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अहिल्या एक युवा चित्रकार थी, जो मुंबई की चमचमाती ज़िन्दगी से ऊब चुकी थी। उसकी आत्मा जैसे किसी गहरे अर्थ की तलाश में भटक रही थी। एक दिन उसने अचानक टिकट बुक किया और चली आई बनारस — वह शहर जिसके बारे में उसने अपनी नानी से कहानियाँ सुनी थीं।
जैसे ही वह वाराणसी स्टेशन पर उतरी, एक अजीब-सी शांति ने उसे घेर लिया। वहाँ की गंध — गंगा की, अगरबत्तियों की, और दूर से आतीं मंदिर की घंटियों की आवाज़ — जैसे किसी पुराने सपने की याद दिला रही थी।
उसने घाटों की ओर रुख किया। दशाश्वमेध घाट पर बैठकर वह घंटों गंगा को निहारती रही। वहाँ उसे एक बुजुर्ग साधु मिले — बाबा आनंदगिरि। वे चुपचाप जल में तैरते दीपों को देख रहे थे। अहिल्या ने उनसे पूछा, “बाबा, ये बनारस सबको अपनी ओर खींचता क्यों है?”
बाबा मुस्कुराए, “क्योंकि यहाँ मृत्यु मोक्ष है, और जीवन साधना। बनारस वो आईना है, जिसमें आत्मा खुद को देख पाती है।”
अहिल्या ने अगले कुछ हफ्ते घाटों पर चित्र बनाते हुए बिताए — गलियों में खेलते बच्चों की तस्वीर, संतो की, नाव पर बैठा एक उदास प्रेमी की, पूजा की, जलती चिताओं की। धीरे-धीरे उसके चित्र बदलने लगे। अब उनमें रंग से ज़्यादा आत्मा थी।
एक दिन उसने गंगा आरती के समय अपनी माँ को फोन किया और बस इतना कहा, “माँ, मैं घर आ गई हूँ — अपने असली घर, बनारस।”
మానవత్వమా నీవెక్కడ?
కాలువిరిగి
కుంటుతుంటే
పలుకరించేవారు
ఒక్కరూలేరు
కష్టాలొచ్చి
కన్నీరుకారుస్తుంటే
కారణమడిగేవారు
ఒక్కరూలేరు
కడుపుకాలి
పస్తులుంటుంటే
కరుణచూపేవారు
ఒక్కరూలేరు
రోగాలబారినపడి
రోదిస్తుంటే
సాయపడేవారు
ఒక్కరూలేరు
చినిగినబట్టలేసుకొని
తిరుగుతుంటే
సహాయంచేసేవారు
ఒక్కరూలేరు
ఉద్యోగందొరకక
సతమతమవుతుంటే
ఆదుకొనేవారు
ఒక్కరూలేరు
నిదురరాక
పొర్లాడుతుంటే
స్వాంతనకలగచేసేవారు
ఒక్కరూలేరు
కలతచెంది
కలవరపడుతుంటే
ధైర్యంచెప్పేవారు
ఒక్కరూలేరు
ఆడపిల్లపై
అత్యాచారంచేస్తుంటే
అడ్డుపడేవారు
ఒక్కరూలేరు
మనసు
కకావికలమైతే
వెన్నంటినిలిచేవారు
ఒక్కరూలేరు
మానవత్వం
చచ్చిపోయిందా
నోర్లు
మూసుకపోయాయా
చేతులు
చచ్చుబడ్డాయా
నీతులు
మాటలకేపరిమితమా
దయాదాక్షిణ్యాలు
అంతమయ్యాయా
దాతృత్వము
నశించిందా
సమాజము
కళ్ళుమూసుకుందా
ప్రభుత్వాలు
పట్టించుకోవటంలేదా
నేతిబీరకాయల్లో
నిండుకున్న నెయ్యిలాగా
మానవుల్లో
మానవత్వం తయారయిందా
మానవుల్లారా
మేల్కొనండి
మానవత్వాన్ని
మరవకండి
స్వార్ధాన్ని
తగ్గించుకోండి
సేవాగుణాన్ని
పెంపొందించుకోండి
अंकों का मायाजाल, आपका जन्मतिथि क्या कहता है। जानने के लिए उत्सुक हैं तो अपना जन्मतिथि भेजे #Poem #Shayari #Motivation
कोरोनाने खरंच दाखवून दिलं… कोण आपल्यावर किती प्रेम करतंय ते.
कित्येक मुलं आपल्या आईबाबांच्या, कुटुंबियांच्या प्रेतेकडे फिरकलीसुद्धा नाहीत…
कित्येक बायका नवऱ्यांपासून दूर पळाल्या… आणि नवरे त्या प्रेमाच्या नावाने गळा काढणाऱ्या बायकांपासून चार हात लांब राहिले…Vice -Versa
तेच लोक जे रोज "आय लव्ह यू", "सोनू", "मोनू" करत होते,
तेच या महामारीच्या सावलीत केवळ स्वतःचा जीव वाचवण्यात व्यग्र होते…
म्हणतात ना…
प्रेम जर खोटं असेल, तर एक दिवस उघड होतंच.
आणि जर खरं असेल, तर ते 'टायटॅनिक'सारखं असतं —
जहाज बुडत असलं तरी, तो म्हणतो…
"मी तुझ्यासोबत आहे."
हेच खरं प्रेम… जे वेळेच्या वादळात उभं राहतं.
बाकी सगळं — केवळ शब्दांचा गाजावाजा!
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