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जब मैं खुद की एक सहेली हूँ फिर कैसे कहूँ अकेली हूँ खुद से खुद में ही हॅस लेना फिर कभी आंख भर रोना मैं उलझी हुई पहेली हूँ फिर कैसे कहूँ अकेली हूँ कभी खुशी के पल झाके तो कभी आंसूओ का झरना कुछ ना कहना बस चुप सा हो जाना कभी चीख-चीख रो लेना मैं एक अनजान पहेली हूँ फिर कैसे कहूँ अकेली हूँ जब मैं खुद की एक सहेली हूँ। । मीरा सिंह
मैनें तुम्हें अपनी जिन्दगी के पंद्रह साल दिए है तुमने मुझे इस कदर तोडने से पहले पंद्रह मिनट भी नही सोचा।। मीरा सिंह
मैनें उसमें खामियाँ होने के बाद भी बेइंतहा मोहब्बत की पर अफसोस उसे मेरी खूबियाँ कभी नही दिखी।। मीरा सिंह
मेरा कहना वो है मेरा सुनना वो है कभी हँसु या चुप हो जाऊँ पर मेरा रोना वो है बहुत शिकायतें नाराज़गी खामोशियाँ मगर मेरा कुछ न कहना वो है उससे मिलना नही है मुझे अब मगर मेरा जीना वो है आँखों के किनारे बसे आंसूओ की चमक वो है जीवन के सफर में हर एक एहसास वो है वो कुछ भी नही मेरा मगर मेरी हर आस वो है।। मीरा सिंह
Hey
मैनें तुमको है चाहा तुम्हारे बिना मैनें हर पल बिताया तुम्हारे बिना खुश रहे तुम हमेशा औरो के संग मुझको जीना न आया तुम्हारे बिना।। मीरा सिंह
वो अक्सर मुझसे कहता है अब जीने में वो बात नही सांसे तो चलती है लेकिन जीवन में वो मधुमास नही उसकी तडपन को सुनकर मैं नैनों में जल भर लेती हूँ कभी निरखती उसको हूँ हाँ हूं में कुछ कह देती हूँ वो चला गया जिन राहों से मैं वही खडी उसे तकती हूँ सब समझ कर भी यूँ अनजान बनी उसकी खातिर जीती हूँ अपने गीतों में अक्सर ही आंखों के आंसू लिखती हूँ बनी कृष्ण की मीरा सी मैं उसकी आँखे पढती हूँ उसको लफ्जों में अक्सर ही एक सूनापन सा लगता है वो अक्सर मुझसे कहते है मैं हर पर उसको सुनती हूँ। । मीरा सिंह
जब साथ तुम्हारा माँगा था तब थे सबके अनुयायी अब ढूँढोगे तो पाओगे तुम सिर्फ मेरी परछाई। । तुम पर हर पल मरकर मैने खुद को खोया यूँ जान गवाई सबकी खुशी चाहिए तुमको चाहे मैने अपनी जान गवाई। । नही पता फिर लरजिस पर क्यों तेरे मोती सजते है दिन-रात बरसती है आँखे हर पल तुमको ढूंढा करती है।। दूजे का गले का बन हार अभी तुम मन ही मन इठलाते हो मुझे जताते हो अक्सर की तुम मन ही मन पछताते हो।। मीरा सिंह
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