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तू क्या गई सारी ,,,,महफ़िल ही सिमट गई...@
उतार लूँ नज़र या नज़र में उतार लूँ.. आ जाओगे तुम यूँ ही या फिर से पुकार लूँ,,,@
इबारत. (वाक्य रचना).. इश्क की लिखकर वो चल दिये और आयत समझ हम् पढ़ते रहे उम्र भर,, @
दादी "मां" होती है नानी "मां" होती है चाची "मां" होती हैं मामी "मां" होती है भाभी "मां" होती है पर अपनी "मां",,,,अपनी"मां",, होती हे, "माँ से छोटा कोई शब्द नहीं माँ से बड़ा कोई अर्थ नहीं,,@
ना ज़रूरत हो ना जरिया हो तुम देखकर जिसे दुनिया खूबसूरत लगे वो "नज़रिया" हो तुम..@
अभी अधूरी सी है शायरी मेरी अधूरी है तुमसे इक मुलाक़ात.. तुम बन जाओ जान-ए-गजल मेरी मुझे बना लो अपने अल्फ़ाज़,,,@
कश्मकश और उलझनों में.. उम्मीद की ढाल लिए बैठा हूँ ए जिंदगी तेरी हर चाल के लिए मैं दो चाल"लिए बैठा हु,,,@
युही बस थोड़ा सा सुस्ताए थे बच कर दुनियादारी से एक पुराना ख़्वाब मिल गया... मेरी आँखों की अलमारी से..@
सजी थी महफिल ख्वाबों की पर हसरत नीलाम हो गई तुने क्या देखा मुझे इक नज़र मेरी रुह भी तेरी गुलाम हो गई...@
क्या ख़ूब पर्दा है कि चिलमन से लगे बैठे हैं आप साफ़ छुपते भी नहीं सामने आते भी नहीं,,,@
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