।

अपना और पराया कहकर।
भेदभाव में मन-भरमाता।।

अपने-तुपने के झगड़े में।
याद-मायका सदा रुलाता।।

बचपन भर झूले डोली में।
दूजा डोली में घर लाता।।

दोनों घर के मात-पिता सम।
जिसने समझा वह सुख पाता।।

गलत सोच में जीना जीवन।
सदा उमर भर ठोकर खाता।।

धरती पर ही स्वर्ग-नरक है।
कर्मों का प्रतिफल मिल जाता।।

मनोजकुमार शुक्ल *मनोज*

Read More

स्वाभिमान अब बहुत घना है.....

स्वाभिमान अब बहुत घना है।
भारत उन्नत देश बना है।।

माना सदियों रही गुलामी।
शोषण से हर हाथ सना है।।

सद्भावों के पंख उगाकर।
वृक्ष बसेरा बड़ा तना है।।

आक्रांताओं ने सुख लूटा।
इतिहासों का यह कहना है।।

झूठ-फरेबी बहसें चलतीं।
कहना-सुनना नहीं मना है।।

रहें सुर्खियों में हम ही हम।
समाचार-शीर्षक बनना है।।

मानवता से बड़ा न कुछ भी।
इसी मार्ग पर ही चलना है।।

मनोज कुमार शुक्ल *मनोज*

Read More

मन में उठे उमंग सुनो जी...

मन में उठे उमंग सुनो जी।
झूमे मस्त मतंग सुनो जी।।

फागुन का मौसम है आया।
चढ़ी सभी को भंग सुनो जी।।

होली की ऋतु हुई सुहानी।
छलक रहे है रंग सुनो जी।।

हुरियारों की टोली निकली।
नाची गोपी संग सुनो जी।।

देश विदेशों का रुख देखो।
छिड़ी आपसी जंग सुनो जी।।

युद्ध भूमि में तोपें गरजीं।
बिखरे मानव अंग सुनो जी।।

सत्ता के हित छिड़ी लड़ाई।
जनता होती तंग सुनो जी।।

मनोजकुमार शुक्ल मनोज

Read More

फागुन के दिन आ गये......

फागुन के दिन आ गये, मन में उठे तरंग।
हँसी-ठहा के गूँजते, नगर गाँव हुड़दंग ।।
कि होली आई है, रंगों को लाई है ।।
बसंती ऋतु छाई, सभी के मन-भाई
ये होली आई है, रंगों को लाई है ।।

अरहर झूमे खेत में, पहन आम सिरमौर।
मधुमासी मस्ती लिये, नाचे मन का मोर।
गाँव की किस्मत चमकी, घरों में खुशियाँ दमकीं।
ये बालें पक आईं, खेत में लहराईं
ये होली आई है, रंगों को लाई है ।।

जंगल में टेसू खिले, प्रकृति करे शृंगार।
चम्पा महके बाग में, गाँव शहर गुलजार।।
वो कोयल कूक रही है, मधुरिमा घोल रही है।
ये होली आई है, रंगों को लाई है ।।

प्रेम रंग में डूब कर, कृष्ण बजावें चंग ।
राधा पिचकारी लिये, डाल रही है रंग।।
कृष्ण-राधे की जोड़ी, खेलती बृज में होली
ये होली आई है, रंगों को लाई है ।।

लट्ठ मार होली हुई, लड्डू की बौछार।
रंग डालते प्यार से, पहनाएं गल-हार।।
नाचती रसिया टोली, करें मिल हँसी ठिठोली।।
यही मथुरा की होली, यही वृज की है होली।।

दाऊ पहने झूमरो, झूमें मस्त मलंग।
होरी गा-गा झूमते, टिमकी और मृदंग।।
ग्वाले सब घर हैं जाते, नाच गा धूम मचाते।
ये होली आई है, रंगों को लाई है ।।

महिलाओं की टोलियाँ, हम जोली के संग।
बैर बुराई भूलकर, खेल रहीं हैं रंग ।।
यही संस्कृती हमारी, रही दुनिया से न्यारी
ये होली आई है, रंगों को लाई है ।।

फाग-ईसुरी गा रहे, गाँव शहर के लोग।
बासंति पुरवाई में, मिटें दिलों के रोग।।
चलो जी हँसलो भाई, भुला दो सभी लड़ाई।
ये होली आई है, रंगों को लाई है ।।

जीवन में हर रंग का, अपना है सुरताल ।
पर होली में रंग सब, मिलें गले हर साल ।।
सहिष्णुता हमें लुभाई, सभी हम भाई भाई
ये होली आई है, रंगों को लाई है ।।

दहन करें मिल होलिका, मन के जलें मलाल ।
गले मिलें हम प्रेम से, घर-घर उड़े गुलाल ।।
कि एकता हर्षाई, प्रगति की डगर दिखाई
सुनो प्रिय श्रोता भाई,बजाओ मिलकर ताली
ये होली आई है, रंगों को लाई है ।।

मनोज कुमार शुक्ल 'मनोज'

Read More

होली पर एक छंद मुक्त रचना सादर प्रस्तुत है

बढती हुई अपसंस्कृति

रास्ते में मुझे
कल एक सहपाठी नेताजी
टकरा गए।
बोले गुरु !
तुम यहाँ!
अच्छे तो हो?
मैंने कहा जी हाँ।
किंतु जरा जल्दी में हूँ। कल मिलूँगा।।
यार, तुम हमेशा जल्दी में रहते हो,
जब भी समय मांगता हूं टाल देते हो
मैं समाज में बढ़ रही
अप संस्कृति को रोकना चाहता हूं ।
और अपने संग
तुम जैसे साहित्यकारों को जोड़ना चाहता हूं ।
उनकी इस बात पर मैं रुक गया।
उनके सामने झुक गया ।
वह बोले हर साल की तरह
हम सब मिलकर कल
होलिका दहन कराएंगे।
हंसी-खुशी के साथ
फिर पैमाना भी छलकाएँगे।
मुझे उनकी बुद्धि पर तरस आया।
मैंने भी तुरंत नहले पर दहला जमाया ।
आप इस तरह होलिका दहन करवा कर
कैसे अपसंस्कृति की रक्षा कर पाएंगे?
यह सुन नेता अचकचाया,
मुझे घूरा और बड़बड़ाया।
मुझसे कहा-
लगता है जैसे तेरा कोई स्क्रू ढीला है
या कल अवश्य पी होगी?
मैंने कहा यार,
क्या कहते हो?
नशे में डूब कर
वर्तमान को भुलाना मुझे नहीं आता।
इसलिए आप लोगों की तरह त्यौहार मनाना
मुझे नहीं भाता।
मेरे भाई यदि आपने सही मायने में
होलिकादहन कराया होता।
तो देश का नजारा ही कुछ और होता।
भाईचारे की भावना के साथ होती
देश की प्रगतिशीलता और संपन्नता
तब धर्म भाषा के नाम पर हम कभी ना लड़ते
ना कभी अकड़ते।
हमने उनके गले में हाथ डालकर समझाया यार,
होलिका हमारे दिलों में घुसी
काम क्रोध लोभ मोह द्वेष और अहंकार जैसी बुराइयों का दूसरा नाम ही तो है,
जिस दिन हम उन्हें दहन कर पाएंगे।
उस दिन हम सही मायने में
होलिका दहन कर पाएंगे ।
तभी हम सही मायने में
अपने देश समाज को इस बढ़ती
अप संस्कृति से बचा पाएंगे।

मनोजकुमार शुक्ल *मनोज*

Read More

अपनेपन की मुस्कानों पर, जिंदा हूँ.....

अपनेपन की मुस्कानों पर, जिंदा हूँ।
नेह आँख में झाँक-झाँक कर, जिंदा हूँ।।

आश्रय की अब कमी नहीं है यहाँ कहीँ,
चाहत रहने की अपने घर, जिंदा हूँ।

खोल रखी थी मैंने दिल की, हर खिड़की।
भगा न पाया अंदर का डर, जिंदा हूँ।

तुमको कितनी आशाओं सँग, था पाला।
छीन लिया ओढ़ी-तन-चादर, जिंदा हूँ।

माना तुमको है उड़ने की, चाह रही।
हर सपने गए उजाड़ मगर, जिंदा हूँ।

विश्वासों पर चोट लगाकर, भाग गए।
करके अपने कंठस्थ जहर, जिंदा हूँ।

धीरे-धीरे उमर गुजरती जाती है।
घटता यह तन का आडंबर, जिंदा हूँ।

मनोजकुमार शुक्ल *मनोज*

Read More