Most popular trending quotes in Hindi, Gujarati , English

World's trending and most popular quotes by the most inspiring quote writers is here on BitesApp, you can become part of this millions of author community by writing your quotes here and reaching to the millions of the users across the world.

New bites

#WhispersOfSufiMahak ✨🌙

habeebamahakmahak702298

દીલમાં સાથિયા દોરી શરૂઆત કરી છે,*
*મહુરતમાં જ મેં તને યાદ કરી છે,*
*ખુદ ઇશ્વરે પુછયુ, બહુ ગમે છે તને ?*
*અનહદ તુ ગમે છે, મે કબુલાત કરી છે.....!!✍🏻✍🏻 ભરત આહીર

bharatahir7418

Radhe Radhe 🙏🏻

hardikashar6777

रूप है, वैभव है, जीवन में कोई कमी नहीं,
पर मन की जिद ने दी एक अनसुनी सज़ा कहीं।
जो झुकना जान ले, वही पा ले प्रेम का सार,
बाकी सब रह जाते हैं, अपने ही अहंकार में लाचार।
धन हो या रूप, सब क्षणिक भ्रम का खेल,
जिद के दर्प में ढके रह जाते हैं स्नेह के मेल।
जिसने खुद से युद्ध किया, वही पाया संतोष का द्वार,
बाकी बस गिनते रह गए अपने एकाकी संसार।

आर्यमौलिक

deepakbundela7179

ममता गिरीश त्रिवेदी की कविताएं
कविता का शीर्षक है लहरें

mamtatrivedi444291

🙏🙏सुप्रभात 🙏🙏
आपका दिन मंगलमय हो

sonishakya18273gmail.com308865

Good morning friends..

kattupayas.101947

શમણે જો આવીશ,
તો મુસીબત થશે !

હ્રદયે જો વસાવીશ,
તો મુસીબત થશે !

વાત તો કરી લેશું
બે ઘડી મળીને
અહીં વાતને જો લંબાવીશ,
તો મુસીબત થશે !

એકવાર થઈ જવા દે
છતા બધા ઘાવને
દરદને જો દબાવીશ,
તો મુસીબત થશે !✍🏻✍🏻 ભરત આહીર

bharatahir7418

✧ मूर्ति से अनुभव तक — धर्म की यात्रा ✧

🙏🌸 — 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷𝓲

मनुष्य का आरंभ ‘A for Apple’ से होता है।
वह अक्षर नहीं समझता, पर उसकी ध्वनि को याद करता है।
धीरे-धीरे वही ध्वनि भाषा बन जाती है, वही भाषा अर्थ बनाती है।
पर यदि कोई जीवन भर ‘A for Apple’ ही दोहराता रहे,
तो वह कभी ‘B’ तक नहीं पहुँच सकता।
यही हाल मनुष्य के धर्म का है।

मूर्ति, शास्त्र, कथा, यह सब धर्म की प्राथमिक कक्षा है।
ये प्रतीक हैं, जिनसे आत्मा पहली बार किसी अदृश्य को छूना सीखती है।
मूर्ति का उद्देश्य था — ध्यान को एक दिशा देना,
न कि ध्यान को उसी में बाँध देना।
पर मनुष्य वहीं ठहर गया जहाँ उसे बस थोड़ी देर रुकना था।
उसने साधन को साध्य बना दिया,
सीढ़ी को मंज़िल समझ लिया।

जैसे माँ का स्तन बच्चे के लिए आवश्यक है,
पर वही स्तन अगर बड़ा होकर भी उसकी “ज़रूरत” बना रहे,
तो वह विकास नहीं, निर्भरता है।
उसी तरह, मूर्ति तब तक धर्म है जब तक वह भीतर की यात्रा की शुरुआत है।
पर जब वह ही मंज़िल बन जाए,
तो वह धर्म नहीं — अंधविश्वास है।

पुराण, कथा, शास्त्र — ये सब संकेत मात्र थे।
वे प्रतीक थे उस सत्य के, जिसे केवल अनुभव से जाना जा सकता है।
पर मनुष्य ने उन संकेतों को ही सत्य घोषित कर दिया।
अब सत्य खोजा नहीं जाता, बस सुनाया जाता है।
जो सुन ले, वही “आस्तिक”;
जो पूछ ले, वही “नास्तिक” कहलाता है।

यही सबसे बड़ा भ्रम है —
धर्म ने बोध को खो दिया,
और कथा ने अनुभव को निगल लिया।
आज का धर्म उपन्यास बन गया है,
जहाँ कथा है, संवाद है, चमत्कार है —
पर आत्मा की कोई उपस्थिति नहीं।

वास्तविक धर्म मूर्ति में नहीं,
मौन में है।
वह किसी मंदिर के पत्थर में नहीं,
बल्कि मनुष्य के सचेत क्षण में जन्म लेता है।
जिसे एक बार भीतर देखा जाए,
वह हर मूर्ति में वही तेज देख सकता है —
पर मूर्ति की पूजा नहीं,
उसमें छिपे प्रतीक का बोध करता है।

इसलिए आवश्यक है —
हम मूर्ति का विरोध न करें,
पर मूर्ति पर ठहर भी न जाएँ।
वह सीढ़ी है,
पर मंज़िल नहीं।

जब धर्म प्रतीक से अनुभव की ओर लौटेगा,
तब ही मनुष्य फिर से ईश्वर को नहीं,
स्वयं को पाएगा।

bhutaji

ईश्वर — आस्तिक और नास्तिक के बीच की मूर्खता ✧

अधिकतर कहते हैं — “ईश्वर है।”
यह कोई एक धर्म या आस्तिक की बात नहीं, बल्कि पूरी मानवजाति की गूँज है।
हर युग, हर सभ्यता ने यही उत्तर दिया है —
कि ईश्वर है, लेकिन सिद्ध नहीं कर सकते।

फिर नास्तिक आया —
उसने आस्तिक को मूर्ख कहा, अंधभक्त कहा, और हँस दिया।
उसकी हँसी में भी एक धर्म था — “नहीं का धर्म।”
दोनों अपनी घोषणा में इतने व्यस्त हैं कि सुनना भूल गए हैं।

मैंने दोनों से एक ही प्रश्न किया —
आस्तिक से — बताओ, कहाँ नहीं है ईश्वर?
और नास्तिक से — बताओ, कहाँ नहीं है ईश्वर?
दोनों चुप हो गए, क्योंकि किसी ने कभी देखा नहीं।
एक मानता रहा, दूसरा नकारता रहा —
पर देखने की बुद्धि दोनों में नहीं थी।

आस्तिक ने ईश्वर को शास्त्र और धारणा में बाँध दिया।
वह उसे सिद्ध नहीं कर सका, पर दूसरों पर थोपता रहा।
नास्तिक ने उसे उसी थोपे हुए रूप में नकार दिया,
क्योंकि जो झूठा था, वही उसके लिए “ईश्वर” बन गया।

इस प्रकार दोनों भ्रमित हैं —
एक भ्रम में कि “ईश्वर है”, दूसरा भ्रम में कि “ईश्वर नहीं है।”
और मैं किसी का विरोध नहीं करता,
मुझे तो यह पूरा खेल ही एक व्यंग्य लगता है —
मानव की अपनी ही बनाई हुई उलझन का नाच।

मेरा प्रश्न उनके विरुद्ध नहीं है,
बल्कि उनके बीच है —
क्योंकि “है” और “नहीं है” दोनों के बीच जो मौन है,
वहीं ईश्वर है।

ईश्वर को पाने के लिए दोनों मानसिकताओं को छोड़ना पड़ता है।
जिसने अपनी मानसिकता छोड़ी — वही उसे पा सका।
क्योंकि ईश्वर बाहर नहीं, भीतर की मौन चेतना है।
और जिसकी मानसिकता ईश्वर नहीं है —
वह जीने में समर्थ नहीं है, केवल तर्क में व्यस्त है।

मेरी खोज ने मुझे यही बताया —
कि ईश्वर आस्तिक या नास्तिक की मूर्खता में नहीं,
बल्कि उस मौन साक्षी में है
जहाँ दोनों की आवाज़ें शांत हो जाती हैं।

शेष सब कुछ —
पूरा यह अनंत ब्रह्मांड,
प्रत्येक कण, प्रत्येक श्वास —
ईश्वर से लबालब भरा हुआ है,
बस मनुष्य की मानसिकता खाली है।

🙏🌸 — 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷𝓲

bhutaji

आस्तिक और नास्तिक — एक ही सिक्के के दो पहलू
धर्मशास्त्र पर प्रश्न उठाना कोई अपराध नहीं, बल्कि चेतना का संकेत है। पर दुर्भाग्य यह है कि जिसने प्रश्न उठाया, उसे ‘नास्तिक’ कहकर काट दिया गया, और जिसने प्रश्नों से भाग गया, वही ‘आस्तिक’ कहलाया।

आज के आस्तिक अपने ईश्वर, अपने शास्त्र, अपनी श्रद्धा के नाम पर केवल मान्यताएँ दोहरा रहे हैं। उनके पास तर्क नहीं, केवल भावनाओं का हवाला है। वे उत्तर नहीं देते — बस आस्था का परदा डाल देते हैं। यही वह क्षण है जहाँ आस्तिकता, उत्तर देने में असमर्थ होकर नास्तिकता के समान ही खोखली सिद्ध होती है।

दूसरी ओर, नास्तिक भी उसी प्रतिक्रिया का उलटा रूप है। वह ईश्वर को नकारता है क्योंकि उसे आस्तिकों में सत्य नहीं मिला। लेकिन किसी की मूर्खता से सत्य मिट नहीं जाता। नास्तिक का ‘न मानना’ और आस्तिक का ‘मान लेना’ — दोनों ही एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। एक अंधी स्वीकृति, दूसरा अंधा इंकार। दोनों ही भीतर की आँख से अनजान हैं।

सच्चा प्रश्न यह नहीं कि तुम आस्तिक हो या नास्तिक —
सच्चा प्रश्न यह है कि क्या तुमने कभी अपनी आस्तिकता को देखा है?
क्या वह अनुभव से उपजी है या भय, संस्कार, परंपरा से गढ़ी गई है?

वास्तविक आस्तिक वह है जो अपने ईश्वर को दूसरों के तर्कों से नहीं, अपने मौन अनुभव से जानता है।
और सच्चा नास्तिक वह है जो बिना भय के हर झूठे ईश्वर को चुनौती देने का साहस रखता है।

दोनों ही यदि ईमानदार हों — तो अंततः एक ही बिंदु पर पहुँचते हैं —
जहाँ न मानना बचता है, न मान लेना —
केवल देखना।

✍🏻 — 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷𝓲

bhutaji

As Bhai Dooj celebrates the bond of love✨, care, and lifelong protection between brothers and sisters,
let’s also celebrate the clarity and trust that keep our relationships strong — just like healthy vision keeps our world bright.

At Netram Eye Foundation, we believe that every relationship deserves the gift of clear sight👁️ and ❤️heartfelt connection.
Wishing you and your loved ones a Bhai Dooj filled with happiness, health, and togetherness. 💙

netrameyecentre

ये दुनिया हमारी कब हो चली
कैसे मै खुद को इनाम दू
मेरी जेबो मे बस चन्द सिक्के है बाकि
कैसे मै खुद को आराम दू
है खामोश दिल और खामोश तुम
कैसे मौहब्बत का अब नाम दू
थोड़ा तो इशारा अब देदे मुझे
ताकि मै मौहब्बत को अन्जाम दूं.

mashaallhakhan600196

मेरी बुक रहे तेरी दुआ मुझ पर - सातवा हिस्सा ( भाग) .
•• जादूगर जोहरान और तबाही••
मातृभारती ऐप पर प्रकाशित हो चुका है स्टोरी पर जाये पढ़े स्टार और अपने रिवीयू के साथ मेरा प्रोत्साहन बढ़ाये .

https://www.matrubharti.com/book/19982875/rahe-teri-dua-mujh-per-saatwa-hissa

mashaallhakhan600196

તું કર્મ કર છોડ બીજું, માધવ સાથે છે
તું સારું જો છોડ બીજું, માધવ સાથે છે
તું કર્મનો અધિકારી, તારું બીજું કઈ નથી
તું સારું બોલ છોડ બીજું, માધવ સાથે છે
તું સારું સોચ છોડ બીજું, માધવ સાથે છે
તું શોધે બહાર જો, માધવ તારી ભીતર છે

– મેહુલ સોની

moxmehulgmailcom

“एक टूटे हुए मर्द को उसकी पसंदीदा औरत संभाल लेती है,
मगर एक टूटी हुई औरत को — कोई भी पसंदीदा मर्द नहीं संभाल पाता।”


> टूटे हुए मर्द को प्यार संभाल लेता है,
पर टूटी हुई औरत को — सिर्फ वक्त ही।

archanalekhikha

**जब तुम गुम हो जाओ...**

जब तुम गुम हो जाओ
तो बाहर मत ढूंढना खुद को,
भीड़ में जो मिलते हैं
वे सब अधूरे होते हैं।

थोड़ा ठहरो,
अंधेरों को आँखों में उतरने दो,
फिर देखो—
उन्हीं सन्नाटों में
एक हल्की-सी रौशनी धड़कती मिलेगी।

वो रौशनी तुम हो,
जो दुख से भी जन्म लेती है,
जो टूटकर सँवरती है,
और हर बार थोड़ा नया बन जाती है।

एक दिन दुखना भी थम जाएगा,
जब तुम खुद में खुद को पाओगे,
और समझोगे—
गुम हो जाना,
दरअसल खुद तक पहुँचने का रास्ता था।

आर्यमौलिक

deepakbundela7179