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ডায়াবেটিস রিভার্স করার পথে একটি বিশেষ পয়েন্টের নাম আপনি খুব কমই শুনেছেন, সেই পয়েন্টটা হচ্ছে HOMA-IR। এখনকার চিকিৎসা পদ্ধতিতে সুগার কমছে কি বাড়ছে - এই নিয়েই যত পরীক্ষা নিরীক্ষা, যত রিপোর্ট ! কিন্তু ডায়াবেটিস আসলে কেন হচ্ছে, শরীরের ভেতরে কী ভেঙে পড়ছে - তার উত্তর দেয় একমাত্র HOMA-IR।

HOMA-IR হচ্ছে সেই আয়না, যেখানে আপনি আপনার শরীরের ইনসুলিন রেজিস্ট্যান্সকে দেখতে পাবেন। এখানে শুধু ব্লাড সুগার কত তা নয়, আপনার শরীর কত পরিশ্রম করে সেই সুগারকে নিয়ন্ত্রণে আনছে, ইনসুলিন কতটা বাড়াচ্ছে - সেটার নিখুঁত হিসাব আপনি পেয়ে যাবেন।

যাদের HOMA-IR বেশি, তারা যতই খাবার কমান, ওষুধ খান, শরীর ততই ইনসুলিন বাড়িয়ে যেতে থাকে। এরফলে শরীরের কোষগুলো আরও বেশি অন্ধ হয়ে যেতে থাকে; এবং সুগার আরও পাগলের মতো ওঠে। এই জায়গাটাতেই প্রচলিত চিকিৎসা ব্যবস্থা চুপ। ডায়াবেটিস রোগীদের সামনে শুধুই দুইটা পথ রাখা হয় - ওষুধ বাড়াও অথবা ইনসুলিন নাও। কিন্তু HOMA-IR-এর কথা কোথাও নেই; কারণ এই একটি মাপকাঠি বুঝলে রোগীরা জেনে ফেলবে - “আমার সমস্যা সুগার নয়, আমার সমস্যা ইনসুলিন।”

আমার বই “মিষ্টি নামের তিক্ত রোগ” - এই অদৃশ্য সত্যগুলোকে একে একে সামনে নিয়ে এসেছে। এখানে শুধু তথ্য নয়; আপনি কীভাবে HOMA-IR কমাবেন, কীভাবে ইনসুলিন রেজিস্ট্যান্স ভাঙবেন, কীভাবে শরীর আবার নিজের হাতে সুগারকে নিয়ন্ত্রণ করতে শুরু করবে - সেই পথ দেখায়। এই বইটি পড়ে আপনি বুঝতে পারবেন ডায়াবেটিস কোনো শত্রু নয়, বরং ডায়াবেটিস হচ্ছে আপনার জীবনের একটি আয়না; যে আয়না দেখে আপনি আপনার জীবনকে নতুনভাবে গুছিয়ে নিতে পারেন।

krishnadebnath709104

হিমোগ্লোবিনের মাত্রা নর্মাল থাকলে কি কারো শরীরে বাইরে থেকে রক্ত দেওয়া হয় ? না, দেওয়া হয় না। তাহলে কারোর শরীরে ইনসুলিনের পরিমাণ স্বাভাবিক থাকা সত্ত্বেও তাকে বাইরে থেকে ইনসুলিন নিতে বলা হয় কেন ? এই ধরনের ভুল চিকিৎসার কারণে সুগারের রোগীরা কখনোই সুস্থ হতে পারে না।
টাইপ টু ডায়াবেটিস সুগার বাড়ার রোগ না, এটা হচ্ছে ইনসুলিন বাড়ার রোগ। বেশি বেশি ইনসুলিন নিঃসরণের কারণেই শরীরে ইনসুলিন রেজিস্ট্যান্স তৈরি হয়েছে। তাই শরীরের কোষগুলো আর ইনসুলিনকে পাত্তা দেয় না। এই অবস্থায় সঠিক চিকিৎসা হবার কথা ছিল, ইনসুলিন কমিয়ে এনে রেজিস্ট্যান্স ভেঙে দেওয়া। তা না করে উল্টে আরও বেশি করে ইনসুলিন ঢোকানো হয়। এজন্যই সুগার ঠিক হয় না।
"মিষ্টি নামের তিক্ত রোগ" বইটিতে এই ধরনের সমস্ত বিষয়গুলো নিয়েই আলোচনা করা হয়েছে। এই বইটিতে যে সকল বাস্তব অভিজ্ঞতার কথা তুলে ধরা হয়েছে, সেগুলো ফলো করে চললেই একজন মানুষ সুগারের শৃঙ্খল থেকে মুক্ত হতে পারবেন।
এই বই ওষুধ খাওনোর পথ দেখায় না, বরং নিজের শরীরকে আবার সুগার নিয়ন্ত্রণের ক্ষমতা ফিরিয়ে দেওয়ার পদ্ধতি শিখিয়ে দেয়। ডায়াবেটিস থেকে মুক্তি কোনো জাদু নয়, এটা শরীরের স্বাভাবিক বুদ্ধিকে জাগিয়ে তোলার প্রক্রিয়া।

krishnadebnath709104

All are cordially invited to the Pujyashree Deepakbhai's Spiritual Discourse and Self-Realization ceremony, organized in Vadodara, India.

Get the detailed schedule here: https://dbf.adalaj.org/uY9qBrXY

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dadabhagwan1150

मन के विचलित लोग

मन के विचलित लोग बड़े अजीब होते हैं,
हँसते हैं भीड़ में, भीतर से अकेले होते हैं।
चेहरों पर मुस्कान का नक़ाब लगाए फिरते,
और रातों को अपने ही सवालों से लड़ते हैं।

हर बात पर चुप्पी, हर चुप्पी में शोर,
इनकी खामोशी में भी छुपा होता है कोई शोर।
किसी से कह न पाएँ अपना दर्द-ए-दिल,
काग़ज़ों पर बहा देते हैं अपने आँसू हर पल।

ये वो लोग हैं जो खुद से रोज़ हारते हैं,
और दुनिया के सामने जीत का ढोंग करते हैं।
भीतर बिखरते हैं, बाहर सधे रहते हैं,
अपने ही टूटे सपनों पर पहरे रहते हैं।

इनके शब्दों में अक्सर तल्ख़ी बस जाती है,
क्योंकि खुशियों ने इन्हें देर से पहचाना है।
हर रिश्ता बोझ लगे, हर वादा चुभता है,
जब मन टूटा हो, हर सहारा डगमगाता है।

ग़लत नहीं ये, बस बहुत थके हुए हैं,
दुनिया के शोर से थोड़े डरे हुए हैं।
इन्हें दोष न देना, इन्हें बस समझना है,
इनके भी भीतर किसी ने रोशनी भरना है।

कभी इनसे भी मुस्कान की कीमत मत पूछो,
क्योंकि इन्होंने आँसुओं से उसे खरीदा है।
मन के विचलित लोग बस यही सिखाते हैं,
कि मजबूत वही, जो भीतर से टूटा है।

आर्यमौलिक

deepakbundela7179

खुद को कैसे रखूं

तेरी चाहत में मैं खुद को कितना फ़िदा रखूं,
याद में तेरी खुद को ज़िन्दा रखूं या मुर्दा रखूं।

हर साँस में तेरा ही नाम उतर आता है,
बताओ इस धड़कते दिल को अब कितना बहला रखूं।

तेरी आँखों की नमी मेरी तन्हाई बन गई,
इस खामोशी को सीने में कब तक सजा रखूं।

तू पास नहीं, फिर भी हर लम्हा साथ है,
इस झूठे सहारे को किस हद तक सच्चा रखूं।

कभी लगता है छोड़ दूँ सब तेरा नाम लेकर,
कभी डरता हूँ ज़िन्दगी से भी दूर ना चला जाऊं।

तेरी बेरुख़ी मेरे सब्र की इंतिहा है,
या तो इश्क़ छोड़ दूं या खुद को मिटा रखूं।

तो बता ऐ मोहब्बत… ये कौन-सा रिश्ता है,
जिसे निभाऊँ तो टूटूं, जिसे तोड़ूं तो बिखर जाऊं।

तेरी चाहत में मैं खुद को कितना फ़िदा रखूं,
याद में तेरी खुद को ज़िन्दा रखूं या मुर्दा रखूं…

आर्यमौलिक

deepakbundela7179

"इश्क़ की कसक"

तेरी चाहत में अब जीना भी तो दुश्वार हो गया,
रोता है दिल उस दिन को क्यों तुझसे प्यार हो गया।

हँसते थे जो ख्वाब कभी मेरी हर रात में,
आज हर सपना आँसुओं का बीमार हो गया।

तेरे बिना हर लम्हा सजा बनकर ढलता रहा,
वक़्त भी जैसे मुझसे ख़फ़ा यार हो गया।

तेरी बातों की खुशबू जो रग-रग में बसी थी,
अब वही हर एहसास तलबगार हो गया।

मैंने तो तुझमें ही खुदा को देख कर पूजा था,
तू बेवफ़ा निकला और इмиान हार हो गया।

रिश्तों की उस किताब में नाम तेरा था सबसे ऊपर,
पन्ना वही आज दर्द का अख़बार हो गया।

अब दुआ भी करती है मुझसे सवाल हर रात,
क्यों तेरा इश्क़ ही मेरा इम्तहान हो गया।

आर्यमौलिक

deepakbundela7179

जीवन का सत्य ✧

हार जैसा कुछ होता ही नहीं

जो लोग जीवन को
सिर्फ प्रतियोगिता मानते हैं —
उन्हें हर जगह हार-जीत दिखती है।

पर जो जीवन को
अनुभव मानते हैं —
उन्हें हर दिशा में सीख, गहराई और विकास मिलता है।

---

जीवन के परिणाम केवल दो होते हैं:

1️⃣ या तो हम सीख जाते हैं
2️⃣ या फिर हम सिखा जाते हैं

> हार कहाँ है…? जीत कहाँ है…?

हर परिणाम — विकास है।

---

सबसे बड़ी भूल

लोग कहते हैं:
“जीतोगे तो ऊँचे बनोगे,
हारोगे तो मिट जाओगे।”

पर सच्चाई यह है:

> जीवन में हार = सीख का जन्म
जीवन में जीत = सीख का उपयोग

दोनों ही प्रगति हैं।
दोनों ही तुम्हारे हैं।

---

एकमात्र जगह जहाँ हार-जीत का मतलब है:

जीवन और मृत्यु की अंतिम बाज़ी।
यहाँ भी:

जो मरने को
पूरी स्वीकार्यता से तैयार —
वह मृत्यु में भी विजय पाता है।

> जिसने मृत्यु को स्वीकार लिया —
उसकी हर साँस जीत है।

---

जीवन का असली पैमाना

• हम क्या जीते?
• हम क्या हार गए?
यह सब महत्वहीन है।

महत्वपूर्ण है:

> क्या सीखा?
और क्या लौटाया?

जीवन का मूल्य —
अनुभव और योगदान से तय होता है।
जीत-हार से नहीं।

---

निष्कर्ष

(तुम्हारी वाणी को एक सूत्र में)

> जीवन में हार नहीं है —
या तो सीख है
या उपलब्धि है
या अनुभव का दान है।

और मृत्यु?
वह भी हार नहीं —
अंतिम मुक्ति है।

---

वेदांत 2.0 — जीवन दर्शन

> जहाँ अहंकार समाप्त —
वहाँ हार समाप्त।

> जहाँ सीख आरंभ —
वहाँ जीवन आरंभ।

bhutaji

कथा: “जब धर्म ने खुद जीना शुरू किया” ✧

वेदान्त 2.0

नगर के बीचों-बीच एक पुराना मठ था—ऊँची-ऊँची दीवारों वाला, जहाँ सैकड़ों लोग हर दिन किसी न किसी चमत्कार की उम्मीद लेकर आते थे।
मंच सजे रहते थे, भाषण चलते रहते थे, और बाहर दानपेटियाँ खनकती रहती थीं।

उसी मठ के पीछे, जहाँ लोग कभी नहीं जाते थे, एक सूखा-सा कुआँ था।
कुएँ के किनारे एक साधारण आदमी बैठता था—न वस्त्र चमकीले, न शब्द सजे-धजे। लोग उसे भिक्षुक समझकर आगे बढ़ जाते थे।

लेकिन एक दिन शहर में अफ़वाह फैली:

“कुओं के पीछेवाला आदमी कुछ नहीं कहता—बस जीता है।
और जो उसके पास पाँच मिनट बैठता है… लौटकर बदल जाता है।”

जो लोग मंचों पर शोर मचाते थे, वे इस अफ़वाह से बेचैन हुए।
क्योंकि वह आदमी कुछ बेच नहीं रहा था।
न मंत्र, न आशा, न मोक्ष।
वह सिर्फ़ कुयेँ की धूप में आँखें मूँदकर बैठा रहता था—जीवन जैसे बिना किसी उद्देश्य के, फिर भी पूर्ण।

धीरे-धीरे लोग मठ के गलियारों से हटकर पीछे की तरफ़ चलने लगे।
मंच खाली होने लगे।
दुकानें सुनी हो गईं।
भाषणों की आवाज़ें धुँधली पड़ने लगीं।

मठ के गुरु क्रोधित हुए।
उन्होंने अपने शिष्यों को भेजा:

“जाकर पता करो, वह आदमी क्या करता है?”

शिष्य पीछे पहुँचे और उसे देखा—
वह आदमी रोटी खा रहा था।
साधारण, सूखी रोटी।
एक फटा-सा कपड़ा ओढ़े।
चेहरे पर शांत, निर्विकार भाव।

शिष्यों ने पूछा,
“तुम क्या सिखाते हो?”

वह मुस्कुराया,
“मैं कुछ नहीं। मैं केवल जीता हूँ।”

“और लोग तुमसे क्यों खिंचते चले आते हैं?”

उसने सिर उठाकर फूलों से भरी झाड़ी को देखा।
एक मधुमक्खी गूँजते हुए आकर उस पर बैठ गई।
फिर और दो।
फिर और पाँच।

वह बोला,
“क्या तुमने कभी किसी पुष्प को प्रचार करते देखा है?
वह सिर्फ़ खिलता है—इसलिए दुनिया उसके पास आती है।”

शिष्य निरुत्तर हो गए।
उन्होंने गुरु को सारा हाल बताया।

गुरु समझ गए कि खतरा किसी सिद्धि का नहीं—
खतरा जीवन का है।
जो व्यक्ति खुद जी लेता है, वह न खरीदता है, न बिकता है,
और जहाँ व्यापार नहीं, वहाँ बाज़ार ढह जाता है।

मठ में सभा बुलाई गई।
गुरु ने घोषणा की:

“उस साधारण आदमी को रोकना होगा।
अन्यथा हमारा धर्म व्यवसाय नहीं रह पाएगा।”

लेकिन उसी रात एक अजीब घटना घटी—
मठ के बाहर से भीड़ हट गई,
और लोग चुपचाप पीछे के कुएँ की तरफ़ बढ़ने लगे।

किसी ने बुलाया नहीं था।
किसी ने घोषणा नहीं की थी।
फिर भी लोग पहुँच रहे थे—मानो किसी अदृश्य खिंचाव से।

गुरु ने खिड़की से देखा:
जो भीड़ कभी उनके मंच पर बैठती थी,
वह अब एक फटे वस्त्रों वाले आदमी के चारों ओर शांत बैठी थी।
किसी प्रवचन की अपेक्षा नहीं—
बस उसके होने की उपस्थिति में।

उस रात गुरु ने समझ लिया:

धर्म तब मरता है जब वह दुकान बन जाता है।
और धर्म तब जन्म लेता है जब कोई व्यक्ति निर्भीक होकर जी लेता है।

bhutaji

हर जगह समझदारी नहीं दिखानी चाहिए....✍️
PAAGLA – A heart that speaks through words. 💭✨ Sharing emotions, shayari, quotes, and stories that touch your soul. From love to pain, from motivation to dreams – here, every line is written to connect with your heart. ❤️📖

jaiprakash413885

ખોવાણો છું ભુલભુલામણીમા,
શોધું એક રસ્તો બહાર લાવવા,

અજાણ છું દીવો પ્રગટાવવા,
શોધું એક પ્રકાશ બહાર લાવવા,

બધાં કરે કઈક જુદું પોતાની જાતે,
શોધું એક કારણ બહાર લાવવા,

છે હાજર તારામાં એ રસ્તો અને પ્રકાશ,
શોધ્યાં કર, પ્રયત્ન કર, એ બહાર લાવવા.

મનોજ નાવડીયા

manojnavadiya7402

✧ वेदांत 2.0 — चिकित्सा का अंतिम न्याय ✧

तीन प्रकार की चिकित्सा

पद्धति कहाँ काम करती है? क्या देखती है? परिणाम

एलोपैथी शरीर जीवाणु, वायरस, लक्षण अस्थायी राहत, दुष्प्रभाव, नया रोग
होम्योपैथी सूक्ष्म ऊर्जा आघात, मानसिक-ऊर्जा चोट कारण की शुद्धि
आयुर्वेद तीन दोष / प्रकृति सत-रज-तम / वात-पित्त-कफ संतुलन → रोग का अंत



---

✦ विज्ञान क्या देखता है?

“रोग क्यों हुआ?” नहीं
बल्कि
“अभी क्या लक्षण दिख रहे हैं?”

इसलिए वह जीवाणु से लड़ता है।
पर जीवाणु पैदा किसके कारण हुए?
यह कभी नहीं पूछता।

> जीवाणु = परिणाम
जीवनशैली = कारण



कारण को न छूकर कौन-सा इलाज पूरा हुआ?


---

✦ आयुर्वेद और होम्योपैथी क्या समझते हैं?

दोनों एक ही विज्ञान पर आधारित:

> रोग = ऊर्जा असंतुलन
इलाज = ऊर्जा का संतुलन



Ayurveda →
वात, पित्त, कफ (ऊर्जा प्रवाह की 3 दिशाएँ)

Homeopathy →
आघात (ऊर्जा को लगा सूक्ष्म झटका)

दोनों कहते हैं:

> अगर ऊर्जा ठीक है →
शरीर स्वयं ठीक हो जाएगा।




---

✦ एलोपैथी के दुष्परिणाम क्यों?

क्योंकि:

• लक्षण दबा देता है
• रोग जड़ में और गहरा बैठ जाता है
• रसायन शरीर के तंत्र को तोड़ते हैं
• अगले रोग की सम्भावना बढ़ती है

वैज्ञानिक स्वयं कहते हैं:

कई दवाएँ कैंसर-जनक हैं
(फिर भी बाजार जारी है)

क्यों?

क्योंकि —
बीमारी जितनी बढ़ेगी
व्यवसाय उतना बड़ा होगा।


---

बिना जीवन जीना —

सबसे बड़ा रोग

एलोपैथी →
“ठीक कर दूँगा, तुम बस दबाओ!”

वेदांत 2.0 →
“जीओ…
तुम्हारा शरीर खुद ठीक कर देगा।”


---

वेदांत 2.0 का स्पष्ट निर्णय

1️⃣ एलोपैथी = परिणाम पर हमला
2️⃣ आयुर्वेद + होम्योपैथी = कारण पर उपचार
3️⃣ वेदांत 2.0 = जीवन में संतुलन → रोग शून्य


---

आख़िरी सत्य जिस पर दुनिया खामोश है:

> रोग = स्वयं नहीं जीने की सज़ा है
इलाज = स्वयं होने की आज़ादी है




---

अब एक वाक्य में तुम्हारे दर्शन का सार

> “जहाँ जीवन नहीं जिया — वहाँ रोग पैदा हुआ।
जहाँ जीवन फिर जगा — वहाँ रोग गिर गया।”



यही
वेदांत 2.0 का चिकित्सा-सूत्र है।

bhutaji

“नाते

तुझे माझे नाते जणु गवताचे पाते
हिरवे हिरवे गार ..
आणी” स्वच्छंदी” फार .!!
तुझे माझे नाते
जणु फुलाचा दरवळ
पसरे परिमळ चोहीकडे !!
तुझे माझे नाते
साऱ्या जगाला दाविता
वाढतो ग “मान “मिरविता “!!
तुझे माझे नाते
फक्त तुझ्या माझ्या साठी
कशाला सांगाव्या जनी त्यांच्या “गोष्टी “

...........वृषाली ..

jayvrishaligmailcom

Good morning friends have a great day

kattupayas.101947

तुझे तुझ जैसे से,
मुझ जैसा इश्क हो...

🌸

kishorshrimali4376

ઠંડી છે...શોધી રહી છું.. તાપણું 🔥
કોઇ તો મળે આટલા માં આપણું 🤌🏻

shabdo

संपूर्ण आध्यात्मिक महाकाव्य — पूर्ण दृष्टा विज्ञान

वेदांत 2.0 ✧

आपको क्या करना है?
कुछ भी नहीं।
सिर्फ समझना है।
देखना है।
जीना है।

यहाँ कोई धर्म, कोई विश्वास,
कोई कठोर साधना, मंत्र, तंत्र,
त्याग या तपस्या की आवश्यकता नहीं।

न गुरु की ज़रूरत

न भगवान की मजबूरी

न मार्ग की गुलामी

जीवन स्वयं गुरु है।

---

यह क्या है?

वेदांत 2.0 —
एक जीवित विज्ञान है।
ऊर्जा और चेतना का
सटीक, प्रत्यक्ष, अनुभवजन्य विज्ञान।

✔ शुद्ध आध्यात्म
✔ शुद्ध विज्ञान
✔ शुद्ध मनोविज्ञान
✔ शुद्ध अनुभव

कोई पाखंड नहीं।
कोई डर नहीं।
कोई भ्रम नहीं।

---

क्यों यह अंतिम है?

क्योंकि यह दोनों सत्य को जोड़ता है:

वेद — सूक्ष्म का विज्ञान
विज्ञान — दृश्य का सत्य

वेदांत 2.0
वेद, उपनिषद और गीता को
अनुभव में प्रमाणित करता है —

और आधुनिक विज्ञान को
अस्तित्व में स्थापित करता है।

> यहाँ आध्यात्मिकता = प्रमाण
विज्ञान = अनुभव की भाषा

---

परिणाम क्या होगा?

वेदांत 2.0
आपको:

• आनंद देगा
• शांति देगा
• प्रेम देगा
• सृजन देगा
• बुद्धि नहीं — दृष्टि देगा

यह जीवन को
निखार देता है।
यह मन, समाज, धर्म के
सभी दुख, डर, भ्रम तोड़ देता है।

धन, पद, साधन —
सब अतिरिक्त हो जाते हैं।

जीवन —
मुख्य हो जाता है।

---

वेदांत 2.0 की एक पंक्ति

> “जीवन ही साधना है —
और होश में जीना ही परम सत्य।”

---

यह दर्शन नहीं —

यह जीवन का विज्ञान है

यह
किसी पंथ का रास्ता नहीं
किसी धर्म की प्रतिस्पर्धा नहीं
किसी गुरु का बाजार नहीं

यह पूर्ण स्वतंत्रता है।
व्यक्ति की —
ऊर्जा की —
अस्तित्व की —

---

वेदांत 2.0 का ध्येय

> हर मनुष्य को
स्वयं का विज्ञान देना
ताकि वह
किसी का भक्त नहीं —
स्वयं साक्षी बन जाए।

bhutaji

✧ वेदांत 2.0 — अध्याय 8 ✧

सत्य से सबसे ज़्यादा डर किसे लगता है?

सत्य धार्मिक को नहीं भाता —
क्योंकि सत्य आते ही
उनका बनाया हुआ झूठ
उनकी कुर्सी
उनका व्यवसाय
सब समाप्त हो जाता है।

विज्ञान जब सत्य लाता है —
तो दुनिया बदलती है।

धर्म जब “विश्वास” लाता है —
तो वही दुनिया
जड़ और भयभीत बनी रहती है।

---

धार्मिकता = स्वप्न

वेदांत 2.0 = अनुभव

धार्मिकता कहती है:
“मानो, बिना पूछे मानो!”

वेदांत 2.0 कहता है:
“देखो, अनुभव करो —
जो झूठ है वह अपने-आप गिर जाएगा।”

इसलिए:

धार्मिक व्यक्ति सत्य देखते ही डरता है
वैज्ञानिक व्यक्ति सत्य देखते ही खिलता है

---

सत्य किसका शत्रु है?

सत्य → अहंकार का शत्रु
सत्य → पाखंड का शत्रु
सत्य → व्यवसाय का शत्रु

धर्म ने
जीवन का सौदा कर दिया —
मोक्ष, पुण्य, भगवान, चमत्कार बेच दिए।

जबकि अनुभव में मिलता है:
• आनंद — अभी
• शांति — अभी
• प्रेम — अभी
• जीवन — अभी

---

धर्म का खेल कैसे चलता है?

धर्म:
“अभी नहीं — बाद में मिलेगा।”
यही भरोसा,
यही डर,
यही स्वप्न —
धार्मिक बाज़ार की पूँजी है।

और जिसने अभी का स्वाद चख लिया —
वह किसी बाज़ार में नहीं टिकता।

---

सत्य — मृत्यु किसकी?

> सत्य आने पर
व्यक्ति नहीं —
व्यक्ति का झूठ मरता है।

धार्मिक इसे अपनी मृत्यु समझ लेते हैं।
क्योंकि उनका अस्तित्व
झूठ की ही नींव पर टिका होता है।

वेदांत 2.0 कहता है:
“अहम् मरता है — अस्तित्व प्रकट होता है।”

---

क्यों वैज्ञानिक इसे स्वीकार करेगा?

क्योंकि:

✓ यह अनुभव है
✓ यह मनोविज्ञान है
✓ यह ऊर्जा-विज्ञान है
✓ यह पुनरुत्थान है
✓ यह प्रत्यक्ष प्रमाण है

विज्ञान सत्य की भाषा समझता है —
धार्मिक “मेरा” भगवान।

---

स्त्री इसे तुरंत समझ जाती है

स्त्री
हृदय में जन्मती है
इसलिए उसे सत्य को
सोचना नहीं पड़ता —
वह महसूस कर लेती है।

धार्मिक पुरुष
अहंकार में जन्मता है
इसलिए उसे सत्य
भय देता है।

---

अंतिम सार

> जहाँ सत्य है — वहाँ कोई धर्म नहीं
जहाँ धर्म है — वहाँ सत्य अक्सर अनुपस्थित

वेदांत 2.0
धर्म को नहीं गिराता,
धर्म के भीतर जीवन को जगाता है।

---

एक सीधी घोषणा

धार्मिक कहेगा:
“यह नास्तिकता है!”

वैज्ञानिक कहेगा:
“यह परम-आस्तिकता है!”

और अनुभव कहेगा:
“यह सत्य है।”

---

वेदांत 2.0 का महावाक्य

> जिस सत्य से धर्म डरता है —
उसी सत्य की रक्षा विज्ञान करता है।

bhutaji

कर्मही महान है। 🌹🙏🌹

drbhattdamayntih1903

भारतीय संविधान दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।🌹🙏🌹

drbhattdamayntih1903

वेदांत 2.0 — स्त्री-पुरुष का मौलिक धर्म ✧
पुरूष = यात्रा

स्त्री = घर (केंद्र)

धर्म, कर्मकांड, साधना, उपाय —
ये सब पुरुष के लिए हैं।
क्योंकि पुरुष जर्नी है —
उसे मूलाधार से हृदय तक
चढ़ते हुए सीखना पड़ता है —

1️⃣ मूलाधार — जीवन
2️⃣ स्वाधिष्ठान — वासना
3️⃣ मणिपुर — शक्ति
4️⃣ अनाहत — प्रेम

पुरुष सीखकर पहुँचता है।
प्रेम, करुणा, ममता —
पुरुष में उगाने पड़ते हैं।

इसलिए पुरुष का धर्म —
विकास है
ऊपर उठना है
अहंकार पिघलाना है
हृदय तक पहुँच जाना है

उससे पहले उसका प्रेम —
अभिनय है।
शब्दों की नकल है।
बुद्धि का ड्रामा है।

इसी बुद्धिगत अभिनय को
दुनिया धर्म समझ बैठी है।
यही धार्मिक व्यापार है।

---

स्त्री = पूर्ण, जन्म से

उसकी कोई साधना नहीं
क्योंकि:

> स्त्री वहीं जन्म लेती है
जहाँ पुरुष को पहुँचने में जन्म-जन्म लग जाते हैं

स्त्री पहले ही:

✔ हृदय में होती है
✔ प्रेम, करुणा, ममता उसका स्वभाव है
✔ वह “केंद्र” पर खड़ी है
✔ उसे “बाहरी शिक्षा” की जरूरत नहीं

उसकी एक ही आवश्यकता है —

> पुरुष की आँखों में
प्रमाण कि “तुम हो”

बाकी सब
उसे जन्म से मिला है।

---

आधुनिक बीमारी

स्त्री पुरुष की नकल करने लगी
पुरुष स्त्री की संवेदना खोने लगा

स्त्री —
अपनी मौलिकता छोड़कर
प्रतिस्पर्धी बन गई
जिसे दुनिया “फैशन”, “फ़्रीडम” कहती है —
असल में अपनी मूल स्त्रीत्व से पलायन है।

पुरुष —
आक्रामक और बुद्धिगत हो गया
जिसे “स्मार्ट”, “मॉडर्न” कहते हैं —
असल में हृदयहीनता है।

दोनों अपनी जड़ से कट गए।

---

धर्म क्या है?

स्त्री = केंद्र
पुरुष = परिधि

पुरुष का धर्म है —
परिधि से केंद्र तक पहुँचना

स्त्री का धर्म है —
केंद्र को स्थिर रखना

पुरुष का उठना आध्यात्मिकता है
स्त्री का होना ईश्वर है

---

अंतिम सत्य

> स्त्री और पुरुष —
विपरीत नहीं
परिपूर्ण हैं।

स्त्री ऊर्जा है
पुरुष दिशा है

स्त्री शक्ति है
पुरुष आँख है

एक दूसरे के बिना
दोनों अधूरे
दोनों पीड़ा

---

वेदांत 2.0 का स्त्री-पुरुष सूत्र

1️⃣ पुरुष साधना करता है → हृदय तक पहुँचने के लिए
2️⃣ स्त्री साधना नहीं करती → वह पहले ही हृदय है
3️⃣ पुरुष का प्रेम बनता है → स्त्री का प्रेम जन्मता है
4️⃣ पुरुष प्रमाण खोजता है → स्त्री प्रमाण देती है
5️⃣ धर्म = पुरुष की यात्रा + स्त्री का घर

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निष्कर्ष

> जहाँ स्त्री अपने केंद्र में रहती है —
वही मंदिर है।
जहाँ पुरुष उसी केंद्र तक पहुँच ले —
वही समाधि है।

यही
स्त्री-पुरुष का वास्तविक धर्म है —
वेदांत 2.0 का
जीवंत विज्ञान।

अज्ञात अज्ञानी

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