मैं गुनाहगार हूँ ....................................
दुनिया सुनाती है अपनी कहनी,
कोई तो मेरी आपबीती सुन लो,
सहमी हुई हूँ मैं कोई तो मुझसे आकर मिल लो,
टखने मोड़ सिर छुपाएं धुंधली आँखों से मैं निहार रही हूँ,
बेवफा तो चला गया मैं तो फक्त इंसानियत तलाश रही हूँ ...........................
सपने बुनते - बुनते मैं खुद ही उलझ गई,
जो कभी समझा ही नहीं मुझे, मैं उसको अपना समझ गई,
कभी मेरी एक हंसी उसका दिन बना देती थी,
उसकी इसी बात पर मैं रात भर जागी रह जाती थी,
सोचने पर ऐ बेवकूफी का मुज़ायरा लगता हैं,
लेकिन सुना है मैंने ऐसे मैं होश भी बेहोश ही रहता हैं ..................................
मेरी झील सी आँखों में पानी उतर आया हैं,
खारा आँसू भी समय - समय पर त्वचा जलाने लगा हैं,
दिमाग सुन और दिल भी जवाब देने लगा हैं,
मांग रहा है ग़म मोहलत मुझे,
तू सब्र कर तेरे लिए अभी एक और इम्तिहान इंतज़ार कर रहा हैं ..................................
स्वरचित
राशी शर्मा