दूरी का धोखा — भीतर छिपा भगवान ✧
आध्यात्मिक विषयों को अक्सर इतने कठिन, कठोर और दूरस्थ बताया जाता है कि साधारण मनुष्य के लिए वे असंभव प्रतीत होने लगते हैं। यह भ्रम फैलाया गया है कि आत्मा की साधना केवल विशेष तपस्या या अत्यधिक कठोर अनुशासन से ही संभव है।
इसी कारण सामान्य जनता इस मार्ग को इतना कठिन मान बैठती है कि वे केवल पूजा-अर्चना, जय-जयकार और आरती तक सीमित रह जाती है। वास्तविक आत्म-बोध या समाधि की ओर दृष्टि डालने की हिम्मत ही नहीं कर पाती।
परन्तु सच्चाई यह है कि हर महान साधक, हर ज्ञानी आत्मा साधारण परिस्थितियों से ही जन्मा है। न कोई विशेष धन, न सुविधाएँ, न ऊँची शिक्षा — फिर भी उन्होंने अपने भीतर की संभावना को पहचानकर जीवन का उच्चतम लक्ष्य प्राप्त किया।
इसका संदेश साफ़ है: हर मनुष्य के भीतर वही संभावना मौजूद है। “असंभव” कहना ही आत्मा के विकास का पहला और सबसे बड़ा अवरोध है। जब हमें कहा जाता है कि यह मार्ग केवल विशिष्टों के लिए है, तो हम अपने ही भीतर की हकीकत से विमुख हो जाते हैं।
यही कारण है कि आत्मा, समाधि और परमात्मा को सातवें आसमान पर बिठा दिया गया है, जबकि उनका संबंध हमारे साधारण जीवन से ही है।
वास्तव में आत्मा बीज के समान है, जो पहले से हमारे भीतर है। उसके अंकुरण के लिए दूर-दराज़ की यात्रा या असाधारण तपस्या की ज़रूरत नहीं है। प्रकृति स्वयं उस बीज को सहारा देती है। हमें बस अपने भीतरी स्वभाव को समझना और जागरूक होना है।
लेकिन जब मन में यह कर्ता-भाव बैठा दिया जाता है — “मुझे यह करना होगा, यह तपस्या करनी होगी, ये कठिनाइयाँ झेलनी होंगी” — तब हम खुद को असहाय मानने लगते हैं। यही भ्रम असली बाधा बनता है।
सत्य यह है कि आत्मा का विकास हर व्यक्ति का जन्मसिद्ध अधिकार है। यह केवल उन लोगों का विशेषाधिकार नहीं है जो कठोर तपस्या करते हैं। जब हम “असंभव” के भ्रम को त्याग देंगे और अपने भीतर की संभावना को स्वीकार करेंगे, तभी वास्तविक आध्यात्मिक उन्नति संभव हो सकेगी।
अध्याय : दूरी का धोखा — भीतर छिपा भगवान ✧
सूत्र 1.
धर्म ने आत्मा की तस्वीरें इतनी कठोर और असंभव बनाई कि आम आदमी को लगा — “यह हमारे बस का नहीं।”
➝ कठिन तपस्या और कठोर चित्र साधारण आदमी को शुरुआत में ही हरा देते हैं।
सूत्र 2.
जनता से कहा गया — बस देखो, नमन करो, जय-जयकार और आरती करो।
➝ मार्ग को असंभव बताकर पूजा ही धर्म बना दी गई।
सूत्र 3.
पर सच यह है कि कोई भी असाधारण पैदा नहीं होता। हर महान व्यक्ति साधारण, गरीब, अनपढ़ घर में जन्मा।
➝ असाधारण बनने की शुरुआत साधारणता से ही होती है।
सूत्र 4.
न धन, न सुख, न पद, न शिक्षा — साधारण मिट्टी से ही असाधारण खिले।
➝ सुविधा या संपत्ति नहीं, संघर्ष ही संभावना जगाता है।
सूत्र 5.
हर इंसान समान संभावना लेकर जन्म लेता है।
➝ किसी के भीतर कमी नहीं; फर्क बस जागरण का है।
सूत्र 6.
“असंभव” कहना ही आत्मा-विकास का पहला अवरोध है।
➝ जब शुरुआत में ही हार मान ली, तो बीज अंकुरित कैसे होगा?
सूत्र 7.
जब धर्म कहे — “वे पहुँच गए, पर तुम्हारे लिए असंभव है,” तो जनता पूजा में ही धर्म मान लेती है।
➝ पूजा आसान है, खोज कठिन लगती है।
सूत्र 8.
इसलिए समाधि, आत्मा, ईश्वर की बात सोचना भी असंभव-सा लगने लगता है।
➝ विषय को सातवें आसमान पर टाँग देने से इच्छा भी मर जाती है।
सूत्र 9.
आध्यात्मिक विषयों को सातवें आसमान पर टाँग दिया गया है।
➝ दूरी पैदा करना ही धर्म-सत्ता की चाल है।
सूत्र 10.
पर सच यह है कि इच्छा ही बीज है, और बीज भीतर है।
➝ कोई यात्रा बाहर नहीं, शुरुआत भीतर के बीज से है।
सूत्र 11.
बीज के लिए कोई अलग यात्रा नहीं करनी पड़ती; प्रकृति सब सहयोग देती है।
➝ जैसे बीज को अंकुरित होने के लिए मिट्टी, जल, सूर्य स्वाभाविक रूप से मिलते हैं।
सूत्र 12.
धर्म ने दृष्टि में कर्ता-भाव भर दिया — “इतना करना होगा, तपस्या करनी होगी, दुख उठाने होंगे।”
➝ कर्ता-भाव वही दीवार है जो सहज जागरण को रोक देता है।
सूत्र 13.
यही दृष्टि आदमी को असहाय बना देती है।
➝ जब भीतर भरोसा नहीं, तो बाहर सहारे ढूँढने ही पड़ते हैं।
सूत्र 14.
असहाय होकर वह पाखंड की शरण में चला जाता है और आगे सोच नहीं पाता।
➝ असली यात्रा रुकी रहती है, और जीवन पूजा में खो जाता है।
Agyat Agyan