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तुम अगर सुनो तो इक बात कहूँ अपने दिल के अल्फाज कहूँ याद बहुत आती है तेरी मैं तुमको दिन और रात कहूँ। । तुमसे अपने अल्फाज कहूँ इस तपती धूप में छाया तुम हो मेरे मन को बस भाया तुम हो तुमको सुबह-ओ-शाम कहूँ तुम अगर सुनो इक बात कहूँ। । मीरा सिंह
तुम्हारी राते गुजर रही है किसी और की बाहों में क्या तुम्हें मेरे अकेलेपन का एहसास है ना आंखों में नींद है मेरी और ना ही दिल में करार है।। मीरा सिंह
Hey
मैनें अपने दिल को तेरा घर ही रहने दिया धर्मशाला नही बनाया तू यकीन कर सके तो कर मैनें तेरे बाद ये दिल किसी से नही लगाया।। मीरा सिंह
तुम्हें छूना नही चाहती मगर देख लेना चाहती हूँ तुम्हें अपना नही बनाना चाहती मगर तुम्हारी बन जाना चाहती हूँ ये खामोशियाँ ये दर्द ये घुटन सब तेरी ही दी हुई अमानत है मैं जीना चाहती हूँ मगर अब बस मर जाना चाहती हूँ ।। मीरा सिंह
लेकर शांति सभ्यता का संदेश तू जो धरती पर आया खिले हर बाग के फूल धरती का कण-कण मुस्काया। । बुद्ध पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएं
मां
बहुत हसरत है तेरी जुबाॅ से माँ सुनने की।
मां तुझे सलाम
दिल के जज्बात को अल्फाज दिए जाए जरूरी तो नही जिससे हो इश्क वो साथ ही हो जरूरी तो नही हर इश्क मुकम्मल हो जाए जरूरी तो नही हर दर्द आंखों से छलक जाए जरूरी तो नही जो मेरी रूह में समाया है उसे भी मुझसे मोहब्बत हो जाए जरूरी तो नही।। मीरा सिंह
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