तुम,
हा तुम ,कहा करते थे,
ले चलूंगा सफर-ए-शहर पर।
फिर क्यू भूले हो अपने वादों को,
फिर क्यों वजह अब बताते हो,
बढ़ती उम्र की.....
पता है तुम्हे,
जब गांव से शहर की और ,
बढ़े थे कदम आप के,
और कहा था लौटकर जल्द आऊंगा,
फिर क्यों वजह अब बताते हो,
बढ़ती उम्र की.....
जानते हो ,
में रह नही सकती थी बीन आप के,
फिर भी आप गए थे परदेश,
चंद पैसे की खातिर अपनी ,
जवानी बेच आए हो,
फिर क्यों वजह बताते हो,
बढ़ती उम्र की.....
जीने के लिए जिये ,
या फिर जीये अपनो के लिए,
साथ अब किसी का रहा नहीं,
सब अपने अपने हो लिए,
फिर भी जीना है तुम्हे तो,
फिर क्यों वजह बताते हो,
बढ़ती उम्र की.....
भरत (राज)