भूल-46
एक प्रकार से सन् 1965 के युद्ध के लिए भी जिम्मेदार
किसी बाहरी हमले की स्थिति में सहायता के लिए शक्तिशाली देशों के साथ संधि की कमी (‘गुटनिरपेक्षता’ की नेहरूवादी नीति (प्रिय सिद्धांत) के नतीजतन वे अपने ही राष्ट्रीय सुरक्षा हितों से दूर हो गए। भूल#57), 1962 के युद्ध में इसका खराब प्रदर्शन, द्वितीय विश्व युद्ध के अप्रचलित हथियारों पर इसकी निरंतर निर्भरता की सच्चाई, आधुनिक सैन्य सामग्री को हासिल करने में इसकी समग्र कमी और 1962 के युद्ध के बाद खुद को मजबूत करने के नाकाफी प्रयासों ने पाकिस्तान को मौके का फायदा उठाने और 1965 में सेना के दम पर कश्मीर को हथियाने का प्रयास करने के लिए प्रेरित किया।
भारत और नेहरू तब भी नहीं सजग हुए थे, जब पाकिस्तान ने अमेरिका के आधुनिक सैन्य सामग्री से लैस होने के बाद कम्युनिस्ट-विरोधी पश्चिमी ब्लॉक के साथ समझौता किया था। लाल बहादुर शास्त्री प्रधानमंत्री के रूप में अपेक्षाकृत बिल्कुल नए थे और उन्हें ऐसी चीजों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए समय ही नहीं मिला था, जिन पर ध्यान दिए जाने की आवश्यकता थी; नेहरू द्वारा विरासत के रूप में छोड़ी गई समस्याओं से निबटने की बात तो दूर की है। पाकिस्तान ने भारत की ज्ञात तैयारी की कमी के चलते ही उस पर हमला करने की जुर्रत की, इसलिए इसका दोष भी नेहरू को ही जाता है। इसके अलावा, अगर भारत अमेरिकी सलाह को मानते हुए परमाणु-संपन्न हो गया होता (भूल#44) या फिर नेहरू पाकिस्तान के साथ एक सम्मानजनक समझौता कर चुके होते (भूल#45) तो पाकिस्तान ने भारत पर हमला करने की जुर्रत नहीं की होती।
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भूल-47
असुरक्षित सीमाओं के मामले में अंतरराष्ट्रीय कीर्तिमान
नेहरू की नीतियों के परिणामस्वरूप भारत की तमाम जमीनी सीमाओं की हजारों किलोमीटर की लंबाई, फिर वह चाहे उत्तर या पूर्व या पश्चिम या उत्तर-पूर्व अथवा उत्तर-पश्चिम में स्थित हो, पूरी तरह से संवेदनशील और असुरक्षित हो गई, जिसके चलते उन्हें सुरक्षित रखने के लिए भारी निवेश करना पड़ा। गौर करनेवाली बात यह है कि 1950 एवं 1960 के दशक की शुरुआत में चीन के साथ, और पाकिस्तान के साथ भी, शांतिपूर्वक समझौता करने के पर्याप्त अवसर मौजूद थे; लेकिन इसके बावजूद नेहरू बेहद गैर-जिम्मेदाराना तरीके से उनका लाभ उठाने में नाकामयाब रहे। (भूल#35, 45)
भारत के प्रथम प्रधानमंत्री के लिए गांधी की पसंद के चलते भारत अपने आकार का दुनिया का इकलौता ऐसा देश है, जिसकी इतने बड़े पड़ोसी के साथ इतनी लंबी अनसुलझी सीमा है और दूसरे के साथ विवाद हैं।
उन समस्याओं, जिन पर ध्यान दिया जाना आवश्यक है, के ढेर का समाधान करने के बजाय नेहरूवादी युग ने नई समस्याओं को जोड़ा और उन्हें सिर्फ जोड़ा ही नहीं, बल्कि उन्हें और अधिक कठिन व असाध्य बना दिया और उनमें सबसे गंभीर है—लंबी सीमाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करना।
हिमालय के चलते उत्तर प्राचीन समय से ही भारत की सबसे सुरक्षित प्राकृतिक सीमा रही है। नेहरूवादी नीतियों ने उन्हें भी असुरक्षित बना दिया!
पूर्वोत्तर को घोर कुशासन, भ्रष्टाचार और आतंकवाद ने असुरक्षित बना दिया है और नेहरू ने बदलती जनसांख्यिकी के प्रति आँखें मूँदे रखीं, जिसके चलते बड़े पैमाने पर धर्मांतरण को अंजाम दिया गया तथा पूर्वी पाकिस्तान यानी बँगलादेश से मुसलिमाें के पलायन के चलते भी।