दोराहे .................................
मंज़िल कोई और थी रास्ता ही भटक गए,
इतना आगे बढ़ गए कि वापस मुड़ना ही भूल गए,
चाहा कुछ और था और क्या हो गया,
मेरे सपनों का जहान अधूरा ही रह गया ....................................
आगे जाने से ड़र लगता हैं,
पीछे कि याद सताती हैं,
उलझनों में डूबा हूँ,
मेरी इच्छाएं मुझे कहीं और ही ले जाना चाहती हैं ......................................
सब वहीं खड़े है जहाँ आज मैं खड़ा हूँ,
बस मानते नहीं कि मैं कितना बोझिल हो गया,
मुहाने पर खड़े हो कर नए सिरे की शुरूआत में लगे हैं,
लेकिन मेरी बारी में सब मुझे धक्का देने में लगे हैं ...........................................
स्वरचित
राशी शर्मा