मैं हूँ कौन ........................
ज़र्रा - ज़र्रा पूछ रहा है,
रोज़ाना मेरा आप मुझे ढूढ़ रहा है,
कैसे भागे अपने आप से हम,
हर कोई यहां कुछ और ही बन कर घूम रहा है .....................
हर पल तोड़ देते है अपना वजूद,
फिर कुछ और ही बन जाते है,
नज़रे चुराते है खुद से हम,
आइने को भी झूठा बताते है ......................
सच की बात करते हैं,
झूठ की चादर औढ़े हम,
दिखावे में ही तो दुनिया समाई है,
बस यहीं तो मार खा गए हम,
काश की कोई अलग दुनिया से आ कर हमें ऐ बता जाए,
खोखले हो कर हम कैसे हो गए है ..........................
स्वरचित
राशी शर्मा