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मोदी, रागा और अरके अरावली को नष्ट क्यों करना चाहते हैं — भारत में मैन्युफैक्चरिंग की मौत के कारण फॉरेक्स की कमी। EVM, ज़मीन की ऊँची कीमतें, GST, जज सिस्टम और दुर्लभ चुनावों की वजह से भारत में मैन्युफैक्चरिंग खत्म हो रही है। लेकिन कोई भी पंखा, मोबाइल या AC जैसे सामान के बिना जी नहीं सकता। इसलिए मोदी, रागा और अरके चीनी सामान पर कस्टम ड्यूटी घटाकर आयात को बढ़ावा दे रहे हैं। आयात ज़्यादा, निर्यात कम। यह स्थिति एक साल भी टिकाऊ नहीं है। इसलिए मोदी, रागा और अरके ने फैसला किया है कि अरावली की खनन करके मार्बल, ग्रेनाइट, कोटा स्टोन आदि चीन, पाकिस्तान, ईरान, सऊदी अरब, बांग्लादेश आदि देशों को निर्यात किया जाए ताकि फॉरेक्स मिल सके। मैं जो समाधान प्रस्तावित करता हूँ वह है — पर्यावरण मंत्री पर राइट टू रिकॉल। आप के राज्यसभा सांसद राघव चड्ढा, जो एक नकली रिकॉलिस्ट हैं, उन्होंने पर्यावरण मंत्री पर RTR का विरोध किया है। और सभी सेलेब्रिटीज़ ने भी पर्यावरण मंत्री पर RTR का विरोध किया है।
(1) भ्रष्ट सुप्रीम कोर्ट जजो द्वारा खनन माफिया को अरावली में प्रवेश करने की जो अनुमति दी गयी है, उसके परिणामस्वरूप अगले 50 वर्षों में अरावली के इस पार स्थित राजस्थान के दर्जन भर जिले - भीलवाड़ा, अजमेर, ब्यावर, चित्तौड़, जयपुर, अलवर, कोटा, बूंदी, दौसा आदि रेगिस्तान होना शुरू हो जायेंगे, और अगले 100 वर्षों में रेगिस्तान दिल्ली, मध्यप्रदेश, बिहार एवं उत्तरप्रदेश आदि राज्यों को पूरी तरह अपनी चपेट में ले लेगा !! . (2) इसमें कोई अतिशियोक्ति नहीं है, यह भौगोलिक एवं पारिस्थितिकी तंत्र की सच्चाई है !! पूरा उत्तर भारत रेगिस्तान नहीं है, तो इसकी एक मात्र वजह अरावली है। इस बात को समझने के लिए विशेषज्ञ होने की जरूरत नहीं है, जिस भी व्यक्ति ने कक्षा 12 की पाठ्यपुस्तकों में राजस्थान का भूगोल पढ़ा है, या अरावली के इस पार के जिलों से उस पार के जिलों में गया है, या कम से कम अजमेर से कभी पुष्कर भी गया है, तो वह इस बात को समझ सकता है। . (3) पर्यावरण को तबाह करने वाले ऐसे फैसले निरंतर किए जा रहे है, और आगे भी किए जाते रहेंगे। क्योंकि इसके पीछे पैसा है। अकूत पैसा। माइनिंग माफिया जो पैसा लूटता है, उसमें से एक हिस्सा प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और जजों को देता है। और पर्यावरण मंत्री नाम की चिड़िया को तो वे चिल्लर के भाव भी नहीं गिनते। क्योंकि पर्यावरण मंत्री की नौकरी पीएम की कृपा पर रहती है। . (4) स्थायी समाधान सिर्फ यह है कि, पर्यावरण मंत्री को वोट वापसी पासबुक के दायरे में लाया जाये। इससे पर्यावरण मंत्री की छोटी पीएम एवं खनन माफिया के हाथ से निकल कर नागरिकों के हाथ में आ जाएगी। और तब, सिर्फ तब ही पर्यावरण को तबाह करने वाले ऐसे फैसलों को रोका जा सकता है। . (5) बड़ी समस्या यह है कि भारत में पर्यावरण वादी जितने भी लीडर-फ़्री लोडर (जग्गी वासुदेव, प्रशांत त्रिपाठी, वन्दना शिवा आदि) है, उन सभी को अपना धंधा चलाने और ख्याति लाभ के लिए यू ट्यूब, फेसबुक, ट्विटर और पेड मीडिया का समर्थन चाहिए और सोशल मीडिया और पेड मीडिया को माइनिंग माफिया स्पॉन्सर करता है। इसलिए ये फ़्री लोडर्स पर्यावरण मंत्री को वोट वापसी के दायरे में लाने की माँग का विरोध करते है, और अपने कार्यकर्ताओं को अराजनैतिक बनाए रखने के भाषण-प्रवचन देकर उन्हें उलझाए रखते है। . (6) मेरा सुझाव है कि जो कार्यकर्ता पर्यावरण बचाना चाहते है, उन्हें पर्यावरण मंत्री को वोट वापसी पासबुक के दायरे में लाने के कानून की मांग खड़ी करने के लिए काम करना चाहिए। यदि एक बार पर्यावरण मंत्री वोट वापसी पासबुक के दायरे में आ जाता है तो अरावली भी बचेगी, आरे के जंगल भी बचेंगे, गंगा-यमुना भी बचेगी, और उत्तराखंड भी बचेगा। वरना एक एक करके सब कुछ उजड़ेगा। ये लोग पूरा का पूरा पारिस्थितिक तंत्र तबाह कर देंगे। जल, जंगल, जमीन सब कुछ। अभी अरावली निशाने पर है, कल सतपुड़ा और नीलगिरी। . मैं आज जद पे हूँ तो खुशगुमान न हो, चिराग सब के बुझेंगे हवा किसी की नहीं!! . ——————- #वोट_वापसी_पासबुक #जूरी_कोर्ट
सभी देशो की सभी सरकारे एवं उनके नेता एंटी नेशनल होते है. कोई अपवाद नहीं, कोई भी अपवाद नहीं ! जितना मैंने समझा है उस आधार पर कह सकता हूँ कि राजनीति का ककहरा इस समझ से शुरू होता है कि — देश को सबसे बड़ा खतरा सरकार से ही होता है. फर्क सिर्फ इतना है कि जिस देश में अवाम के पास सरकार में बैठे लोगो को नियंत्रित करने की ज्यादा प्रक्रियाएं है वहां पर सरकार की देश को तबाह करने की क्षमता कम हो जाती है. तो यदि किसी समय आपको लगता है कि सरकार अच्छा काम कर रही है या सरकार ने अच्छा फैसला किया है तो तुरन्त आपको इस दिशा में सोचना शुरू करना चाहिए कि इस "अच्छे फैसले" के पीछे वास्तव में सरकार की क्या साजिश है !! . क्योंकि सरकार कभी भी किसी भी स्थिति में जन हित के फैसले नहीं करती !! पिछले 20 साल में मेरे पास ऐसा एक भी उदाहरण नहीं है जब किसी सरकार ने जनहित में स्वेच्छा से कोई फैसला किया हो !! . सरकार यानी राजवर्ग वे मांसाहारी पशु है जो हर समय शाकाहारी जीवो (प्रजा) का शिकार करने की घात में रहते है !! ----
हिंदुओं की हालत की जिम्मेदार हिन्दू धर्म गुरु , बाबा , पुजारी आदि हैं । सिक्खों , मुस्लिमो की अपनी व्यवस्था थी जिसे अगर सरकार छिनती है तो सरकार पर आरोप बनता है । पर हिंदुओं की कोई व्यवस्था ही नही थी । और ज्यादातर हिन्दू मठाधीश , धर्मगुरु , बाबा नही चाहते कि ऐसी कोई व्यवस्था बने । हिन्दूबोर्ड के ना आने में ज्यादा जिम्मेदार ये लोग हैं । धर्म के मामले में ज्यादातर लोग नेता या सरकार की नही अपने धर्मगुरु की सुनते हैं । और हिन्दू धर्मगुरु सिर्फ यही चाहते हैं कि हिन्दू धार्मिक ज्ञान गप्पे गहन आध्यात्मिक चर्चों में लगा रहे या गुरु की जयकारे की करता रहे , ये कभी ना सोचे कि दान के पैसे का क्या होगा । यही उनका बिजनेस है । . आजतक किसी छोटे मोटे हिन्दू गुरु ने भी हिन्दुबोर्ड की मांग नही उठाई , उसका महत्व अपने अनुयायियों को नही समझाया , इस विषय मे रुचि नही ली । पर हम आरोप सिर्फ सरकार पर ही लगाते हैं । क्यों कि धर्म गुरुओं पर आरोप लगाना नेताओं पर आरोप लगाने से ज्यादा महंगा पड़ता है ।
SIR का लक्ष्य केवल इतना है कि बिकाऊ NGO-मुखिया प्रजातंत्र समर्थक कार्यकर्ताओं को गुमराह कर सकें, ताकि प्रजातंत्र समर्थकों को EvmBlackGlass डेमो देखने का समय न मिले। इसके अलावा कोई और लक्ष्य नहीं है!!! भारत में लगभग 1 करोड़ सच्चे “कार्यकर्ता” हैं। अधिकांश कार्यकर्ता अपनी 90% ऊर्जा और समय केवल 1–2 मुद्दों पर लगाना चाहते हैं। उदाहरण के लिए—कुछ केवल कुत्तों के लिए काम करना चाहते हैं और कुछ नहीं। कुछ केवल पेड़ों को बचाना चाहते हैं। कुछ के लिए सक्रियता का मतलब सिर्फ शाकाहार/वीगनिज़्म है। कुछ के लिए सक्रियता हिन्दू–मुस्लिम मुद्दे से शुरू होकर वहीं खत्म होती है। कुछ के लिए सक्रियता सिर्फ “रागा का विरोध” या “मोदी का विरोध” है। कुछ केवल स्वास्थ्य मुद्दों पर काम करते हैं। ये कार्यकर्ता पैसों के लिए नहीं हैं। कुछ 30–40 साल पहले बड़ी संख्या में गरीब-समर्थक कार्यकर्ता हुआ करते थे, जो समय के साथ कम हुए हैं। समय के साथ पेड़-कार्यकर्ता, वीगन कार्यकर्ता, कुत्ता-प्रेमी कार्यकर्ता, पर्यावरण कार्यकर्ता और हिन्दू-मुस्लिम मुद्दों वाले कार्यकर्ताओं की संख्या बढ़ी है। और लगभग 50 हज़ार से 1 लाख (या 10 हज़ार) ऐसे लोग हैं जो लोकतंत्र-कार्यकर्ता हैं!! यानी उनके लिए लोकतंत्र सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा है। मैं दोहराता हूँ—भारत में लगभग 50 हज़ार सच्चे कार्यकर्ताओं के लिए लोकतंत्र सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा है। अब लगभग सभी कार्यकर्ता-नेता, पत्रकार, राजनीतिक अंधविश्वास पढ़ाने वाले प्रोफ़ेसर, समाजशास्त्र के प्रोफ़ेसर आदि केवल पैसों के लिए खेल में हैं। उन्हें पैसे दिए जाते हैं ताकि कार्यकर्ताओं को व्यस्त रखा जाए, और वे EvmVoteChori, USA के चुनाव-रिकॉल ज्यूरी कानून, हथियार, खनिज, प्लॉट, प्रतिगामी कर-व्यवस्था, अफ़ीम–भांग की उपयोगिता, और भोजन/सप्लीमेंट/दवाओं में ज़हर के मुद्दों पर ध्यान न दे सकें। तो मैं फिर कहता हूँ— (1) लगभग 50 हज़ार (या 10 हज़ार) लोकतंत्र-कार्यकर्ता हैं!! यानी उनके लिए लोकतंत्र ही सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा है। (2) सभी “कारणों” के कार्यकर्ता-नेता पैसे लेकर सभी कार्यकर्ताओं को इतना व्यस्त रखते हैं कि उन्हें EvmVoteChori, रिकॉल कानून, खनिज, प्लॉट, प्रतिगामी कर-व्यवस्था और भोजन/सप्लीमेंट/दवा में ज़हर जैसे मुद्दों को देखने का समय न मिले। समस्या यह है—EvmBlackGlass डेमो प्रजातंत्र कार्यकर्ताओं के दिमाग को इस हद तक अपनी ओर खींच रहा है कि उनके नेता उन्हें “बैलट पेपर लाओ” वाले मुद्दे पर भी नहीं ला पा रहे हैं। इसलिए प्रजातंत्र-कार्यकर्ताओं को व्यस्त रखने में SIR महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। ----------------
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