सजल ..
समांत-
पदांत- आऊँ
मात्रा भार- 16
भटका कब पथ समझ न पाऊँ?
किससे अपनी व्यथा सुनाऊँ??
उलटा घड़ा रखा पनघट में।
कैसे जल-अमृत बरषाऊँ ??
जीवन भर उपकार किया है।
कितना कबतक भार उठाऊँ??
अपनों से फिर चोट मिली है।
कैसे अपनों पर इठलाऊँ??
मैंने सबको दिया सहारा।
बातों पर कैसे इतराऊँ??
दीवारें भाषाओं की हैं।
कैसे उनको मैं समझाऊँ??
सबकी अलग-अलग है पीड़ा।
घावों को कैसे भरपाऊँ??
मनोज कुमार शुक्ल मनोज
5/10/25