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सजी थी महफिल ख्वाबों की पर हसरत नीलाम हो गई तुने क्या देखा मुझे इक नज़र मेरी रुह भी तेरी गुलाम हो गई...@
क्या ख़ूब पर्दा है कि चिलमन से लगे बैठे हैं आप साफ़ छुपते भी नहीं सामने आते भी नहीं,,,@
कतरा कतरा मेरे हलक (गला) को तर करती है, मेरी रग रग में तेरी मोहब्बत सफ़र करती है,,,@
दर्द पुराने लिखूं या.... ताजे जख्म लिखूँ..... या जिसने दिए जिक्र उसका लिखूँ लब है खामोश.. चुप है कलम.. तुम ही कहो,, अब कैसे हाल ये दिल लिखूँ,,@
रोज़ जलते है इसमें...... मगर खाक नहीं होते.... अजीब है ये इश्क़ ...बुझ कर भी राख नही होते..@
ना पा सके, ना भुला सके, ना बता सके, ना जता सके तू क्या है मेरे लिए, ना खुद समझ सके, ना तुझे समझा सके..@
किसी को गीता में ज्ञान ना मिला किसी को कुरान में ईमान ना मिला उस बन्दे को आसमान में क्या रब मिलेगा जिसे इंसान में इंसान ना मिला,,@
हक़ीक़त ना सही मगर तुम ख़्वाब बन कर मिला करो, भटके हुए मुसाफिर को चांदनी रात बनकर मिला करो,,,@
जहा मे तेरे जैसा नूर हैं कहां सितारे,, पागल और चांद भी खफा ही खफा,, तेरी जुल्फों की कैद हे ऐसी कि अब तो रिहाई भी लगती सजा ही सजा,,,, @
लफ्जो के रास्ते आप मेरे दिल में उतर गये बंदा-नवाज़ आप तो हद से गुज़र गये,,,@
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