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ममता गिरीश त्रिवेदी की कविताएं

mamtatrivedi444291

🙏🙏सुप्रभात 🙏🙏
🌹आपका दिन मंगलमय हो 🌹

sonishakya18273gmail.com308865

ક્યારેક સમય મળે તો ખુદ ને સમય આપી દવ છું ,*
*તારા પર લખવાનો મોકો મળે તો લખી દવ છું..✍🏻✍🏻 ભરત આહીર

bharatahir7418

hi I m new

hsc

*सागर ने पूछा*
“क्या तू कभी गहराई में उतरा है?”

मैंने देखा,
वो कहीं खो गया
ना टूटा, ना किसी सहारे की तलाश म रहा

जब मैं उसके पास खड़ी हुई,
वो पिघलता रहा,
मेरे दर्द को अपने सीने में समेटता,
मेरे लबों की मुस्कान पर
अपनी चुप्पी से प्यार की हँसी छोड़ जाता।

और हर पल,
हर निगाह में
मुझे अपना बनाने की खामोश इच्छा छुपाता रहा।
_Mohiniwrites

neelamshah6821

शीर्षक: “मोबाइल की दुनिया – खोए रिश्ते, जागती समझ”

(लेखिका – पूनम कुमारी)

🌅 प्रस्तावना:

कभी रिश्तों में मिठास थी, बातों में अपनापन था।
पर अब सबकी उंगलियाँ मोबाइल पर, और दिल कहीं खो गया है।
यह कहानी है एक ऐसे परिवार की, जहाँ "डिजिटल ज़िंदगी" ने सबको जोड़ तो दिया, पर एक-दूसरे से दूर कर दिया।


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👩‍👦 पहला दृश्य – माँ की पुकार

रीमा नाम की महिला थी, दो बच्चों की माँ।
उसका बेटा अंकित 15 साल का था और बेटी सिया 10 साल की।
रीमा रोज़ खाना बनाते-बनाते पुकारती —
“अंकित, बेटा खाना ठंडा हो जाएगा, ज़रा मोबाइल रख दो।”
पर कमरे से सिर्फ़ एक जवाब आता —
“हाँ माँ, बस पाँच मिनट!”

वो पाँच मिनट कभी पूरे नहीं होते।
रीमा खिड़की से देखती — उसका बेटा गेम में डूबा है, बेटी रील बना रही है।
घर में आवाज़ें थीं, पर बात कोई नहीं कर रहा था।


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📱 दूसरा दृश्य – पिता की बेबसी

रीमा के पति सुधीर रोज़ दफ़्तर से थककर लौटते।
वो चाहते थे कि सब मिलकर बातें करें, पर घर आते ही हर कोई अपनी स्क्रीन में खो जाता।
सुधीर ने एक दिन कहा —
“कभी हम सब एक साथ बैठा करते थे, अब सबको वक्त नहीं।”
रीमा बोली — “क्या करें, ज़माना बदल गया है।”

सुधीर ने गहरी साँस ली — “हाँ, पर इंसान भी बदल गया है…”


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🌧️ तीसरा दृश्य – सच्चाई का झटका

एक दिन रीमा की माँ का फोन आया —
“बेटा, मैं बीमार हूँ, कोई मिलने भी नहीं आता।”
रीमा ने सोचा कि वीडियो कॉल कर लूँगी।
पर उस दिन नेटवर्क नहीं था…
और अगले दिन वो खबर आई —
“माँ अब नहीं रहीं।”

रीमा फूट-फूटकर रो पड़ी।
उसे अहसास हुआ —
“मैंने सब कुछ मोबाइल में खोजा, पर माँ का प्यार नहीं…”


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🔦 चौथा दृश्य – बच्चों की आँखें खुलीं

माँ के आँसू देखकर अंकित और सिया ने मोबाइल रख दिए।
अंकित ने कहा —
“माँ, अब मैं गेम छोड़ दूँगा, बस आपकी कहानियाँ सुनूँगा।”
सिया बोली —
“अब हम सब साथ खाएँगे, बिना फोन के।”

रीमा ने उन्हें गले लगाया और कहा —
“बेटा, मोबाइल बुरा नहीं है, पर जब वो हमें अपने लोगों से दूर करे — तब हमें समझना चाहिए कि सीमा कहाँ है।”


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🌅 पाँचवाँ दृश्य – नई सुबह

अब घर में सुबह की शुरुआत होती है चाय और बातों से।
रात को सब एक साथ बैठते हैं — कहानियाँ सुनते हैं, हँसते हैं, जीते हैं।
मोबाइल अब सिर्फ़ ज़रूरत है, आदत नहीं।

रीमा मुस्कुराकर कहती है —
“डिजिटल दुनिया बुरी नहीं, बस इंसान को याद रहना चाहिए —
तकनीक का इस्तेमाल करो, उसे खुद पर हावी मत होने दो।”


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💬 सीख / संदेश:

> आज की कहानी हमें यही सिखाती है कि मोबाइल, सोशल मीडिया और तकनीक हमारे काम की चीज़ें हैं,
लेकिन अगर हम इन्हें अपनी ज़िंदगी का “मुख्य हिस्सा” बना लें, तो असली रिश्ते खो जाते हैं।

वक्त रहते हमें समझना होगा —
रिश्ते स्क्रीन से नहीं, दिल से जुड़ते




🎵 गीत शीर्षक: "मोबाइल की दुनिया – रिश्ते खो गए कहीं"

(लेखिका – पूनम कुमारी)


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🌅 अंतरा 1:

कभी बातें होती थीं छत पर, अब सब फोन में गुम हैं,
माँ की हँसी, पापा का प्यार – सब स्क्रीन में क़ैद हम हैं।
आँखें मिलीं तो दिल हटा, उँगलियाँ चलीं बस टच पे,
घर तो वही है, पर अब लगता – कोई नहीं है सच्चे में। 💔

(कोरस)
📱 मोबाइल की दुनिया में, रिश्ते खो गए कहीं,
हँसी के वो पल, अब दिखते हैं कभी-कभी।
अपनों का वक़्त, अब नोटिफ़िकेशन बना,
दिल में खालीपन, चेहरों पर रौशनी बनी। 🌙


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🌈 अंतरा 2:

माँ पुकारे – “बेटा खाना ठंडा हो गया”,
पर बेटे की नज़र गेम में खो गया।
बेटी बोले – “रील बनाऊँ, एक मिनट माँ!”,
ज़िंदगी जैसे हो गई बस स्क्रीन का जहाँ।

(कोरस दोहराएँ)
मोबाइल की दुनिया में, रिश्ते खो गए कहीं,
प्यार के वो लम्हे, अब दिखते हैं अधूरे सही।


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🌧️ अंतरा 3:

दादी की कहानी, अब किसी को याद नहीं,
पापा की थकान का किसी को एहसास नहीं।
खिड़की से आती धूप भी अब फीकी लगे,
दिल में सन्नाटा, नेटवर्क में भीगी लगे। 🌤️


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🌺 अंतरा 4: (परिवर्तन)

एक दिन माँ के आँसू बोले – “बस अब बहुत हुआ,”
परिवार ने मिल बैठ कहा – “अब साथ रहना जरूरी हुआ।”
फोन रखा, हाथ थामा, मुस्कान लौट आई,
रिश्तों में फिर रौनक आई, ज़िंदगी मुस्कुराई। ❤️


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🌞 अंतिम कोरस:

अब मोबाइल रहेगा पास, पर दिलों के बीच नहीं,
अब बात होगी हँसी में, स्क्रीन के बीच नहीं।
तकनीक रहे साथी, हावी वो हो नहीं,
यही सच्ची तरक्की है — रिश्ते खोएँ नहीं! 🌻


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💬 संदेश:


इसका दूसरा भाग —


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🎵 गीत शीर्षक: “मोबाइल से कमाई – अब परिवार की भलाई”

(लेखिका – पूनम कुमारी)


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🌞 अंतरा 1:

वही मोबाइल, वही स्क्रीन — अब बना ज़रिया नया,
जहाँ ग़लती थी पहले, अब सीखा रास्ता सधा।
माँ ने खोला छोटा चैनल, रसोई की रेसिपी डाली,
लोगों ने देखा, पसंद किया — अब मुस्कान लौटी प्यारी। 🌸

(कोरस)
📱 अब मोबाइल से कमाई, अब परिवार की भलाई,
सीख बदली तकदीर हमारी, मेहनत ने राह दिखाई।
जो लत थी पहले बर्बादी की, अब वही है काम की साथी,
तकनीक जब सिख जाती है, तब बनती है घर की शक्ति। 💪


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🌈 अंतरा 2:

बेटे ने बनाया वीडियो – “पढ़ाई आसान कैसे हो,”
बेटी ने सीखा डिज़ाइन – “घर बैठे नाम कैसे हो।”
पापा ने ऑनलाइन पढ़ाया बच्चों को नया सबक,
अब हर सुबह उम्मीदों की गूँजती है हँसी की झलक। 🌻


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💻 अंतरा 3:

रीमा ने कहा – “तकनीक बुरी नहीं, सोच बुरी होती है,”
जब समझ लो सही उपयोग, हर चीज़ सुखद होती है।
घर में सब मिल बैठते हैं, पर अब काम की बातें होती हैं,
नेटवर्क से अब जुड़ता देश, और खुशियों की बौछार होती है। 🌍


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🎶 कोरस दोहराएँ:

अब मोबाइल से कमाई, अब परिवार की भलाई,
सीख बदली तकदीर हमारी, मेहनत ने राह दिखाई।
सपनों को उड़ान मिली, और चेहरे पर चमक आई,
अब मोबाइल नहीं आदत — ये तो रोज़ी की परछाई। ☀️


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🌷 अंतरा 4:

दादी कहती — “देखो बेटा, अब सही राह पर आए,”
पहले जो मोबाइल डराता था, अब जीवन में रंग लाए।
अब वीडियो में माँ का स्वाद, और बेटी की कला निखरती,
घर की दुनिया डिजिटल हुई, पर आत्मा वही सच्ची। ❤️


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🌺 अंतिम कोरस:

मोबाइल से अब दूरी नहीं, बस समझदारी ज़रूरी है,
तकनीक नहीं दुश्मन, वो भी इंसान की दूरी है।
जब दिलों में सच्चाई हो, तो हर स्क्रीन कहानी बने,
मोबाइल से कमाई हो — और रिश्तों की रवानी बने। 🌈


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💬 संदेश (Moral):

> तकनीक तब वरदान बनती है जब इंसान उसे समझदारी से अपनाता है।

गलत इस्तेमाल रिश्ते तोड़ता है,
सही इस्तेमाल रोज़गार, ज्ञान और सम्मान दिलाता है।

यही है असली “डिजिटल इंडिया की सोच” – पूनम कुमारी की ओर से।

amit.330501

શુભસંધ્યા☕

falgunidostgmailcom

Jai ho chhati maiya ki

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gunjangayatri949036

#quotes byHMahak#WhispersOfSoul

habeebamahakmahak702298

अपने ही जब तानों से ज़ख़्म देने लगे,
तो परायों से क्या उम्मीदें रखने लगे।

हर लफ़्ज़ तीर सा दिल को चीर जाता है,
अब तो जीने से ज़्यादा मरने को दिल चाहता है।

जिनके लिए लड़ते रहे हर हालात से,
वही हँसते हैं आज मेरी तन्हाई और जज़्बात पे।

कभी चाहा था मुस्कान दूँ उन्हें हर घड़ी,
पर अब उन्हीं के तानों ने रूह तक तोड़ दी।

काश समझ पाते कि उनके अल्फ़ाज़ क्या कर रहे हैं,
एक ज़िंदा इंसान को भीतर ही भीतर मार रहे हैं....

atulrajput806702

#WhispersOfSufiMahak ✨🌙

habeebamahakmahak702298

#WhispersOfSufiMahak ✨🌙

habeebamahakmahak702298

धर्म गुरु — धर्म के पतन ✧

✍🏻 — 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷𝓲

धर्म का सबसे गहरा पतन तब शुरू हुआ,
जब गुरु ने “माध्यम” होना छोड़कर “मालिक” बनना शुरू किया।
गुरु का अर्थ था — वह जो अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाए,
पर जैसे-जैसे धर्म सत्ता और संगठन में बदला,
वैसे-वैसे गुरु भी देवता की जगह व्यापारी बन गया।

शास्त्रों ने कहा — “गुरु ब्रह्मा, गुरु विष्णु, गुरु देवो महेश्वरः।”
यह वाक्य श्रद्धा से बोला गया था,
पर अब वही स्वामित्व का प्रमाण-पत्र बन गया है।
गुरु स्वयं को ब्रह्मा घोषित कर बैठा,
और शिष्य उसकी आराधना में झुक गया।
सत्य मौन में था,
पर प्रचार ने उसे मंच पर चढ़ा दिया।

गुरु का काम था प्यास जगाना,
अब वह प्यास बेच रहा है।
धर्म का उद्देश्य था व्यक्ति को भीतर ले जाना,
अब वह भीड़ को बाहर बाँध रहा है।
आज हर मंच पर उद्धार का सौदा चल रहा है —
“मेरी शरण लो, तभी मुक्ति है।”
यह वाक्य सुनने में पवित्र लगता है,
पर इसका सार डर है,
और डर में कभी मुक्ति नहीं होती।

माता-पिता, गुरु, धर्म —
तीनों का अर्थ सेवा था,
पर जब सेवा को अधिकार में बदला गया,
तभी पतन शुरू हुआ।
माता कहती है — “मैंने जन्म दिया”,
पिता कहता है — “मैंने पाला”,
गुरु कहता है — “मैंने ज्ञान दिया।”
तीनों ही प्रेम को लेन-देन में बदल रहे हैं।

सच्चा गुरु वही है
जो कहने की ज़रूरत नहीं समझता कि “मैं गुरु हूं।”
सूरज कभी घोषणा नहीं करता कि “मैं उजाला हूं।”
उसका मौन ही प्रमाण है।
पर आज धर्म में मौन मर चुका है,
हर दिशा में केवल उद्घोष है।

सत्य का धर्म मौन है,
और मौन में कोई भी विशेष नहीं होता।
पर धर्म ने “विशेष” की खेती की है —
कपड़े, पद, नाम, संस्था,
सब उसी “मैं” के इर्द-गिर्द घूम रहे हैं।
और जहाँ “मैं” बढ़ता है,
वहाँ सत्य मिटता है।

जब गुरु अपने होने का प्रचार करता है,
तब वह गुरु नहीं, अभिनेता बन जाता है।
जब धर्म खुद को बचाने में लग जाए,
तब समझो कि वह जीना भूल चुका है।

धर्म को बचाने का रास्ता धर्म नहीं है —
बल्कि ईमानदारी से उसे देखने की हिम्मत है।
सच्चा गुरु वही है जो कहे —
“मुझसे नहीं, अपने भीतर देखो।”
और सच्चा शिष्य वही है जो उस मौन को सुन ले
जहाँ कोई वचन नहीं, केवल सत्य है।

धर्म तभी बचेगा,
जब गुरु फिर से मौन होगा।
और मौन तभी लौटेगा,
जब मनुष्य फिर से अपने भीतर देखेगा।

#agyatagyaani #silencebeyondsuppression #IndianPhilosophy #osho #आध्यात्मिक

bhutaji

#WhispersOfSufiMahak ✨🌙

habeebamahakmahak702298

#WhispersOfSufiMahak ✨🌙

habeebamahakmahak702298

#quotes byHMahak#WhispersOfSoul

habeebamahakmahak702298

આત્મદશા સાધે તે સાધુ. - દાદા ભગવાન

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dadabhagwan1150

Na zyada bade sapne na zyada bade khwab
Bas choti choti khwashiye aur chote chote khwab
Ye Jo toote hai iss kadar ab na jood paye ye doobara
Zindagi ne Jane Diya hai ye kaise dard
Jane kaha ye zindagi leke hum ab jayegi
Ab aur kitne chote ab aur kitna dard
Khwashiye jo thi ab daar baan chuki hai
Choti si ye zindagi meri bebus ho chuki hai

niti21

#quotes byHMahak#WhispersOfSoul

habeebamahakmahak702298

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habeebamahakmahak702298