नेहरू की भूलों की सूची में ‘आजादी से पूर्व की भूलों’ के तहत अधिक भूलें दर्ज नहीं हैं, जबकि उनकी ‘आजादी के बाद की भूलों’ की सूची काफी लंबी है और ऐसा शायद इसलिए है; क्योंकि आजादी से पहले सब चीजें सिर्फ नेहरू के नियंत्रण में नहीं थीं। उस समय महात्मा गांधी शीर्षपर थे और उन्हें काबू में रखने के लिए उनके ही कद के कई अन्य नेता भी मौजूद थे। इसके बावजूद नेहरू को जब कभी भी कोई आधिकारिक पद सँभालने का मौका मिला, उन्होंने मनमानी की। ऐसा एक अवसर खुद ही उनके सामने आ गया।
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नेहरू फाइल्स - भूल-1
[ 1 आजादी के पूर्व की भूले ]नेहरू की भूलों की सूची में ‘आजादी से पूर्व की भूलों’ के अधिक भूलें दर्ज नहीं हैं, जबकि उनकी ‘आजादी के बाद की भूलों’ की सूची काफी लंबी है और ऐसा शायद इसलिए है; क्योंकि आजादी से पहले सब चीजें सिर्फ नेहरू के नियंत्रण में नहीं थीं। उस समय महात्मा गांधी शीर्षपर थे और उन्हें काबू में रखने के लिए उनके ही कद के कई अन्य नेता भी मौजूद थे। इसके बावजूद नेहरू को जब कभी भी कोई आधिकारिक पद सँभालने का मौका मिला, उन्होंने मनमानी की। ऐसा एक अवसर खुद ही ...Read More
नेहरू फाइल्स - भूल-2
भूल-2जिन्ना को पाकिस्तान की राह दिखानावर्ष 1937-38 के प्रांतीय चुनावों से पहले कांग्रेस को संयुक्त प्रांत में अपने दम सरकार बनाने के लिए पर्याप्त सीटें मिलने की उम्मीद नहीं थी। ऐसा मैदान में मौजूद उन दूसरे दलों के चलते था, जिनके पास जमींदारों और प्रभावशाली वर्गों का बेहद मजबूत समर्थन प्राप्त था। इसलिए सरकार बनाने में सक्षम होने के लिए उसने मुसलिम लीग के साथ एक उपयुक्त गठबंधन करने की योजना बनाई थी। मुसलिम लीग को पर्याप्त सीटें मिलें, जिससे गठबंधन सफल हो सके, इसलिए कांग्रेस के रफी अहमद किदवई (जो मोतीलाल नेहरू के निजी सचिव थे और मोतीलाल ...Read More
नेहरू फाइल्स - भूल-3
भूल-3आत्मघाती कदम उठाना : मंत्रियों के इस्तीफे, 1939 वर्ष1936-37 में ग्यारह प्रांतों में हुए प्रांतीय चुनावों में कांग्रेस ने प्रांतों (यू.पी., बिहार, मद्रास, सी.पी. (मध्य प्रांत) और उड़ीसा) में पूर्ण बहुमत हासिल किया और चार प्रांतों में वह सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी (बंबई, बंगाल, असम और एन.डब्ल्यू.एफ.पी.)। कुल आठ प्रांतों में कांग्रेस के मंत्रिमंडलों का गठन किया गया। यू.पी. में गोविंद बल्लभ पंत, बिहार में श्रीकृष्ण सिन्हा, सी.पी. में एन.बी. खरे, बंबई में बी.जी. खेर, मद्रास में राजाजी, उड़ीसा में बिश्वनाथ दास, असम में गोपीनाथ बाेरदोलोई और एन.डब्ल्यू.एफ.पी. में डॉ. खान साहब ने उनका नेतृत्व (प्रीमियर ...Read More
नेहरू फाइल्स - भूल-4
भूल-4जिन्ना और मुसलिम लीग (ए.आई.एम.एल.) की सहायता करना जिन्ना और ब्रिटिश अधिकारियों—दोनों ने ही सन् 1939 में नेहरू और मंडली के चलते कांग्रेस के मंत्रालयों द्वारा दिए गए इस्तीफों (उपर्युक्त भूल#3) का खुलकर स्वागत किया। जिन्ना इसे कांग्रेस की ‘हिमालयी भूल’ कहते नहीं थके और वे इसका पूरा फायदा उठाने को दृढ़-संकल्पित थे। जिन्ना और मुसलिम लीग इस हद तक चले गए कि उन्होंने सभी मुसलमानों से आह्वान किया कि वे 22 दिसंबर, 1939 को कांग्रेस के ‘कुशासन’ से ‘यौम ए निजात’, यानी ‘डे अॉफ डिलीवरेंस’ के रूप में मनाएँ। नेहरू की भूल के परिणामस्वरूप मुसलिम लीग के सितारे ...Read More
नेहरू फाइल्स - भूल-5
भूल-5असम की सुरक्षा से समझौतासन् 1826 में असम पर कब्जा कर लेने के बाद ब्रिटिश अधिक आबादी वाले पूर्वी से कृषक समुदाय को चाय की खेती और अन्य कामों के लिए वहाँ पर लाए। मुसलिम लीग ने प्रमुख रूप से गैर-मुसलमान आबादी वाले असम और पूर्वोत्तर पर हावी होने के क्रम में तथा इसे एक और मुसलमान बाहुल्य क्षेत्र बनाने के लिए सन् 1906 में ही ढाका में आयोजित हुए अपने सम्मेलन में असम में किसी भी तरह से मुसलमानों की आबादी को बढ़ाने की योजना तैयार की थी और पूर्वी बंगाल के मुसलमानों का असम में पलायन कर ...Read More
नेहरू फाइल्स - भूल-6
भूल-6प्रथम प्रधानमंत्री के रूप में नेहरू का अलोकतांत्रिक चयनसन् 1945 के बाद, भारत की स्वतंत्रता के नजदीक होने की के साथ, सभी देशभक्त एक ऐसे व्यक्ति को भारत के प्रथम प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहते थे, जो मजबूत, मुखर, सक्षम, निर्णायक और समर्थ हो; जो भारत के खोए हुए गौरव को वापस लाने में सक्षम हो और इसे एक आधुनिक व समृद्ध राष्ट्र में बदल सके।नेहरू-सरदार पटेल के बीच कोई मुकाबला नहींबाकी सबसे अलग और बेहतर होने के चलते लौह पुरुष सरदार पटेल स्पष्ट पसंद थे। और कोई भी एक अलोकतांत्रिक, हिचकिचाने वाला और अनभिज्ञ नेता नहीं चाहता ...Read More
नेहरू फाइल्स - भूल-7
भूल-7संयुक्त भारत के लिए बनाई गई ‘कैबिनेट मिशन योजना’ को विफल करनाब्रिटिश प्रधानमंत्री क्लेमेंट एटली ने 15 मार्च, 1946 हाउस अॉफ कॉमन्स को बताया, “भारत अगर स्वतंत्रता के लिए चुनाव करता है तो उसके पास ऐसा करने का अधिकार है।” राज ने आखिरकार पैकअप करने का फैसला कर लिया है। 23 मार्च, 1946 को एटली की पहल पर भारत की स्वतंत्रता पर चर्चा करने एवं योजना बनाने और भारतीय नेतृत्व को सत्ता के हस्तांतरण की प्रक्रिया के लिए एक ब्रिटिश ‘कैबिनेट मिशन’ भारत पहुँचा, जिसमें तीन कैबिनेट मंत्री—लॉर्ड पेथिक-लॉरेंस, भारत के राज्य सचिव; सर स्टेफोर्ड क्रिप्स, व्यापार मंडल के ...Read More
नेहरू फाइल्स - भूल-8
भूल-8सन् 1946 की एन.डब्ल्यू.एफ.पी. भूलकांग्रेस ने सन् 1946 में एन.डब्ल्यू.एफ.पी. में चुनावों में जीत हासिल की थी और डॉ. साहब (खान अब्दुल जब्बार खान), खान अब्दुल खफ्फार खान के भाई, मंत्रालय का नेतृत्व कर रहे थे। एन.डब्ल्यू.एफ.पी. एक और ऐसा प्रांत था, जिस पर बंगाल, असम, पंजाब और सिंध के साथ मुसलिम लीग की नजर थी। यद्यपि एन.डब्ल्यू.एफ.पी. की प्रांतीय सरकार कांग्रेस के हाथों में थी, ब्रिटिश गवर्नर ओलाफ केरो और स्थानीय ब्रिटिश नौकरशाह कांग्रेस-विरोधी और मुसलिम लीग समर्थक थे। क्यों? उन्हें जरूर एच.एम.जी. ने मुसलिम लीग का समर्थन करने और यह सुनिश्चित करने के निर्देश दिए होंगे कि ...Read More
नेहरू फाइल्स - भूल-9
भूल-9हिंदू सिंधियों के साथ यहूदियों जैसा व्यवहारसिंध दुनिया की सबसे पुरानी सभ्यता (इंडस या फिर सिंधु घाटी सभ्यता) का है, जिसकी प्रमुख पहचान मोहनजोदड़ो में की गई खुदाई में सामने आई, जो 7,000 ईस्वी पूर्व की है। 3,180 किलोमीटर लंबी इंडस या सिंधु नदी का उद्गम तिब्बत के पठार में मानसरोवर झील के पास से होता है और यह पाकिस्तान में लद्दाख, गिलगित-बाल्टिस्तान एवं पश्चिमी पंजाब से होकर निकलती है और यह सिंध के बंदरगाह वाले शहर कराची के पास अरब सागर में मिल जाती है। संस्कृत में ‘सिंधु’ का अर्थ है—पानी। ‘इंडिया’ नाम भी ‘इंडस’ से लिया गया ...Read More
नेहरू फाइल्स - भूल-10
भूल-10पाकिस्तान को 55 करोड़ रुपए देनाभारत और पाकिस्तान के बीच नवंबर 1947 में इस बात पर सहमति बनी थी अविभाजित भारत की संपत्ति के हिस्से के रूप में पाकिस्तान को 55 करोड़ रुपयों का भुगतान किया जाएगा। हालाँकि सरदार पटेल के जोर देने पर भारत ने इस समझौते के दो घंटे के भीतर ही पाकिस्तान को सूचित किया कि इस समझौते का वास्तविक कार्यान्वयन कश्मीर पर एक समझौते पर टिका होगा। सरदार पटेल ने कहा—“हमने संपत्ति के विभाजन में पाकिस्तान के साथ बेहद उदारतापूर्ण व्यवहार किया। लेकिन हम अपने ही ऊपर चलाई जानेवाली गोली को बनाने के लिए एक ...Read More
नेहरू फाइल्स - भूल-11
भूल-11स्वतंत्रता पूर्व वंशवाद को बढ़ावाजवाहरलाल नेहरू की वंशवादी प्रवृत्तियाँ, जो उन्हें अपने पिता मोतीलाल से विरासत में मिली थीं, प्रधानमंत्री बनने से काफी समय पहले, 1930 के दशक में ही, दिखाई देने लगी थीं।वर्ष 1937 के चुनावों के बाद जब यू.पी. में मंत्रालय तैयार किया जा रहा था तो गोविंद बल्लभ पंत (जो मुख्यमंत्री बने) और रफी अहमद किदवई ने नेहरू से श्रीमती विजयलक्ष्मी पंडित (नेहरू की बहन) को मंत्रालय में शामिल करने का प्रस्ताव रखा, जिसे नेहरू ने बड़ी सहजता के साथ स्वीकार कर लिया। आखिर उन्होंने ऐसा क्यों किया? इसलिए नहीं कि वे विजयलक्ष्मी को इस पद ...Read More
नेहरू फाइल्स - भूल-12
भूल-12किन परिस्थितियों ने भारतीय स्वतंत्रता का रास्ता वास्तव में साफ किया?अकसर होता यह है कि जब भी कोई नेहरू भूलों और गलतियों की तरफ इशारा करता है तो उनकी बात को यह कहते हुए नकारने का प्रयास किया जाता है कि “आखिरकार, नेहरू (गांधी और अन्य गांधीवादियों के साथ) ने हमारे लिए स्वतंत्रता हासिल की!” तो क्या वे गांधी-नेहरू-कांग्रेस थे, जिन्होंने अंग्रेजों को भारत छोड़ने के लिए मजबूर किया?क्या आजादी गांधी-नेहरू और कांग्रेस की देन थी? नहीं।पूर्ण स्वतंत्रता के लिए अंतिम (और इकलौता!) गांधीवादी आंदोलन सन् 1942 का ‘अंग्रेजो, भारत छोड़ो’ आंदोलन था। आपको यह ध्यान दिलाना आवश्यक है ...Read More
नेहरू फाइल्स - भूल-13
भूल-13ब्रिटिश जेल : वी.आई.पी. के रूप में नेहरू और अन्य गांधीवादी बनाम दूसरे कैदीशीर्ष गांधीवादियों के बिल्कुल विपरीत, जिनके जेलों में बहुत अच्छा व्यवहार किया जाता था, जेलों में बंद भारतीय राजनीतिक कैदियों, जिनमें क्रांतिकारी भी शामिल थे, की स्थिति बेहद खराब थी। उनके कपड़ों को कई-कई दिनों तक धोया नहीं जाता था; उनकी रसोई में चूहे और तिलचट्टे इधर से उधर घूमते रहते थे; और उन्हें पढ़ने-लिखने के लिए सामग्री तक उपलब्ध नहीं करवाई जाती थी। राजनीतिक कैदी होने के नाते वे लोग उम्मीद करते थे कि उनके साथ अपराधियों के बजाय सामान्य व्यवहार किया जाए। उन्होंने जेल ...Read More
नेहरू फाइल्स - भूल-14
भूल-14विभाजन, पाकिस्तान और कश्मीर के मूल कारणों से बेखबरद्वितीय विश्व युद्ध में ब्रिटिशों के युद्ध-प्रयासों के प्रति नेहरू (भूल#3,4) कांग्रेस द्वारा समर्थन की कमी ने ब्रिटिशों को हिंदू-विरोधी और कांग्रेस-विरोधी बनाते हुए उन्हें मुसलमानों और ए.आई.एम.एल. की तरफ झुका दिया। वी.पी. मेनन ने ‘द ट्रांसफर अॉफ पावर इन इंडिया’ में लिखा—“इसके अलावा युद्ध के प्रयास (द्वितीय विश्व युद्ध) के प्रति कांग्रेस के विरोध और वस्तुतः (मुसलिम) लीग के समर्थन ने ब्रिटिशों के मन में इस बात को भर दिया कि आमतौर पर हिंदू उनके दुश्मन थे और मुसलमान दोस्त; और इस बात की पूरी संभावना है कि विभाजन की ...Read More
नेहरू फाइल्स - भूल-15
भूल-15बेहद बुरा या कहें तो आपराधिक, कुप्रबंधित विभाजनविभाजन लगभग 1.4 करोड़ हिंदुओं, सिखों एवं मुसलमानों के अचानक विस्थापन और संपत्तियों के नुकसान का कारण बना। एक अनुमान के अनुसार, करीब 10 से 30 लाख के बीच लोगों की हत्या और संहार का भी, हालाँकि इसका कोई दुरुस्त आँकड़ा मौजूद नहीं है और एक मुकम्मल गिनती करने का कभी प्रयास भी नहीं किया गया! पैट्रिक फ्रेंच ने लिखा—“स्वतंत्र भारत और पाकिस्तान के निर्माण के दौरान मारे गए लोगों की संख्या को कभी प्रमाणित ही नहीं किया गया। इस नर-संहार के स्तर को कम करके दिखाना एटली, जिन्ना और नेहरू—तीनों की ...Read More
नेहरू फाइल्स - भूल-16
भूल-16कोई उपयुक्त नीति संरूपण (Policy formulation) नहीं!नेहरू, गांधी और कांग्रेस के अन्य नेताओं के पास आजादी से पहले इस के लिए भरपूर समय मौजूद था कि वे स्वतंत्रता के बाद के लिए तमाम प्रासंगिक राष्ट्रीय नीतियों को तैयार कर सकें। लेकिन क्या उन्होंने ऐसा किया? नहीं। वर्ष 1915 में गांधी के दक्षिण अफ्रीका से लौटने के बाद से शीर्ष गांधीवादी नेताओं के पास आजाद भारत के लिए सभी महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर अध्ययन करने, चर्चा करने, बहस करने और उन्हें निबटाने के लिए सन् 1947 में मिली स्वतंत्रता तक का 32 वर्षों का लंबा समय था।इसके बावजूद स्वतंत्रता आंदोलन की ...Read More
नेहरू फाइल्स - भूल-17
[ 2. रियासतों का एकीकरण ]भूल-17ब्रिटिशों पर निर्भर स्वतंत्र भारतनेहरू ने ब्रिटिश माउंटबेटन का पक्ष लियासिर्फ भगवान् ही इस को जानता है कि भारत ने स्वतंत्रता के बाद गवर्नर जनरल (जी.जी.) के रूप में माउंटबेटन (एक ब्रिटिश) को नियुक्त करने का फैसला क्यों किया? जिन्ना ने ऐसी भूल नहीं की। वे खुद पाकिस्तान के गवर्नर जनरल बने। माउंटबेटन ने गवर्नर जनरल के रूप में वह किया, जो ब्रिटिश राज की इच्छा थी—भारत के नुकसान की हद तक। ऐसा सिर्फ नेहरू की वजह से ही संभव हो सका कि माउंटबेटन गवर्नर जनरल बनने में कामयाब रहे। आखिर क्यों स्वतंत्रता सेनानियों ...Read More
नेहरू फाइल्स - भूल-18
भूल-18नेहरू ने पेशकश किए जाने पर जम्मू व कश्मीर के विलय को ठुकरा दिया थाजून-जुलाई 1947 तक जम्मूव कश्मीर महाराजा हरि सिंह ने भारत के साथ अंतिम विलय की दिशा में कदम बढ़ाने शुरू कर दिए थे, जिसमें उनके पाक-समर्थक पी.एम. रामचंद्र काक को हटाकर मेहर चंद्र काक को पद सौंपना था, जो एक अधिवक्ता होने के साथ-साथ सीमा आयोग में कांग्रेस द्वारा मनोनीत किए गए थे और जो बाद में भारत के मुख्य न्यायाधीश बने। इस सबके मद्देनजर नेहरू को एक अनुकूल माहौल तैयार करना चाहिए था और हरि सिंह को भरोसे में लेना चाहिए था, ताकि महाराजा ...Read More
नेहरू फाइल्स - भूल-19
भूल-19कश्मीर को लगभग खो ही दिया था22 अक्तूबर, 1947 तक पाकिस्तानी हमलावर लगभग श्रीनगर के बाहरी क्षेत्रों तक पहुँच थे और महाराजा ने निराशाभरी बेसब्री से भारत से मदद माँगी। अनिश्चितता की स्थिति को देखते हुए सरदार पटेल ने जम्मूव कश्मीर में भारतीय सेना को भेजने का प्रस्ताव रखा। हालाँकि माउंटबेटन ने इस बात पर जोर दिया कि जब तक जम्मूव कश्मीर द्वारा भारत के पक्ष में विलय के पत्र पर हस्ताक्षर नहीं हो जाते (नेहरू पूर्व में ही इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर चुके थे (भूल#18) और इसकी सबसे अधिक संभावना है कि उन्होंने ऐसा माउंटबेटन के उकसाने ...Read More
नेहरू फाइल्स - भूल-20
भूल-20बिना शर्त जम्मू व कश्मीर के विलय को सशर्त बना दियाक्या जम्मूव कश्मीर के लिए महाराजा हरि सिंह द्वारा किया गया ‘विलय का अनुबंध’ अन्य रियासतों से अलग था और क्या इसमें कुछ विशेष प्रावधान शामिल किए गए थे? नहीं। विलय का अनुबंध सभी रियासतों के लिए आदर्श और समान था। इसमें किसी भी शासक के लिए शर्तों में कुछ भी जोड़ने या फिर घटाने का कोई प्रावधान नहीं था। इसे बिना किसी बदलाव के हस्ताक्षर करना आवश्यक था।अपने हस्ताक्षरित ‘विलय के अनुबंध’ को मानक प्रारूप (जैसा कि अन्य सभी रियासतों के लिए भी था) में संलग्न करते हुए ...Read More
नेहरू फाइल्स - भूल-21
भूल-21कश्मीर मसले का अंतरराष्ट्रीयकरणनेहरू ने जम्मूव कश्मीर के मसले को संयुक्त राष्ट्र में ले जाकर उस मुद्दे का अनावश्यक से अंतरराष्ट्रीयकरण कर दिया, जो पूर्ण रूप से एक आंतरिक मुद्दा था। उन्होंने ऐसा एक बार फिर ब्रिटिश माउंटबेटन के प्रभाव में आकर ही किया था। वी. शंकर ने ‘माय रेमिनिसेंसिस अॉफ सरदार पटेल’, भाग-1 में लिखा—“माउंटबेटन ने नेहरू को एक प्रसारण करने के लिए राजी किया, जिसमें उन्हें यह घोषणा करनी थी कि विलय संयुक्त राष्ट्र के तत्त्वावधान में एक जनमत-संग्रह के अधीन होगा। इसके लिए 28 अक्तूबर (1947) को रात्रि 8.30 बजे का समय निर्धारित किया गया। सरदार ...Read More
नेहरू फाइल्स - भूल-22
भूल-22संयुक्त राष्ट्र में जम्मू व कश्मीर के मामले अनाड़ी की तरह सँभालनाभारत और पाकिस्तान दोनों ने जनवरी 1948 में राष्ट्र के सामने अपना-अपना पक्ष रखा। भारतीय पक्ष को कश्मीर मामलों के मंत्री गोपालस्वामी आयंगर द्वारा प्रस्तुत किया गया, जिन्हें नेहरू ने इसी काम के लिए मंत्रिमंडल में विशेष रूप से नियुक्त किया था। आयंगर भारतीय दल के अगुवा थे, जिसमें शेख अब्दुल्ला भी शामिल थे। संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तानी प्रतिनिधि चौधरी सर मुहम्मद जफरुल्लाह खाँ (1893-1985) को यह बात पता चली कि भारत का प्रतिनिधित्व गोपालस्वामी आयंगर कर रहे हैं तो उन्होंने चुटकी ली, “क्या आप कश्मीर को मुझे ...Read More
नेहरू फाइल्स - भूल-23
भूल-23नेहरू के चलते पी.ओ.के.भौगोलिक दृष्टि से जम्मू व कश्मीर सबसे बड़ी रियासत थी, जिसकी आबादी 40 लाख के करीब इसकी अवस्थिति सामरिक थी। इसकी उत्तरी सीमाएँ अफगानिस्तान, संयुक्त सोवियत रूस और चीन से लगती थीं, जिसमें उसके पश्चिम में पाकिस्तान और दक्षिण में भारत स्थित थे। नियंत्रण के हिसाब से उसके तीन भाग थे, जबकि वैसे सात भाग।(क) भारतीय नियंत्रण वाला क्षेत्र(1) दक्षिण में जम्मू, जो मुख्यतः हिंदू बहुल है।(2) पूर्व में लद्दाख, जो बौद्ध है।(3) कश्मीर घाटी : बीच में स्थित एक अंडाकार घाटी—उत्तर व पश्चिम में पी.ओ.के., दक्षिण में जम्मू और पूर्व में लद्दाख के बीच स्थित, ...Read More
नेहरू फाइल्स - भूल-24
भूल-24जम्मू व कश्मीर में नेहरू की शर्मनाक निष्ठुरतायहाँ पर जीवित बचे एक हिंदू की आप-बीती प्रस्तुत है, जो जम्मूव की मीरपुर त्रासदी का एक साक्षी भी था, जिसे ‘स्वराज्य मैग’ से लिया गया है (स्व2)—“23 नवंबर (1947) को प्रेमनाथ डोगरा और प्रो. बलराज मधोक जम्मू में भारतीय सेना के ब्रिगेड कमांडर ब्रिगेडियर परांजपे से मिले और उनसे मीरपुर (एक रणनीतिक महत्त्व का स्थान, जहाँ कश्मीर पर पहले पाकिस्तानी हमले के दौरान 1 लाख से भी अधिक हिंदू और सिख फँस गए थे) में अतिरिक्त सैन्य बल भेजने की गुहार लगाई। परांजपे ने उनकी पीड़ा को महसूस किया, लेकिन साथ ...Read More
नेहरू फाइल्स - भूल-25
भूल-25नेहरू की देन अनुच्छेद-370जम्मू व कश्मीर पर अनुच्छेद-370 नेहरू की देन है, जिन्होंने डॉ. बी.आर. आंबेडकर और सरदार पटेल कइयों के विरोध के बावजूद सिर्फ शेख अब्दुल्ला के कहने पर इसे लागू किया।नेहरू द्वारा नियुक्त किए गए गोपालस्वामी आयंगर ने जम्मूव कश्मीर को विशेष दर्जा देने की गारंटी के साथ 17 अक्तूबर, 1949 को संविधान सभा में अनुच्छेद-306ए प्रस्तुत किया था, जो बाद में भारतीय संविधान में अनुच्छेद-370 बन गया। ऐसा सिर्फ शेख अब्दुल्ला के कहने पर और नेहरू की सहमति से किया गया था। हालाँकि संविधान सभा में मौजूद कई सदस्य इसके पक्ष में नहीं थे। उन्होंने नेहरू, ...Read More
नेहरू फाइल्स - भूल-26
भूल-26जम्मू व कश्मीर के लिए अनुच्छेद-35ए :एक बार फिर नेहरू के चलतेनेहरू और जम्मू व कश्मीर के तत्कालीन प्रधानमंत्री अब्दुल्ला के बीच हुए ‘1952 के दिल्ली समझौते’ के बाद अनुच्छेद-35ए को भारतीय संविधान में बेहद जल्दबाजी दिखाते हुए (बिना संसद् के माध्यम से पेश किए हुए, जैसाकि अनुच्छेद-368 के तहत आवश्यक है), नेहरू के नेतृत्ववाली केंद्र सरकार की सलाह पर सन् 1954 में राष्ट्रपति के आदेश के जरिए (अनुच्छेद-370 द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए) जोड़ दिया गया, जिसके परिणामस्वरूप जम्मूव कश्मीर राज्य को अपने राज्य के ‘स्थायी निवासियों’ (पी.आर.) को परिभाषित करने का अधिकार मिल गया और ...Read More
नेहरू फाइल्स - भूल-27
भूल-27धोखा देने वाला नेहरू का रक्त भाईजम्मू व कश्मीर की कहानी का एक महत्त्वपूर्ण खिलाड़ी शेख मोहम्मद अब्दुल्ला था, जन्म सन् 1905 में श्रीनगर के बाहरी इलाके में स्थित सौरा गाँव में हुआ था। वह ‘शेर- ए-कश्मीर’ (कश्मीर के शेर) के रूप में प्रसिद्ध हो गया। शेख अब्दुल्ला के पिता शेख मोहम्मद इब्राहिम शॉलों के एक मध्यम श्रेणी के निर्माता और व्यापारी थे। शेख अब्दुल्ला के दादा एक कश्मीरी पंडित थे, जिनका नाम राघो राम कौल था, जिन्होंने सन् 1890 में इसलाम धर्म अपना लिया और उनका नाम बदलकर ‘शेख मोहम्मद अब्दुल्ला’ हो गया तथा उनके पोते ने भी ...Read More
नेहरू फाइल्स - भूल-28
भूल-28महाराजा से अपनी खुशामद करवाने की चाह नेहरू ने बिल्कुल अनुपयुक्त तरीके से महाराजा के साथ तिरस्कारपूर्ण व्यवहार किया, शेख अब्दुल्ला को अपना पूर्ण समर्थन दिया और ऐसा करते हुए उन्हें इस बात का जरा भी अहसास नहीं था कि विलय के अनुबंध पर महाराजा के हस्ताक्षर के बिना जम्मूव कश्मीर भारत का हिस्सा नहीं हो सकता था।जब अब्दुल्ला ने मई 1946 में महाराजा के खिलाफ ‘अपमानजनक और उपद्रवी’ (बी.के./375) कश्मीर छोड़ो आंदोलन शुरू किया था, जिसका नतीजा उनकी गिरफ्तारी (भूल#27) के रूप में सामने आया था तो नेहरू ने जून 1946 में अब्दुल्ला को रिहा करवाने के लिए ...Read More
नेहरू फाइल्स - भूल-29
भूल-29कश्मीरी पंडित बनाम कश्मीरी पंडितकश्मीरी पंडितों (के.पी.) पर अत्याचार करनेवाले खुद कश्मीरी पंडित ही रहे हैं—शेख अब्दुल्ला जैसे धर्मांतरित पंडित या फिर नेहरू जैसे कश्मीरी पंडित, जिन्होंने सर्वप्रथम तो कश्मीर समस्या को पैदा किया और फिर उसका हल निकालने के बजाय उसे और अधिक जटिल तथा लगभग असाध्य बना दिया।वी. कृष्णा अपनी पुस्तक ‘सरदार वल्लभभाई पटेल’ में लिखते हैं—“नेहरू ने अगस्त 1945 में घाटी के सोपोर में आयोजित नेशनल कॉन्फ्रेंस के राष्ट्रीय सम्मेलन में जो कुछ कहा, उससे अब्दुल्ला के प्रति उनका झुकाव स्पष्ट था, ‘अगर गैर- मुसलमान कश्मीर में रहना चाहते हैं तो उन्हें नेशनल कॉन्फ्रेंस में शामिल ...Read More
नेहरू फाइल्स - भूल-30
भूल-30उस व्यक्ति को किनारे करना, जो जम्मू व कश्मीर मसले को सँभाल सकता थारियासतों का मामला रियासती मंत्रालय के आता था, जिसकी कमान सरदार पटेल के हाथों में थी। पटेल ने 500 से अधिक रियासतों से जुड़ी जटिलताओं को बेहद कुशलता के साथ निबटाया था। इसके मद्देनजर जम्मूव कश्मीर को भी पटेल के भरोसे छोड़ देना चाहिए था। हालाँकि, नेहरू ने प्रधानमंत्री के तौर पर खुद जम्मूव कश्मीर को सँभालने का फैसला किया था। बिना सरदार की सहमति के, और यहाँ तक कि उन्हें सूचित करने का शिष्टाचार निभाए बिना, नेहरू ने एन. गोपालस्वामी आयंगर, जम्मूव कश्मीर के पूर्व ...Read More
नेहरू फाइल्स - भूल-31
भूल-31जूनागढ़ : सरदार पटेल बनाम नेहरू-माउंटबेटनजूनागढ़ 3,337 वर्ग मील के क्षेत्रफल में फैली एक रियासत थी और सन् 1947 आजादी के समय इस पर नवाब सर महाबत खान रसूल खानजी (या नवाब महताब खान तृतीय) का शासन था। नवाब की सनक और कुत्तों के प्रति उसके प्रेम के कई किस्से मशहूर हैं, जिनमें उसके दो कुत्तों की शादी पर 21,000 पाउंड खर्च किए जाने का भी किस्सा शामिल है। (टुंज/216) ‘महाराजा’ (जे. डी.) के अध्याय ‘ए जूनागढ़ बिच दैट वाज ए प्रिंसेस’ में दीवान जरमनी दास कहते हैं कि अपनी पसंदीदा कुतिया रोशनआरा की शादी के मौके पर नवाब ...Read More
नेहरू फाइल्स - भूल-32
भूल-32तो एक और पाकिस्तान (हैदराबाद) होताहैदराबाद रियासत की स्थापना मीर कमरुद्दीन चिन किलिच खान ने की थी, जो औरंगजेब जनरल गाजी-उद-दीन खान फिरोज जाग के पुत्र थे, जिन्होंने अबू बकर, पहले खलीफा, में अपनी वंश परंपरा का पता लगाया था। हैदराबाद राज्य सबसे पहले सन् 1766 में ब्रिटिशों की अधीनता में आया। हालाँकि ब्रिटिशों के साथ अपनी संधि को तोड़ते हुए निजाम ने सन् 1767 में मैसूर के हैदर अली के साथ खुद को जोड़ लिया। सन् 1768 में ब्रिटिशों ने उनकी संयुक्त सेना को हरा दिया और हैदराबाद राज्य फिर से अंग्रेजों के कब्जे में आ गया। निजाम ...Read More
नेहरू फाइल्स - भूल-33
[ 3. बाह्य सुरक्षा ]भूल-33तिब्बत को देश के दर्जे से हटानायह हमारा इकलौता बाहरी ऋण है और हमें किसी मंटजु एवं तिब्बतियों को उन सभीव्यवस्थाओं के लिए शुक्रिया कहना होगा, जो हमने उनसे प्राप्त की हैं।—माओत्से तुंग, लॉन्ग मार्च के दौरान तिब्बत केसीमावर्ती क्षेत्रों से गुजरने के दौरानआठवीं शताब्दी के दौरान तिब्बत के राजा ट्रिसॉन्ग डेंटसेन ने चीन को परास्त किया था, जिसे तिब्बत को सालाना शुल्क देने को मजबूर किया गया था। आपसी लड़ाई को खत्म करने के लिए चीन और तिब्बत ने 783 ईस्वी में एक संधि पर हस्ताक्षर किए, जिसमें सीमाओं को चिह्नांकित किया गया और ...Read More
नेहरू फाइल्स - भूल-34
भूल-34पंचशील : तिब्बत को बेचा, खुद का नुकसान किया“यह महान् सिद्धांत (पंचशील) पाप की पैदाइश था, क्योंकि इसकी स्थापना ऐसे प्राचीन देश के विनाश पर हमारी मंजूरी की मुहर लगाने के लिए की गई थी, जो हमारे साथ सांस्कृतिक और आध्यात्मिक रूप से जुड़ा हुआ था। यह एक ऐसा देश था, जो अपना जीवन जीना चाहता था और चाहता था कि उसे अपना जीवन जीने दिया जाए।”—आचार्य कृपलानी (एर्पी2)चीन ने तिब्बत के साथ जो किया, उसके बावजूद भारत ने 29 अप्रैल, 1954 को चीन के साथ ‘पंचशील समझौते’ पर हस्ताक्षर किए। इस समझौते को शीर्षक ही दिया गया था—‘चीन ...Read More
नेहरू फाइल्स - भूल-35
भूल-35चीन के साथ सीमा विवाद को नहीं निबटानानेहरू चीन के साथ सीमाओं के शांतिपूर्ण समाधान तक पहुँचने में विफल जो भारत की सुरक्षा के लिए बेहद महत्त्वपूर्ण था। यह देखते हुए ऐसा करना बिल्कुल भी कठिन नहीं था, क्योंकि चीन उस समय इतना अधिक मजबूत नहीं था और उसके पास निबटने के लिए कई अंदरूनी व बाहरी समस्याएँ थीं। इसलिए वह ‘आदान-प्रदान’ के लिए बिल्कुल तैयार था, विशेषकर ‘अक्साई चिन-मैकमहोन लाइन की अदला-बदली के लिए : मामूली समायोजन के साथ भारत द्वारा अक्साई चिन पर चीन के दावे को मान्यता के बदले मैकमहोन रेखा को चीन द्वारा मान्यता देना।स्वतंत्रता ...Read More
नेहरू फाइल्स - भूल-36
भूल-36हिमालय पर की गई गलती : भारत-चीन युद्धसैनिकों ने बारंबार उन नागरिक सरकारों की महत्त्वाकांक्षा, जुनून और गलतियों के खुद को युद्ध में झोंके जाते हुए पाया है, जो अपनी सैन्य क्षमता की सीमाओं से पूरी तरह से बेखबर होती हैं और अपने द्वारा थोपे गए युद्ध की सैन्य आवश्यकताओं के प्रति लापरवाही के साथ उदासीन होती हैं।—अल्फ्रेड वैग्ट्स, ‘द हिस्टरी अॉफ मिलिटरिज्म’ (मैक्स/289)“भारत और चीन का इतिहास हजारों साल पुराना है और दोनों के बीच कभी कोई युद्ध नहीं हुआ।” नेहरू ने अपनी अनुपयुक्त और चेतना-शून्य नीतियों के जरिए इस रिकॉर्ड को तोड़ दिया, भले ही अनिच्छा से। ...Read More
नेहरू फाइल्स - भूल-37
भूल-37रक्षा और बाह्य सुरक्षा की आपराधिक उपेक्षा“खतरे को पहले ही भाँप लेनेवाले या फिर अपनी खुद की भलाई की करनेवाले बुद्धिमान व्यक्ति को खतरे के शुरू होने से पहले ही अपनी रक्षा की योजना बना लेनी चाहिए।”—श्रीराम से लक्ष्मण“भारत ने अगर (वीर) सावरकर की सुनी होती और सैन्यीकरण की नीति अपनाई होती तो आज हमें हार का सामना नहीं करना पड़ता।”—जनरल करियप्पा1962 के भारत-चीन युद्ध पर (टी.डब्ल्यू.8)“युद्ध की कला किसी भी राष्ट्र के लिए बेहद महत्त्वपूर्ण होती है। यह जीवन और मृत्यु का मामला होता है; एक ऐसा रास्ता, जो सुरक्षा या फिर बरबादी— दोनों की ओर ले जा ...Read More
नेहरू फाइल्स - भूल-38
भूल-38सेना का राजनीतिकरणसेना के आलाकमान का राजनीतीकरण भारत-चीन युद्ध में भारत के बेहद बुरे प्रदर्शन के प्रमुख कारणों में एक था। सेना की सार्थक सलाह पर जोर देने की बजाय नेहरू और कृष्णा मेनन ने सेना में शीर्ष पदों पर ऐसे आज्ञाकारी अधिकारियों की नियुक्ति की, जो उनके आदेशों को मानते थे। कृष्णा मेनन लोगों से बेहद बुरा बरताव करते थे। वे सेना के प्रमुख अधिकारियों के प्रति बेहद आक्रामक थे। उन्होंने अपनी तीखी टिप्पणियों, कटाक्ष और उपेक्षापूर्ण व्यवहार के चलते कइयों से दुश्मनी मोल ले ली थी। उन्होंने सेना के शीर्ष अधिकारियों को सार्वजनिक रूप से अपमानित किया ...Read More
नेहरू फाइल्स - भूल-39
भूल-39सशस्त्र बल-विरोधीहो सकता है कि यह थोड़ा अजीब लगे, लेकिन नेहरू सत्ता में बने रहने को लेकर इतने अधिक थे, साथ ही सेना के तख्तापलट की संभावना को लेकर बेवजह और अविवेकपूर्ण तरीके से चिंतित थे कि वे इस संभावना को मात देने के लिए पागलपन की हद तक पहुँच गए— यहाँ तक कि भारतीय सुरक्षा, भारतीय बाह्य सुरक्षा और सेना के मनोबल को नुकसान पहुँचाने के स्तर तक भी।शीर्ष नौकरशाही ने सेना के प्रति नेहरू के संदेह एवं पूर्वाग्रह को भाँप लिया और बेहद चतुराई से एक नोट का दाँव चलते हुए सशस्त्र सेना मुख्यालय को रक्षा मंत्रालय ...Read More
नेहरू फाइल्स - भूल-40
भूल-40निष्क्रिय खुफिया तंत्र और कोई योजना नहींनेहरू ने अक्तूबर 1954 में चीन का दौरा किया। एक शानदार स्वागत से आसानी से किसी के भी प्रभाव में आ जानेवाले नेहरू उनके दीवाने हो गए और उसके बाद सावधानी बरतने तथा चीन की रणनीति को समझने के बजाय संयुक्त राष्ट्र के लिए चीन के मामले की और भी अधिक जोरों से वकालत करनी शुरू कर दी। नेहरू 1920 के दशक में सोवियत संघ का दौरा करने के बाद भी ऐसे ही बहक गए थे तथा सोवियतवादी एवं समर्थक बन गए थे और स्वतंत्रता के बाद उनकी नकल करते हुए भारत को ...Read More