#Light up ur confusion by this Poem..!!
My Realistic Poem...!!!
यारों सर्पों के मुक़द्दरों में वह ज़हर कहाँ
जो इन्सान आपसी अदावत में उगलता है
बर्बरता की सीमाओं को भी शर्म आती हैं
बंदा इन्सानियत छोड़ हैवानियत छूता है
अच्छे-बूरे की परख से परे शैतान बनता है
कोरोनावायरस भी तो प्रभु की देन नहीं है
यह इन्सानी मुखौटा के दरिंदों की उपज है
प्रभुजी कभी-कभी सबक़ की सज़ा देते हैं
पर प्रभु कभी इतने निर्दय नहीं हो सकते
वह तो परम कृपालु दयालु पालनहार है
अन्न-दाता विधाता है पृथ्वी सर्जनहार है
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