" गलियों की सिफारिश "
जब आना तो कुछ यादें लेते आना
ख्वाब को हकीकत में बदलने के बाद जाना
गलियों की सिफारिश भी अजीब है मुझसे
मुलाकात का किस्सा यही छोड़ जाना ....
न देना मौका उन्हें ठिठोली करने का
और न सवाल खड़े करने का
बस मैं दुआ पढूं और तुम मुक्कमल होते जाना
मुलाकात का किस्सा यही छोड़ जाना ....
कुछ ऐसी मस्कत कर जाना
इन गलियों में अपनी तन्हाई छोड़ जाना
जब रोना चाहूं मैं गुजरते हुए,
खामोशी से आकर लिपट यूं जाना
मानो जैसे मेरे इंतेजार में थे
मुलाकात का किस्सा यही छोड़ जाना ....
Manshi K