चांद का सफर.........
कभी किसी ने कागज़ पर लिखा,
तो किसी ने मुझे मुंह ज़ुबानी कहा,
किसी ने मुझे ज़मीन पर उतारने की बात कही,
तो कोई मुझे दूर से देख रश्क करता रहा,
सबकी तरह मैं भी अपनी किसमत लिखवा कर लाया हूँ,
तुम लिखते रहो गज़ल मुझ पर, कहते रहो शायरी,
मैं चांद तो अपनी चांदनी बिखरने आया हूँ............
सुबह को छोड़ तू रात की बात कर,
बैठ मेरे पास तू, कुछ अपनी कह कुछ मेरी सुन,
दूर हूँ पर मजबूर नहीं,
तारीफ सुनने का शौक नहीं,
दोस्त बनाने की चाह मुझे तेरी खिड़की तक ले आती हैं,
वरना गुरूर की कमी नहीं मुझमें,
तू मुझे नाराज़ करके तो देख यूँ ना हो कि,
मैं बादलों में छुप जाऊँ कहीं..............
लोगों की तरह तराजू लेकर नहीं बैठता मैं,
किसी को ज्यादा तो किसी को कम रोशनी नहीं दे ता मैं,
किसी के दर्द का इलाज हूँ मैं,
तो किसी की जुदाई का गवाह हूँ मैं,
कभी किसी की ज़िन्दगी का ग्रहण हूँ मैं,
तो कहीं लाखों लोगों की ईद हूँ मैं..............
स्वरचित
राशी शर्मा