Nehru Files - 78 in Hindi Book Reviews by Rachel Abraham books and stories PDF | नेहरू फाइल्स - भूल-78

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नेहरू फाइल्स - भूल-78

भूल-78 
जीवन में एक ही बार सामने आने वाले मौके को गँवा देना


 स्वतंत्रता के समय भारत के पक्ष में प्रमुख सुअवसर 

मजबूत आधार और परिसंपत्तियाँ 
स्वतंत्रता के समय चीन और ताइवान, दक्षिण कोरिया, सिंगापुर इत्यादि जैसे अन्य पूर्वी एशियाई देशों के मुकाबले भारत सड़क, रेलवे और उद्योगों के बुनियादी ढाँचे, प्रशासनिक एवं अपराधिक न्याय प्रणाली के बुनियादी ढाँचे के मामले में कहीं बेहतर स्थिति में था और साथ ही भारत के पास उद्यमियों, उद्योगपतियों और व्यापारियों का एक बड़ा स्वदेशी समूह भी मौजूद था। सिर्फ इतना ही नहीं, भारत के पास एक अनुकूल भुगतान संतुलन भी था। ब्रिटेन के पास हमारे कई मिलियन पाउंड थे, जो उसने अगले कई वर्षों के दौरान चुकाए। 

प्रतिभा की बहुतायत 
भारत और प्रधानमंत्री के रूप में नेहरू इस मामले में बड़े सौभाग्यशाली थे कि उन्हें स्वतंत्रता के समय असाधारण प्रतिभा का एक बड़ा हिस्सा मिला। सरदार पटेल, सी. राजगोपालाचारी, डॉ. बी.आर. आंबेडकर, डॉ. राजेंद्र प्रसाद, जॉन मथाई, सी.डी. देशमुख, डॉ. श्यामा प्रसाद मुकर्जी, के.एम. मुंशी, जी.बी. पंत, रफी अहमद किदवई इत्यादि बेहद सक्षम और ईमानदार राजनीतिज्ञों का होना निश्चित ही भाग्यशाली था। इसके बाद वी.पी. मेनन, एच.एम. पटेल, गिरिजा शंकर वाजपेयी आदि जैसे बेहद अनुभवी और सक्षम नौकरशाहों की पूरी एक टीम थी। कई रियासतों के दीवान बेहद सक्षम प्रशासक थे, जैसे त्रावणकोर के सी.पी. रामास्वामी अय्यर, मैसूर के एम. विश्वेश्वरैया आदि। भारतीय सेना के पास के.एम. करियप्पा और थिमय्या जैसे द्वितीय विश्व युद्ध के दिग्गज थे। इसके अलावा, हमारे पास कई शिक्षाविद्, प्रौद्योगिकीविद्, अर्थशास्त्री और वित्त से जुड़े विशेषज्ञ लोग भी थे। भारत को प्रतिभा का ऐसा मिश्रण और इतने ईमानदार लोग दोबारा नहीं मिल सकते। 

देशभक्ति का उत्साह और सफल होने की धुन 
आजादी के बाद लाखों लोग देशभक्ति के उत्साह से सराबोर थे, बलिदान देने को तैयार और पूरी दुनिया को यह दिखाने को तैयार थे कि हमारी भव्य पुरातन संस्कृति क्या करने में सक्षम थी। वे अंग्रेजों की इस अफवाह को पूरी तरह से गलत साबित करके दिखाना चाहते थे कि उनके बिना भारत टुकड़ों में बिखर जाएगा और आशा-रहित हो जाएगा। जिस समय इसलामिक आक्रमणकारी भारत आए थे, तब भारत दुनिया का सबसे धनी देश था। उनकी लूट और डकैती के बावजूद भारत आकर्षक बना रहा; हालाँकि थोड़ा कम समृद्ध हो गया था। इसके बावजूद जब ब्रिटिश पहली बार भारत आए, तब भारत उनसे कई गुना अधिक समृद्ध था। हालाँकि, उनकी लूट और विनाशकारी आर्थिक प्रबंधन की बदौलत भारत की स्थिति जल्द ही दयनीय हो गई। आजादी के बाद यह वह समय था, जब हमें दुनिया को यह दिखाना था कि अगर ब्रिटिश और मुसलमान आक्रांताओं ने यहाँ पर अपने कदम न रखे होते तो भारत क्या होता! 

लोकप्रिय समर्थन और कोई विपक्ष नहीं 
यह नेहरू का सौभाग्य था कि पूर्ण समर्थन उनके पक्ष में था और विपक्ष का नामोनिशान तक मौजूद नहीं था। उन्होंने 17 साल की लंबी अवधि तक कांग्रेस और सरकार दोनों में एकच्‍छत्र राज करने का आनंद लिया। वे जो चाहते थे, वह करने के लिए स्वतंत्र थे। लोग भी पूरे जोश में थे। यह सदियों में मिलनेवाला एक ऐसा मौका था, जो दोबारा नहीं आने वाला था। 

दुर्भाग्यवश, नेहरू अवसर का लाभ उठाने से चूक गए 
यह बेहद दुःख की बात है कि नेहरू उपर्युक्त तमाम परिसंपत्तियों का लाभ नहीं उठा सके। यहाँ तक कि हमारी स्वतंत्रता के समय हमसे कहीं पीछे रहनेवाले कई देशों ने रफ्तार पकड़ी, बेहद तेजी से आगे बढ़े और कुछ ही दशकों के समय में प्रथम श्रेणी के देशों में शामिल हो गए; लेकिन भारत नेहरू और उनके राजवंश के राज में एक हमेशा विकसित रहनेवाले, तीसरी श्रेणी के देश के रूप में ही अटका रह गया। 

जो चीज सबसे अधिक दुःखी करती है, वह यह है कि भारत ने सैकड़ों वर्षों के बाद स्वतंत्रता की हवा में साँस ली और सदियों से दबे-कुचले भारत के लोगों को उम्मीद थी कि अब स्वराज का सूरज उनके लिए चमकेगा और उन्हें इसलामिक तथा उसके बाद के ब्रिटिश उत्पीड़न के काले दिनों से मुक्ति मिलेगी। लेकिन दुर्भाग्य से, एक बड़े बहुमत के लिए वह सूरज कभी उगा ही नहीं। नेहरू ने जीवन में एक बार मिलनेवाले उस सुनहरे अवसर को हाथ से आसानी से निकल जाने दिया। उन्होंने अपनी राजनीतिक पूँजी को गँवा दिया। ब्रिगेडियर बी.एन. शर्मा ने लिखा— 
“वे (नेहरू) कर सकते थे, लेकिन वे भाग्य की पुकार को सुनकर आगे बढ़ने में विफल रहे और देश को गौरव के बजाय बदनामी के रास्तेपर ले गए।” (बी.एन.एस./404)

 “मेरी सबसे बड़ी कोशिश इस आदमी (नेहरू) के पाखंडी चेहरे को दुनिया के सामने लाने की है, जिसने काफी हद तक इस महाद्वीप की नियति को आकार दिया, जिसे ‘भारत’ कहा जाता है। इतिहास की बागडोर जिस प्रकार से उनके हाथों में थी और उनके पास जो शक्तियाँ एवं अधिकार मौजूद थे, जो लोकतांत्रिक राजतंत्र में बिल्लकु ही अद्वितीय था, जिसके जरिए वे देश के लिए ऐसा रास्ता तैयार कर सकते थे, जो उसे प्रगति और यश की ओर ले जाता। लकिे न वे ऐसा करने के बजाय दुविधा में पड़ गए एवं राह से भटक गए और हमें उस ओर ले गए, जहाँ हम आज खड़े हैं। पुरानी गलतियों को सुधारने और अपनी सही नियति तक पहुँचने के लिए हमारे लिए यह जानना बेहद जरूरी है कि क्या गलत हुआ और क्यों? यह सोच पाना ही अपने आप में बेहद कठिन है कि कैसे भारत जैसा एक देश, जो मानवीय और प्राकृतिक संसाधनों से सर्व-संपन्न है, जिसे कई अन्य देशों के मुकाबले प्रारंभिक बढ़त प्राप्त हुई थी, वह पिछड़ गया और आज इस स्थिति में है! हमें जहाँ होना चाहिए था, हम उससे कहीं अधिक पीछे हैं।” (बी.एन.एस./11-12) 

सत्रह वर्षों तक शासन करने के बाद नेहरू ने भारत को एक मजबूत और समृद्ध देश बनाने के बजाय दुनिया की सबसे बड़ी विवादित सीमा के साथ छोड़ा, जो विदेशी हमलों के खिलाफ खुद को प्रभावी तरीके से बचाने के लिए सैन्य रूप से बेहद कमजोर था; किसी विदेशी हमले की स्थिति में सहयोग और समर्थन पाने के लिए बिल्कुल अकेला और मित्रहीन था; अपने करोड़ों लोगों का पेट भरने में अक्षम; अत्यधिक समाजवादी, बाबूवादी वर्चस्व से पीड़ित और आगे बढ़ने तथा समृद्ध होने के लिए नौकरशाही के जाल में फँसा हुआ; इतना जाहिल और बेखबर कि एक लोकतांत्रिक प्रणाली को अपनाने के फायदे भी न उठा सका; विपक्ष को सिर न उठाने देने और चुनावी प्रणाली तथा लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में एक प्रभावी भूमिका न निभाने देने के चलते राजनीतिक रूप से बेहद कमजोर; चौथे स्तंभ के रूप में अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने में विफल प्रेस और मीडिया; चाटुकारों, हाँ में हाँ मिलानेवालों और कुछ भी अच्छा करने में अक्षम, लेकिन कैसे भी अपने पद पर बने रहनेवाले शीर्ष नौकरशाहों से भरे विधायी एवं कार्यकारी क्षेत्र—कुल मिलाकर राजनीतिक, नौकरशाही, आर्थिक और शैक्षणिक संस्कृति की एक दमनकारी विरासत, जो दशकों तक भारत को पीछे खींचती रही और अभी भी प्रभावित कर रही है।