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@rtjd.387186

बड़ा आसान होता है दूसरों पर इलज़ाम डाल देना,
उससे भी आसान होता है ख़ुद को निर्दोष साबित कर देना।
मुश्किल होता है दूसरों को समझना,
उससे अधिक मुश्किल होता है ख़ुद की गलती स्वीकार कर लेना।

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धर्म से किसी का पेट नहीं भरता है,
मगर बिना धर्म के हर कोई भूखा है।

“ First impression is the last impression, and the last impression is the most important.”
~AuthorRtjd


कुछ रिश्तों की शुरुआत आहिस्ते-आहिस्ते होती है,
दीवारों पर लगी काई की तरह।
कुछ बंधन जल्दी मुरझा जाते हैं,
फूल की कली की तरह।
तो कुछ वक्त के साथ मज़बूत होते चले जाते हैं,
बरगद के पेड़ की तरह।

मगर,
सबसे अहम होता है वो आख़िरी लम्हा
वो आख़िरी मुलाकात या लफ़्ज़,
जो सारी अच्छी-बुरी यादों पर
किसी गहरे रंग की तरह चढ़ जाता है।
कुछ दाग़ बनकर,
कुछ दरिया के बहते पानी की तरह।

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गुड़हल का वह फूल आज़ाद है,
कुछ कुदरत के बंधनों से,
सालभर हंसता-खिलता है,
बदले में थोड़ी-सी देखभाल
और प्यार चाहिए इसे,
फिर खूबसूरती हर तरफ,
जवानी इसकी आबाद है।

आज जहां ये खिला है,
वह एक जेलखाना है,
लेकिन इसे कोई एतराज़ नहीं,
चाहे पानी कोई साधु दे या कैदी
पानी तो पानी रहेगा,
और यह फूल खुश है यहां,
क्योंकि काम इसका मुस्कुराना है।

फूल हमेशा मुस्कुराता रहता था,
ना मुस्कुराने की कोई वजह भी नहीं थी,
वो कैदी भी रोज़ आता था,
पानी डालकर उस फूल में,
कुछ देर बैठकर उसके साथ
ना जाने क्या फुसफुसाता रहता था।

जैसे दो घनिष्ठ मित्र
आपस में बातें कर रहे हों,
शायद दोनों आदी हो चुके थे
एक-दूसरे के।
कभी बातें होतीं, कभी न भी होतीं,
लेकिन वो रोज़ाना मिल रहे थे।

गुड़हल का वह फूल अब राज़दार था,
कैदी की उन सब बातों का,
जो कभी वो नहीं कहता
किसी और के सामने।
अब वो भी समझने लगा था,
कि वो आज़ाद नहीं है
वो एक गुनाहगार था।

आज कैदी उस बाग में उदास बैठा है,
वह शांत है और हताश भी,
क्योंकि आज उसका घनिष्ठ मित्र
उस बाग में नहीं था।
था तो बस उसका खाली डंठल
बिलकुल खाली।
कैदी इसलिए निराश बैठा है।

गुड़हल का वह फूल
जलीक ने तोड़ लिया था।
शायद वो बेखबर था,
और जालिम भी।
उसे एहसास भी था?
उसने किसी का सहारा छीन लिया था।

जलीक तो बेहद खुश था,
उसने एक लंबे अरसे से
इस फूल पर अपनी नज़र
बनाकर रखी हुई थी।
बाग में वह फूल लगाने का सुझाव
भी जलीक का ही था।
आज वो सफल हो गया,
क्योंकि आज उसने फूल तोड़ लिया था।

जलीक को फूल की सुगंध
और रंग भा गया था।
उसने बड़े प्यार से फूल को एक थैली में
संभाल कर रख लिया।
जलीक जानता था आखिरकार
इस फूल को अपने असली घर
पहुंचने का सही वक्त आ गया है।

जलीक की अर्धांगिनी एक धार्मिक स्त्री थी,
उसने गुड़हल का वह फूल देखकर
जलीक की बेहद प्रशंसा की।
आज उसके पूजा का दिन था,
उसने ईश्वर के हाथ जोड़कर
शुक्रिया अदा किया।
वो मान बैठी कि ये उसकी भक्ति का फूल है।

वह तुरंत ही ईश्वर की आराधना में लग गई,
उसने वो फूल पूजा थाली में सबसे आगे रखा,
और सच्चे मन से पूजा में लीन हो गई।
वो प्रसन्नता के मारे,
आज हर बार से अधिक देर तक
पूजा करती रही।

लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं हुई,
बल्कि कहानी का आगाज़ अब हुआ है।
यहां अब बहुत सारी कहानियां जन्म लेंगी
केवल एक ही सवाल के साथ...
“फूल किसका है?”

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बड़े शहर के छोटे लोग

ऊँची-ऊँची इमारतें हैं,
उससे भी ऊँचा लालच है।
चारों दिशाओं में पक्की सड़के हैं,
रोशनी में तर-बतर,
और टूटी-फूटी सबकी मानस है।

बड़ी-बड़ी गाड़ियाँ हैं,
उससे भी बड़ा आलस है।
किस काम की वो शोहरतें,
किस काम की वह तरक्की,
जहाँ पैदल चलना भी आफ़त है।

चमकती ये रंगीन बस्तियाँ,
विज्ञान और विकास की बदौलत,
ये उच्च कोटि की आबादियाँ।
आविष्कार और विलासिता की मूरत हैं,
इंसानियत और कुदरत के मुख़ालिफ़त।
कैसे बड़े लोग हैं?
हर चीज़ को स्वार्थ के तराजू से नापते है।

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