Hindi Quote in Poem by ज़ख्मी__दिल…सुलगते अल्फ़ाज़

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पास जाऊं तो भी नहीं पहचानती है
वो पगली मेरी चाहत नहीं जानती है,

देखा था पहली दफ़ा उसे ख़्वाबों में
फूल लगे थे उसके घनेरे बालों में,

नजरों से जैसे कुछ वो बता रही थी
उसकी हर अदाएं मुझे सता रही थी,

पर तारीफ़ करूं तो बुरा मानती है
वो पगली मेरी चाहत नहीं जानती है,

उसकी गलियों से हर रोज गुजरता हूं
मिल जाए कहीं शायद यही सोचता हूं,

एक रोज़ मिली थी उसकी मेरी नज़र
नहीं बयां कर सकता वो हसीं मंज़र,

जाने क्यों गैरों को अपना मानती है
वो पगली मेरी चाहत नहीं जानती है,

कल ही आई थी रोते हुए मेरे पास
मिलना था उससे जो है उसका खास,

उसकी धड़कन गैर के लिए धड़कती है
पर मेरी चाहत उसके लिए तड़पती है,

उसे वो अपना रब व खुदा मानती है
वो पगली मेरी चाहत नहीं जानती है,

जाने भी दो अब क्या बयां करूं उससे
कैसे कह दूँ की मुझे मोहब्बत है तुझसे,

उसकी आरजू का कहीं और ठिकाना है
ना तो मुझे अपनी चाहत को जताना है,

उसकी मोहब्बत मेरी जुदाई मांगती है
वो पगली मेरी चाहत नहीं जानती है.🥀
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♦❙❙➛ज़ख़्मी-ऐ-ज़ुबानी•❙❙♦
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Hindi Poem by ज़ख्मी__दिल…सुलगते अल्फ़ाज़ : 111954435
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